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जब्त की हुई प्रॉपर्टी कहां नीलाम करती है सरकार?

कुर्की हमेशा कोर्ट के आदेश पर होती है जबकि जब्ती की कार्रवाई पुलिस भी कर सकती है. सीआरपीसी की धारा 82 से 86 तक कुर्की का प्रावधान दिया गया है.

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संपत्ति की ज़ब्ती (फोटो-सोशल मीडिया)
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29 फ़रवरी 2024
Updated: 29 फ़रवरी 2024 21:55 IST
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एक सिनैरियो पर गौर कीजिए. मान लीजिए आपने एक शख्स को अपना घर किराए पर दिया. कुछ दिन बाद पता चला कि घर का इस्तेमाल ग़ैरक़ानूनी काम के लिए हो रहा है. पुलिस ने उस शख्स को तो अंदर डाला ही लेकिन आपके घर पर भी ताला डाल दिया. क्योंकि वो घर भी केस से जुड़ा हुआ था. अब ऐसे में आप क्या करेंगे?
ऐसा ही एक सवाल पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट के सामने आया.  मामला दिल्ली के जामिया नगर में मौजूद एक घर का है. जिसे UAPA  के एक केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA ने जब्त कर लिया था. इसके बाद घर का मालिक दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गया. कोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा,   


"UAPA के तहत किसी जगह को अधिसूचित करने का इरादा ये होता है कि उसका इस्तेमाल गैरकानूनी गतिविधियों के लिए न किया जाए. इसका इरादा निर्दोष मालिकों की संपत्तियों को जब्त करना कतई नहीं है."

संपत्ति ज़ब्त होना- भारत में आपराधिक मामलों में आपने कई बार सुना होगा कि अमुक की संपत्ति ज़ब्त हो गई. कुर्की हो गई.    
तो समझते हैं-
-  कानून के तहत सरकार कब किसी संपत्ति को ज़ब्त कर सकती है? 
- इस संपत्ति का होता क्या है?
- कुर्की क्या होती है, और इसकी प्रक्रिया क्या है?   
- और दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा केस क्या है?

संपत्ति ज़ब्त करने का मतलब सरकार इसे अपने कब्ज़े में ले ले. संपत्ति का मतलब सिर्फ जमीन नहीं. फोन, बैग जैसी सामान्य चीजें भी सम्पति में आती हैं. ये चीजें सरकार तब ज़ब्त करती है, जब ये किसी गैर कानूनी केस से जुड़ी हों. मसलन, Unlawful Activities Prevention Act-  UAPA भारत का एक ऐसा कानून है, जिसके तहत सम्पति ज़ब्त की जा सकती है. UAPA एक्ट 1967 का सेक्शन 8 सरकार को संपत्ति की जब्ती और कुर्की का अधिकार देता है. इसमें उन लोगों की संपत्ति पर कार्रवाई की जाती है जो किसी तरह से देश-विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. इस कानून कानून की धारा 8(1) के मुताबिक़, अगर किसी जगह का इस्तेमाल ग़ैरक़ानूनी मंसूबों के लिए किया जा रहा हो. तो उसे किसी भी जगह को अधिसूचित कर सकती है.

किन मामलों में सम्पति ज़ब्त या कुर्क की जा सकती है
- जैसे अगर कोई किसी अवैध सामान किसी के पास से बरामद हुआ है, जैसे अवैध ड्रग्स, गांजा या कोई गैरकानूनी चीज़. ऐसे में सरकार उस सामान को ज़ब्त कर सकती है.
-  कस्टम में कोई अवैध चीज पकड़ी जाए, या ऐसी चीज जिस पर कस्टम ड्यूटी नहीं चुकाई गई हो, उसे भी ज़ब्त किया जा सकता है.
- इसके अलावा 'सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984' नाम का एक कानून है . इसके अनुसार यदि कोई सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल की सजा और जुर्माना या दोनों एक साथ हो सकते हैं. कानून के मुताबिक सार्वजनिक और सरकारी संपत्ति का नुकसान पहुंचाने के दोषी को तब तक जमानत नहीं मिल सकती, जब तक कि वो नुकसान की 100 फीसदी भरपाई नहीं कर देता है. इसके अलावा राज्यों ने भी इस मुद्दे पर अपने अलग-अलग कानून बना रखे हैं जिनके तहत सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई की जाती है.

इन सभी केसों में दो टर्म इस्तेमाल किए. ज़ब्ती और कुर्की. ज़ब्ती का मतलब जब  सम्पति सरकार अपने पास रख ले. दूसरी चीज है कुर्की - यानी उस सम्पति की नीलामी भी कर दी जाए. इन दोनों में एक अंतर ये है कि कुर्की हमेशा कोर्ट के आदेश पर होती है जबकि जब्ती की कार्रवाई पुलिस भी कर सकती है.  सीआरपीसी यानी कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर की धारा 82 से 86 तक कुर्की का प्रावधान दिया गया है. यानी पुलिस अधिकारी अपने स्वविवेक से जब्ती कर सकते हैं पर कुर्की के लिए कोर्ट का आर्डर जरूरी होता है.

