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राजस्थान के निकाय चुनावों में BJP ने बाजी मारी, कांग्रेस के लिए इसके क्या मायने हैं?

BJP ने 20 साल से चले आ रहे मिथक को तोड़ दिया है.

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सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस राजस्थान में पंचायत और जिला परिषद के चुनावों में पीछे रह गई. इसके पीछे सीएम गहलोत और पायलट की कथित खींचतान को भी एक वजह माना जा रहा है. (फाइल फोटो-PTI)
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डेविड
9 दिसंबर 2020 (Updated: 9 दिसंबर 2020, 11:50 AM IST) कॉमेंट्स
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राजस्थान में जिला परिषद और पंचायत समिति चुनावों के रिजल्ट आ गए हैं. बीजेपी ने दोनों में ही सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की है. कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही है. इन नतीजों से BJP ने दो दशक पुराना एक मिथक तोड़ दिया है. मिथक ये था कि जिस पार्टी की राज्य में सरकार होती है, पंचायत चुनाव वही जीतती है. इन चुनाव नतीजों के बीजेपी और कांग्रेस के लिए क्या मायने हैं? क्यों सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस उस प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख पाई? और इस नतीजों का कांग्रेस पार्टी और सरकार पर क्या असर होगा? आइए जान लेते हैं, इस रिपोर्ट में.

सबसे पहले चुनाव नतीजे जान लीजिए

पंचायत समिति सदस्यों के 4371 पदों के लिए चुनाव में BJP को सबसे ज्यादा 1989 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस उससे थोड़ा ही पीछे 1852 पर रही है. निर्दलीय उम्मीदवार 439 सीटों पर जीत दर्ज कर चुके हैं. BSP तो CPI (M) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) से भी बहुत कम सीटों पर जीत नसीब हुई है. ये टैली देख लीजिए- 11 जिला परिषद सदस्यों के चुनाव में भी BJP ने बाजी मारी है. 636 सदस्यों के लिए हुए चुनाव में भाजपा को 353 और कांग्रेस को 252 सीटों पर जीत मिली है. निर्दलीयों के खाते में 18 सीटें आई हैं. टैली देखिए- 2 राजस्थान के 21 जिलों के 636 जिला परिषद सदस्यों के लिए 1778 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई थी.  वहीं  पंचायत समिति सदस्यों के 4371 पदों के लिए 12,663 उम्मीदवार मैदान में थे. जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के लिए चार चरणों में 23 नवंबर, 27 नवंबर, 1 दिसंबर और 5 दिसंबर को मतदान हुआ था.

पिछले चुनाव में क्या स्थिति थी?

2015 के जिला परिषद चुनाव में BJP ने 590, कांग्रेस ने 395 निर्दलीयों ने 15, BSP ने 6 और CPIM ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं पंचायत समिति चुनाव की बात करें तो 3641 सीटों में से BJP 1550, कांग्रेस 1204, निर्दलीय 846, BSP 16, NCP 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

कांग्रेस की हार की क्या वजहें रहीं?

