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पाकिस्तान में आतंकियों को मारने वाले 'अनजान शूटर' कौन? असली कहानी खुली है!

कौन है वो अनजान शूटर, जो ध्यान से देख रहा था लश्कर आतंकी को? वो घर से निकला और काम खत्म...क्या है लश्कर आतंकी सैफुल्लाह खालिद का मर्डर केस

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Saifullah Khalid Pakistan
लेफ्ट में सैफुल्लाह खालिद, राइट में लश्कर के फाइनेंसर अब्दुल रहमान पर फायर खोलते 'अनजान शूटर'
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सिद्धांत मोहन
19 मई 2025 (Published: 08:12 PM IST) कॉमेंट्स
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भारत का दुश्मन और खूंखार आतंकी अपने घर से निकलता है, अनजान लोग उसे घेरते हैं. उसके सीने में गोलियां उतार देते हैं. मौत हो जाती है. ये कहानी आपने बीते एकाध सालों में कई मौकों पर सुनी होगी. और एक हालिया खबर भी सुनी होगी.

18 मई को लश्कर-ए-तैयबा के एक शीर्ष आतंकवादी सैफुल्लाह खालिद की पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हत्या कर दी गई. मतली फलकारा चौक में मौजूद अपने घर से जब वो बाहर निकला, आड़ में छुपे तीन अज्ञात लोगों ने उसे अचानक से घेर लिया. और उस पर गोलियां बरसाने लगे. और भाग गए. दोस्त-यारों ने खालिद को अस्पताल में भर्ती कराया. वहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

लेकिन ये खबर हमारे लिए बहसतलब क्यों है? ये जानने के लिए चलिए साल 2006 में. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बने 2 साल हुए थे. और आतंकी संगठनों ने सरकार के इंटेलिजेंस सिस्टम की पोल-खोलकर रख दी थी. कभी जम्मू रेलवे स्टेशन तो कभी नागालैंड के दीमापुर रेलवे स्टेशन पर बम फोड़े जा रहे थे. कभी अयोध्या में राम जन्मभूमि पर अटैक किया जा रहा था. तो कभी यूपी के जौनपुर में श्रमजीवी एक्सप्रेस में धमाके किये जा रहे थे. हरेक एलर्ट नाकाफ़ी था, निर्दोष लोगों की हत्याएं की जा रही थीं.

Varanasi blast
साल 2006 का वाराणसी ब्लास्ट 

अक्टूबर 2005 में हुए दिल्ली बम धमाकों और मार्च 2006 में वाराणसी में हुए बम धमाकों ने सुरक्षा बलों को और एलर्ट पर ला दिया. सुरक्षा बलों को इनपुट मिला. जो भी जगह ईस्टैब्लिशमेंट के लिए जरूरी थी, या जिस भी जगह का कोई राजनीतिक धार्मिक महत्व हो सकता था, वो सब आतंकियों के लिए ईज़ी टारगेट हैं. ऐसी तमाम जगहों पर पहले से ज्यादा चौकन्नी आँखें डिप्लॉय कर दी गईं. ऐसी ही एक जगह थी महाराष्ट्र के नागपुर में मौजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का मुख्यालय.

जून 2006 की पहली तारीख. भोर के 4 बजे का वक्त. आरएसएस ऑफिस के पास जवानों का कड़ा पहरा था. गश्ती पर चल रहे जवानों ने स्पॉट किया कि मुख्यालय की ओर एक सफेद रंग की एंबेस्डर कार चली आ रही है. इस कार पर लाल बत्ती लगी थी. जवानों को लगा कि कोई हाई वैल्यू व्यक्ति इस ऑफिस में आ रहा है. लेकिन ब्रीफ़ एकदम साफ थे  - किसी को बिना जांच के आगे नहीं आने देना है. क्योंकि नागपुर में आतंकियों के सूइसाइड स्क्वाड का एक जत्था एंटर कर चुका है. जवानों ने ब्रीफ़ का पालन किया. गाड़ी को रुकने का इशारा किया. वो फौरन नहीं रुकी. लेकिन आरएसएस ऑफिस के मेनगेट से 100 मीटर दूर आकर खड़ी हो गई. इंजन चालू रहा.

