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बीजेपी सपोर्टर बाबर की हत्या का पूरा सच!

मुस्लिम युवक बाबर की हत्या बीजेपी को वोट देने के चलते हुई?

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बीजेपी की जीत पर मिठाई बांटता बाबर (फोटो-आजतक)
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अभिनव पाण्डेय
28 मार्च 2022 (Updated: 29 मार्च 2022, 06:47 AM IST) कॉमेंट्स
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धर्म और राजनीति. ये दो चीज़ें करीब आती हैं, तो क्या होता है, इस देश ने 1947 में बहुत अच्छी तरह देखा. देश का बंटवारा हो गया. तब से लेकर अब तक असंख्य दंगे हुए. कारण फिर वही - राजनैतिक मकसद से धार्मिक पहचान को निशाना बनाया गया. कभी जालीदार टोपी पहनने के चलते कोई निशाना बन गया, तो कभी किसी को इसीलिए मार दिया गया, क्योंकि घर पर भगवा झंडा था. इन दिनों हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. हमें अंग्रेज़ों से आज़ाद हुए 75 साल होने जा रहे हैं. लेकिन हम धार्मिक पहचान को लेकर होने वाली राजनीति की कैद से बाहर नहीं आ पाए हैं. तभी तो कोई भाजपा का प्रचार करता है, मारा जाता है. दुकानदार, धर्मस्थलों के पास से भगा दिए जाते हैं, ये कहते हुए कि तुम्हारा धर्म दूसरा है. कोई छात्रा कॉलेज के एक कमरे में प्रार्थना कर लेती है, तो बवाल हो जाता है.
एक वीडियो सामने आता है जिसमें एक भाई रो-रोकर अपनी पीड़ा बता रहा है, बता रहा है कि उसके भाई को बीजेपी का साथ देने की सजा मिली, बता रहा है कि पुलिस से शियाकत की, मगर वहां से वक्त रहते सहायता ना मिली, बता रहा है कि बीजेपी की जीत मिठाई खिलाने वाले एक मुस्लिम युवा की हत्या हो गई. बीजेपी का झंडा लगा है मगर दीवार पर प्लास्टर नहीं है, घर तो है मगर शटर के उस पार संपन्नता भी नहीं. मुफलिसी से भरे छोटे से घर के भीतर एक बूढ़ी मां, एक विधवा पत्नी है. एक बेटा है 4 साल का, एक बेटी 6 साल की. इसी घर में रहता था बाबर.
यूपी के कुशीनगर जिले के कठघरही गांव में रहने वाले 26 साल के बाबर को पीट-पीट कर मार दिया गया. बाबर की एक तस्वीर सोशल मीडिया में चल रही है. जिसमें वो मिठाई बांटता दिख रहा है. तस्वीर 11 मार्च की बताई गई. जब नतीजे आ चुके थे और बीजेपी जीत चुकी थी.

