सैलरी सिस्टम में बदलाव के फायदे जान लोगे तो इसके टलने पर अफसोस हो सकता है!
क्या इन हैंड सैलरी कम होने का खतरा हमेशा के लिए टल गया है?

आपने दुनिया जहान से पढ़ा, सुना, देखा होगा कि 1 अप्रैल 2021 से आपकी सैलरी स्ट्रक्चर में बदलाव होने जा रहा है. सबसे बड़ा बदलाव ये कि आपकी सैलरी में ‘बेसिक’ का कंपोनेंट कुल सैलरी का 50% या उससे अधिक होना ज़रूरी होगा. इसका क्या फायदा और क्या नुकसान होगा, ये हम आपको आगे बताएंगे. लेकिन फिलहाल आपको टैक्स बढ़ने या हर महीने आपके बैंक खाते में आने वाली (इन हैंड) सैलरी घटने की चिंता करने की जरूरत नहीं है. वजह ये कि सरकार ने फिलहाल नए वेज कोड (Wage Code) को लागू करने का फैसला टाल दिया है. मतलब, अप्रैल से आपकी सैलरी स्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है.
आपको पता होगा कि कर्मचारियों से जुड़े सुधारों को बढ़ावा देने के लिए सरकार 29 श्रम कानूनों को 4 कोड्स में समेट चुकी है. इनके बारे में इस स्टोरी में विस्तार से पढ़ सकते हैं. वेज कोड 2019 में ही ये प्रावधान है कि कंपनियां अपने कर्मचारियों को जो सैलरी देंगी, उसमें बेसिक सैलरी का हिस्सा कुल सैलरी (CTC कॉस्ट टु कंपनी) के 50 फीसदी से कम नहीं होगा. अभी तक कंपनियां बेसिक सैलरी पार्ट कम रखती हैं, रीइंबर्समेंट यानी अलाउंस वाला हिस्सा ज्यादा रखती हैं. इनमें सभी तरह के भत्ते जैसे छुट्टी यात्रा भत्ता (LTA), घर का किराया, ओवरटाइम और कन्वेयेंस (यात्रा भत्ता) आदि आते हैं. नया वेज कोड लागू करने के लिए कंपनियों को कर्मचारियों के सैलरी स्ट्रक्चर में फेरबदल करना पड़ेगा.
राष्ट्रपति के अनुमोदन से ये चार विधेयक कानून की शक्ल ले चुके हैं. लेकिन ये कब से लागू होंगे, सरकार ने वो डेट अभी तक अधिसूचित (नोटिफ़ाइड) नहीं की है. इसके बारे में हमने हिंदू बिज़नेस लाइन के सीनियर डिप्टी एडिटर शिशिर सिन्हा से बात की. उन्होंने बताया,
शुरुआती प्लानिंग इस कोड को पहली अप्रैल से लागू करने की थी, लेकिन अभी तक रूल्स ही नहीं आए हैं.
इसी बात को बिज़नेस टुडे के एडिटर राजीव दुबे ने कंफ़र्म किया, कहा-
‘वेज कोड’ का कोई नोटिफ़िकेशन अभी तक नहीं आया है, और इसे फिलहाल टाल दिया गया है.
नए वेज कोड को टाले जाने की आधिकारिक सूचना खबर लिखे जाने तक सरकार की ओर से नहीं दी गई थी. श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इकनॉमिक टाइम्स को इसे टाले जाने का कारण बताया. उन्होंने कहा कि तमाम राज्यों ने अभी तक चारों लेबर कानूनों को नोटिफाई ही नहीं किया है. जम्मू कश्मीर ही ऐसा प्रदेश है, जिसने इन कोड को नोटिफाई किया है. यूपी, बिहार, उत्तराखंड और एमपी ने दो कोड्स के मसौदे जारी किए हैं. कर्नाटक ने सिर्फ एक कोड के प्रस्तावित रूल्स का ड्राफ्ट निकाला है. अधिकारी के मुताबिक, केंद्र सरकार की तैयारी पूरी है लेकिन राज्यों के साथ किसी भी संभावित कानूनी उलझन से बचने के लिए इन पर अमल फिलहाल टाल दिया गया है.
