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भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का PM ने किया दावा, तो विपक्ष और विशेषज्ञों ने उठाए सवाल

'भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी.' मुद्दे की बात ये है कि इस दावे में दम कितना है?

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PM मोदी का दावा है कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा
27 जुलाई 2023 (Updated: 11 दिसंबर 2023, 09:30 PM IST) कॉमेंट्स
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'भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी.' मुद्दे की बात ये है कि इस दावे में दम कितना है? क्योंकि जनता की स्मृति में "5 ट्रिलियन-5 ट्रिलियन" के दावे धुंधलाए नहीं हैं.

भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में. ऐसा प्रधानमंत्री ने ख़ुद कहा है. चुनाव नहीं हुए हैं. चुनाव की तारीख़ें भी घोषित नहीं हुईं. लेकिन प्रधानमंत्री ने एलान कर दिया. चलिए, कर दिया तो कर दिया. मुद्दे की बात ये है कि इस दावे में दम कितना है? क्योंकि जनता की स्मृति में "5 ट्रिलियन-5 ट्रिलियन" के दावे धुंधलाए नहीं हैं. सरकार प्रोसेस समझा रही है, कोरोना, यूक्रेन आदि. लेकिन वादे करते वक्त ये नहीं कहा जाता कि शर्तें लागू वाला मामला है.

ऐसे में प्रधानमंत्री के ताज़ा दावे पर प्रतिक्रियाएं आना लाज़मी था. पूर्व वित्त मंत्री पी चितंबरम ने याद दिलाया कि तीसरी अर्थव्यवस्था तो हम बन जाएंगे, लेकिन प्रति व्यक्ति आय यानी per-capita income के लिहाज से हम दुनिया में 128वें स्थान पर हैं. वहीं, पूर्व वाणिज्य मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमणियम स्वामी कह रहे हैं, कि तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था तो हम हैं ही. लेंस बदल कर देखिए. माने बहुत कन्फ़्यूज़न है. तीसरे या दूसरे या पहले स्थान का हासिल होगा क्या. क्या ये सिर्फ गर्व का विषय होगा? जिस सफलता सपना दिखाया जा रहा है, उसमें कौन-कौन शामिल होगा? क्या उन लोगों का जीवन भी सुधरेगा, जो सरकार से मिलने वाले मुफ्त राशन पर आश्रित हैं? किस्तों में बंधी मिडल क्लास की ज़िंदगी कितना सुधर जाएगी?

प्रधानमंत्री ने ये बयान 26 जुलाई को दिल्ली के प्रगति मैदान में दिया. यहां वो इंटरनेशनल एग्जिबिशन कन्वेंशन सेंटर (IECC) - जिसे भारत मंडपम भी कहा जा रहा है - उसका उद्घाटन करने पहुंचे थे. ये भी पहली बार नहीं है, जब प्रधानमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर ये दावा किया है. पिछले महीने, जब वो अमेरिका गए थे, तब अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कुछ ऐसा ही कहा था. "जब मैं पहली बार प्रधानमंत्री बनकर अमेरिका आया था, तब भारत दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. आज भारत पांचवें नंबर पर है और जल्द ही तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होगी."

इंटरनेट पर प्रधानमंत्री के ऐसे बयान सर्च करिये, ख़ूब मिलेंगे. लेकिन सही संदर्भ के बिना इन बयानों की तारीफ या आलोचना, दोनों गलत ही रहेंगे. इसीलिए कुछ चीज़ों पर गौर कीजिए. पहले समझिए GDP है क्या. अंग्रेज़ी में Gross Domestic Product. हिंदी में कहते हैं- सकल घरेलू उत्पाद. सकल का मतलब सभी. घरेलू माने घर-संबंधी. घर का यहां आशय है देश. उत्पाद का मतलब है उत्पादन या प्रोडक्शन. कुल मिलाकर देश में हो रहा हर तरह का उत्पादन. उत्पादन कहां होता है? कारखानों में, खेतों में. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया. इस तरह उत्पादन और सेवा क्षेत्र के कुल मूल्य को कहते हैं GDP.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इसी GDP साइज़ के बढ़ने की बात कर रहे हैं. और, प्रधानमंत्री का दावा सही है कि बीते 8 सालों में भारत की GDP दुनिया में 10वें स्थान से 5वें स्थान पर आ गई. फ़िलहाल भारत की जीडीपी का आकार है 3.7 ट्रिलियन डॉलर. माने 303 लाख करोड़ रुपए. यहां हम माफी के साथ एक बात रखना चाहते हैं. अमूमन हम विदेशी मुद्राओं वाली रकम को रूपये वाले मूल्य में भी बताते हैं. लेकिन आज जब हम अलग-अलग देशों की जीडीपी की तुलना करेंगे, तो हम अंतरराष्ट्रीय मानक - माने यूएस डॉलर में ही बात करेंगे. क्योंकि जापान और जर्मनी जैसी अर्थव्यवस्थाओं के आंकड़ों को पहले ही एक बार कंवर्ट किया जा चुका है. दोबारा ऐसा करने से गणना में फर्क आने की आशंका रहेगी.

