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नूपुर शर्मा को हत्या की धमकी देने वालों के खिलाफ कार्रवाई कब होगी?

मोदी सरकार के दो मंत्रालय आमने-सामने आए, करोड़ों का प्रोजेक्ट बीच में ही अटक गया.

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Nupur Sharma
नूपुर शर्मा (फोटो: आजतक)
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अभिनव पाण्डेय
7 जून 2022 (Updated: 7 जून 2022, 11:47 PM IST) कॉमेंट्स
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बहस के नाम पर जिस तमाशे को हमारे यहां मान्यता मिल गई है, उससे कितना नुकसान हो सकता है, उसकी बानगी हमने 5 और 6 जून को देख ली. आज दी लल्लनटॉप शो की बड़ी खबर में हम पैगंबर मुहम्मद को लेकर विवादित टिप्पणी के मामले पर एक बार फिर बात करेंगे.

6 जून के बुलेटिन में हमने आपको बताया था कि भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा ने एक निजी समाचार चैनल पर बहस के दौरान पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी कर दी थी, जिसके बाद बवाल हो गया था. दिल्ली भाजपा से अब निष्कासित नवीन जिंदल के एक ट्वीट ने इस माहौल को और खराब किया. बढ़ते-बढ़ते बात अरब मुल्कों तक पहुंच गई जिन्होंने नुपूर और नवीन की बातों पर सख्त आपत्ति जताई. जब आप 6 जून का बुलेटिन देख रहे थे, तब भी नुपूर और नवीन की टिप्पणियों से शुरू हुआ राजनयिक भूचाल थमा नहीं था.

कतर, कुवैत और ईरान से शुरू हुआ सिलसिला सऊदी अरब, बहरीन, इंडोनेशिया और जॉर्डन जैसे मुल्कों तक पहुंचा था. बाद में इस लिस्ट में भारत के बेहद करीबी मुल्क माने जाने वाले संयुक्त अरब अमीरात और मालदीव तक शामिल हो गए. संयुक्त अरब अमीरात माने UAE से भारत के संबंध सिर्फ नाम के घनिष्ठ नहीं हैं. दोनों देशों के बीच इतने राजनयिक दौरे इसीलिए होते हैं क्योंकि UAE भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है. भारत दूसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा आयात और निर्यात UAE के साथ ही करता है और वहां 30 लाख से भी ज़्यादा भारतीय काम करते हैं.UAE की तरह ही मालदीव ने भी विवादित टिप्पणी का विरोध तो किया, लेकिन साथ में भारत सरकार द्वारा टिप्पणी की निंदा और भाजपा द्वारा अपने नेताओं पर की कार्रवाई का भी स्वागत किया.

7 जून तक आते-आते राजनयिक हलचल थमने लगी. जिन देशों को आपत्ति लेनी थी, उन्होंने ले ली. और इनमें से जिन तक भारत सरकार को अपनी बात पहुंचानी थी, आधिकारिक बयानों के माध्यम से पहुंचा दी गई. सभी बयानों की सामग्री लगभग वही थी, जो सरकार के पहले बयान में थी - विवादित बयान, भारत सरकार के नज़रिए से मेल नहीं खाते. बयान फ्रिंज के हैं और कार्रवाई हो रही है.

भारत की विदेश सेवा ने दो दिन फायरफायटिंग में लगाए. अब जाकर इस मूल्यांकन का वक्त मिला है कि इस गैरज़रूरी विवाद से भारत को असल नुकसान कितना पहुंचा? और भारत सरकार ने जो कदम उठाए, उनसे कितनी राहत मिली. ये जानना इसीलिए ज़रूरी है, क्योंकि खाड़ी के देशों के साथ भारत के संबंध आज जहां पहुंचे हैं, उसके पीछे अलग-अलग दौर की सरकारों ने बहुत मेहनत की है. नेताओं और अफसरों - दोनों ने असंख्य दौरे किए हैं, बैठकें की हैं. कभी प्रकट तो कभी परोक्ष तरीके से आपसी समझ पैदा की है. इसी मेहनत का फल था कि कश्मीर हो या CAA, खाड़ी के देश हमेशा भारत के साथ खड़े होते हैं. पाकिस्तान ने हमेशा दलील दी कि खाड़ी के देश मुसलमानों के हैं, तो उन्हें पाकिस्तान के साथ खड़ा होना चाहिए. लेकिन भारत हर बार कूटनीति के दम पर धर्म की बाधा को लांघने में कामयाब रहा. इसीलिए दी लल्लनटॉप की नज़र इस मसले पर बनी रहेगी. और नियमित अपडेट्स हम दर्शकों के लिए लाते रहेंगे. फिलहाल के लिए देश के भीतर से आए अपडेट्स पर गौर करते हैं.