सुरक्षाबलों के जवान धीरे-धीरे कार के पास पहुंचे. अंदर झांककर देखा, 20 से 22 साल के तीन लड़के बैठे हुए थे. जवानों ने उनसे जांच वास्ते गाड़ी से नीचे उतरने के लिए कहा. कार के अंदर से कोई जवाब नहीं. सुरक्षाबलों ने थोड़ा जोर डाला. कार में सवार लोगों ने एक्सीलरेटर पर पैर दबा दिए. गाड़ी फिर से आरएसएस मुख्यालय की ओर बढ़ने लगी. सामने एक पुलिस बैरिकेड लगा था. गाड़ी ने उसे तोड़ दिया. गेट एकदम सामने दिख रहा था. योजना थी कि सीधे आरएसएस ऑफिस में घुस जाएं. लेकिन सुरक्षाबलों की गाड़ी पीछे लग गई थी. जवानों को दिख रहा था कि गाड़ी के अंदर मौजूद लोगों ने हथियार निकाल लिए हैं. कुछेक सेकेंड्स में ही कार के भीतर से फायर खुल गया. सुरक्षाबलों पर गोली चलाई जाने लगी. जवाबी फायरिंग हुई. और कार में मौजूद तीनों लोगों को खत्म कर दिया गया.

कुछ ही देर बाद तीनों ही आतंकियों की डेडबॉडी को गाड़ी से बाहर निकाला गया. कार की तलाशी ली गई. अंदर से 3 AK-56 राइफल, 5 किलो RDX और 14 हैण्ड ग्रेनेड बरामद हुए. इसके अलावा एक टिफ़िन बॉक्स भी गाड़ी से बरामद हुआ, उसे भी RDX से ठसाठस भर दिया गया था. प्लान था कि आरएसएस ऑफिस के अंदर घुसकर आत्मघाती हमला किया जाए. वो प्लान इन तीन आतंकियों की मौत के साथ ही खत्म हो गया था. आतंकियों की पहचान हुई. तीनों लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए.

तीनों को किसने भेजा, किसने प्लान तैयार किया - इसको लेकर जांच एजेंसियों की सुई एक शख्स पर आकर टिक गई. इस शख्स का असल नाम नहीं पता था, न तस्वीर पास थी. बस जानकारी इतनी कि ये बंदा ऑपरेट करता है पड़ोसी देश नेपाल में बैठकर.

CRPF attack
साल 2008 में CRPF कैंप पर हुआ अटैक

इस बंदे की सही शिनाख्त हुई साल 2008 में. इस साल 31 दिसंबर के दिन यूपी के रामपुर जिले में एक आतंकी हमला हुआ. ये हमला यहां हाईवे पर मौजूद CRPF के ग्रुप सेंटर पर. दो आतंकी इस सेंटर के गेट नंबर एक से अंदर दाखिल हुए. और वहां मौजूद CRPF जवानों पर फायरिंग शुरु कर दी. ग्रेनेड फेंकने लगे. देखते ही देखते CRPF के 7 जवान वीरगति को प्राप्त हुए. आतंकी हमला करने के बाद  मौके से फरार हो गए.

इस केस में पुलिस ने आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया. इनमें पीओके का इमरान शहजाद, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का मुहम्मद फारुख, बिहार का सबाउद्दीन उर्फ सहाबुद्दीन, मुंबई के गोरे गांव का फहीम अंसारी, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले का मुहम्मद कौसर, बरेली के बहेड़ी थाने का गुलाब खां, मुरादाबाद के मिलक कामरू गांव का जंग बहादुर बाबा और रामपुर का मुहम्मद शरीफ शामिल थे.  

