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फाह्यान: वो ट्रैवलर, जो चीन से पैदल इंडिया आ गया

'नक्शेबाज़' सीरीज की पहली किस्त में आज जानिए चाइनीज ट्रैवलर फाह्यान के बारे में.

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9 अगस्त 2016 (Updated: 8 अगस्त 2016, 03:02 AM IST) कॉमेंट्स
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घूमना पसंद है? 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' देख के बाजुएं फड़कने लगती हैं? अपने दोस्तों के पहाड़ों के सामने फोटो खिंचाकर फेसबुक पोस्ट डालने पर जल-भुन जाते हो? लेकिन घूम कित्ता पाते हो?
"क्या ही घूम पाते हैं! स्कूल के दिनों में गर्मी की छुट्टी में ही घूमने जाते थे."
क्यों? अब क्या हुआ? अच्छा. समझ गए. पहले तो ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलती. अगर कहीं मिल गई तो घर पर कोई न कोई नाटक हो जाता है. उससे भी पार पा गए, तो पैसे पे जा अटके.
अब जब आधी दुनिया टूरिस्ट स्पॉट बन चुकी है, तो सब कुछ महंगा भी हो चुका है. इतने बेवकूफ बनाने वाले पैकेज हैं. ट्रैवल एजेंसी वाले दावा करते हैं आपकी जिंदगी आसान बना देंगे. उनका ढाई रात, आधा दिन; साढ़े तीन रात, पौने चार दिन का पैकेज - ये आज तक समझ ही नहीं आया, क्या बला है. नाश्ता देंगे लंच नहीं देंगे, डिनर तभी देंगे, जब दो रोटी के साथ रायता भी लोगे. क्या मतलब है! फिर आप एक ठंडी आह भरते हुए 'पुराने ज़माने' के बारे में सोचने लगते हैं. कैसे क्रिस्टोफर कोलंबस झोला उठाके चल दिया होगा. कोई नौकरी, पैसे का चक्कर नहीं. और जहां भी जाता होगा, अकेला टूरिस्ट. क्या मज़े में घूमता होगा!
फिर आप आंखें बंद करके सपने देखना शुरू कर देते हैं. तूफानी समुद्र में, हिम्मत से लबरेज, बड़े से जहाज में आप खुद को हीरोबाजी करते हुए इमेजिन करते हैं. सर के पीछे गाना बजने लगता है- "ऐसा था सिनबाद द सेलर". अंदर का राहुल सांकृत्यायन हिलोर मारने लगता है. आप उठकर झोला पैक करने वाले ही रहते हैं. तब तक कोई चिल्लाता है, 'भिंडी भी ले लेना. 1 किलो.' और बिना कोई आवाज़ किए आपका घुमक्कड़ दिल टूट जाता है.
अच्छा ये 'रोमांटिक' बातें छोड़ो. कभी सोचा है उस 'पुराने ज़माने' में क्या घूमना उतना ही आसान होगा, जितना आज आप सोच लेते हो? हिस्ट्री की किताबों में फ़ेमस ट्रैवलर लोगों की फोटो आपको मुंह तो चिढ़ाती है. लेकिन कभी सोचा है सेल्फी स्टिक और DSLR के अभाव में उनकी फोटो कितनी लो क्वालिटी होती हैं.
क्या सारे ट्रैवलर अमीर होते थे या कुछ BPL कार्ड होल्डर भी! वैसे पुराने ज़माने में एटीएम तो होते नहीं थे. तो अमीर घर से होने के बाद भी एक बार कोई बीसों साल के लिए घूमने निकल जाता था, तो उसे अपना जुगाड़ खुद देखना पड़ता था. क्या उनकी मम्मी उनको भिंडी लेने नहीं भेजती थीं? उस वक़्त तो कोई टूर पैकेज भी नहीं था, फिर वो कैसे सब कुछ मैनेज करते होंगे! नहीं सोचा न?
कई सवाल हैं न मन में आपके? जवाब देने के लिए...
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पारुल
पारुल
'दी लल्लनटॉप' आपके लिए लाया है एक नई सीरीज नक्शेबाज़. इस सीरीज को लिखा है पारुल ने. नक्शेबाज़ में आपको दुनिया के टॉप क्लास, पुराने मगर जाबड़ ट्रैवलर्स के बारे में बताएंगे. वो कब कहां से किस रास्ते निकले. जेब में कित्ते धेले थे. फैमिली बैकग्राउंड क्या था? पेश है इस सीरीज की पहली किस्त.


