आखिर कौन करवाता है फोन टैपिंग? क्या कहता है कानून?
फ़ोन टेपिंग. यानी अगर एक लाइन में कहें तो टेलीफोन पर चल रही बातचीत को छुपकर सुनना या उसे रिकॉर्ड करना.
साल था 1984. तब जर्मनी दो हिस्सों में बंटा हुआ था. अमेरिकी प्रभाव वाले वेस्ट जर्मनी और USSR के प्रभाव वाले ईस्ट जर्मनी में. और जैसा दस्तावेज़ बताते हैं, कोल्ड वॉर के दौर में, एजेंट-डबल एजेंट जैसे कीवर्ड बहुत प्रचलन में थे. इसकी के चलते ईस्ट जर्मनी की सरकार अपने नागरिकों पर जायज़-नाजायज़ तरीक़े से नज़र रखी जाती थी. जैसे आज चाइना में रखी जाती है. हाँ बेशक तब टेक्नोलॉजी उतनी एडवांस नहीं थी, तो ये सर्विलेंस ख़तों को पढ़ने, फ़ोन टेपिंग करने, या बहुत से बहुत हिडन कैमरा लगाने तक सीमित थी. ऐसे ही दौर में एक प्लेराइटर जॉर्ज पर नज़र रखने के लिए एक एजेंट असाइन किया गया. लेकिन जैसे जैसे वो एजेंट, जॉर्ज की बातें सुनता है, उसे जॉर्ज से अटैचमेंट होने लगता है. पूरे दौरान वो कई बार स्टेट्स के साथ धोखा करते हुए जॉर्ज को कई बार बचाता है. हालाँकि इस बात का एहसास जॉर्ज को काफ़ी देर से होता है और फिर वो अपना नया प्ले इस एजेंट को डेडिकेट करता है.
ये 2006 में आई जर्मन मूवी Das Leben der Anderen (दी लाइफ ऑफ अदर्स) का मेन प्लॉट है. कमाल की इमोशनल मूवी है. आपको ज़रूर देखनी चाहिए. लेकिन आज इसकी बात क्यों? पहला कारण तो या है कि ये मेरी वन ऑफ़ दी फ़ेवरेट मूवी है, और किसी ना किसी बहाने आपको रेकमेंड करना चाहता था. दूसरा कारण है कि मूवी के बैकड्रॉप में है सर्विलेंस. और आज बात इसी सर्वलेंस की. टू बी स्पेसिफ़िक फ़ोन टेपिंग की.
तेलंगाना. एक नाम पर गौर करिये सस्पेंडेड पुलिस ऑफिसर D Praneeth Rao. जो KCR सरकार के वक़्त तेलंगाना DGP ऑफिस में DSP के पद पर नियुक्त थे. इनके ऊपर दो आरोप लगे
-पहला ये विपक्ष के नेताओं का फ़ोन टेप करते थे.
-दूसरा इन्होने कई सरकारी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से इंटेलिजेंस की जानकारी गायब कर दी
इन आरोपों के चलते इन्हे तो गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन पिछले हफ्ते, हैदराबाद पुलिस ने फ़ोन टेपिंग मामले में 2 ASP यानी सहायक पुलिस अधीक्षकों को गिरफ्तार किया है. इनके ऊपर क्या आरोप लगा? ये कि,ये दोनों अधिकारी गैर कानूनी तरीके से लोगों के फ़ोन टेप करते थे. और इनके ऊपर ये आरोप भी लगा कि D Praneeth Rao के साथ अपने कनेक्शन का सबूत मिटने के लिए इन्होने सरकारी सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाया. इस मामले में कितना सच है कितनी राजनीति ये तो कोर्ट में पता चल जायेगा
क्या है टेलीफोन टेपिंग?
हेल्लो, XYZ से बात हो जाएगी? कुछ ऐसे ही कॉल की शुरुआत होती है न. लेकिन अगर आपके फोन की घंटी के साथ कहीं और भी एक घंटी बजे तब? मतलब कोई और भी आपकी बातें सुन रहो हो तब? और सिर्फ एक कॉल नहीं, हर कॉल. आपके हेलो बोलने से लेकर आखिरी में बोले गए बाय-बाय तक. सब कुछ तीसरा इंसान सुन रहा. उन सभी फोन कॉल्स के जरिए एक एक चीज़ की मॉनिटरिंग हो. आपकी प्रोफाइलिंग हो.
इसे ही कहते हैं फ़ोन टेपिंग. यानी अगर एक लाइन में कहें तो टेलीफोन पर चल रही बातचीत को छुपकर सुनना या उसे रिकॉर्ड करना. फोन टेपिंग करने, कराने के लिए सरकारी मंजूरी चाहिए होती है. और किसी का भी फोन तभी टेप किया जाता है जब बात देश की सिक्योरिटी और संप्रुभता से जुड़ी हो.
