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फ़िलिस्तीनियों की मौत के आंकड़ों पर बाइडन को 'शक', असल में कितने लोग मारे जा चुके हैं?

झगड़ा मारे गए लोगों की संख्या पर है. इस पर ज़ोर कम है कि यहां सांस लेते लोगों की बात हो रही है. बच्चों की बात हो रही है, जो बिना क़ुसूर के - जीवन शुरू होने से पहले ही जंग में मार दिए गए.

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ग़ाज़ा के एक राहत शिविर की तस्वीर (AP)
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सोम शेखर
29 अक्तूबर 2023 (Updated: 29 अक्तूबर 2023, 03:05 PM IST)
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इज़रायली सेना और हमास लड़ाकों की जंग में अब तक हज़ारों बेक़ुसूर लोगों की जान जा चुकी है. इज़रायल के 1,400 से ज़्यादा नागरिकों ने जान गंवाई है. और जब से जंग शुरू हुई है, इज़रायल के जवाबी हमले में 7,300 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. हालांकि, इस आंकड़े को लेकर दुनिया के अलग-अलग हलकों में संशय हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है कि उन्हें फ़िलिस्तीनियों द्वारा जारी की जा रही संख्या पर भरोसा नहीं है. वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है ग़ाज़ा में मरने वालों की संख्या, बताई जा रही संख्या से कहीं ज़्यादा हो सकती है. क्योंकि हज़ार से ज़्यादा लोग तो मलबे में दबे हुए हैं और उन्हें अभी तक आधिकारिक आंकड़े में नहीं जोड़ा गया है.

मानवाधिकार की जिरह करने वालों ने फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा को ख़ारिज करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान की आलोचना की है. मगर संख्या का सवाल अब भी रहता है कि इज़रायल-हमास की जंग में अब तक कितने फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं?

ग़ाज़ा की संख्या पर भरोसा कर सकते हैं?

ग़ाज़ा में मरने वालों की संख्या ग़ाज़ा का स्वास्थ्य मंत्रालय जारी करता है. मंत्रालय इन मौत के आंकड़ों के लिए एकमात्र आधिकारिक स्रोत है, क्योंकि इज़रायल ने ग़ाज़ा की सीमाओं को सील कर दिया है. विदेशी पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता बहुत ही सीमित हैं. ऊपर से इज़रायल की तरफ़ से भारी बमबारी चल ही रही है. घेराबंदी है. टेलीफ़ोन और इंटरनेट सेवाएं ठप हैं. बिजली बंद है. हवाई हमलों ने सड़कें तोड़ दी हैं. फिर स्वास्थ्य मंत्रालय मृतकों की संख्या जोड़ता कैसे है?

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मृतकों पर इतनी बारीक नज़र रखना जटिल काम है. मगर ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय का रिकॉर्ड अच्छा रहा है. न्यूज़ एजेंसी AP की रिपोर्ट के मुताबिक़, पिछली जंगों में मंत्रालय की गिनती UN के आंकड़ों, स्वतंत्र जांच और यहां तक ​​कि इज़रायल के आंकड़ों के आस-पास ही रही है. UN और बाक़ी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और विशेषज्ञों का कहना है कि ग़ाज़ा मंत्रालय ने सबसे कठिन परिस्थितियों में भी सटीक संख्या बताई है. मिसाल के लिए,

- 2008 युद्ध: मंत्रालय ने बताया- 1,440 फ़िलिस्तीनी मारे गए. UN ने बताया 1,385.
- 2014 युद्ध: मंत्रालय ने 2,310 फिलिस्तीनियों के मारे जाने की सूचना दी, UN ने 2,251.
- 2021 युद्ध: मंत्रालय ने कुल 260 फ़िलिस्तीनियों के मारे जाने के आंकड़े दिए, UN ने 256.

हालांकि, ग़ाज़ा अस्पताल हमले के वक़्त मंत्रालय की गणना सटीक नहीं थी. पहले उन्होंने जानकारी दी, कि 500 लोग मारे गए हैं. अगले दिन उसे 600 कर दिया और फिर बाद में घटाकर 471 किया. अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों का अनुमान है कि 100 से 300 लोग मारे गए, लेकिन उन्होंने ये नहीं साफ़ किया कि वो इस संख्या तक पहुंचे कैसे. वहीं, इज़रायल का कहना है कि मंत्रालय ने आंकड़ा बढ़ा दिया था.

ग़ाज़ा शहर पर इज़रायली हवाई हमले के बाद की तस्वीर (CFP)
ग़ाज़ा मंत्रालय सही नंबर तक कैसे पहुंचता है?

स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ़ अल-क़िदरा का दफ़्तर ग़ाज़ा शहर के शिफ़ा अस्पताल में है. AP की रिपोर्ट के मुताबिक़, उन्हें प्रांत के हर अस्पताल से लगातार डेटा आता रहता है. अस्पताल प्रशासन बिस्तर पकड़ लेने वाले हर घायल व्यक्ति और मुर्दाघर में आने वाले हर शव का रिकॉर्ड रखता है. वही रिकॉर्ड अल-क़िदरा को भेजा जाता है.

