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Apollo-11 में अमेरिका ने चांद पर 3 आदमी भेजे थे, दो तो पहुंचे थे, तीसरा क्यों नहीं उतरा था?

बात है 1960 के आसपास की. एक तरफ तब का सोवियत संघ (USSR) स्पेस में अपने स्पुतनिक-2 वगैरह भेज रहा था. वहीं दूसरी तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) अपोलो-11 भेजने की तैयारी कर रहा था. स्पेस टेक्नॉलजी में तरक्की की ये दौड़, दोनों देशों के बीच स्पेस रेस के तौर पर जानी जाती है.

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 apollo 11 third man
कमांड मॉड्यूल सिम्युलेटर में मिशन की तैयारी करते कॉलिंस( Image: NASA)
29 अप्रैल 2024 (Updated: 29 अप्रैल 2024, 19:04 IST)
Updated: 29 अप्रैल 2024 19:04 IST
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थ्री इडियट्स फिल्म का ICE कॉलेज. एक प्रोग्राम के लिए सब लोग बैठे हुए हैं. फिर आते हैं प्रोफेसर ‘वायरस’. आते ही सवाल दागते हैं, “चांद पर कदम रखने वाला पहला इंसान कौन था?” भीड़ से ‘चतुर’ समेत तमाम स्टूडेंट्स जवाब देते हैं, नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong). फिर प्रोफेसर ‘वायरस’ पूछते हैं, कदम रखने वाला दूसरा इंसान कौन था? इससे पहले कोई जवाब दे, वो फौरन कहते हैं कि वक्त बर्बाद मत करो! दूसरा नाम जरूरी नहीं है. जुमले तो ये भी चलते हैं कि दूसरा कदम भी नील आर्मस्ट्रांग ने ही रखा होगा. भला बंदा एक पैर पर तो चांद पर नहीं टहला होगा!

खैर, शायद नासा वाले प्रोफेसर ‘वायरस’ की इन बातों से इत्तेफाक न रखें. क्योंकि चांद पर चलने वाले वो दूसरे इंसान थे, बज एलड्रिन, जिनका काम भी बेहद जरूरी है. लेकिन चांद पर उतरने वाले इन दोनों के अलावा, एक तीसरा आदमी भी उसी रॉकेट में मौजूद था. फिर वो चांद पर उतरा क्यों नहीं?

दो देशों की 'स्पेस दौड़'

बात है 1960 के आसपास की. एक तरफ तब का सोवियत संघ (USSR) स्पेस में अपने स्पुतनिक स्पेसक्राफ्ट्स वगैरह भेज रहा था. वहीं दूसरी तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) अपोलो-11 भेजने की तैयारी कर रहा था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद, शीत युद्ध के दौर में स्पेस टेक्नॉलजी में तरक्की की ये दौड़, दोनों देशों के बीच स्पेस रेस के तौर पर जानी जाती है. 

इस रेस में USSR स्पेस में अपने कई रॉकेट पहले ही भेज चुका था. जो अमेरिका के लिए चिंता पैदा कर रहा था. जिसके जवाब में अमेरिका ने चांद पर इंसान भेजने का अपोलो-11 मिशन तय किया.

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फिर आया 16 जुलाई, 1969 का दिन, फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से एक रॉकेट, लाखों लीटर ईंधन जलाकर उड़ान भरता है. ये रॉकेट था सैटर्न-V जिसपर अमेरिका का अपोलो-11 मिशन सवार था.

साथ ही सवार थी जिम्मेदारी, इंसानों को चांद तक पहुंचाने की. बाकी जो हुआ हम जानते हैं. 20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग चांद पर पहला कदम रखते हैं, उनका नाम इतिहास में दर्ज होता है.

कुछ लोग बज एलड्रिन का नाम भी याद रखते हैं, चांद पर कदम रखने वाले दूसरे शख्स के तौर पर. लेकिन इस मिशन में एक तीसरे शख्स भी थे, माइकल कॉलिंस. जो रॉकेट में तो सवार थे, लेकिन चांद पर उतरे नहीं. 

उनके न उतरने की वजह को समझने से पहले, हम हल्का सा अपोलो-11 मिशन के बारे में समझ लेते हैं. क्योंकि इसके तार इसी से जुड़े हैं.