इन सभी से कड़ी पूछताछ के बाद नेपाल में बैठे शख्स की शिनाख्त पक्की हुई. बंदे का नाम  - सैफुल्लाह खालिद. उसे रज़ाउल्लाह, मोहम्मद सलीम या विनोद कुमार के नाम से भी जाना जाता था.

वो साल 2000 से नेपाल के काठमांडू में काबिज था. और वहां पर लश्कर के टॉप कमांडर हाफ़िज़ सईद और अबू अनस के कहने पर गया था. काम था कि लश्कर के काम के लिए फंड जुटाना, जाली नोटों के कारोबार में हाथ डालना, और सब कामों से होने वाली कमाई को लश्कर आतंकियों की भर्ती और ट्रेनिंग में लगाना. खबरें बताती हैं कि खालिद धीरे-धीरे लश्कर के नेपाल मॉड्यूल का प्रमुख बन गया था. भारत और नेपाल बॉर्डर पर लोगों और सामानों की तस्करी में भी उसने हाथ डाल दिए थे. उसे फायदा मिला था भारत और नेपाल की आपसदारी का.

India Pakistan border
भारत नेपाल का ओपन बॉर्डर

दरअसल भारत और नेपाल आपस में 1,751 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. चूंकि दोनों देश सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक स्तर इतनी समानताएँ साझा करते हैं, तो साल 1950 में दोनों ने समझौता किया कि हमारी सीमाएं एक दूसरे के नागरिकों के लिए खुली रहेंगी. साथ ही दोनों देशों के बीच परस्पर आवाजाही भी कम से कम पेपरवर्क और कम लालफ़ीताशाही के साथ होगी. और तब से ये क्रम अब तक चला आ रहा है.

और इसी समझदारी का फायदा वो लोग उठाते हैं, जिन्हें क्रॉसबॉर्डर अवैध व्यापार करना होता है. मान लीजिए किसी पाकिस्तानी को भारत में अवैध व्यापार करना है, या आतंकी गतिविधि को अंजाम देना है. उसके लिए वो व्यक्ति सबसे पहले नेपाल आएगा. फिर भारत के साथ सहज संबंधों का बेजा लाभ उठाकर वो अपनी गतिविधि शुरू करता है. वहीं कई बार अवैध तरीकों से भी पाकिस्तानी नागरिक भारत में एंट्री के लिए यही नेपाल वाला रूट अपनाते हैं. प्रचलित उदाहरणों से समझें, तो इस लिस्ट में पाकिस्तान की नागरिक सीमा हैदर का भी नाम रखा जा सकता है, जिन्होंने साल 2023 में बरास्ते नेपाल भारत में एंट्री ली. और ग्रेटर नोएडा के रहने वाले सचिन के साथ विवाह किया.

अगर खबरें खंगालें, तो ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे, जहां ISI के जासूसों ने भी भारत में एंट्री के लिए इसी नेपाल गेट का सहारा लिया है. और बाद में उन्हें पकड़ भी लिया गया है.

सैफुल्लाह ने भी इसी रूट का लाभ उठाया और शुरू कर दी भारत में घुसपैठ. उसके साथ दो और आतंकी नेपाल में मौजूद थे. एक - लश्कर का कमांडर आजम चीमा उर्फ बाबा जी, और दूसरा - लश्कर का अकाउंटेट याक़ूब. साल 2009 के आसपास, भारत की एजेंसियां एक्टिव हुईं. और नेपाल में लश्कर के मॉड्यूल की तोड़फोड़ शुरू हो गई. कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया, कुछ की लाशें गिरीं, और जो बचे वो भागने लगे. इन भागने वालों में से एक खालिद की भी टीम थी.

