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नाम बदलने से कुछ नहीं होगा, उनको बोलो नया रास्ता बनाएं

औरंगजेब रोड का नाम बदल गया. गुड़गांव का बदलने वाला है. ब्लूप्रिंट तैयार किए जा रहे हैं अकबर रोड का नाम भी बदला जाए. तो सब बदला ही जाएगा या कुछ नया भी बनेगा?

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आशुतोष चचा
18 मई 2016 (Updated: 18 मई 2016, 08:35 AM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली एक दुनिया है जहां उलट पलट होती रहती है. लेटेस्ट लफड़ा है अकबर रोड. एक्सटर्नल अफेयर स्टेट मिनिस्टर और सेना के भूतपूर्व जनरल वीके सिंह ने सिफारिश की है उसका नाम बदलने की. महाराणा प्रताप के नाम पर. क्योंकि उन्होंने अकबर बादशाह से हार नहीं मानी थी. लड़ाई लड़ी थी. टीवी देखने वाले एक ऐड देखते होंगे. जिसमें एक समझदार टाइप का लड़का बताता है "रास्ते का नाम बदलने की क्या जरूरत है? रास्ता बनाओ." लेकिन टीवी है बुद्धू बक्सा. फैंटेसी की दुनिया. सच्ची बातें थोड़ी होती हैं उधर. तो ये होने से रहा कि कोई भी अपना पॉलिटिकल उल्लू सीधा करने के लिए रास्तों, चौराहों, इमारतों का नाम बदलने की कोशिश न करे. जबकि जरूरत इसी की है. ये नाम बदलने वाला प्रोग्राम पहली बार तो चल नहीं रहा. इसकी लंबी हिस्ट्री है. आठ महीने पहले औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड रखा गया है. गुड़गांव को गुरुग्राम बनाने का काम प्रोसेस में है. यूपी में तो जब तब होता ही रहता है. मायावती की सरकार आती है तो छत्रपति शाहूजी महराज नगर जिला हो जाता है. किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज का नाम भी बदल जाता है. सपा की सरकार आती है तो फिर बदलकर पुराने वाले. इसी जद्दोजहद में सरकारों की जिंदगी तमाम होती है.
अब देखो इस नाम बदल प्रक्रिया से नुकसान कितना होता है. करोड़ों की स्टेशनरी काम में लग जाती है. सबको अपने एड्रेस बदलने पड़ते हैं. रजिस्टर्स पर, कैलेंडर्स पर. नए विजिटिंग कार्ड छपवाने पड़ते हैं. घर के बाहर लगी प्लेट फिर से ऑर्डर देकर बनवानी पड़ती है. हर कोने में मौजूद 'स्थाई पता' वाला कॉलम अपडेट करना पड़ता है. सबसे बड़ी बात नया नाम याद रखना पड़ता है. कम से कम 8-10 साल. जब तक कि वो दिमाग में घर नहीं बना लेता, बिलनी जैसा.
इतना टंटा केवल एक नाम बदलने के चक्कर में. उनको तो चिड़िया बिठाकर अपना काम निकालना है. यहां आम आदमी का काम लग जाना है. न तो अकबर कब्र से उखड़ कर आएंगे गुस्सा होने. न महाराणा प्रताप को कोई फर्क पड़ता होगा कि उनके नाम की सड़क रोज नगर निगम वाले खोद जाते हैं. नाम बदलने वालों को मालूम होगा कि दोनों राजा थे. ऊपर एक ही डिपार्टमेंट में रहते होंगे. उनको इस दुनिया की सड़कों से कोई मतलब नहीं है. नाम बदलने की बात हो रही है तो आपको कुछ याद दिलाना चाहते हैं. ये तस्वीरें देखो. मुंबई की इन गलियों का नाम रखा गया है झुग्गी बस्तियों से आने वाले लड़कों- लड़कियों के नाम पर. जिन्होंने अपने घर, अपनी बस्ती का नाम रोशन किया. लेकिन उनका नाम देने के लिए ऐसी गलियों को चुना गया जिनका पहले से कोई नाम नहीं था. अगर किसी नेता के नाम वाली सड़क का नाम इनके नाम पर रखा जाता तो बमचक मच जाती. उस नेता के समर्थक पब्लिक की नास मार देते. क्या पता दंगे पुंगे भी हो जाते. street किसी सड़क का नाम बदल कर अपने उस महापुरुष की इज्जत नहीं बढ़ाई जा सकती. उसके लिए और बड़े काम करने होते हैं. महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाई थी. आप उनके नाम पर राजनीति की रोटियां सेंक रहे हो. ये ठीक नहीं. उस ऐड वाले लड़के की बात से सहमति है. जो कहता है नाम बदलने से क्या होगा. नए रास्ते बनाओ.

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