चांद पर जाने वाले रॉकेट का नाम सैटर्न के नाम पर

ये था सैटर्न-V, पहले रॉकेट के हिस्सों को जान लेते हैं. उड़ान भरने के बाद रॉकेट की तीन स्टेज थीं. जिनके पूरे होने पर उनका काम एक-एक करके रॉकेट से अलग होना था. इनका मेन काम था, अपोलो 11 के हिस्सों कमांड माड्यूल, सर्विस मॉड्यूल और लूनर मॉड्यूल को चांद तक पहुंचाने का. 

(Image: National air and space museum)

इस रॉकेट की तीनों सवारियों को भी जान लेते हैं. 1. कमांडर- नील आर्मस्ट्रांग, 2. लूनर मॉड्यूल पायलट- बज एलड्रिन और 3. कमांड मॉड्यूल पायलट- माइकल कॉलिंस  

रॉकेट के लॉन्च होने के बाद आगे की तीनों स्टेज प्लान के मुताबिक पूरी हुईं. अब बारी थी अपोलो-11 के अलग होने की. जिसमें दो हिस्से कुछ ऐसे थे,

एक, लूनर मॉड्यूल- नाम था ईगल, काम था चांद की सतह पर उतरना. इसमें थे कमांडर नील आर्मस्ट्रांग और पायलट बज एलड्रिन.

दूसरा, कमांड मॉड्यूल- जिसका नाम था कोलंबिया. काम लूनर ऑर्बिट में रहना. माने चांद के चक्कर काटना. इसमें थे माइकल कॉलिंस.

‘मिशन की सबसे बढ़िया नहीं पर जरूरी सीट’

अपोलो-11 के दोनों हिस्से सफलतापूर्वक अलग हुए. ईगल चांद की सतह की तरफ बढ़ा, जिसमें नील और बज सवार थे. वहीं कॉलिंस के साथ, कोलंबिया चांद के चक्कर काटता रहा.

कोई कह सकता है कि एक तरफ वहां वो दोनों चांद में खो-खो खेल रहे थे, धमाचौकड़ी मचा रहे थे. यहां कॉलिंस को अकेले सन्नाटे में बैठने की ड्यूटी भला किस लिए लगा दी गई? सन्नाटा ऐसा कि चक्कर काटते वक्त, चांद की दूसरी तरफ होने पर घुप्प अंधेरा होता था.

इस बारे में 60 मिनट्स ऑस्ट्रेलिया को दिए एक इंटरव्यू में कॉलिंस ने मजाक में कहा था,

मैं उनके घर का टिकट था, मेरे बिना वो वापस नहीं लौट पाते! मेरे पास भले मिशन की सबसे बढ़िया सीट न रही हो, पर एक जरूरी सीट थी.

बात भी सही है. जिस ईगल को लेकर नील और बज उतरे थे, उसमें इतनी क्षमता नहीं थी कि वो बिना कमांड मॉड्यूल के वापस आ पाए. इसी कमांड माड्यूल के पायलट के तौर पर कॉलिंस का काम था, तीनों को धरती पर वापस लाने का. 

नील और बज को चांद पर ही छोड़ आते!

इंटरव्यू में कॉलिंस बताते हैं कि उनके गले में एक कायदों की किताब थी. जिसमें 18 अलग-अलग परिस्थितियों में क्या करना है, ये लिखा था. मतलब अगर लूनर मॉड्यूल खराब हो जाए और वो दोनों चांद पर ही फंस जाएं तो? इस पर कॉलिंस बताते हैं कि ऐसे हालात में उन्हें, दोनों को छोड़कर अकेले ही धरती पर वापस आना पड़ता. क्योंकि उन्हें बचाने का कोई तरीका नहीं होता. 

कायदों की किताब के साथ मिशन की तैयारी करते कॉलिंस (Image: NASA)

इसके अलावा, लूनर मॉड्यूल के चांद की सतह से वापस कमांड मॉड्यूल तक आने और उसे जोड़ने (डॉकिंग) के निर्देश भी इस किताब में थे. माने अगर लूनर मॉड्यूल चांद की सतह से उड़ने के बाद, सही कक्षा में नहीं पहुंचता, तब क्या किया जाता? ये सब बातें इसी किताब में थीं. ये जिम्मेदारी भी कॉलिंस पर थी. जो उन्होंने निभाई और बाकी जो हुआ वो इतिहास का हिस्सा है.

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