मंत्रालय अन्य स्रोतों से भी डेटा इकट्ठा करता है. जैसे, स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राष्ट्रीय सोसायटी (NGO) रेड क्रिसेंट.

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हर कुछ घंटों में ही मृतकों की संख्या अपडेट की जाती है. आम तौर पर मारे गए लोगों का नाम, उम्र या जगह नहीं बताई जाती है. लेकिन अमेरिका के संदेह के जवाब में मंत्रालय ने 26 अक्टूबर को बाक़ायदा 212 पन्नों की एक रिपोर्ट जारी की. इसमें युद्ध में अब तक मारे गए हर फ़िलिस्तीनी के नाम, ID नंबर, उम्र और लिंग डाले गए हैं. तब मरने वाले कुल फ़िलिस्तीनियों की संख्या 7,028 थी. लेकिन इसका ब्योरा नहीं है कि मौतें हुईं कैसे. सभी को 'इज़रायली आक्रामकता' का शिकार बताया गया.

और, मंत्रालय कभी भी नागरिकों और लड़ाकों के बीच अंतर नहीं करता. संयुक्त राष्ट्र और अन्य समूहों की जांच के बाद स्थिति साफ़ होती है. इस पारदर्शिता की कमी की वजह से मंत्रालय की आलोचना भी की जाती है.

एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं?

ग़ाज़ा में 2007 से ही हमास का शासन है. लेकिन न्यूज़ संगठन और एजेंसियां लंबे समय तक स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों पर ही निर्भर रहे हैं. टाइम मैगजीन में यास्मीन सेरहान की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ऐसा पहली बार हो रहा है कि संस्था की विश्वसनीयता पर इतनी प्रमुखता से सवाल उठे हों. न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के पूर्व ब्यूरो चीफ़ लूक बेकर - जिन्होंने 2014 से 2017 तक इज़रायल और फ़िलिस्तीन को कवर किया - उन्होंने लिखा,

"नागरिक मौतों की संख्या को यथासंभव बढ़ाने के लिए हमास के पास पर्याप्त और साफ़ एजेंडा है."

बाइडन की तरह ही बेकर ने भी कहा है कि बिला-शक मासूम लोगों की जान गई है. उन्होंने तो इतना तक कहा कि मृतकों की संख्या असत्यापित है और जिन लोगों पर गणना का ज़िम्मा है, वो स्वतंत्र रूप से ऐसा कर नहीं पाएंगे. बावजूद इसके, वो हमास के एजेंडे की ओर इशारा करते हैं.

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वहीं, ह्यूमन राइट्स वॉच में इज़रायल और फ़िलिस्तीन के निदेशक उमर शाकिर ने मंत्रालय के नंबर्स की सटीकता की तस्दीक़ की. कहा कि मंत्रालय के पास वैसे स्रोत हैं, जो किसी और के पास नहीं. मुर्दाघरों का, अस्पतालों का डेटा. और अंततः, गणना करने का सबसे विश्वसनीय तरीक़ा यही होगा. शाकिर का कहना है कि बमबारी के स्केल को देखते हुए ये संख्या आश्चर्यजनक नहीं है.

"ग़ाज़ा धरती पर सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है. जिस पैमाने के हवाई हमले उस क्षेत्र में किए जा रहे हैं, मरने वालों की संख्या हमारी अपेक्षा के अनुरूप ही है."

ग़ाज़ा शहर के बाहरी इलाक़े अल-ज़हरा पर बमबारी के बाद मल्बे के बीच चलते लोग (फोटो - AP)

अल-अहली अस्पताल में हुए धमाके और मरने वालों की संख्या पर उठे सवालों के बाद भी कुछ विशेषज्ञों ने मंत्रालय के आंकड़े पर भरोसा जताया है. साथ ही पश्चिमी देशों के संशय को ख़ारिज किया है. वेस्ट बैंक में रहने वाली राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार नूर ओदेह ने कहा कि फ़िलिस्तीनी मौतों का आंकड़ा, किसी भी ऐतिहासिक 'जातीय नरसंहार' से अलग नहीं है. और, ज़ाहिर है कि इज़रायल इस संख्या को मान्यता नहीं देगा. नूर ने कहा,

"सर्बिया के लोगों ने बोस्निया और हर्जे़गोविना की मुस्लिम आबादी के नरसंहार की बात से इनकार किया. रवांडा में भी ऐसा ही हुआ. रूस, यूक्रेन में ऐसा कर रहा है और उन्होंने सीरिया में असद शासन के साथ मिलकर भी ऐसा ही किया... ये ज़ालिमों की पुरानी चाल है."

झगड़ा संख्या पर है और इस पर ज़ोर कम है कि यहां सांस लेते लोगों की बात हो रही है. बच्चों की बात हो रही है, जो बिना क़ुसूर के - जीवन शुरू होने से पहले ही - जंग में मार दिए गए.

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