इन चुनावों के नतीजों का कांग्रेस के लिए क्या मायने हैं, और इसकी वजह क्या हैं, इस बारे में जानने के लिए हमने दो सीनियर पत्रकारों से बात की. दैनिक भास्कर के नेशनल हेड लक्ष्मी प्रसाद पंत और वरिष्ठ पत्रकार अवधेश आकोदिया से. # कांग्रेस की जड़ें गांवों में मानी जाती हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस गांवों में ही कमजोर दिख रही है. इन चुनाव नतीजों ने ये साफ कर दिया है कि कांग्रेस का यहां गांवों का जो संगठन है, वो ध्वस्त हो चुका है. कांग्रेस में संगठन के नाम पर केवल प्रदेश अध्यक्ष हैं गोविंद सिंह डोटासरा. इसके अलावा कोई बड़ी नियुक्तियां नहीं हो रही हैं. कांग्रेस के अंदर एक वैक्यूम बन गया है. मुख्यमंत्री के पास 30 से 35 डिपार्टमेंट हैं. जिन मंत्रियों ने इस्तीफे दिए हैं, उनकी जगह कोई नहीं आया है. कांग्रेस पार्टी के अंदर राजनीतिक शून्यता पैदा हो गई है. इसका असर इन परिणामों में दिख रहा है. # कोई भी चुनाव होता है तो उसमें टीम काम करती है. अलग-अलग स्तरों पर निगरानी रखी जाती है. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस में ऐसा देखने को नहीं मिला. कांग्रेस ने सिंबल बांटे. लोग चुनाव लड़े. लेकिन ऊपर से कोई निगरानी नहीं हुई. क्या चल रहा है, ये देखने वाला कोई नहीं था. कांग्रेस के विधायकों को फ्री हैंड दिया गया था. विधायकों ने अपनी मर्जी से टिकट बांटे. ऐसे में कहा जा रहा है कि कोई भी विधायक ये नहीं चाहता कि उसके बराबरी का कोई नेता उठकर आए. ऐसे में टिकट का बंटवारा सही ढंग से नहीं हुआ. # राजस्थान में बेरोजगारों का आंदोलन भी चल रहा है. उसकी वजह ये है कि कई नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं. कोरोना की वजह ये भर्तियां लटकी हैं. शिक्षक भर्ती परीक्षा नहीं हो पाई. 12 से 13 लाख बेरोजगार शिक्षक भर्ती का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन REET (Rajasthan Eligibility Examination for Teachers)  का एग्जाम नहीं हो रहा है. इसकी वजह से भी नाराजगी है. सरकार के भीतर सुस्ती के जो आरोप लग रहे हैं, वही संभवत: नतीजों में दिख रही है. # हाल ही में सीएम अशोक गहलोत ने आरोप लगाया था कि BJP सरकार गिराना चाहती है. इसका एक मतलब ये भी है कि अब भी पार्टी के भीतर उठापटक चल रही है. 19 विधायक अब भी मुखर हैं. गहलोत गुट के लोग उन्हें तोड़ने में लगे हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. इसलिए मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा है. गहलोत अधिकार के साथ सरकार नहीं चला पा रहे हैं. इसका असर भी चुनाव के परिणाम में देखने को मिला है. # राजस्थान में कांग्रेस और BJP दो ही बड़ी पार्टियां हैं. कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा BJP को मिला. उसे ज्यादा कुछ करना नहीं पड़ा. लोगों की नाराजगी कांग्रेस से ही थी तो उन्होंने BJP को वोट दिया.

नतीजों का कांग्रेस पर असर क्या होगा?

# राज्य में तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. इनमें सहाड़ा, राजसमंद और सुजानगढ़ सीट शामिल है. सहाड़ा सीट कांग्रेस के कैलाश त्रिवेदी के निधन के बाद खाली हुई है. राजसमंद सीट BJP विधायक किरण माहेश्वरी और सुजानगढ़ सीट कांग्रेस के कैबिनेट मंत्री रहे मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद खाली हुई है. ये चुनाव साफ संकेत हैं कि आगे कुछ भी हो सकता है. दो सीटें कांग्रेस के पास थीं, लेकिन ये पलट भी सकती हैं. #इन चुनाव नतीजों से अशोक गहलोत को नुकसान हुआ है. वो जिस मजबूती के साथ आलाकमान के सामने अपनी बात रख पाते थे, इस परिणाम के बाद नहीं रख पाएंगे. मंत्रिमंडल विस्तार होना है. संगठन में लोगों को चुना जाना है. गहलोत नहीं चाहते कि पायलट खेमे के मंत्रियों और नेताओं को फिर से मंत्रिमंडल में या कार्यकारणी में शामिल किया जाए. दो मंत्री रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह, जो सचिन पायलट के साथ बागी हो गए थे, उन्हें बर्खास्त किया गया था. पायलट चाहते हैं कि कम से कम उनकी वापसी हो. इन नतीजों के बाद पायलट आक्रामक हो सकते हैं. # सचिन पायलट और अशोक गहलोत में जो खींचतान शुरू में थी, वो अब भी बरकरार है. गहलोत ने जब सरकार बचा ली थी, तो उनकी स्थिति मजबूत हुई थी, लेकिन इस चुनाव परिणाम के बाद सचिन पायलट ये मैसेज देने की कोशिश कर सकते हैं कि सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी है. ऐसे में नेतृत्व बदलिए या मेरे हिसाब से चीजों को चलने दीजिए. सीएम बनने की पायलट की मुहिम में इन नतीजों के बाद एक और चीज जुड़ गई है. अब ये कितना उनके काम आता है, देखने वाली बात होगी. जहां तक बीजेपी की बात है, चुनाव नतीजों के बाद उसके हौसले बुलंद हैं. राज्य की सत्ता में आने की पार्टी की कोशिशों को इससे मजबूती मिल सकती है. रिजल्ट को लेकर बीजेपी ने सभी का आभार जताया. BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष JP नड्डा ने ट्वीट किया, वहीं, जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनावों में कांग्रेस की हार पर प्रतिक्रिया देते हुए राजस्थान के परिवहन मंत्री प्रताप सिंह ख़ाचरियावास ने कहा कि हार की ज़िम्मेदारी सबकी है. यह हमारे लिए वेकअप कॉल है कि हमें सबको सामूहिक ज़िम्मेदारी के साथ इसे स्वीकार करते हुए पार्टी को मज़बूत करने के लिए काम करना पड़ेगा.

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