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क्या सरकारी गवाह बनने से सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं?

नीरव मोदी की बहन और जीजा सरकारी गवाह बने हैं, सरकारी गवाह बनने को लेकर क्या कहते हैं नियम?

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किसी सरकारी गवाह की सज़ा माफ की जानी है या नहीं, ये पूरी तरह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है. (फाइल फोटो- India Today)
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अभिषेक त्रिपाठी
6 जनवरी 2021 (Updated: 6 जनवरी 2021, 04:50 PM IST) कॉमेंट्स
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PNB बैंक फ्रॉड केस में भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी की बहन पूर्वी और बहनोई मयंक मेहता को वायदा माफ़ गवाह बनने की अनुमति मिल गई है. आसान भाषा में कहें तो सरकारी गवाह बनने की अनुमति दे दी है. मुंबई की PMLA (प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट) कोर्ट ने दोनों को ये इजाजत दी है. दोनों को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दो केस में सह-अभियुक्त बनाया था. इसके बाद पूर्वी और मयंक ने कोर्ट में माफ़ी के लिए अर्ज़ी दी थी. साथ ही अपील की थी कि उनकी अर्ज़ी को स्वीकार कर लिया जाता है तो वे नीरव मोदी के खिलाफ अहम सबूत उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं. ये थी ख़बर. लेकिन ये वायदा माफ गवाह या सरकारी गवाह असल में होते कौन हैं? क्या सरकारी गवाह बनने से सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं? गवाही से मुकरने पर क्या होता है? इन सब सवालों के जवाब जानते हैं. वायदा माफ़/सरकारी गवाह किसे कहते हैं? जब भी कोई अपराध होता है, तो इसके तीन पक्ष होते हैं.
आरोपी – जिस पर अपराध करने का आरोप है. पीड़ित/शिकायत करने वाला – अपराध के चलते जिसको क्षति हुई है, वो पीड़ित. या अपराध को कानून के संज्ञान में लाने वाला शिकायतकर्ता. गवाह – तीसरा पक्ष होता है गवाह. कोई व्यक्ति, जिसने अपराध होते देखा, जाना, समझा.
लेकिन एक चौथा पक्ष भी होता है, जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट के वकील नवीन शर्मा ने दी लल्लनटॉप को बताया,
“यूं तो हर वो गवाह सरकारी गवाह है, जो अदालत में गवाही दे रहा है. लेकिन अगर किसी अपराध में एक से ज़्यादा लोग शामिल हैं और इन संयुक्त अपराधियो में से कोई एक गवाही दे, साक्ष्य उपलब्ध कराए. तो उसे कहते हैं – वायदा माफ़ गवाह. आम तौर पर इसे भी सरकारी गवाह ही कह दिया जाता है, लेकिन इसके लिए ठीक शब्द ‘वायदा माफ़ गवाह’ ही है.”
साक्ष्य अधिनियम की धारा 133 कहती है कि किसी अपराध का सह-अपराधी ‘सक्षम साक्षी’ होता है. यानी उसे साक्षी या गवाह बनाया जा सकता है. क्या कोई भी सरकारी गवाह बन सकता है? नहीं. अगर प्रोसीक्यूशन किसी सह-अपराधी को सरकारी गवाह बनाना चाहती है तो उसे अदालत में अर्ज़ी देनी होती है. कि हम फलां अपराधी को सरकारी (वायदा माफ़) गवाह बनाना चाहते हैं. अब इसमें अदालत ये देखती है कि उस व्यक्ति का अपराध में कितना रोल है. अगर वो ही मुख्य आरोपी है तो वो चाहकर भी सरकारी गवाह नहीं बन सकेगा. वो आरोपी ही रहेगा. अगर कोई ऐसा व्यक्ति, जिसकी अपराध में संलिप्तता तो है, लेकिन बहुत बड़े स्तर पर नहीं तो अदालत उसे सरकारी गवाह बनने की अनुमति दे देती है. सरकारी गवाह की सज़ा माफ़ हो जाती है? CrPC की धारा-306 के तहत वायदा माफ़ गवाह को क्षमादान दिए जाने का प्रावधान है. उसे सज़ा में छूट दी जा सकती है. आय रिपीट – ‘दी जा सकती है.’ ये अनिवार्य नहीं है. नवीन शर्मा बताते हैं,
“ऐसा बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है. ये पूरी तरह जज के विवेक पर निर्भर करता है कि सज़ा माफ़ करनी है या नहीं? सज़ा माफ़ करनी है तो कितनी?”
सरकारी गवाह की सज़ा माफ़ी वाली बात को समझने के लिए दो उदाहरण लेते हैं. एक जिसमें, माफ़ी मिली. एक, जिसमें नहीं मिली. ये दोनों उदाहरण कानून से जुड़ी ख़बरें करने वाली वेबसाइट Live Law पर उपलब्ध हैं. बंगारू लक्ष्मण बनाम राज्य AIR 2012 के केस में आरोपी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 52 के तहत आरोप थे. सह अपराधी सरकारी गवाह बना. उसने अपराध से जुड़ी अहम बातें अदालत को बताईं. और उसे विशेष न्यायालय ने क्षमादान दिया. रेणुका बाई बनाम महाराष्ट्र राज्य के केस में सह अपराधी सरकारी गवाह बना. लेकिन उसके द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूत संतोषजनक नहीं पाए गए. सज़ा हुई. चलते-चलते बताते चलें कि ऐसे भी कई मामले सामने आते रहे हैं, जहां गवाह ऐन मौके पर अपने बयान बदल लेते हैं. कई बार पुलिस के सामने अलग गवाही देते हैं और अदालत में मुकर जाते हैं. ऐसे गवाह को 'हॉस्टाइल विटनेस' कहते हैं.

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