दुनिया में हर चीज का स्वाद लेना, ऑफिस की कॉफी को छोड़कर
कॉफी वो चीज है जो हमारे लिए हमेशा एलीट रहती. अगर ऑफिस में फोकट की न मिलती. उससे हमेशा प्यार रहता. अगर वो... अब क्या कहें. खुद पढ़ लो.
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फोटो - thelallantop
एक दिन जानकार को लेकर पहुंचे उस मृग मरीचिका के पास. कहा कि यार मुझे भी कॉफी निकालना सिखा दो. लेकिन वो वाली देना जिसे पीने से तुम लोग कूल लगते हो. यानी काली वाली. जानकार ने हमए हाथ से कप झपटा और मशीन के नीचे लगा कर करकई कॉफी वाला बटन दबा दिया. कप भर गया. हम पहला शिप लिये. पुरखे तर गए. इतना गंदा टेस्ट था कि उबकाई आने लगी. पूछा कि भाई कैसे कर लेते हो आप लोग इतना शो ऑफ. हमसे तो न पी जा रही.सीनियर ने समझाया कि कभी दारू पिए हो?हां.तो कैसे शुरू किए थे?बियर से.तो साले कॉफी भी पहले मीठी और खूब सारे दूध वाली पियो.फिर दूध वाली कॉफी निकाल कर दी भाई ने. और कहा इसमें स्टीम मार लो. हमने लाइफ में बहुत कुछ मारा था. लेकिन स्टीम नहीं. क्वेस्चन वाचक निगाहों से देखा. सीनियर ने स्टीम वाले बटन की तरफ इशारा किया और चले गए. हमने बटन दबाया. कप हटा कर बटन छोड़ दिया. स्टीम के साथ दूध और कॉफी पैंट पर आ गिरी. बड़े खिसियाए. उसको पोंछते हुए किसी तरह वापस गए. उस कॉफी का भौकाल हमारे सिर चढ़ कर बोल रहा था. कहीं बात निकल पड़ती तो नौकरी, सैलरी के बीच में वो कहीं से भी उस कॉफी मशीन का जिक्र ले आते थे. कि वहां पइसा भले कम है गुरू. लेकिन काफी वाफी जम के मिलती है. कहीं कोई दिक्कत नहीं. अब यह रोज का काम हो गया था. महिन्ना दो महिन्ना दिन में कई दौर चलते. उस ट्रिपल टोंड दूध की एक्स्ट्रा कॉफी कम से कम 15 बार भर कर लाते. खाना कम कर दिया था. कॉफी ज्यादा. फिर पेट में दर्द रहने लगा. दिन भर मूतने लगे. सीट पर बैठे बैठे शाम तक वो हाल हो जाता कि जैसे प्रेगनेंसी का सातवां महीना चल रहा है. लेकिन ये है किस वजह से इसका पता नहीं चल पा रहा था. तकलीफ प्यारी कॉफी दे रही है. इसका एक्को चूर अंदाजा नहीं था.
अंदाजा लगाने की जरूरत भी नहीं थी. कॉफी से पहली गर्लफ्रेंड सा प्यार था. एलीट क्लास की चीज थी ये. जब अपन बहुत छोटे थे. तो शादी पार्टी में जाते थे. उस वक्त सिर्फ निगाह कॉफी मशीन पर रहती थी. जैसे ही उससे कॉफी निकलना शुरू होती. डिस्पोजल ग्लास लेकर भिखारी की तरह खड़े हो जाते. कंधे छिल जाते. बड़े लोग आकर बच्चों के बीच से पहले कॉफी ले जाते थे. उनके हाथ में कॉफी जाते हुए हमको अपनी बेचारगी का एहसास होता था. कि कितनी जल्दी बड़े हों और उनको किनारे लगाएं. फिर भी पीछे नहीं हटते थे. जब तक कॉफी मिल न जाती. और उसमें दो बार पाउडर न डाल लेते. मजाल है कि सामने से कोई हमको हिला दे. हां, दो तीन बार तो ले लेते थे. लेकिन चौथी-पांचवी बार में कॉफी वाला पहचान लेता था. गरिया के भगा देता साला. तो हम वहीं से किसी को काका ताऊ बनाकर ले जाते. फिर एक कप झटक लाते. इस तरह कॉफी से ही पेट भर जाता था और महकते हुए खाने को सिर्फ सूंघ कर, मन मार कर घर आना पड़ता था.वो प्यारी कॉफी हमको यहां फ्री में मिल रही थी. चार महीने बीतते बीतते ये हाल हो गया था कि आधे से ज्यादा टाइम टट्टी में बीत रहा था. आधे से कम कॉफी मशीन के सामने. और बाकी बचे टाइम में काम करते थे. एक दिन टट्टी में बैठे थे. बॉस का फोन आया. "सब लोग आ गए. मीटिंग शुरू हो गई है. तुम कब आओगे?" 'आधा' करके उठ लिए. बेल्ट बांध कर आ गए मीटिंग में. लेकिन रोज वही प्रॉब्लम हो रही थी. एक दिन बॉस ने हौंक दिया. लेकिन हे कॉफी वाली मैया...सॉरी मशीन. अब ऊब गए हैं. इस टेस्ट से चिढ़ हो गई है. इसकी महक से दुश्मनी हो गई है. अब हमको नहीं लगता कि जिंदगी में कभी कॉफी से वो पहली सी मोहब्बत हो पाएगी. इस ऑफिस की कॉफी ने कहीं का न छोड़ा. आप अइसा करो कि कुछ दिन के लिए बिगड़ जाओ. नहीं कुछ महीनों के लिए. या कुछ सालों के लिए. या हमेशा के लिए. जो नए लोग इस ऑफिस में आएं. वो तुम्हारे ट्रिपल टोंड वाले ब्राउन जाले से आजाद रहें. ताकि उनका कॉफी प्रेम बना रहे.