Saifullah Khalid
घेरे में सैफुल्लाह खालिद

खालिद जैसे ही पाकिस्तान आया, हाफ़िज़ सईद ने उसे एक और काम सौंपा. कहा कि तुम्हें लश्कर के साथ अब मेरे एक और संगठन का काम सम्हालना है. संगठन का नाम - जमात उद दावा. खालिद ने काम शुरू किया. इस बार टीम में बदलाव हुआ. उसके साथ थे यूसुफ मुज़म्मिल, मुज़म्मिल इक़बाल हाशमी और मुहम्मद यूसुफ तायबी. ये तीनों भी लश्कर और जमात के लिए काम करते थे. इन तीनों ने मिलकर पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बादिन और हैदराबाद में अपनी गतिविधि बढ़ाई. काम वही पुराना - पैसा जुटाना, आतंकी बनाना.

6 और 7 मई 2025 की दरम्यानी रात जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया, तो खालिद की जान पर भी बन आई. इंडिया टुडे में प्रकाशित अरविन्द ओझा की रिपोर्ट बताती है कि खालिद को वार्निंग भी दी गई थी कि वो अपना आना-जाना सीमित रखे. और ज्यादा मूवमेंट न करे. उसकी जान को खतरा है, ऐसे आगाह भी किया गया था. ये खतरा होना लाज़िम था क्योंकि ऑप सिंदूर के दौरान भारत ने बहावलपुर में जैश ए मोहम्मद, और लाहौर के मुरिदके में लश्कर के सेटअप्स को भारी नुकसान पहुंचाया था. कई आतंकियों के मौत की खबर भी आई थी. लिहाजा, दो दशक से हमारी एजेंसियों के रडार पर बने हुए खालिद को लेकर पाकिस्तानी हुकूमत की चिंता वाजिब थी.

Bahawalpur operation Sindoor
बहावलपुर की तबाही

लेकिन सूत्र कुछ जानकारियां देते हैं. वो कहते हैं कि ISI को भारत की चिंता तो थी, लेकिन वो अपने घर में पनप रहे दहशतगर्दों को भांप नहीं पा रहे थे. उड़ती खबरें बताती हैं कि पाकिस्तान में जो भी आतंकी संगठन पनप रहे हैं, उन्होंने सरकारी शह पर गुंडई शुरू कर दी है. लिहाजा उनके अपने ही मुल्क में उनकी दुश्मनी हो गई है. कौन कहां से पैसा उगाहेगा? ड्रग्स के रूट पर किसका कंट्रोल रहेगा? किसको फन्डिंग मिलेगी, कौन सरकार का कितना दुलरुआ बनेगा? इन सबपर ही सबकी गाड़ी अटकी रहती थी. और इस चक्कर में आतंकी संगठनों की आपस में गैंगवार शुरू हो गई थी.

आपको ध्यान होगा ही कि हाल के दिनों में पाकिस्तान और नेपाल के अलग-अलग इलाकों में लश्कर और जैश के अलग-अलग आपरेटिव मारे जा रहे हैं. वो घर से निकलते हैं, कुछ असलहाधारी गोली मारकर चले जाते हैं. वो घर में बैठे होते हैं, तो भी असलहाधारी गोली मारकर चले जाते हैं. अधिकांश लोगों को लगता है कि ये अनजान शूटर कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने सिर पर कफ़न बांधा हुआ है, और एक-एक करके आतंकियों का सफाया कर रहे हैं. लेकिन एक थ्योरी ये भी है कि पाकिस्तान में दहशतगर्दी सड़क पर है. आतंकियों के समूह आपस में लड़-मर रहे हैं. बस कभी कभी कुछ बड़े नाम भी शिकार बन जाते हैं.

इसी क्रम में 18 मई की दोपहर अपने घर से बाहर निकले सैफुल्लाह खालिद. तीन असलहाधारियों ने उसे घेरा, और गोलियों से भून डाला. उसके फ्यूनरल की तस्वीरें आईं. सामने थी खालिद की लाश पाकिस्तान के झंडे में लिपटी हुई. आसपास लश्कर के दूसरे सदस्य फातिहा पढ़ते हुए.

वीडियो: पहलगाम हमले में मारे गए आदिल हुसैन का परिवार ऑपरेशन सिंदूर पर क्या बोला?

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