क्या हमेशा के लिए टल गया?अगर ये बदलाव अभी लागू नहीं हो रहे तो इसका मतलब ये नहीं कि ये कभी लागू ही नहीं होंगे. ये कानून बन चुका है, इसलिए आज नहीं तो कल, किसी दिन ये लागू होंगे ही, अगर कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो. इसलिए ये जान लेना जरूरी है कि इस छोटे से दिखने वाले बदलाव के क्या फायदे हैं और क्या नुकसान. लेकिन पहले दो पॉइंट जान लीजिए-
# हमने इसे छोटा सा दिखने वाला बदलाव इसलिए कहा क्यूंकि पहली नजर में यही लगता है कि इस चेंज के बाद भी आपकी सैलरी वही रहेगी, जो पहले थी. बस सैलरी स्लिप में कुछ फ़िगर इधर-उधर या कम-ज़्यादा हो जाएंगी. हालांकि ऐसा नहीं है. यही बात हम आगे बताएंगे.# फ़ायदे-नुक़सान की बात करने के दौरान हम ये मानकर चल रहे हैं कि अभी आपकी सैलरी में ‘बेसिक’ वाला कंपोनेंट 50% से कम है. ये रूल्स लागू होने के बाद वो बढ़कर 50% या उससे ज़्यादा हो जाएगा. लेकिन अगर पहले से ही आपकी सैलरी का 50% या ज़्यादा भाग बेसिक सैलरी में आता है तो आपको इस एक बदलाव से सीधा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.# फ़ायदे# PF: आपकी सैलरी में से जो प्रॉविडेंट फंड कटता है उसका कैलक्यूलेशन बेसिक सैलरी के आधार पर ही होता है. जितनी आपकी बेसिक सैलरी होगी, उसका 12% कंपनी देगी और 12% आपकी सैलरी से कटेगा. लेकिन नए स्ट्रक्चर के बाद कंपनी का कॉन्ट्रिब्यूशन भी बढ़ जाएगा. उदाहरण के लिए मान लें आपकी सैलरी 50,000 रुपये है, और बेसिक 20,000 रुपये. अगर बेसिक सैलरी बढ़कर 25,000 हो जाती है तो कंपनी जो 2,400 रुपये आपके PF अकाउंट में जमा करती थी, वो कम से कम 3,000 रुपये जमा करने लगेगी.
# लोन: कई बैंक लोन देते वक्त इन हैंड सैलरी नहीं आपकी बेसिक सैलरी देखते हैं. जितनी ज़्यादा बेसिक सैलरी, उतना ज़्यादा और उतनी आसान किस्तों में लोन मिलने की संभावना. यूं Wage Code लागू होने के बाद शायद आपको डेढ़ के बदले दो लाख तक का लोन मिल जाए.# जॉब बदलना: जब आप एक जगह नौकरी छोड़कर दूसरी जगह जॉइन करते हैं तो नई कंपनी आपको कई बार CTC तो कुछेक बार बेसिक सैलरी के हिसाब से भी हाइक देती है. यूं अगर नई कंपनी का ध्यान CTC या टेक होम की जगह आपकी बेसिक सैलरी पर गया तो फिर आपको इस बढ़ी हुई बेसिक सैलरी पर हाइक मिलेगा. # इनकम टैक्स: चूंकि नया Wage Code लागू होने के बाद आप PF में ज़्यादा कॉन्ट्रिब्यूट कर रहे होंगे तो जितना ज़्यादा इन्वेस्टमेंट, उतनी ज़्यादा टैक्स सेविंग्स. लेकिन ये ढाई लाख से ज्यादा न हो, वरना 1 अप्रैल से उस पर टैक्स लगने वाला है.यूं ये 600 + 600 रुपये की छोटी-छोटी मासिक बूंदें और उस पर मिलने वाला ब्याज़ आपके पेंशन (pension corpus) रूपी घड़े को लबालब भर देगा.
# ग्रेच्युटी: ग्रेच्युटी किसी कंपनी का सरकार द्वारा बनाया एक लॉन्ग टर्म बेनिफिट प्लान है. मिलती उस एम्प्लॉई को है, जिसने कंपनी में लगातार कम से कम पांच साल तक काम किया हो. इसकी गणना भी बेसिक सैलरी के आधार पर की जाती है. कैसे, ये विस्तार से आप हमारी इस स्टोरी में पढ़ सकते हैं. लेकिन फिर भी आपको इतना तो आसानी से समझ में आ गया होगा कि नए Wage Code के लागू होने के बाद जहां एक नियोक्ता को कुछ ज़्यादा पैसे खर्चने होंगे, वहीं एक कर्मचारी को ज़्यादा ग्रेच्युटी मिला करेगी.