पैगंबर मुहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी के संबंध में नुपूर शर्मा पर देश के अलग अलग हिस्सों में मामले भी दर्ज हुए थे. इनमें से एक FIR हुई थी मुंबई के पास स्थित मुंब्रा में. आज मुंब्रा पुलिस ने इस संबंध में नुपूर शर्मा को समन जारी कर दिया. उन्हें 22 जून को बयान दर्ज कराने मुंब्रा पुलिस के सामने पेश होना होगा.  

एक एफआईआर नुपूर शर्मा ने भी दर्ज कराई थी. 28 मई को दिल्ली पुलिस की सायबर सेल को दी अपनी शिकायत में नुपूर शर्मा ने दावा किया था कि पैगंबर मुहम्मद को लेकर उनकी टिप्पणी के बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं. नुपूर ने इस आधार पर अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी. आज खबर आई है कि दिल्ली पुलिस ने नुपूर की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है. साथ ही नुपूर और उनके परिवार को सुरक्षा मुहैया करा दी गई है. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नुपूर की पिछली शिकायत पर जांच के दौरान उनकी तरफ से एक और शिकायत प्राप्त हुई. इसमें उन्होंने कुछ लोगों पर दुश्मनी फैलाने का आरोप लगाया है. इस बाबत भी मामले में धाराएं जोड़ दी गई हैं.

टीवी डिबेट के दौरान भड़काऊ भाषण भारत में बहुत आम है. फिर धर्म संसद या धार्मिक तकरीर के नाम पर दूसरे धर्म को लेकर भड़काऊ बातें न सिर्फ रिकॉर्ड करवाई जाती हैं, बल्कि उनका तबीयत से प्रचार भी किया जाता है. लेकिन नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल वाले मामले में बवाल इतना बड़ा हुआ, उसकी दो बड़ी वजह थीं -

>> पहली तो यही कि बात सीधे पैगंबर मुहम्मद तक पहुंच गई थी
>> दूसरी वजह ये थी कि विवादित टिप्पणी उस पार्टी के नेताओं की तरफ से आई, जिसकी केंद्र में सरकार है. सरकार ने अपने राजनयिकों से कहलवा तो दिया कि ये फ्रिंज एलिमेंट हैं, लेकिन झेंप छुपाए नहीं छुप रही थी.

आगे ऐसा न हो, इसके लिए भाजपा ने निलंबन और निष्कासन से आगे जाकर भी कुछ कदम उठाए हैं. दैनिक भास्कर पर सुजीत ठाकुर की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा ने धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले नेताओं की एक लिस्ट बनाई है. और इनमें से 27 को हिदायत भी दी है. सुजीत ने अपनी खबर में लिखा है कि आईटी विशेषज्ञों को लगाकर पार्टी ने अपने नेताओं के पिछले आठ साल के बयानों खंगाला है. करीब 5 हज़ार 200 बयान ऐसे मिले, जो गैर-ज़रूरी थे. 2 हज़ार 700 बयानों के शब्दों को संवेदनशील माना गया.

पार्टी ने आहत करने वाले बयान देने वालों की सूची में अनंत कुमार हेगड़े, शोभा करंदलाजे, गिरिराज सिंह, तथागत राय, टी राजा सिंह, राक्षी महाराज और संगीत सोम जैसे नेताओं को रखा है. जिन नेताओं को आहत करने वाले बयान देने से बचने की हिदायत दी गई है, उन्हें ये निर्देश दिया गया है कि धार्मिक मुद्दों पर बयान देने से पहले पार्टी से अनुमति लें.

