नोट बैन पर 'नमो' के सर्वे का नतीजा हमें पता है
...क्योंकि सवाल का जवाब भी सवाल है..
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फोटो - thelallantop
लेकिन हमें इस सर्वे का नतीजा पता है.
खुद प्रधानमंत्री ने मंगलवार को इस सर्वे का ऐलान किया. एंड्रॉयड, एप्पल और विडोंज स्टोर पर पहले से मौजूद 'नरेंद्र मोदी' ऐप पर आप इस सर्वे में हिस्सा ले सकते हैं. बाकी का पता नहीं, लेकिन इस सर्वे का नतीजा हम पहले से जानते हैं. पहले ये जान लें कि 'नरेंद्र मोदी' नाम से दो ऐप हैं. एक सरकारी और एक नरेंद्र मोदी की अपनी. मोदी की पर्सनल ऐप का डेवलपर 'नरेंद्र मोदी डॉट इन' को बताया गया है और इसके ब्योरे में बीजेपी दफ्तर का पता है. ये सर्वे नरेंद्र मोदी की अपनी ऐप पर है. इसलिए इसे आप सरकारी सर्वे नहीं कह सकते. ये कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री पर्सनल प्लेटफॉर्म पर ये सर्वे करा रहे हैं. वैसे रेटिंग और डाउनलोड दोनों में नरेंद्र मोदी की पर्सनल ऐप सरकारी से आगे है.
पहला पेच
हमें शक है कि प्रधानमंत्री एक्चुअली किसकी राय जानना चाहते हैं. भारत में सिर्फ 41 फीसदी लोगों के पास स्मार्टफोन हैं. नोट बैन से लोग खुश हैं या नाराज हैं, ये बहस का विषय हो सकता है. लेकिन कैश की उपलब्धता अचानक घट गई है, ये तो तथ्य है ही. और इससे सबसे ज्यादा गांवों में बसने वाला भारत प्रभावित हुआ है, जहां बैंकों और ATMs की संख्या कम है. 2015 के एक सर्वे के मुताबिक, ग्रामीण भारत में सिर्फ 9 फीसदी लोगों के पास मोबाइल टेक्नॉलजी है. वे लोग इस सर्वे में कैसे हिस्सा लेंगे.दूसरा पेच
अब सवाल है कि इस फीसदी के भी कितने फीसदी लोग नरेंद्र मोदी का पर्सनल ऐप यूज करते होंगे. ये एक व्यक्तिगत ऐप है, सरकारी नहीं. इसलिए जिन्होंने ये ऐप डाउनलोड किया है, या करेंगे; उनमें नोटबंदी से प्रभावित 'जेनुइन' लोगों और नरेंद्र मोदी समर्थकों की हिस्सेदारी का अनुपात कितना होगा? अनुमान आसान है. इसलिए पॉलिटिकल विरोधियों ने भी इस सर्वे की खामियां अंडरलाइन की हैं. https://twitter.com/milinddeora/status/801003648557924352 https://twitter.com/priyankac19/status/800981982197010432 https://twitter.com/asadowaisi/status/800967695692742657सवाल कैसे कैसे?
10 सवाल हैं, जिनमें पहला सवाल है- 'क्या आपको लगता है कि भारत में काला धन है?' इस सवाल को प्रधानमंत्री अपने पक्ष में क्यों इस्तेमाल करना चाहते हैं? कौन होगा जो इसका जवाब 'ना' में देगा. जो लोग नोटबंदी से प्रभावित हैं, वे भी ये तो मानते ही हैं कि देश में काला धन है.सर्वेक्षणों का मकसद विचारों को ग्रहण करना होना चाहिए. लेकिन ऐसा लगता है कि ये सर्वे चालाकी से अपने वैचारिक आग्रह थोपती है. पहले सवाल से ही इसे 'काला धन के अस्तित्व' से जोड़कर करप्शन मिटाने की मुहिम बता दिया गया है. फिर आप ही कह लो सर जी, हमसे क्या पूछते हो.

एक और सवाल पूछा गया है कि क्या आपको लगता है कि विमुद्रीकरण (demonetization) से रियल एस्टेट, उच्च शिक्षा और अस्पतालों तक आम आदमी की पहुंच होगी?इस पर तीन ऑप्शन हैं: 'पूरी तरह सहमत', 'आंशिक सहमत' और 'कह नहीं सकते.' अगर आप इससे 'असहमत' हैं तो आपके लिए यहां ऑप्शन नहीं है.https://twitter.com/madmanweb/status/800964890567421952 https://twitter.com/peeleraja/status/800961716322320386 https://twitter.com/krishashok/status/800980217917378560 किसी ने लिखा है कि ये सवाल उस तरह के हैं, जैसे किसी से पूछा जाए कि क्या तुमने अपनी बीवी को पीटना छोड़ दिया है. वह 'हां' कहे या 'ना', फंस जाएगा. लेकिन तीसरी बात कहने का ऑप्शन नहीं है. ऐसा नहीं है कि सरकार को सर्वे नहीं कराना चाहिए. इस समय एक निष्पक्ष सर्वे की जरूरत है भी. लेकिन ये चालाक सर्वे आपको वही कहने देता है, जो आप प्रधानमंत्री सुनना चाहते हैं. बहुत जल्द इस सर्वे के नतीजों की गूंज आपको न्यूज चैनलों पर सुनाई देगी. बीजेपी प्रवक्ताओं के मार्फत.
