क्या राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्र की आत्मकथा की कॉपियां कुलपतियों को जबरन बेच दी गईं?
कुल 18.46 लाख रुपये की कॉपियां जबरन बेचने का आरोप है.
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राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र अपनी आत्मकथा से जुड़ी किताब को लेकर विवादों में हैं. आरोप है कि इस किताब की प्रतियां 'जबरन' कुलपतियों को बेची गई हैं. वहीं, इसके कंटेंट पर भी हंगामा खड़ा हो गया है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, किताब के एक पेज पर लोगों से बीजेपी से जुड़ने की अपील की गई है. विवाद बढ़ता देख राजभवन ने अपनी ओर से सफाई दी है.
किताब 'जबरन' कुलपतियों को बेचने का मामला क्या है?
बीती 1 जुलाई को राज्यपाल कलराज मिश्र का 80वां जन्मदिन था. उसी दिन उनकी आत्मकथा 'कलराज मिश्र... निमित्त मात्र हूं मैं' का विमोचन किया गया था. इस दौरान राजस्थान के 27 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने कलराज मिश्र से मुलाकात की थी. राज्यपाल से मिलने के बाद जब तमाम कुलपति अपनी-अपनी गाड़ियों की ओर बढ़े तो देखा कि गाड़ियों के बाहर कॉर्टन लगे थे और ड्राइवरों के हाथ में 19 किताबों का बिल था. इनकी कीमत 68 हजार 383 रुपये थी. चूंकि हरेक कुलपति को 19-19 किताबें दी गई थीं, इसलिए इनकी कुल कीमत लगभग 18 लाख 46 हजार रुपये बताई गई है. दिलचस्प बात ये है कि कुलपतियों ने इनका ऑर्डर दिया ही नहीं था.
इस मामले पर अपनी पहचान गुप्त रखते हुए एक वीसी ने लल्लनटॉप से बात की. उन्होंने हमें बताया,
"राज्यपाल के साथ हुई बैठक में किसी ने हमारे ड्राइवर के नाम और नंबर ले लिए थे. हमें लगा कि उन्हें खाना-पानी देने के लिए ऐसा किया गया है. कुछ वीसी ने बताया कि वहां पहुंचते ही पता लगा कि जो बिल थमाया गया था उनमें पांच टाइटल्स का जिक्र था. (लेकिन) कॉर्टन में सिर्फ कलराज की आत्मकथा की कॉपियां थीं. बिल के अनुसार बायोग्राफी की एक कॉपी की कीमत 3,999 रुपये है. एक्सेस किए गए बिल में 19 कॉपियों का योग 75 हजार 981 रुपये तक है. 10 फीसदी की छूट के बाद कुल 68,383 रुपये हो जाता है."वीसी ने आगे कहा,
“सरकारी खरीद के नियम राजस्थान सार्वजनिक खरीद (आरटीपीपी) अधिनियम, 2012 में स्पष्ट रूप से निर्धारित किए गए हैं. विश्वविद्यालयों को इन पुस्तकों के साथ एकतरफा तरीके से कैसे लोड किया जा सकता है? राज्य के 27 विश्वविद्यालय तकनीक, स्वास्थ्य, कृषि, पशु चिकित्सा, कानून आदि जैसे क्षेत्रों के लिए जाने जाते हैं. फिर हर विश्वविद्यालय को इतनी सारी किताबों के लिए बिल क्यों देना पड़ेगा और हम किस मद के तहत ये खर्च वहन करेंगे?"जीवनी के सहलेखक कलराज मिश्रा के लंबे समय से ओएसडी रहे गोविंद राम जायसवाल हैं. कहा गया है कि इसकी बिक्री से प्राप्त आय राजस्थान और सामाजिक विज्ञान से जुड़ी अनुसंधान परियोजनाओं पर खर्च की जाएगी. इसे किसी भी व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा. राजभवन ने क्या सफाई दी है? राजभवन ने साफ किया है कि उसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है. उसकी ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि ये प्रकाशक और कुलपतियों के बीच का मामला है. बयान कहता है,
'किताब से संबंधित व्यावसायिक गतिविधियों से राजभवन का कोई लेना-देना नहीं है. प्रकाशक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप (IIME) ने राज्यपाल के घर पर पुस्तक को लॉन्च करने का अनुरोध किया था. उन्हें ये अवसर प्रदान किया गया था. लेकिन किताबों की 'बिक्री' में गवर्नर हाउस की कोई भूमिका नहीं है.'बयान जारी होने के तुरंत बाद सभी कुलपतियों ने भी किताब की कॉपियां वापस लौटाने की बात कह दी है. किताब का कंटेंट भी विवादों में किताब के कंटेंट को लेकर भी सियासत गर्मा रही है. इसकी चपेट में सूबे के मुखिया अशोक गहलोत भी आ गए हैं. उनके विरोधी इस मुद्दे पर उन्हें निशाना बना रहे हैं. कहा जा रहा है कि जिस किताब के विमोचन में सीएम अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला मौजूद रहे, उसमें भाजपा से जुड़ने की अपील की गई है. आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किताब के पेज नंबर 116 पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तस्वीर है. साथ में BJP से जुड़ने की अपील है. लिखा है,
"आइए हम एक नए भारत के निर्माण के आंदोलन का समर्थन करें. एक भारत श्रेष्ठ भारत के लिए हाथों को और मजबूत करें."किताब को लेकर ये भी आरोप है कि ये हिंदुत्व का प्रचार करती है. इसमें लिखा गया है कि लोगों को हिंदू जीवन शैली अपनानी चाहिए.