The Lallantop
Advertisement

हम तो मूसलाधार बोल 'नाप' देते हैं, लेकिन वैज्ञानिक बारिश की सटीक जानकारी कैसे देते हैं?

बारिश को मापने के लिए मिलीमीटर या सेंटीमीटर का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? आज इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करेंगे.

Advertisement
Rain measurement
बारिश को मिलीमीटर में क्यों मापते हैं (फोटोः India Today)
pic
राघवेंद्र शुक्ला
21 जुलाई 2025 (Updated: 21 जुलाई 2025, 08:03 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

हम और आप बारिश को कैसे मापते हैं? तेज बारिश हुई तो कह दिया ‘मूसलाधार वर्षा’ हो गई. थोड़ा साहित्यिक भाषा में बोलें तो ‘धारासार’ बारिश. मतलब बारिश ऐसी कि रुके ही न. हल्की-फुल्की बरसात को ‘फुहारें’ और दो-चार बूंदें गिरने को बूंदाबांदी कहकर. लेकिन वैज्ञानिक लोग बारिश को ऐसे नहीं मापते. उनसे ‘कितनी बारिश हुई’ पूछेंगे तो वह एकदम सटीक नापकर बताएंगे कि कितना मिलीमीटर या सेंटीमीटर पानी बरसा.

हां, सही पढ़ा. लीटर नहीं. मिली और सेंटीमीटर. बारिश को नापने का यही तरीका है और सैकड़ों साल पुराना है. लेकिन 'मीटर क्यों? लीटर क्यों नहीं?' पहले इसका जवाब जान लेते हैं. तब इसके इतिहास पर चलेंगे.

दरअसल, ‘बारिश मापन’ में वैज्ञानिक ये नहीं नापते कि कितना पानी बरस गया. वह ये नापते हैं कि अगर बारिश का पानी कहीं इधर-उधर बहे नहीं तो कितनी ऊंचाई तक जमा हो सकता है. यानी कि उसकी ऊंचाई, और ऊंचाई तो मीटर में ही मापते हैं. 

कुल मिलाकर वर्षामापन के काम में वैज्ञानिक लोग ‘बारिश का आयतन’ नहीं नापते बल्कि यह देखते हैं कि बरसे हुए पानी की गहराई कितनी हो सकती है? दोनों दो अलग-अलग बाते हैं. जैसे- अगर 1 mm बारिश 1 वर्ग मीटर जमीन पर गिरे तो उसका उसका वॉल्यूम (आयतन) 1 लीटर होता है. लेकिन अगर यही 1 mm बारिश एक हेक्टेयर यानी 1000 वर्ग मीटर जमीन पर गिरे तो उसका कुल वॉल्यूम करीब 1000 लीटर होगा.

‘लीटर’ का हिसाब अलग है, लेकिन ‘मीटर’ वाले हिसाब से अलग-अलग इलाकों में बारिश की सटीक मात्रा पता लगती है.

अब ये 'नापना' होता कैसे है?

बारिश को मापने के लिए वैज्ञानिकों ने ‘रेनगेज’ (Rain gauge) नाम का एक स्पेशल यंत्र बनाया है. इसमें एक बेलनाकार नली (Scylinder) होती है, जिस पर स्केल बना होता है. इस नली को एक थोड़ा बड़े मेटल कंटेनर में रख दिया जाता है. इसके ऊपर एक कुप्पी या फनल लगा दिया जाता है ताकि बारिश का पानी नली में आसानी से जा सके और इधर-उधर न गिरे. बस इतना काम हुआ कि तैयार हो गया रेनगेज यानी वर्षामापी यंत्र.

अब इसे बारिश के समय खुले मैदान में यानी ऐसी जगह रखते हैं, जहां पर कोई पेड़ न हो. कोई शेड या बारिश के पानी के रास्ते में रुकावट बनने वाली कोई चीज न हो. पानी इसमें गिरता है और इकट्ठा हो जाता है. बाद में बारिश रुकने पर स्केल में देखते हैं कि कितनी ऊंचाई तक पानी जुट गया. 