हम पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, ऊपर के चार कौन से हैं?
पहला, अमेरिका.
दूसरी, चीन.
तीसरा, जापान.
चौथी, जर्मनी.
और पांचवी, भारत.
जिन देशों को 9 सालों में पीछे छोड़ा गया है, वो कौन-कौन से हैं?
यूके, फ़्रांस, रूस, कनाडा और इटली.

भारत की अर्थव्यवस्था पांचवे नंबर पर है और तीसरी हो जाएगी, ये केवल प्रधानमंत्री नहीं कह रहे. इस प्रोजेक्शन को लेकर कई सारी मीडिया रिपोर्ट्स भी छप चुकी हैं. कई फाइनेंशियल फ़र्म भी ऐसा ही अनुमान लगा रही हैं.
> पिछले साल नवंबर में अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टेनली ने दावा किया था कि भारत 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. मॉर्गन स्टेनली ने अपनी रिसर्च में कहा था कि साल 2031 तक भारत की जीडीपी आज के 3.5 ट्रिलियन डॉलर के मुक़ाबले दोगुनी से भी ज्यादा - माने 7.5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी.
> अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF का भी यही अनुमान है. इकनॉमिक्स टाइम्स की फरवरी 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक़, IMF ने अनुमान लगाया कि 2027 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का साइज़ 5.4 ट्रिलियन डॉलर तक होगा. भारत, जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ देगा.
> कुछ रिपोर्ट्स इससे भी आगे की बात करती हैं. 2075 तक का अनुमान लगाती है. अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैश ने इसी महीने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि साल 2075 तक भारत अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. हमने आपको बताया ही कि जीडीपी के हिसाब से अमेरिका अभी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, 2075 में चीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी. वैसे ये आधी सदी बाद की बात है. आइए वर्तमान में लौट आएं.

गौर करने वाली बात ये है कि मॉर्गन स्टैनली, IMF या गोल्डमैन सैश ने ये नहीं कहा है कि अमुक पार्टी या नेता के नेतृत्व में ऐसा होगा. उन्होंने एक सिस्टम के तौर पर भारतीय अर्थव्यस्था को स्टडी किया है. और उस आधार पर अनुमान लगाया है.

माने हम "बिग-3" में शामिल तो हो रहे हैं. ये तय है. लेकिन जैसा आपने सुना, इसमें जितना हमारा अच्छा प्रदर्शन शामिल है, उतना बाक़ियों का ख़राब प्रदर्शन भी. 2014 के बाद से भारत ने जिन पांच देशों को पीछे छोड़ा है, उनमें से सबका प्रदर्शन खराब रहा है. GDP ग्रोथ के आंकड़े देखिये -
ब्रिटेन  3%,
फ्रांस  2%,
रूस 1%
इन तीन ने तो फिर भी कुछ ग्रोथ की. इटली की GDP बिल्कुल ही नहीं बढ़ी और ब्राज़ील की GDP तो 15% घट ही गई.

एक बात और जान लीजिए. फिर आर्ग्यूमेंट ऑफ़ द डे पर चलेंगे. GDP को तय करने के लिए आधार वर्ष तय किए जाते हैं. यानी अमुक साल में देश का जो कुल उत्पादन था, वो 2023 में उसकी तुलना में कितना बढ़ा है या घटा है? उसे ही जीडीपी की दर माना जाता है. अगर बढ़ोतरी हुई है, तो जीडीपी बढ़ी है. और अगर तुलनात्मक रूप से उत्पादन घटा है, तो जीडीपी में कमी आई है. जैसे साल 2022-23 में भारत की अर्थव्यवस्था 7.2 फीसदी बढ़ी. अब इस वित्तीय वर्ष यानी 2023-24 के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का अनुमान है कि अर्थव्यवस्था 6.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी.

बीते साल विकास दर उतनी ज़्यादा नज़र नहीं आई थी. लेकिन बात बस तुलना की ही नहीं है, अर्थव्यवस्था वाक़ई सुस्त पड़ी थी. कहीं न कहीं, इसके आफ़्टर-इफ़ेक्ट्स अभी तक हमारे सामने हैं. इसके बड़े कारण वही हैं, जिनकी चर्चा दी लल्लनटॉप लगातार आपसे करता रहा है -
> कोरोना महामारी
> रूस - यूक्रेन युद्ध
> वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी
इनके चलते मूडीज़ जैसी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसीज़ से लेकर भारतीय रिज़र्व बैंक, सबने GDP ग्रोथ के अनुमान लगातार घटाए भी थे.

अब आ जाते हैं असल बात पर. भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है, इसमें कोई दो राय नहीं है. 10 साल की पिछली यूपीए सरकार - 2004 से 14 तक - में भी अर्थव्यवस्था का साइज़ क़रीब तीन गुना बढ़ा था. IMF के मुताबिक, 2004 में भारतीय अर्थव्यवस्था 722 बिलियन डॉलर की थी. जो 2014 में बढ़कर 2039 बिलियन डॉलर पर पहुंच गई थी. वहीं, 2014 से 2023 के बीच भारत की जीडीपी 83 फ़ीसदी बढ़ी है.

सवाल ये है कि क्या सिर्फ़ नंबर अर्थव्यवस्था का हाल बताने के लिये काफ़ी है? देश के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने प्रधानमंत्री के बयान के बाद एक ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, 

“जीडीपी के मामले में भारत आज पांचवें नंबर पर है. ये गर्व करने वाली बात है. मगर प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत 128वें नंबर पर है. ये हमें सच्चाई बताती है और तेज गति से विकास के लिए आगे बढ़ने को कहती है. एक दिन, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. लेकिन हमारा लक्ष्य प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने और दुनिया के टॉप-10 देशों में शामिल कराने पर होना चाहिए. हमें प्रति व्यक्ति आय पर बात करनी चाहिए. ये समृद्धि को मापने का सही तरीक़ा है.”

देश की कुल कमाई को उसकी जनसंख्या से बांटने पर जो रकम निकलती है, वही पर कैपिटा इनकम यानी प्रति व्यक्ति आय कहलाती है. ऐसे कह लीजिए, कि देश का हर नागरिक औसतन इतने रुपये कमा रहा है.

एक कंपनी का उदाहरण लेते हैं. इसका मार्केट कैपिटल मान लीजिए - 5000 करोड़ है. तो क्या उसमें काम करने वाले सभी लोग बराबरी से वेतन पाते होंगे? जवाब है, नहीं. कुछ लोग 15-18 हज़ार प्रति माह के वेतन पर भी काम करते हैं. और कुछ लोग योग्यता या पद के अनुरूप ज़्यादा पैसा पाते हैं. इन सबकी मेहनत से कंपनी विकास कर रही है. 1 करोड़ पाने वाले भी इसी स्ट्रक्चर का हिस्सा हैं, और 18 हज़ार पाने वाले. लेकिन कंपनी इन्हें देखती अलग अलग ही है.

इसमें ज़रूरी बात ये है कि कंपनी एक प्राइवेट एंटिटी है. वो जवाबदेह नहीं हैं. वो जैसे मर्ज़ी अपना बिज़नेस चला सकते हैं, क्योंकि लक्ष्य एक ही है मुनाफा. लेकिन सरकार की फिलॉसफी अलग होती है. उसका मकसद है जनकल्याण. इसीलिए जनप्रतिनिधि जवाबदेह होते हैं. और जवाबदेही तय करने के लिए एक इस्टीट्यूश्नल फ्रेमवर्क भी होता है. इन सबको इस बात की गैरंटी होती है कि हर जन तक अन्न पहुंचे. रोज़गार के पर्याप्त अवसर हों. महंगाई क़ाबू में रहे. हर व्यक्ति जो अपना समय-ऊर्जा-क्षमता देश की तरक्की में लगा रहा है, उसे उसका हक़ अदा हो. इसीलिए ये तर्क भले न दिया जा सके कि देश में सभी की आय बराबर हो. लेकिन सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो न्यूनतम आय सुनिश्चित हो जिससे आम नागरिक अपनी ज़रूरतें पूरी कर सके. आर्थिक विषमता न हो.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और छह बार के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यण स्वामी ने भी प्रधानमंत्री के बयान पर सवाल उठाया है. वो अक्सर ही सरकार को घेरते रहते हैं. स्वामी ने आज सुबह ट्विटर पर लिखा, "प्रधानमंत्री के लिए ट्वीट करने वाले PMO के लोगों के साथ दिक्कत ये है कि पीएमओ के जॉइंट सेक्रेटरी आधे पढ़े-लिखे हैं. परचेजिंग पावर पैरिटी के हिसाब से भारत पिछले कम से कम 20 सालों से दुनिया की तीसरी बड़ी जीडीपी रही है. और मोदी कहते हैं कि भविष्य में तीसरी बड़ी जीडीपी होगी. PMO में इकनॉमिक्स पर ज्ञान का अभाव काफी ज्यादा है."

पर्चेज़िंग पावर पैरिटी क्या है? 
हिंदी में कहते हैं, क्रय शक्ति समता. जितनी जटिल ये हिंदी है, उतनी ही परिभाषा. आप ऐसे समझ लीजिए कि अमुक चीज़ की क़ीमत अलग-अलग देशों में कितनी है? जैसे, भारत में अगर कोई चीज़ 80 रुपये की है, तो इसका मतलब नहीं कि आप तुरंत करेंसी कन्वर्ज़न कर के कह दें कि अमेरिका में वही चीज़ 1 डॉलर की मिलेगी. ये ज़रूरी नहीं है. किसी भी चीज़ की क़ीमत अलग-अलग फ़ैक्टर्स पर निर्भर होती है. और इसीलिए अलग अलग देशों के लोगों को अगर समान आय दे दी जाए, तब भी उनकी क्रय क्षमता अलग अलग होगी. यही PPP होती है.

कुल-मिलाकर स्वामी की बात से हमें पता चलता है कि
हर अर्थव्यवस्था में होते हैं, दस-बीस सूचकांक
जिसको भी देखना हो, अलग-अलग लेंस से देखना

तो अब आ जाते हैं कि और किन-किन इंडिकेटर्स को टोहा जा सकता है. पहले प्रति व्यक्ति आय की ही बात कर लेते हैं. परिभाषा हमने बता ही दी. ये भी बता दिया कि हमारा देश 128वें नंबर पर है. भारत में एक आदमी औसतन 477 रुपये रोज़ाना कमाता है. कितने लोग कमाते हैं? इससे ज़्यादा कमाने वाले हैं, या कम, ये आप अपने आस-पास देख लीजिए. अलग-अलग जवाब मिलेंगे. वर्ल्ड बैंक के हिसाब से भी भारत अभी निम्न आय वर्ग के देशों में आता है. IMF का अनुमान है कि 2028 में हमारी प्रति व्यक्ति आय सालाना 3 लाख रुपये होगी. भारत, जिस जर्मनी को पीछे छोड़ने की बात कर रहा है उसकी प्रति व्यक्ति आय 39 लाख रुपये है. सालाना. और, जापान की प्रति व्यक्ति आय 29 लाख रुपये है.

जब प्रति व्यक्ति आय की बात कर ही रहे हैं, तो एक नज़र भारत में आय की असमानता पर भी जानी चाहिए. अंतरराष्ट्रीय संस्था Oxfam हर साल इस पर रिपोर्ट जारी करती है. इस साल जनवरी में रिपोर्ट आई कि भारत के एक फ़ीसदी अमीर लोगों के पास देश की कुल 40 फीसदी से ज़्यादा संपत्ति है. जबकि नीचे के 50 परसेंट लोगों के पास सिर्फ 1 परसेंट संपत्ति है. ये साल 2021 के आंकड़े हैं. अगर ऊपर के 10 फीसदी लोगों को देखें, तो उनके पास देश की कुल संपत्ति का 72 परसेंट हिस्सा है. बाक़ी के 90 फीसदी लोगों के पास सिर्फ़ 28 फीसदी. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि भारत की आधी आबादी, जिसकी देश की संपत्ति में कुल हिस्सेदारी 3 फीसदी है, उसकी आमदनी साल 2020 में 13 परसेंट कम हो गई.

ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट्स पर विवाद को एक तरफ़ धर दें, तो भी एक पेच रह ही जाता है. पर-कैपिटा इनकम भी एक कम्पलीट पिक्चर नहीं देती. वो बस औसत है. मिसाल के लिए, अगर एक ग्रुप में 10 लोग हैं और उनमें से दो, 100 रुपये कमा रहे हैं और बाक़ी आठ शून्य, तो पर-कैपिटा इनकम के फ़ॉर्मुले से तो हर आदमी के हिस्से आए 10 रुपये. पर ये तो बाक़ियों का सच नहीं है. बाक़ियों के हिस्से तो शून्य ही है. मगर दिख रहा है कि 10. कारण है, वो दो लोग. जो मिलकर 100 कमा ले रहे हैं. इसीलिए पर-कैपिटा इनकम भी सही आंकड़ा नहीं है.

> प्रति व्यक्ति GDP: GDP को देश की जनसंख्या से विभाजित करने पर एक संख्या आएगी, उसे ही प्रति व्यक्ति GDP कहते हैं. आसान शब्दों में कहें तो देश के हर इंसान ने औसतन इतने रुपये के प्रोडक्ट या सेवाएं बनाई हैं. GDP पर कैपिटा के मामले में इंडिया 194 देशों में 144वें नंबर पर है.

> अगला इंडिकेटर है: विदेशी मुद्रा भंडार.
केंद्रीय बैंक अपने पास कुछ विदेशी मुद्राएं जमा करके रखता है, इसे ही फॉरेन रिजर्व यानी विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं. ये रकम फॉरेन करेंसी यानी विदेशी मुद्रा, गोल्ड, सरकारी बॉन्ड के रूप में रखी जाती है. इस भंडार से इंटरनैशनल पेमेंट किए जाते हैं. इसके अलावा किसी फॉरेक्स रिजर्व इमरजेंसी स्थिति में देश की मुद्रा में स्थिरता बनाए रखने के लिए बैकअप प्लान के तौर पर भी काम करता है. फॉरेक्स रिज़र्व के मामले में भारत चौथे नंबर पर है. यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि डॉलर भंडार में भारत भले चौथे नंबर पर हो, जो कि एक उपलब्धि है ही. लेकिन डॉलर पर हमारी निर्भरता भी बहुत है. क्योंकि ऊर्जा के लिए हमें अपने बेशकीमती डॉलर खर्चने पड़ते हैं.

> फिर है, फिस्कल डेफिसिट.
सरकार के कुल खर्चे और कमाई के बीच का अंतर फिस्कल डेफिसिट यानी वित्तीय घाटा कहलाता है. मान लेते हैं सरकार को 100 रुपये की कमाई हुई मगर खर्च 123 रुपये का खर्च है. इस तरह फिस्कल डेफिसिट 23 रुपये हुआ. ये भी कह सकते हैं कि सरकार को 23 रुपये उधार लेने की जरूरत है. फिस्कल डेफिसिट के मामले में भारत 7वें नंबर पर है.

> आयात-निर्यात का बैलेंस.
भारत ने दूसरे देशों को जितने रुपये के सामान और सेवाएं बेची हैं, वो निर्यात कहलाता है और जितने रुपये का सामान, सेवाएं खरीदी हैं, वो आयात कहलाता है. आयात अधिक है तो वह देश ट्रेड डेफिसिट यानी ट्रेड घाटा कहलाता है. निर्यात अधिक है तो वह ट्रेड सरप्लस कहलाता है. 2021 में ट्रेड घाटे के मामले में भारत का दूसरा नंबर था.

मोदी सरकार में ही वित्त सचिव रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग ने पिछले दिनों डेक्कन हेराल्ड अखबार में एक ओपिनियन लिखा था. गर्ग ने बताया था कि तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए मोदी सरकार को कोई विशेष मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. अभी जिस रफ्तार में जीडीपी बढ़ रही है, उस लक्ष्य को हम आसानी से हासिल कर लेंगे. क्योंकि जर्मनी और जापान की अर्थव्यवस्था स्थिर है. सुभाष गर्ग ने लिखा कि पिछले 10 सालों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में हम 147वें रैंक से 141वें रैंक पर आ पाए हैं. पड़ोसी देश बांग्लादेश इस मामले में हमसे आगे निकल गया है. भारत तभी विकास करेगा और समृद्ध होगा, जब देश के आम लोगों की प्रति व्यक्ति आय हायर मिडिल-इनकम लेवल तक पहुंचेगी.

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