इसे उदाहरण से समझिये. अगर किसी क्षेत्र में किसी बड़े खतरे की आशंका है. जैसे किसी आंतकी हमले या नक्सली घटना की आशंका है. ऐसे में इंटेलिजेंस एजेंसियां या पुलिस उन लोगों के मोबाइल फ़ोन टेप कर सकती हैं, जिससे उन्हें आंतकियों के ठिकाने या उनके प्लान का पता चलने की संभावना हो.
लेकिन फोन टेपिंग कोई हलवा चीज नहीं है. भारत में इसके लिए एक सेट प्रोटोकॉल है. किसी का फोन टेप करने के लिए एक तय विभाग से अनुमति लेनी होती है. लेकिन जब इन सभी प्रोटोकॉल और अनुमतियों को ताक पर रख के कुछ लोग अपनी ताकत का गलत फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हैं. तब ये गैर कानूनी काम हो जाता है. इसके लिए सजा का भी प्रावधान है.
फ़ोन टेप करने की शक्ति किसके पास?भारत में लोकल स्तर पर राज्यों की पुलिस फोन टेप कर सकती है. लोकल पुलिस किसी मामले की जांच के दौरान सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए किसी के फोन को सात दिनों तक के लिए टेप कर सकती है. इसके लिए एक आईजी स्तर के अधिकारी परमिशन देते हैं. पुलिस को शासन से भी इसकी अनुमति लेनी होती है.
19 नवंबर 2019 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि केंद्र सरकार की 10 एजेंसियां ऐसी हैं जो फोन टेप कर सकती हैं. हालांकि ऐसा करने के लिए इन एजेंसियों को केंद्रीय गृह सचिव की मंज़ूरी लेनी होती है. इन एजेंसियों को ये शक्ति देने के पीछे एक कारण है. चलिए जानते हैं कौन सी एजेंसियां है जिन्हें फोन टेप करने का अधिकार दिया गया है और उन्हें ये ताकत देने के क्या कारण है?
-इन्टेलिजन्स ब्यूरो: क्योंकि ये देश के भीतर सभी तरह की खुफिया जानकारी जुटाने का काम करती है.
-सीबीआई: ये देश की सम्मानित जांच एजेंसी है. ये corruption, स्मग्लिंग ,और कई हाई प्रोफाइल केसेस में जांच करती है
-एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट: मनी लॉंन्ड्रिंग और आर्थिक धोखाधड़ी से जुड़े मामलों की जांच करती है.
-नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो: देश में प्रतिबंधित ड्रग्स का आवागमन और तस्करी रोकती है.
-सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस: इस एजेंसी के कई अलग अलग काम होते हैं. ये डायरेक्ट टैक्स जैसे इनकम टैक्स की चोरी के मामले में जांच करती है.
-डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इन्टेलिजन्स: ये सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस के अंदर काम करती है. इसका काम क्या है? स्मगलिंग जैसे ऑर्गनाइज़्ड क्राइम के बारे में जानकारी इकट्ठा करना और इसकी जांच करना.
-नैशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी: ये आंतकवाद से जुड़े मामलों की जांच करती है.
-रिसर्च एंड ऐनालिसिस विंग जिसे हम रॉ कहते है: ये देश के बाहर खुफिया जानकारी जुटाती है
-डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इन्टेलिजन्स: इसका क्या काम है? सरकारी खुफिया मिशन के लिए जानकारी एकत्र करना, उसका विश्लेषण करना और उसे सुरक्षित तरीके से ट्रांसमिट करना.
और
-कमिश्नर, दिल्ली पुलिस
इन एजेंसियों के अलावा अगर कोई और एजेंसी या संस्था फोन टेप करती है तो उसे गैरकानूनी माना जाता है.
हालांकि सीबीआई और वित्त मंत्रालय को बिना गृह मंत्रालय की इजाजत के बिना भी 72 घंटे तक फोन टेप करने का अधिकार दिया गया है.
किस कानून के तहत किया जाता है फोन टेप?भारतीय एजेंसियां The Indian Telegraph Act, 1885 के तहत फोन टेपिंग करती हैं. इस एक्ट में ऐसे प्रावधान हैं जिसमें ये बताया गया है कि किन परिस्थितियों में सरकार आपका फोन टेप कर सकती है.
इसी एक्ट के सेक्शन 5 (2) के अनुसार; केंद्र या राज्य सरकारें, फोन टेप करवा सकती हैं.
अगर उन्हें लगता है कि
-सार्वजनिक सुरक्षा पर कोई खतरा है
-देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा है
-किसी हिंसक घटना को होने से रोकने के लिए
-राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा है
हालांकि इसमें प्रेस को लेकर एक अपवाद है. अगर कोई प्रेस मैसेज किसी सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संवाददाता की तरफ से भेजा गया है. तो उसे इंटरसेप्ट करने की कोशिश नहीं होगी. इंटरसेप्ट यानी किसी भेजे हुए मैसेज को बीच में पढ़ने या सुनने की कोशिश करना. जिसमें भेजने वाले और रिसीव करने वाले की मंजूरी नहीं होती है.
लेकिन इस प्रेस की आजादी में भी एक पेंच है. ये आजादी प्रेस को तब तक है जब तक इसे प्रतिबंधित नहीं किया जाता.