बाबर की वायरल तस्वीर
बाबर की वायरल तस्वीर
बताया गया कि उसने बीजेपी की जीत की खुशी में मिटाई बांटी. परिवार का दावा है कि बीजेपी का समर्थन करने को लेकर बाबर का अपने पटिदारों से विवाद चल रहा था. इसके अलावा पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में पुराने नाली विवाद का भी जिक्र किया है.
वैसे पुलिस ने इस पुराने विवाद को हत्या का कारण नहीं बताया है. चश्मदीदों के मुताबिक हुआ ये कि 20 मार्च को बाबर अपनी मीट की दुकान से घर लौटा. घर की दीवार पर लगा बीजेपी का झंडा गिर गया था, उसे ही बाबर ठीक कर रहा था. जिसके बाद उसके पटिदार अजिमुल्लाह, आरिफ, सलमा और ताहिद की तरफ से उसे ऐसा करने से मना किया गया. वो नहीं माना तो मार-पीट शुरु हो गई.
चश्मदीद के मुताबिक बाबर को मारपीट के बाद छत से नीचे ढकेल दिया गया. गंभीर रूप से घायल बाबर को पहले जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर गोरखपुर और उसके बाद लखनऊ रेफर किया गया. जहां इलाज के दौरान 25 मार्च को उसकी मौत हो गई. जिसके बाद परिजनों ने लाश रखकर विरोध किया. मौके पर बीजेपी के स्थानीय विधायक पीके पाठक पहुंचते हैं, अंतिम संस्कार के लिए राजी करते हैं. खुद कंधा देकर जनाजा ले गए, दफीना किया. मगर उससे पहले परिजनों ने आरोपियों के साथ-साथ पुलिस पर भी गंभीर आरोप लगाए.
आरोप है कि पुलिस को पहले ही तहरीर देकर गुहार लगाई गई थी. विवाद पहले से था, धमकियां पहले से मिल रहीं थीं. लेकिन वक्त रहते पुलिस ने कुछ नहीं किया. उसके बाद जो हुआ वो खानापूर्ति के सिवाय कुछ नहीं.
रामकोला थाने के प्रभारी दुर्गेश कुमार सिंह को भी लाइन हाजिर कर दिया गया. मामले में 4 लोगों - अजिमुल्लाह, आरिफ, सलमा और ताहिद पर नामजद FIR हुई, आरिफ और ताहिद को गिरफ्तार कर लिया गया, मगर दो अब भी फरार हैं. FIR में गिरफ्तारी भी CMO की तरफ से आए TWEET के बाद हुई. जिसमें सीएम योगी ने बाबर की मौत पर दुख जताया और आरोपियों को ना छोड़ने की बात कही.
पुलिस की दलीलें एक तरफ मगर पहला सवाल कानून व्यवस्था पर ही है. आखिर जब कोई बार-बार शिकायत कर रहा था तो उसकी सुनी क्यों नहीं गई? दूसरा ये कि क्या किसी पार्टी का समर्थन या विरोध करना गुनाह है? एक धारणा है कि ज्यादातर मुस्लिम बीजेपी के विरोध में वोट करते हैं. मगर मुस्लिम होकर बीजेपी का समर्थन करना कोई अजूबा नहीं. शहनवाज हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी, दानिज आजाद जैसे नेताओं की फेहरिस्त छोटी जरूर है मगर नदारद नहीं है.
बाबर नेता नहीं तो एक समर्पित कार्यकर्ता से कम नहीं था. स्थानीय बताते हैं कि वो साइकिल से बीजेपी का झंडा लगाकर प्रचार करता था, लोगों से बीजेपी को वोट देने की अपील करता था. मगर इस वजह से किसी हत्या करना देना, असहिष्णुता है. मामला बीजेपी और मुस्लिमों से जुड़ा था. और दोनों ही बड़े की-वर्ड हैं. तो बात संसद के गलियारे तब भी पहुंचे. बीजेपी सांसद कहते हैं कार्रवाई की जाएगी, योगी सरकार किसी को बख्शेगी नहीं. तो विरोधी कहते हैं ये कानून व्यवस्था का मसला है और योगी सरकार यहां फेल हुई है
बाबर वाले मामले ने इतना तूल उसकी धार्मिक पहचान के चलते पकड़ा. और इसीलिए अब इस मामले पर राजनीति खिंचती जा रही है. ऐसी ही धार्मिक पहचान को लेकर राजनीति के ही दो और मामले हैं. पहला मामला मध्यप्रदेश के सागर का है. यहां के हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से 25 मार्च के रोज़ एक वीडियो वायरल हुआ. इसमें ग्रैजुएशन के तीसरे साल में पढ़ रही एक छात्रा कक्षा के अंदर नमाज़ पढ़ रही थी. उसने हिजाब भी पहना हुआ था. इतनी सी बात पर विश्वविद्यालय प्रशासन के पास शिकायतों का अंबार लग गया और जांच के लिए एक कमेटी बना दी गई.
इसके बाद बजरंग दल के कार्यकर्ता 26 मार्च को यूनिवर्सिटी पहुंचे और हनुमान मंदिर में चालीसा का पाठ करवाया. ये लोग चाहते हैं कि छात्रा पर कार्रवाई हो, अन्यथा कक्षा के अंदर चालीसा का पाठ होगा. जानकारी के लिए हम बता दें, छात्रा जिस विभाग में पढ़ती है, वहां कोई ड्रेस कोड नहीं है.
इसी के साथ कर्नाटक का हिजाब विवाद अब मध्यप्रदेश में एंट्री ले चुका है. लेकिन ऐसा नहीं है कि कर्नाटक में हाईकोर्ट के फैसले के बाद सबकुछ ठीक हो गया. अदालत ने फैसला दिया था कि कक्षा में हिजाब पहनने पर रोक लगाई जा सकती है. क्योंकि ये मसला गणवेश, यानी यूनिफॉर्म का है. इसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि दोनों धर्मों के बीच तनाव कुछ कम होगा, क्योंकि अदालत का फैसला दोनों पक्षों पर बाध्यकारी है. लेकिन हिजाब का किस्सा खत्म हुआ, तो एक नया विवाद खड़ा हो गया. कर्नाटक में हिंदुत्ववादी संगठनों ने मांग रख दी है कि मंदिरों में होने वाले मेलो-जुलूसों के वक्त मुस्लिम दुकानदारों को दूर रखा जाए. उडीपी और शिवमोगा में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और श्रीराम सेना की मांग पर मंदिरों के मेलों में दौरान मुस्लिम दुकानदारों पर रोक लगाई गई. इसके बाद ये मांग बाकी ज़िलों से भी होने लगी.
कर्नाटक सरकार ने इस तरह की रोक को सही बताने के लिए 2002 में कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए एक नियम का हवाला दे दिया है. इसपर कन्नड लेखक और भाजपा MLC ए एच विश्वनाथ ने कहा है,
''ये मेरी समझ से बाहर है कि कर्नाटक सरकार इस मसले पर चुप क्यों है. कितने भारतीय इंग्लैंड में काम कर रहे हैं? कितने भारतीय मुस्लिम देशों में काम कर रहे हैं. अगर वो सब हमारे खिलाफ कार्रवाई करने लगें, तो बात कहां तक जाएगी?''
कुशीनगर, सागर और कर्नाटक से आई ये खबरें बताती हैं कि हम लाख दावे कर लें, अपनी कुठाओं से आज़ाद नहीं हो पाते. इसीलिए हम नाम में, कपड़े में धर्म खोजते हैं. वो धर्म अपने से अलग हुआ, तो सामने वाले को तिरछी नज़र से देखते हैं. ये हमारे अंदर बैठी कुंठा ही है, जो हमें किसी पर होने वाले अत्याचार में रस देती है.

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