कौन हैं RCP सिंह, जो अब बिहार में नीतीश कुमार की जगह लेने जा रहे हैं?
नीतीश ने भरोसा जताया और जदयू ने ख़ुद ऐलान किया
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तस्वीर 27 दिसंबर की है. RCP सिंह को अध्यक्ष चुने जाने के कार्यक्रम में नीतीश कुमार. (फोटो- PTI)
लंबे समय से नाम की चर्चा थीBihar: Janata Dal (United) workers celebrate outside party office in Patna; raise "Long Live Nitish Kumar" slogan.
Party workers say, "Nitish ji has chosen RCP Singh (Rajya Sabha MP) as JDU chief. We are celebrating it." pic.twitter.com/RyPnIzAkdF
— ANI (@ANI) December 27, 2020
RCP के नाम से फ़ेमस रामचंद्र प्रसाद सिंह को यूं भी जदयू में नंबर 2 नेता माना जाता रहा है. अब बस ये बात ऐलानिया हो गई है. दो दशक से ज्यादा हो रहे हैं इस आदमी को बिहार की नीति-रीति तय करते हुए. दो दशक से ज्यादा हो रहे हैं बिहार में JDU और नीतीश कुमार को संभालते हुए. बिहार की राजनीति पर पकड़ बनाने वाले बताते हैं कि जेडीयू के लिए चुनावों में स्ट्रेटजी तय करना, स्टेट की ब्यूरोक्रेसी को कंट्रोल करना, माने उनकी पोस्टिंग-ट्रांसफर वगैरह डिसाइड करना, सरकार की नीतियां बनाना और उनको लागू करने का A2Z जिम्मा इनका है.

इस साल की शुरुआत से ही नीतीश की ज़िम्मेदारियां उन्हें देने की भूमिका भी बनने लगी थी. पार्टी की जो बैठकें होती थीं, उनमें नीतीश के बाद RCP ही भाषण देते थे. लोकसभा में संसदीय दल के नेता राजीव रंजन सिंह का नंबर भी उनके बाद ही आता था. ऐसे में ये क़यास लगाए जाने लगे थे कि RCP किसी बड़ी भूमिका में जल्द आ सकते हैं.
JNU से पढ़े हैं, IAS हैं
मुस्तफापुर, नालंदा में रहते थे दुक्खालालो देवी और सुखदेव नारायण सिंह. उन्हीं के घर पैदा हुए रामचंद्र प्रसाद. साल था 1958, तारीख 6 जुलाई. जाति बिरादरी नीतीश कुमार वाली ही है. अवधिया कुर्मी. जाति की बात करना यहां इसलिए जरूरी है कि इंडियन पॉलिटिक्स अभी काफी हद तक जाति से ही तय होती है. खास तौर से यूपी और बिहार की. रामचंद्र की शुरुआती पढ़ाई नालंदा में ही हुई. फिर इतिहास से ग्रेजुएशन किया, पटना यूनिवर्सिटी से. इसी दौरान 21 मई सन 1982 को गिरिजा देवी से शादी हो गई. एक नई जिम्मेदारी ओढ़ ली घर गृहस्थी की.
उसके बाद की पढ़ाई के लिए दिल्ली को ठिकाना बनाया और जेएनयू में एडमीशन लिया. जेएनयू से एक्सटर्नल अफेयर स्टडी में MA करने के बाद 1984 में सिविल सर्विस ज्वाइन की. जी हां, रामचंद्र यूपी कैडर के IAS हैं. ये वो दौर था जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश बड़ी राजनैतिक उठापटक से जूझ रहा था. इसी गरम माहौल में इनकी सरकारी सर्विस शुरू हुई.

उत्तर प्रदेश सरकार के शासन में साल 1997 तक काम किया. 1993 से 97 तक कलेक्टर और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट रहे. रामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर औऱ फतेहपुर ट्रांसफर होता रहा.
नीतीश और RCP का साथ
ये पॉलिटिक्स का अटल बिहारी काल था. लड़के पापा से साइकिल लेने की जिद किया करते थे. टीवी पर शक्तिमान शुरू हो चुका था. सन 1998-99 में NDA की सरकार थी और अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे. उनकी कैबिनेट में नीतीश कुमार को पहले रेल और ट्रांसपोर्ट मंत्रालय मिला. फिर कृषि मंत्रालय. नीतीश मंत्री थे, RCP उनके पर्सनल सेक्रेट्री. उसी दौरान RCP और नीतीश करीब आए. दोनों ने एकदूसरे को समझा. फिर एक ऐसा अनकहा रिश्ता बना जिसमें दोनों ने अपने रोल चुन लिए. जिन पर अब तक दोनों कायम हैं और RCP बिना सामने आए नीतीश की फैमिली से लेकर चुनाव, सरकार और ब्यूरोक्रेसी सब संभालते हैं.

नीतीश कुमार से हमेशा इनकी बनती रही. इनके काम से खुश नीतीश ने इनको पार्टी की तरफ से पहली बार राज्यसभा में भेजा सन 2010 में. इस बार फिर सांसद चुनने का नंबर आया तो इनको आगे कर दिया. कहते हैं इनको नीतीश के साथ वैसे ही देखा जाता है जैसे इंदिरा गांधी के साथ आरके धवन को देखा जाता था. RCP के साथ एक और रोचक ट्रीविया है. ख़ुद IAS थे ही. बेटी IPS अधिकारी. नाम लिपि सिंह. मुंगेर में अक्टूबर 2020 में हुई हिंसा के समय चर्चा में आयी थीं लिपि सिंह.

बहरहाल, 2015 में एक ऐसा भी समय आया जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से साथ हाथ मिला लिया. बताया जाता है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के एक साथ लाने में प्रशांत किशोर की भी बड़ी भूमिका थी. 2015 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली जीत के बाद एक ऐसा वक्त था जब JDU में प्रशांत किशोर का ग्राफ तेजी से ऊपर बढ़ रहा था और आरसीपी सिंह पार्टी में हाशिए पर चले गए थे. हालांकि 2016 में नीतीश कुमार ने दोबारा आरसीपी सिंह पर भरोसा जताया और उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया.

Source: Facebook
क्या फ़ेस करेंगे RCP?
जानकार बिहार की राजनीति में अभी से नीतीश का अवसान देखने लगे हैं. अरुणाचल प्रदेश में जदयू के विधायकों के बीजेपी में जाने के बाद पार्टी के दिन भी बुरे दिखने लगे हैं. हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने हैं ही. ऐसे में RCP के सामने पार्टी को सम्हालना बचाना बहुत बड़ी चुनौती है. प्रशांत किशोर की रुख़सत से लगायत चुनावों तक जदयू की नाव बहुत डोली है. अब RCP के सामने चैलेंज है फिर से खूंटा गाड़कर पार्टी को टिकाने का.