स्केल में जो रीडिंग आती है, उस खास जगह पर उतनी मिलीमीटर या सेंटीमीटर बारिश हुई होती है. जैसे- अगर नली में 50 mm रीडिंग है तो मतलब वहां 50 मिलीमीटर बारिश हुई.

पहली बार इस मापन का इस्तेमाल कब हुआ?

बारिश को मापने का इतिहास आज का नहीं है. सदियों पहले भी बारिश मापी जाती थी. संभवतः दूसरे तरीके होते थे.

400 ईसा पूर्व में चाणक्य के ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में वर्षा मापन के तरीके के बारे में बताया गया है. इसमें सीताध्यक्ष के कर्तव्यों के बारे में बताते हुए वर्षा मापन की चर्चा की गई है. तब के समाज में खेती के कामों को ‘सीता’ कहा जाता था और इस विभाग में जो राजकीय अधिकारी होता था, उसे सीताध्यक्ष कहते थे. 

सीताध्यक्ष के लिए चाणक्य की सलाह थी कि उन्हें उन इलाकों को चिह्नित करना चाहिए जहां अच्छी बारिश से फसल अच्छी हो सकती है. बारिश के मापन के लिए उन्होंने एक द्रोण नाम के पात्र के बारे में बताया है, जिसका उपयोग 'वर्षामान' यानी रेनगेज के तौर पर किया जाता था.

इस पात्र से मेजरमेंट अंगुल और हाथ के मात्रकों में होता था. आधुनिक मानकों के हिसाब से इस गोलाकार पात्र की चौड़ाई 38 सेमी और गहराई 13 सेमी होती थी. इस पात्र को बारिश के समय खुले स्थान पर रख दिया जाता था. अगर यह पात्र भर जाता था तो माना जाता था कि 50 पल बारिश हुई. इसको थोड़ा और आसानी से समझिए.

50 पल का मान 1 आढक के बराबर होता है और 1 आढक बारिश 1.6 सेमी मानी जाती है. यानी एक द्रोण भर जाने के बाद माना जाता था कि 1.6 सेमी बारिश हुई. 

a
अर्थशास्त्र में वर्षामापन की व्यवस्था 

वराहमिहिर भारत के प्राचीन खगोलशास्त्री और वैज्ञानिक थे. उनके ग्रंथ ‘वृहत्संहिता’ में ‘प्रवर्षण’ नाम से एक अध्याय है, जिसमें वर्षामापन की विधि बताई गई है. इसमें भी आढक के मान में बारिश का मापन किया जाता था. 

v
वृहत्संहिता में वर्षामापन

कोरिया के राजा ने बंटवाए रेनगेज

साल 1441 ईसवी में कोरिया के राजा सिजोंग ने रेनगेज को थोड़ा और बेहतर तरीके से बनवाया. उनके समय में जो यंत्र बनाया गया, उसे चुगुगी (Chugugi) कहा जाता था. यह गोलाकार और लोहे का बना होता था. इसकी ऊंचाई ‘1 चा 5 ची’ यानी 31.9 सेमी होती थी. व्यास ‘7 ची’ यानी 14.9 सेमी होता था. बताते हैं कि कोरिया के राजा हर गांव में एक रेनगेज भेजते थे ताकि ये अंदाजा लगाया जा सके कि किसान कितनी फसल उगाएंगे. इसी हिसाब से वहां टैक्स (कर) तय किया जाता था.

आज जो रेनगेज यूज किया जाता है, वह रॉबर्ट हूक नाम के वैज्ञानिक की देन है. साल 1662 में उन्होंने टिपिंग बकेट गेज नाम का रेनगेज बनाया था. ये एक नली (ट्यूब) जैसा डिब्बा था, जिसके ऊपर एक फनल (कीप) लगा होता था, जिससे पानी अंदर जाता है.

वीडियो: सड़कों के बाद अब मुंबई लोकल ट्रेन में मराठी पर विवाद, आपस में भिड़ गईं महिलाएं

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement