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उन 'हरामियों' के नाम, जिनकी मांएं कुंवारी थीं

जिन्हें स्कूल में दाखिला नहीं मिला. जिनके बाप नहीं थे.

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कुलदीप
13 सितंबर 2016 (Updated: 13 सितंबर 2016, 01:02 PM IST)
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'नॉर्मल फैमिली क्या होती है?'
'नॉर्मल फैमिली वो होती है, जिसमें मम्मी और पापा एक साथ एक ही घर में रहते हैं. जिसमें पापा के आने पर मम्मी खिड़की दरवाजे बंद नहीं करतीं. हमारी फैमिली नॉर्मल फैमिली क्यों नहीं है?'
ये अवनी कह रही है. 8-10 साल की एक बच्ची, जिसे इस सोसाइटी में 'नाजायज संतान' कहा जाता है. वह अपनी मुस्लिम मां के साथ रहती है. क्योंकि हिंदू पिता ने उसे अपना नाम देने से इनकार कर दिया था. ये कहानी है स्टार प्लस के नए शो 'नामकरण' की. इसकी कहानी फिल्म 'जख्म' के आस-पास की है, जो महेश भट्ट की अपनी जिंदगी की कहानी थी. शो का पहला एपिसोड सोमवार को आया. इससे पहले उसका ट्रेलर भी पसंद किया गया था. जिसमें बच्ची की आवाज में यह गीत है, आ लेके चलूं तुझको एक ऐसे देश मेंमिलती हैं जहां खुशियां, परियों के भेस में https://www.youtube.com/watch?v=YzoGSTzlr0c यह शो बेहद मशहूर रहे 'दीया और बाती हम' की जगह आएगा. ये कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिसे पिता का नाम नहीं मिलता. साथ ही हिंदू पिता और मुसलमान मां की ये बेटी अपने आस-पास के धार्मिक हालातों से भी जूझ रही है. इसीलिए इसके लॉन्च पर महेश भट्ट ने कहा कि ये देश को जोड़ेगा और दिल की बात करेगा.

लेकिन इसके बहाने हम बात करना चाहते हैं कि पिता का नाम किसी के लिए कितना जरूरी है?

पहला कायर और दोषी तो वही है, जो बच्चा पैदा करता है लेकिन उसे अपना नाम देने से कतराता है. लेकिन यहां बात दूसरी है. हमारा समाज पिता के नाम को लेकर इतना सनकपन की हद तक उत्सुक क्यों है? लेकिन हम कैसे सामाजिक अंतर्विरोधों के शिकार हैं. सहमति से सेक्स कानूनी है, भले ही वह शादी के बाहर किया जाए. लेकिन शादी के बाहर पैदा हुई संतानों को लेकर हमारा नजरिया कितना संकरा है. कानून और समाज के बीच कितनी बड़ी खाई है.
शादी से बाहर हुई संतान को शरीफ लोग 'नाजायज़ औलाद' कहते हैं. इसके लिए एक सड़कछाप गाली है, 'हरामी'. अंग्रेजी में इसके लिए शब्द है, 'बास्टर्ड'. कोई आपको कह दे तो आप मारने दौड़ें. लेकिन उसका दर्द सोचिए, जिसके लिए समाज ने यही शब्द तय किया है. वो अपने दिमाग में बैठा लेगा, जीवन भर कुढ़ता रहेगा.
क्या हम ऐसी दुनिया नहीं बना सकते, जिसमें एक बिन ब्याही मां अपने बच्चे को बिना बाप के नाम के पाल सके. वह स्कूल में एडमिशन कराने जाए तो उसे लौटाया न जाए. दैनिक जीवन में लोग उस पर या उसकी संतान पर फब्तियां न कसें. कर्ण को पूजने वालों! जॉन स्नो के भक्तों! क्या अपने इर्द-गिर्द भी हम वैसी दुनिया बना पाएंगे? फिल्म ‘मृत्युदंड’ का एक सीन याद आता है. शबाना आज़मी प्रेगनेंट हैं. उनका पति नपुंसक है और पुजारी बन गया. शबाना की देवरानी बनी माधुरी दीक्षित शबाना से पूछती हैं, ‘किसका है?’ शबाना बड़े गर्व से कहती हैं, ‘मेरा है.’ mritudand

आमीन!

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