नूपुर को मिल रही धमकियां

इस विषय से आगे बढ़ने से पहले हम एक बात और दर्ज करना चाहते हैं. बीते दो दिनों में ऐसे बयानों की बाढ़ आ गई है, जिनमें बार-बार ये धमकी दी जा रही है कि जो हश्र कमलेश तिवारी का हुआ, वही नुपूर शर्मा का होगा. अक्टूबर 2019 में कमलेश तिवारी की हत्या हो गई थी. और इसके पीछे कथित रूप से पैगंबर मुहम्मद को लेकर उनकी 2015 वाली टिप्पणी ही थी.

नुपूर शर्मा की टिप्पणी को लेकर जिन्हें आपत्ति है, उन्हें अपनी आपत्ति दर्ज कराने का हक है. जो कार्रवाई चाहते हैं, वो इसके लिए कानून का सहारा भी ले सकते हैं. लेकिन जान से मारने की धमकी देना या फिर इसके लिए किसी और को उकसाना, ये विरोध दर्ज कराने का तरीका नहीं है. पुलिस को चाहिए कि ऐसे लोगों की पहचान कर इनपर सख्त कार्रवाई करे. क्योंकि इंसान के जीवन की कीमत धार्मिक मान्यता से ज़्यादा थी और रहेगी. रही बात इंसान से हुई गलती के हिसाब की, तो उसके लिए कानून है.

दो मंत्रालय आमने-सामने 

एक दिलचस्प किस्सा और भी अपने आप में एक जरूरी खबर है. मोदी सरकार के दो मंत्रालय एक मामले में एक दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं. मामला दिल्ली का है. विवाद इतना बढ़ गया कि एक विभाग ने दूसरे विभाग के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए खुदाई करा दी. कहानी शुरू से समझते हैं. दिल्ली के द्वारका सेक्टर 21 में मौजूद बिजवासन रेलवे स्टेशन को एयरपोर्ट के तर्ज बनाने का प्लान है. स्टेशन पर प्लेटफॉर्म की संख्या 2 से बढ़ाकर 8 करने के लिए काम जारी है. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी साल 2016 में भारतीय रेलवे स्टेशन विकास निगम यानी IRSDC को दी गई थी. इस सरकारी निकाय को अक्टूबर 2021 में बंद कर दिया गया. स्टेशन के काम को पूरा करने का ठेका अब RLDA यानी रेल भूमि विकास प्राधिकरण को दे दिया गया है. स्टेशन के री-डेवलेपमेंट में 270 करोड़ 82 लाख रुपए की लागत आएगी. स्टेशन पर हवाई अड्डे की तरह शॉपिंग एरिया, फूड स्टॉल, आधुनिक वेटिंग एरिया जैसी कई सुविधाएं मिलेंगी. प्रोजेक्ट की डेडलाइन साल 2024 है.

आपने प्रोजेक्ट के बारे में जान लिया. अब विवाद को समझिए. हुआ ये कि इस परियोजना के लिए 100 से अधिक पेड़ों को काटा गया. वन विभाग के अंतर्गत आने वाले पेड़ों को काटने से पहले रेल विभाग की तरफ से कोई अनुमति भी नहीं ली गई. चुपचाप काम चलता रहा. मगर इसी साल जनवरी में ये खेल पकड़ा गया. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक दो स्थानीय नागरिकों - नवीन सोलंकी और हिमांशु सैनी ने दिल्ली पुलिस और वन विभाग में शिकायत की. आरोप लगाया कि सैकड़ों पेड़ों को परियोजना की जगह पर बिना अनुमति के काटा गया है. इसके बाद, वन विभाग द्वारा किए गए निरीक्षण में पाया गया कि क्षेत्र में लगभग 131 पेड़ कथित रूप से गिर गए या क्षतिग्रस्त हो गए.
जब वन विभाग ने रेल विभाग से पेड़ों के काटे जाने पर जानकारी मांगी. तो परियोजना का काम देख रहे RLDA ने साफ इनकार कर दिया और कहा- उनकी तरफ से कोई पेड़ नहीं काटा गया है.

सैटेलाइट इमेज के जरिए पहले और बाद की तस्वीरों को खंगाला गया. जिससे साफ हुआ कि इलाके की हरियाली धीरे-धीरे कम करने का अपराध किया गया है. जी हां. चाहे आम आदमी हो या फिर सरकारी विभाग - अगर वो बिना अनुमति के पेड़ काटते हैं तो उसे अपराध ही माना जाएगा. RLDA ने इस पर दलीलें रखीं, 4 बार सुनवाई के बाद जब वन विभाग संतुष्ट नहीं हुआ तो पश्चिम दिल्ली वन विभाग ने और कड़ा रुख अख्तियार कर लिया. 24 मई को दो फॉरेस्ट गार्ड्स को खुदाई की अनुमति दे दी गई. ताकि पुख्ता तौर पर पता लगाया जा सके कि परियोजना स्थल पर पेड़ थे या नहीं. और थे तो कितनी संख्या थी, क्योंकि विभाग को सबूत चाहिए था.