●कुर्की भी दो तरह की होती है. एक सिविल और एक क्रिमिनल कुर्की. 
सिविल कुर्की- अगर किसी व्यक्ति का सरकार या किसी व्यक्ति पर पैसा बकाया होता है और वो पैसा न चुका रहा हो तो कोर्ट कुर्की का वारंट जारी करती है. कोर्ट इसके लिए एक रिसीवर नियुक्त करता है, जिसे बेलिफ (Bailiff) कहा जाता है.बेलिफ एक कानूनी अधिकारी होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि अदालत के फैसलों का पालन किया जाए. अंग्रेज़ी में इसके लिए कस्टोडियन शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.
क्रिमिनल कुर्की- फर्ज करिए कि किसी मामले में व्यक्ति को जेल की सजा के साथ 5 लाख का जुर्माना लगाया गया है. यदि वो जुर्माना नहीं भरता तो फिर क्रिमिनल कुर्की होती है. हत्या, धोखाधड़ी, जान से मारने का प्रयास और दूसरे गंभीर आपराधिक मामलों में भी कुर्की हो सकती है. साल 2023 में उत्तर प्रदेश में हुई कुर्की की कुछ कार्रवाइयां काफी चर्चा में भी रहीं. इसमें मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे लोगों की संपत्ति सरकार ने जब्त कर ली थी.

सामान की कुर्की होने के बाद उसका क्या होता है ? 
पुलिस द्वारा जब्ती होने पर इन चीजों को अपने मालखाने में जमा कर देती है. जरूरत पड़ने पर पुलिस इन चीजों को सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश कर सकती है. पर अगर कुर्की कोर्ट के आदेश पर हुई है तो सामान को सरकारी कब्जे में रखा जाता है. इसके बाद कोर्ट जुर्माने की भरपाई के लिए सामान को नीलाम करवाता है. कोर्ट द्वारा नियुक्त बेलिफ या रिसीवर को CRPC की धारा 5 के तहत नीलामी और बिक्री का अधिकार है.

●क्या कुर्की-जब्ती का सामान वापस मिलता है?
पुलिस, जीएसटी या कस्टम जैसे मामलों में आरोपी को एक नोटिस देकर बुलाया जाता है. जिस भी विभाग में ज़ब्ती होती है, वो विभाग आरोपी से एक निर्धारित जुर्माना देकर सामान ले जाने को कहता है. अगर आरोपी अपना सामान लेकर जुर्माना नहीं भरता तो नीलामी से रिकवरी की जाती है. अगर कोर्ट से कुर्की का आदेश पारित होता है तो CRPC की धारा 84 के तहत ऑर्डर के खिलाफ 6 महीने के भीतर कोर्ट  में आपत्ति दायर की जा सकती है.

हमने ज़ब्ती और कुर्की के नियम समझे. ये भी समझा कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर क्या कार्रवाई होती है. अब अंत आपको दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे उस केस के बारे में बताते हैं जिसकी बात एकदम शुरुआत में की थी.  

27 सितंबर, 2022 को इस्लामी संगठन -  पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) - और उसके कथित सहयोगियों को UAPA के तहत 'ग़ैरक़ानूनी संगठन' घोषित किया गया था. एक दिन बाद दिल्ली के जामिया नगर में एक संपत्ति को लेकर एक अधिसूचना जारी की गई. कहा गया कि इस संपत्ति का इस्तेमाल PFI और उसके सहयोगी कर रहे थे. लिहाज़ा पुलिस ने इस मकान को सील कर दिया और अपने कब्ज़े में ले लिया.
इसपर मकान के मालिक, याचिकाकर्ता मोहम्मद आरिफ अंसारी ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. इसमें उन्होंने दिल्ली पुलिस के नोटिस को चुनौती देने के साथ ही इसे डी-सील करने और अनलॉक करने के निर्देश देने की मांग की थी. याचिकाकर्ता ने ये तर्क दिया था कि वह संपत्ति के वैध मालिक हैं. उनके वकील ने कहा कि मालिक पीएफआई का सदस्य नहीं था और उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि किरायेदार पीएफआई का सदस्य था. हाई कोर्ट ने वकीलों की दलील पर विचार किया और कहा कि मामले में अभी और तथ्यात्मक जांच की ज़रूरत हो सकती है. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को जिला जज के सामने आवेदन दायर करने की छूट दी. साथ ही उसे इसके लिए एक हफ्ते का समय भी दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे किसी जगह को अधिसूचित करने का इरादा ये सुनिश्चित करना है कि उसका इस्तेमाल गै़रक़ानूनी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाता है. इसका इरादा निर्दोष मालिकों की संपत्तियों को ज़ब्त करना कतई नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि संपत्ति के मालिक किसी गैरकानूनी संगठन या गतिविधि से नहीं जुड़े हैं.

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