# नुक़सान# टेक होम सैलरी: ज़रा फ़ायदे वाले सेग्मेंट में पहले पॉइंट के उदाहरण पर फिर गौर करें. अगर आपकी तनख़्वाह वही रहती है, जो पहले थी, तो भी सिर्फ़ उसका स्ट्रक्चर भर बदल जाने से आपको और आपकी कंपनी को ज़्यादा PF देना पड़ेगा. यूं आपकी सैलरी हर महीने 600 रुपये कम आएगी. हालांकि इन 600 रुपयों के एवज़ में आपके PF अकाउंट में 1,200 रुपये ज्यादा जमा हो रहे होंगे. 600 रुपये आपके, 600 कंपनी के. अगर आप लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के क़ायल हैं तो आपको ये बात भी अपने पाले में जाती हुई लगेगी. और ये नुक़सान नहीं प्रॉफ़िट ही लगेगा. लेकिन अगर हम नुक़सान वाले खाने में इसकी बात कर रहे हैं तो एक लाइन में बताएंगे कि-आपकी हर महीने कुछ कम सैलरी आया करेगी.अब टेक होम सैलरी से जुड़ा दूसरा नुक़सान ये हो सकता है कि शायद आपकी कंपनी कहे कि हम 600 रुपये अपनी जेब से क्यूं भरें. तो आपकी कंपनी को नुक़सान न हो, इस वास्ते वो सैलरी को इस तरह से समायोजित करेगी कि उसे आपके PF अकाउंट में एक्स्ट्रा पैसा न भरना पड़े. पहले वाले उदाहरण के हिसाब से सोचिए कि अगर कंपनी कहे कि हम अपनी जेब से एक भी रुपया एक्स्ट्रा नहीं भरेंगे तो ऐसा करने के लिए उसे आपकी सैलरी में से क़रीब 500 रुपये काटने होंगे. इसी से वो आपके PF अकाउंट में अपनी तरफ से 500 रुपये भर देगी. कंपनी के लिए हिसाब बराबर, लेकिन आपकी हर महीने सैलरी 1,000 रुपये कम आया करेगी. हालांकि ऐसी 'ज़ालिम' कंपनियां कम ही होंगी, जो सैलरी स्ट्रक्चर बदलने के चलते आपकी सैलरी ही घटा दे, लेकिन फिर भी कई कंपनियां कुछ राहत के वास्ते शायद आपका अगला अप्रेज़ल उससे कम करें जितना पुराने वाले स्ट्रक्चर के रहते करतीं.
और अगर आपकी कंपनी इसमें से कुछ नहीं करती तो बहुत संभावना है कि वो कॉस्ट कटिंग करके अपने नुक़सान की भरपाई करे. कॉस्ट कटिंग को थोड़ी ह्यूमर के साथ समझाएँ तो इसका मतलब ये ठहरा कि आप अगली बार ऑफ़िस का वॉशरूम यूज़ करने जाएं तो वहां आपको टॉयलेट पेपर ख़त्म मिलें. या नए भर्ती हुए कर्मचारियों को नए ऐपल एयर के बदले कोई सेकेंड हैंड लैपटॉप पकड़ा दिया जाए, जिसका फैन बहुत शोर करता हो.
# CTC: इसका फुल फ़ॉर्म है, कॉस्ट टू कंपनी. मतलब आपको रखने में कंपनी का जितना खर्च हो रहा है. मतलब इसी 30 हज़ार रुपये में आपके बैंक अकाउंट में जमा होने वाले रुपये तो हैं ही, इसी में आपका इनकम टैक्स डिडक्शन भी है. इसी में हेल्थ इंश्योरेंस का मासिक प्रीमियम भी है. इसी में आपका वो अमाउंट भी है, जो ‘सब्सिडाइज़ मील’ के एवज़ में कटता है.
इस बात को दूसरे तरीक़े से भी समझिए. अगर सैलरी स्ट्रक्चर बदलता है तो या तो कंपनी को आपका CTC बढ़ाना होगा, ताकि टेक होम सैलरी वही रहे. या फिर पूरा PF आपकी CTC में कटेगा, तो आपको सैलरी घट जाएगी.
# अंततः सोच के देखिए कि अगर बेसिक सैलरी को ज़्यादा रखने से एम्प्लॉयर को फ़ायदा होता तो वो इसी विकल्प को बिना किसी नियम के भी चुनती. दूसरी तरफ़ सरकार को बेसिक सैलरी के ज़्यादा या कम होने से अगर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता तो सरकार सारे विकल्प खुले रखती और लोअर कैपिंग की बात ही नहीं करती.तो जहां सैलरी स्ट्रक्चर बदलने से कंपनियों या नियोक्ताओं को ये नुक़सान है कि उन्हें PF ज़्यादा भरना पड़ेगा, ग्रेच्युटी ज़्यादा देनी पड़ेगी वहीं सरकार को ये फ़ायदा है कि उसे टैक्स के रूप में ज्यादा पैसा मिल सकता है.