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कानपुर की अमित इंग्लिश इस्पीकिंग क्लासेज

अंग्रेजी बोलने के इच्छुक पिंटू की कहानी कनपुरिया निखिल सचान की ज़ुबानी.

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22 जून 2017 (Updated: 22 जून 2017, 10:42 AM IST) कॉमेंट्स
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nikhil sachan imageनिखिल सचान. आदमी नहीं हैं, लेखक हैं. ऊपर से कानैपुर के हैं. ग़लत कॉम्बिनेशन है. एकदम ज्वलनशील. कहीं भी फट सकता है. कानपुरियत खून में है और वही कहानी, कविता में भी झलकती है. सिकंदर ने दुनिया जीतने की सोची थी, इन्होंने UP 65 को दुनिया भर में पहुंचाने की कसम उठाई हुई है.  लेकर आये हैं पिंटू की कहानी. वही पिंटू जो अंग्रेजी बोलना चाह रहा है. 
    'अमित इंग्लिश इस्पीकिंग क्लासेज' पिंटू की ज़िन्दगी में उम्मीद की पहली किरण थी. किरण क्या पूरा हैलोजन का हजार वाट का बलब कह लीजिए. कानपुर के तमाम लड़कों की तरह पिंटू भी काकादेव इलाके में हर तरह की कोचिंगों के चक्कर काट चुका था. करियर की तलाश ऐसे धुआंधार हो रही थी जैसे रावतपुर टैम्पो स्टैंड पर खलासी सवारी खोजा करते हैं. पिंटू बुनियादी तौर पर हर कम्पटीशन की तैयारी कर चुका था. बैंक PO से लेकर विशिष्ट BTC तक. समूह ‘ग', क्लास ‘बी' से लेकर लिपिक तक. MCA, BCA से लेकर कॉल सेंटर तक. लेकिन हाथ में अभी तक कुछ नहीं था. पिता नरेश वर्मा उसे नालायक बोल कर वैसे ही कुन्ने में किनारे लगा चुके थे जैसे वो सन बानबे का अपना LMLस्कूटर आँगन के एक कोने में फेक आए थे. पत्नी अब उस पर बनियाइन और धोती सुखाती थी. बाप के लिए स्कूटर बेकार घोषित हो चुका था और पिंटू भी. एक वो दिन था गैरत का और एक आज का दिन था. जब उसने अमित इंग्लिश इस्पीकिंग क्लासेज, गोविन्द नगर में एडमिशन ले लिया था. और उसकी दुनिया चुनांचे यूं बदल गई थी. हमाए कानपूर में कहावत थी, “भाई जी आज के ज़माने में अगर अंग्रेजी का ज्ञान हो और साथ में कंप्यूटर चलाना आता हो तो आपको कोई रोक नहीं सकता". आमिर खान का गाना भी आया था - देखो 2000 जमाना आ गया, मिल के जीने का बहाना आया गया - नया मिलेनियम था और पिंटू अंग्रेजी बोलना सीख रहा था. इस लिहाज़ से पिंटू कानपुर में लायक कहलाने के सबसे तेज तरीक़े को पकड़ चुका था. अमित सर की इंग्लिश इस्पीकिंग क्लासेज़ का पूरे कानपुर में गर्दा कटा हुआ था. ढेर बवाल था. यहां का स्लोगन था - अमित इंग्लिश इस्पीकिंग क्लासेज़, जहाँ तोता भी अंग्रेज़ी बोलता है. बगल में ‘स्वीटी फुल इंग्लिश’ वालों ने एक दिन होर्डिंग पर ‘भी’ को बदल कर ‘ही’ कर दिया और स्लोगन हो गया - ‘जहाँ तोता ही अंग्रेज़ी बोलता है’. नीचे लिखा गया बाकी सब गंवार हैं. पिंटू ने छज्जे पर चढ़ कर अमित सर का होर्डिंग ठीक किया तो ‘स्वीटी फुल इंग्लिश’ वालों ने लिखा लिया कि ‘हमारे यहाँ चपरासी भी अंग्रेज़ी बोलता है’. अमित सर की बेज्जती होता देख पिंटू ने लिखवा दिया - ‘हमारे यहां कोई चपरासी हैये नहीं, सब अफसर बन गए हैं.’ अमित सर फिर भी इस सब से शांत ही दिखाई पड़ते थे. वो पिंटू के हीरो थे. अंग्रेज़ी बोल दें तो शशि थरूर भी पानी भरने लगें. पिंटू कहता था सर पेल आए क्या सालों को, पेलेंगे तब पता चलेगा कि पंजीरी कहां बंट रही थी. सर हंसते हुए कहते थे - “से इट इन इंग्लिश. व्हेन आई विल बीट यू देन दे विल नो वेयर पंजीरी वाज डिस्ट्रीब्यूटिंग”. पिंटू उनका भक्त हो गया था. उसे लगने लगा था कि एक दिन अंग्रेज़ी सीखने से उसकी दुनिया बदल जाएगी और वो बेकार नहीं रहेगा. बाप भी उससे बात करना शुरू कर देंगे और उसे नालायक नहीं मानेंगे. अमित सर उसे समझाते थे - “पिंटू इफ यू नो इंग्लिश, सुक्सेज़ विल किस योर लेग.” “डू यू नो व्हाई स्वीटी इज़ सो मैड ऑन मी? आई वंस आस्क्ड हर टू मैरी मी. शी सेड नो. बिकाज़ आई डिड नॉट नो इंग्लिश. देन आई सेड स्वीटी वन डे आई विल बी मोर इंग्लिश दैन यू. एंड सी टुडे! अमित इंग्लिश इज बिगर देन स्वीटी फुल इंग्लिश.” पिंटू अमित सर की प्रेरणादायक कहानी सुन कर रुआंसा हो जाता था और सोचता था कि एक दिन मैं भी इंग्लिश बोल कर पापा को प्राउड फील करवा दूंगा. उसके और नरेश वर्मा के बीच में अगर कोई ऐसा दांव पेंच था जो सिर्फ पिंटू जानता था और नरेश वर्मा नहीं, तो वो अंग्रेज़ी बोलना ही थी. इसलिए पिंटू अमित सर के तोते की तरह अंग्रेज़ी सीखने में जुट गया. अंग्रेज़ी सीख कर पिंटू ने छोटा-मोटा कमाना भी शरू कर दिया था. वो इधर-उधर दुकानों, बिलबोर्ड और साइन बोर्ड के लिए अंग्रेज़ी स्लोगन लिखने लगा था. वो हर हिंदी-नुमा चीज़ को अंग्रेज़ी-मय कर देना चाहता था. कानपूर के हर हिंदी बिलबोर्ड को अंग्रेज़ी में ट्रांसलेट कर देना चाहता था. उसका पहला बिलबोर्ड था - ‘चिल्लिंग, चिल्लिंग वैरी डेंजर चाइल्ड बियर’ - जो कि उसने ‘चिलचिलाती हुई भयंकर ठंडी चिल्ड बियर’ वाले स्लोगन को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करके लिखा था. दूसरा स्लोगन उसने डाक्टर बत्रा के सर पर बाल बढ़ाने के क्लीनिक के लिए लिखा था - ‘कल्टीवेट हेयर आल ओवर योर बॉडी’. तीसरा स्लोगन उसने ठग्गू के लड्डू के लिए लिखा था - ‘वी विल लूट आल अवर रेलटिव एंड गिव देम लड्डू बिकॉज़ वी आर ठग्गू' उसकी दूकान चलने लगी थी और उसने पहली कमाई से पिता के लिए मोटरसाइकिल ख़रीदी. क्योंकि घर में LML का स्कूटर बेकार हो चुका था. एक दिन अचानक ही उसने बजाज CT 100 आँगन में लाकर खड़ी कर दी और उस पर एक परचा छोड़ दिया. बाप जब घर आए तो मोटरसाइकिल देखकर चौंक गए. परचा खोला तो उसमें लिखा मैसेज देखकर उनकी आखें भर आईं - “देयर आर मैनी फादर्स इन द वर्ल्ड. नरेश वर्मा इज माई द बेस्ट फादर. माई फादर हैज़ टू लेग्स एंड टू हैंड्स. ही आल्सो हैज़ टू आईज. आल फादर हैव दैट. स्टिल माई फादर इज द बेस्ट फादर ऑफ़ आल” नरेश वर्मा ने पिंटू को आंसुओं से सराबोर गले लगा लिया. “रो मत बेटा. अपने टियर्स सेव करके रखिए. रोना गन्दी बात है.", बाप ने कहा. “यस. क्राइंग इज़ अ डर्टी टॉक", पिंटू ने कहा.

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