26 मई को वन विभाग ने रेल विभाग के झूठ को पकड़ने के लिए बिजवासन रेल टर्मिनल परियोजना स्थल पर उत्खनन का काम शुरु किया. 30 मई तक तक इस काम को पूरा कर लिया गया. उसके बाद जो रिपोर्ट सौंपी गई उसमें रेल विभाग का झूठ पकड़ा गया. वन विभाग ने जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें लिखा गया कि साइट पर लगभग 150 पेड़ दबे हुए थे, यानी उनकी जड़ें मिली थीं. बताया गया कि वन विभाग के अधिकारियों द्वारा 100 पेड़ों को फिर से खड़ा करने की कोशिश की गई, जिसमें से सिर्फ 54 पेड़ ही बच पाए हैं.

इस तरह सरकारी परियोजना स्थल पर सरकार के ही दूसरे विभाग द्वारा खुदाई करने का फैसला अपने आप में बेहद दुर्लभ था. विभाग ने कहा पूरे परियोजना स्थल को नहीं खोदा गया, उसे कम जगह की ही खुदाई में पर्याप्त सबूत मिल गए हैं. इसी से क्षतिग्रस्त होने वाले अतिरिक्त पेड़ों की संख्या पर एक अनुमान लगाया जाएगा. जिसके आधार पर अंतिम जुर्माना राशि निर्धारित की जाएगी. रेलवे की तरफ से जुर्माने की राशि का भुगतान करने और सुधारात्मक उपाय किए जाने के बाद ही काम फिर से शुरू हो सकता है.

हमारी टीम ने वन विभाग और RLDA दोनों के ही दफ्तरों में अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की. जानना चाहा कि वन विभाग ने जुर्माने की रकम कितनी तय की है और क्या RLDA उसके भुगतान के लिए तैयार है.दोनों ही तरफ से जिम्मेदार अधिकारियों का जवाब नहीं मिल पाया. कहीं फोन नहीं उठाया गया तो कहीं मीटिंग में होने की बात कही गई. हिंदुस्तान टाइम्स ने इस खबर से संबंध में RLDA के एक अधिकारी से बात की. नाम ना छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि RLDA ने दिसंबर 2021 में साइट पर काम शुरू किया. जिसके बाद पेड़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया.

तो फिर सवाल है कि क्या RLDA से पहले काम करने वाले सरकारी निकाय  IRSDC ने पेड़ों को काटने का काम किया? बिना वन विभाग की अनुमति से कैसे 100 से ज्यादा पेड़ों को राजधानी दिल्ली में काट दिया गया?

ये सवाल गंभीर इसलिए है क्योंकि बात सिर्फ सरकार के दो विभागों के बीच चल रहे विवाद की नहीं है, बात यहां पर्यावरण संबंधित चिंताओं की भी है. जिसे प्रदूषण से परेशान राजधानी दिल्ली में कायदे से एड्रेस किया ही जाना चाहिए. और ये काम पूरे साल होना ज़रूरी है, न कि सिर्फ नवंबर दिसंबर में, जब पराली का धुआं आता है. दूसरी बात ये, कि इस तरह के विवाद से काम में देरी हो रही है. जिससे प्रोजेक्ट की लागत भी बढ़ती जाएगी. अक्सर तीन शब्दों का इस्तेमाल कर, प्रधानमंत्री मोदी पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की कार्यशैली की आलोचना करते हैं. अटकाना, भटकाना और लटकाना वाली कार्यशैली को खत्म करने की वकालत करते हैं. मगर यहां दो विभागों के बीच हुए विवाद से उनकी सरकार ही एक प्रोजेक्ट - अकट, लटक और भटक रहा है.

वीडियो: पैगंबर के अपमान का बदला नूपुर शर्मा की हत्या से लेने की बात करने वालों पर कार्रवाई होगी?

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