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राखी बांधते हुए याद रखना, वो तुम्हारा भाई तो हुआ, दोस्त न हो सका

क्या तुमने खुलकर उससे अपने पीरियड के बारे में बात की? क्या उसने कभी तुम्हें मिनीस्कर्ट में देखकर तुम्हारी तारीफ़ की?

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प्रतीक्षा पीपी
18 अगस्त 2016 (Updated: 18 अगस्त 2016, 05:35 AM IST) कॉमेंट्स
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रक्षाबंधन. उन त्योहारों में से एक, जिनमें हम रिश्तों को सेलिब्रेट करते हैं. चॉकलेट से लेकर घड़ियों के ऐड हमें बताते हैं कि किस तरह भाई अपनी बहन को तोहफा देकर खुश कर सकते हैं. जितना महंगा तोहफा, रिश्ता उतना स्ट्रॉन्ग. जितना प्यारा तोहफा, प्यार उतना गहरा. हम देखते हैं कि भाई किस तरह बहन को तंग करता है. फिर जब वो चिढ़ती है, बड़े लाड से उसके सामने तोहफा निकालकर रख देता है. ये विज्ञापन हमें सिर्फ ये नहीं बताते कि आपका तोहफा खास और महंगा होना चाहिए. बल्कि साल-दर-साल हमारे लिए भाई-बहन के रिश्ते की एक परिभाषा गढ़ रहे होते हैं. जिसमें नोक-झोंक है, लड़ाइयां हैं, दुलार है और तोहफे हैं. लेकिन भाई-बहन की ये परिभाषा हमारे लिए क्या है? एक दूसरे का सम्मान, दुलार, प्यार. अगर आपको कोई लड़का देख भर ले, आपके भाई का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है. उसे अच्छा नहीं लगता कि कोई आप पर बुरी नजर रखे. आपको ये क्यूट लगता है. लगना भी चाहिए. आप रात को कहीं बाहर होती हैं, तो वो पिक करने आ जाता है. क्योंकि वो चाहता है, आप सेफ रहें. आपको एहसास होता है, आपका भाई बहुत जिम्मेदार है. होना भी चाहिए. आप जब अपनी टीनेज में पहुंचती हैं, भाई आपसे WWE वाले गेम खेलने बंद कर देता है. उसे लगता है कि रिश्ते का मान इसी में है कि एक वक़्त के बाद उसमें शैतानियां कम और समझदारी ज्यादा हो. लेकिन ये रिश्ते का मान कब दूरियों में बदल जाता है, आपको पता नहीं चलता. 10 की उम्र पार करते ही लड़कियों को ठीक से बैठना, ठीक से रहना सिखाया जाने लगता है. लड़कों को कहा जाता है, अब बहन बड़ी हो गई है, उसे तंग करना बंद करो. भाई को ये एहसास होता है कि बहन, बहन ही नहीं, एक होने वाली औरत है, जो शादी करेगी, मां बनेगी. जिसके स्तन बढ़ आएंगे. जिसका शरीर बदल जाएगा.
भाई को पता नहीं होता कि उसकी बहन किस दौर से गुजर रही है. कैसे बदलाव महसूस कर रही है. उसे बस इतना मालूम होता है कि कुछ है, जिसे वो अखबार में छिपाकर बाथरूम ले जाती है. वो अब ब्रा पहनने लगी है, तारों पर सूखती रहती हैं. अब वो भाई या पापा से चिपककर नहीं सोती. और महीने में एक बार कुछ ऐसा होता है, जिससे उसके पेट में बहुत दर्द होता है. समाज का स्ट्रक्चर उन्हें इजाजत नहीं देता कि वो इस बारे में एक-दूसरे से बात करें. एक दूसरे को अपनी समस्याएं बताएं. और भले ही दोनों के बीच प्यार और मान नहीं घटता. पर एक बहुत ज़रूरी चीज ख़त्म सी हो जाती है: दोस्ती.
आने वाले सालों में बहन खुद ही ये सीख जाती है कि भाई को बताने वाली चीजों से ज्यादा छिपाने वाली चीजें हैं. भाई को लगता है, बहन को अपने क्रश के बारे में बताने से रिश्ते की मर्यादा घटेगी. बहन को लगता है, लड़कों के बारे में भाई से बात करेगी, तो वो नाराज होगा. भाई को लगता है, बहन जो सीरियल देखती है, वो देख उसका बढ़ता हुआ पौरुष कम हो जाएगा. बहन को लगता है, भाई का फुटबॉल देखना तो लड़कों वाली चीज है. और समाज के तय किए किरदारों में दोनों इस तरह ढलने लगते हैं कि उनमें दूरियां प्यार के दुगने स्तर से बढ़ने लगती हैं. बड़े भाई के दोस्तों को बहन बचपन से 'भैया' कहती है. छोटे भाई के दोस्तों को छोटा भाई मानती है. पड़ोस के भाइयों से लेकर, दूर के रिश्तेदारों तक सभी लड़कों को राखी बांधने लगती है. ताकि दोनों में एक मॉरल रिश्ता कायम रहे. और इस मॉरल दबाव के चलते लड़की को ये मालूम होता है कि लाइफ में आए किसी भी लड़के का जिक्र भाई से नहीं करना है. भाई को पता है कि अपनी पहली गर्लफ्रेंड का जिक्र बहन से नहीं करना है. जो बच्चियां बचपन में पापा और भाई के साथ सहज थीं, अब मां और बहन की बेहतर सहेलियां बन जाती हैं. और भाई, पापा और दूसरे भाई में अपने दोस्त पाते हैं. भाई उम्र में बड़ा हो या छोटा, बहन के गार्डियन का किरदार अपना लेता है. उसके दोस्तों, कपड़ों का हिसाब रखने लगता है. बहन को स्लीवलेस कपड़े या मिनीस्कर्ट पहनते देख गुस्से से भर जाता है. 'ये क्या पहनकर जा रही हो तुम?,' 'वो कौन लड़का है, जो तुमसे बात कर रहा था?' बहन भी भाई की चुगली करने का मौका नहीं छोड़ती. लड़का नशे की चीजें ट्राय करता है, तो बहन से छुपकर. और दुलार तो अब तक डर में बदल चुका होता है. भाई और बहन 'पार्टनर्स इन क्राइम' की जगह एक दूसरे के लिए 'मॉरल पुलिस' बन जाते हैं. फिर रक्षाबंधन आता है, जैसे आज आया है. और ये सारे डर भूलकर हम एक दूसरे को दुलार दिखाते हैं. रक्षाबंधन के मायने अब वो नहीं रहे, जो पहले थे. कि भाई बहन की रक्षा करेगा. इस पुरुषवादी सोच से रक्षाबंधन अब बाहर आ रहा है. अब हम इसे एक ऐसे त्योहार की तरह देखते हैं, जहां भाई-बहन साथ आकर अपना प्यार एक दूसरे को दिखाते हैं. अपना साथ होना, साथ बड़ा होना, साथ बिताया बचपन मनाते हैं. है. लेकिन जिस पुरुषवादी सोच से बाहर आ चुकने का हम दावा करते हैं, असल में उसी के दूसरे रूप में अब भी बंधे हुए हैं. उस सोच में, जो हमें बचपन से एक-दूसरे से डरना सिखाती है. रक्षाबंधन मनाएं. पर इस बात को भी एक बार सोचें. कि इस प्यार भरे रिश्ते से दोस्ती रिस-रिस कर समय के साथ ख़त्म हो गई है.
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