फाह्यान, जो पैदल चाइना से इंडिया आ गए... ये पहले फ़ेमस ट्रैवलर थे. चाइना से निकले थे घूमने, चौथी सेंचुरी में.
ड्राइविंग फ़ोर्स: घर में बैठकर चाय में बिस्कुट डुबा कर खाना तो आसान ही होता है. फिर भला क्यों कोई घूमने की मेहनत करे? उसकी कोई न कोई वजह होगी. वजह कभी कोई ज़रूरत हो सकती है. या फिर सिंपल 'वॉन्डरलस्ट'. यानी घूमने की तलब.
फाह्यान बौद्ध साधु थे. मन लगा कर बुद्ध के उपदेशों को पढ़ते थे. इन उपदेशों को 'त्रिपिटक' कहा जाता है. पढ़ते-पढ़ते मामला कहीं फंस गया. और उन्हें ज़रूरत महसूस हुई पूरे 'विनयपिटक' को पढ़ने की, जो कि मिलता था भारत में. और इसीलिए फाह्यान चले आए भारत. मतलब समझ लो वो ज्ञान के चक्कर में घूमने निकल गए.
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फैमिली बैकग्राउंड:

फाह्यान अमीर बाप के लड़के नहीं थे. अब चौथी सेंचुरी का कोई इनकम रिकॉर्ड तो है नहीं. लेकिन लगभग मिडिल क्लास घर के रहे होंगे. फाह्यान के तीन बड़े भाई भी थे. तीनों स्कूल जाने की उम्र से पहले ही गुज़र गए. अब इनके पापा इनको लेकर बड़े परेशान हो गए. इसीलिए इनका एडमिशन बौद्ध मठ में करा दिया. लेकिन फाह्यान अभी बच्चे थे, तो वो रहते घर पर ही थे. एक बार वो खूब बीमार पड़ गए. अब उनके पापा उनको बौद्ध मठ के हवाले कर आए. ठीक होने के बाद भी उन्होंने वापस आने से मना कर दिया. मतलब समझ लो फाह्यान छोटी उम्र में ही हॉस्टल चले गए. 10 साल के थे, तभी उनके पापा मर गए. लोगों ने समझाया कि मम्मी के पास घर लौट जाओ. फाह्यान बोले कि हम पापा के कहने पे नहीं, अपनी मर्ज़ी से घर छोड़ के आए थे. आम जिंदगी उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं थी. फिर मम्मी मरीं तो फाह्यान घर गए. लेकिन फिर वापस मठ चले आए.

ट्रेवल रूट:

फाह्यान पैदल चाइना से भारत तक आए थे. रास्ते में ठंडे रेगिस्तान और खतरनाक पहाड़, सब कुछ पार करते हुए. भारत में वो नॉर्थ-ईस्ट से आए. सबसे पहले पाटलिपुत्र पहुंच गए. उस वक़्त यहां गुप्त वंश के चन्द्रगुप्त (द्वितीय) राजा थे. फाह्यान लुंबिनी भी गए, जहां बुद्ध पैदा हुए थे. यहां ये काफी वक्त रहे. अंत में वो श्रीलंका पहुंचे. वहां 2 साल रहने के बाद वो चाइना के लिए नाव से वापस चले. लेकिन रास्ते में आई एक जोरदार आंधी. रास्ता गुमे और नाव जा पहुंची जावा. फिर पांच महीने बाद वो चाइना के लिए निकले. रास्ते में एक बार फिर कहीं भटक गए थे. गनीमत की बात ये थी कि भारत से श्रीलंका और फिर वापस चाइना जाने के लिए फाह्यान को पैदल नहीं जाना पड़ा था. नाव में गए थे.
पाटलिपुत्र के बाद, वो राजगृह भी घूम आए. बनारस, अवध, कन्नौज की कुछ जगहों, खासकर मठों में घूमने के बाद फाह्यान हुगली भी पहुंचे थे. भारत के बाद श्रीलंका भी गए. फाह्यान 25 साल की उम्र में चाइना से निकले थे. और 77 साल के होने पर वापस घर पहुंचे.

मुश्किलें:

इनका तो सफ़र शुरू से अंत तक मुश्किलों से भरा रहा. पहले तो इतना मुश्किल रास्ता अकेले तय करना और वो भी पैदल. यहां आकर उन्हें भाषा की दिक्कत आई. तब फाह्यान ने संस्कृत सीखी.

फाह्यान ने कोई ट्रैवलॉग लिखा क्या?

फाह्यान ने जितने भी ग्रंथ और उपदेश इकट्ठे किए, उन सब को ट्रांसलेट किया. लेकिन सबसे अच्छा काम किया अपना ट्रेवल अकाउंट लिख कर. इस ट्रेवल अकाउंट को 'A Record of Buddhist Kingdoms' कहा जाता है. इसमें उन्होंने बुद्धिज़्म के शुरुआती दिनों के बारे में पूरे डिटेल में लिखा. उन्हें सिल्क रूट के रास्ते ही आना था. तो उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले सभी जगहों की हिस्ट्री और जियोग्राफी के बारे में लिख डाला. फाह्यान जितने बौद्ध मठों में गए, सबके बारे में लिखा. वहां के साधुओं, उनकी रोजमर्रा की जिंदगी, उनकी बताई हुई बौद्ध कहानियां, सबके बारे में लिखा.
 

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