फोन टेपिंग करने वाली एजेंसियों को भी लिखित में टेपिंग का कारण बताना होता है.
2007 में संशोधन?The Indian Telegraph Act, 1885 का संशोधन किया गया 2007 में. तब तक संबंधित विभागों के अधिकारी फोन टेपिंग की मंजूरी दिया करते थे. पर 2007 में इस एक्ट में संशोधन के बाद सचिव स्तर से मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया गया.
संशोधन के अनुसार फोन टेपिंग के लिए अगर केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी है तो इसकी मंजूरी केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सबसे शीर्ष अधिकारी यानी गृह सचिव दे सकते हैं. वहीं राज्यों के मामले में इसकी मंजूरी राज्य के गृह मंत्रालय के सचिव दे सकते हैं. इनकी अनुमति के बाद ही फोन टेपिंग शुरू की जा सकती है.
फोन टेपिंग का गलत इस्तेमाल न हो इसके लिए क्या कदम उठाए गए?
फोन टेपिंग के इसी गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए एक्ट में ही कुछ प्रावधान किए गए हैं. इससे ये सुनिश्चित होता है कि सरकारें या अधिकारी अपने निजी फायदे के लिए फोन टेपिंग का गलत इस्तेमाल न करने पाएं.
Indian Telegraph Act, 1885 के रूल 419A का सब रूल (1) साफ तौर पर ये कहता है कि अगर जानकारी जुटाने का कोई और जरिया न हो, तभी फोन टेपिंग का इस्तेमाल किया जाएगा. पर इसके गलत इस्तेमाल के भी आरोप लगते रहते हैं. हमने आपको हैदराबाद का मामला बताया. यहां आरोप लगा कि विपक्ष के नेताओं के फोन टेप किए गए हैं.
कॉल इंटरसेप्शन कितने समय तक किया जा सकता है इसे लेकर भी कुछ दिशा निर्देश दिए गए. जैसे इसकी मैक्सिमम लिमिट 60 दिनों की है. इसे रिन्यू किया जा सकता है लेकिन रिन्यू करने के बाद भी 180 दिनों से ज्यादा किसी भी फोन को टेप नहीं किया जाएगा.
-टेपिंग करने वाली संस्था को सात कामकाजी दिनों के भीतर रिव्यू कमेटी को टेपिंग करने का कारण बताना होगा.
इस कमिटी में मेंबर्स कौन होंगे इस बात का भी उल्लेख है.
केंद्र सरकार मेंकैबिनेट सचिव इस कमेटी के अध्यक्ष होते हैं. कैबिनेट सचिव को ऐसे समझिए कि केंद्र में सबसे बड़ा सचिव का पद यही होता है. अलग-अलग मंत्रालयों में सचिव होते हैं और उनके ऊपर होता है कैबिनेट सचिव.
उसके साथ कानून और दूरसंचार विभाग के सचिव इस कमेटी के मेंबर होते हैं.
राज्यों में कमेटी
मुख्य सचिव इस कमेटी के अध्यक्ष होते हैं. केंद्र की तर्ज़ पर ही राज्यों में भी मंत्रालयों को संभालने के लिए सचिव नियुक्त किये जाते हैं. राज्यों में सबसे सीनियर को मुख्य सचिव बनाया जाता है.
राज्य के ही कानून और गृह सचिव इसके सदस्य होते हैं.
-इसके साथ ही हर दो महीने पर इस कमेटी की मीटिंग होगी, जो टेपिंग के लिए प्राप्त सारे अनुरोधों की समीक्षा करेगी.
-इसके अलावा व्यक्ति की प्राइवेसी को बनाये रखने के लिए हर छह महीने में टेपिंग या इंटेरसेप्शन से जुड़े रेकॉर्ड्स को नष्ट कर दिया जाता है. अगर कोई रिकार्ड आने वाले समय में किसी कार्रवाई में काम आ सकता है तो उसे नष्ट नहीं किया जाता.
अब यहां उठता है एक सवाल. सवाल ये कि अगर सरकार या यूं कहें कि सरकारी एजेंसियों के पास फोन टेप करने की शक्ति है तो इंसान की निजता का क्या? क्या हम ये मान लें कि हमारे सारे फोन कॉल्स, मेसेजेस, ई-मेल किसी कंप्यूटर पर बैठा कोई व्यक्ति सुन रहा है?
और इसी से एक सवाल उठा Right to Privacy बनाम National Security का. ये सवाल 2018 में देश की सुप्रीम कोर्ट के सामने आया. केस था K.S. Puttaswamy बनाम Union of India. इसमें अदालत के सामने एक सवाल आया कि क्या निजता या गोपनीयता भी संवैधानिक रूप से संरक्षित मूल्य है?
राइट टू प्राइवेसी vs नेशनल सिक्योरिटी
इस मामले में याचिककर्ता ने कहा कि व्यक्ति की निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में मौजूद जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का आंतरिक हिस्सा है. लिहाजा मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में सुप्रीम कोर्ट इस अधिकार की रक्षा करे.