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हिंदी सिनेमा के बादशाह कंपोजर आर. डी. बर्मन की वो कहानी, जो रुआंसा कर देगी

वो लीजेंडरी कंपोज़र जो टूट गया, रोया और लाया अंतिम मास्टरपीस.

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राहुल देव बर्मन 1939-1994
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4 जनवरी 2021 (Updated: 4 जनवरी 2021, 02:39 PM IST) कॉमेंट्स
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हिंदी सिनेमा और उसके संगीत के बारे में तमाम बातें होती हैं. मसलन, 70’s के बाद के गानों में वो बात नहीं रही. ब्लैक एंड वाइट टाइम में सब सहगल की तरह क्यों गाते थे? आखिर रहमान के संगीत में ऐसा क्या है? इंडी-पॉप के सितारों के ऐल्बम अब क्यों नहीं आते? ऐसे तमाम सवालों से भरी फिल्म संगीत की एलपी रिकॉर्ड से हेडफोन तक की, वाया डेक मशीन से हुई यात्रा के किस्सों पर हम बात करेंगे. पेश है तीसरी किस्त.


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आर.डी. बर्मन का नाम लिए जाते ही दो बातें होती हैं - पहली, कंपोज़र लोगों का एक हिस्सा उन्हें जीनियस और लीजेंड बोलता है. दूसरी ये कि आलोचकों, श्रोताओं समेत कंपोजर्स का एक वर्ग मानता है कि उन्होंने पश्चिमी गानों की चोरियां कीं. लेकिन एक महत्वपूर्ण बात शायद ये भी है कि पंचम इकलौते संगीतकार हैं जिनके मरने के दशकों बाद तक संगीतकार उन्हें अपनी फिल्मों में श्रद्धांजलि देते आ रहे हैं. 'झंकार बीट्स' (2003), 'दिल-विल प्यार-व्यार' (2002), 'लुटेरा' (2013) का संगीत पंचम को सीधी श्रद्धांजलि था. ब्रह्मानंद सिंह ने उनकी लाइफ और म्यूजिक पर डॉक्युमेंट्री 'पंचम अनमिक्स्ड- मुझे चलते जाना है' बनाई जिसे दो नेशनल अवॉर्ड मिले हैं. शंकर-अहसान-लॉय अपने गाने 'कल हो न हो' और विशाल भारद्वाज अपने ट्रैक 'बीड़ी जलइले' को पंचम से प्रेरित बताते हैं. वहीं आरोप लगता है कि 'चुरा लिया है', 'महबूबा महबूबा' और 'तुमसे मिल के' जैसे उनके गाने पश्चिम और मिडिल ईस्ट के म्यूजिक से उठाए गए थे.

तो आर. डी. आखिर हैं क्या? एक जीनियस, एक कॉपी-कैट या दोनों.


# वो हांफता भी था तो सुर लय और ताल के साथ

राजेश खन्ना पर फिल्माया गया गाना 'दुनिया में, लोगों को, धोखा कभी हो जाता है' सुनिए. लाइन खत्म होने के बाद आर.डी. बर्मन हांफते हैं पूरे सुर, लय और ताल के साथ. तकनीकी रूप से ये करने में जो मुश्किल है सो है मगर एक ओरिजनल आइडिया के तौर पर 60 के दशक में ये सोचना... पता नहीं उन्होंने कैसे डायरेक्टर और प्रोड्यूसर को समझाया होगा कि ये आइडिया हिट होगा. 'मेरे सामने वाली खिड़की में' जो बैकग्राउंड म्यूज़िक आप सुनते हैं वो और कुछ नहीं बस एक खुरदुरी सतह पर कंघी को रगड़ना है. कहीं रेगमाल, कहीं गार्गल, कहीं बीयर की खाली बोतल - पंचम को सामने जो चीज़ दिख गई उन्होंने उसमें से सुपरहिट म्यूजिक निकाल लिया, ठीक अपने साथी गुलज़ार की तरह जो ऐसी अजीबोगरीब धुनों पर अजूबे से शब्द फिट कर क्लासिक माने जाने वाले गाने बना देते हैं.


# पारंपरिक म्यूजिक से अलग होने की बगावत

'आराधना' फिल्म में राजेश खन्ना पर गाना फिल्माया जाना था 'रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना.' परंपरागत संगीत के पक्षधर एस.डी. बर्मन उसे 'होता तू पीपल, मैं होती अमरलता तेरी' जैसा संकोच से शर्माती नायिका के मनोभावों को दिखाता हुआ गीत बनाना चाहते थे. उन्हें असिस्ट कर रहे उनके बेटे पंचम और गायक किशोर कुमार इससे अलग करने के पक्षधर थे. एस.डी. किसी वजह से कुछ समय तक रिकॉर्डिंग से दूर रहे. इस बीच इन दोनों ने इस गाने की धुन बना दी. पर्दे पर खुली शर्ट में राजेश खन्ना और नारंगी स्लीवलेस में शर्माती शर्मिला टैगोर.. हिंदी सिनेमा को पहली बार पता चला कि संगीत आग भी लगा सकता है. यहां से किशोर कुमार, आर.डी. बर्मन, आशा भोसले और गुलज़ार, एक ऐसा कॉम्बिनेशन बन गया जिसका पर्दे के पीछे होना पर्दे पर दिखने वाले को सुपरस्टार बना देता था.


# उन्हें वेस्टर्न कहकर खारिज करना आसान नहीं

कॉम्बिनेशन की बात चली है तो बात पंचम के कॉम्बिनेशन की. संगीत के कई जानकार भी अक्सर आर.डी. को वेस्टर्न म्यूज़िक तक सीमित कर देते हैं. मगर सच्चाई इससे कहीं अलग है. इलेक्ट्रॉनिक रॉक को बांग्ला बाउल के साथ मिलाकर उन्होंने एक नया जॉनर बनाया जिसके हिट होने का समय ठीक उतना ही है जितनी राजेश खन्ना के सुपर स्टारडम की उम्र. जहां इस तरह के गाने आना बंद हुए काका की दीवानगी भी कम होने लगी. वहीं आप 'मुसाफिर हूं यारों', 'हमें तुमसे प्यार कितना', 'एक चतुर नार' जैसे गाने या 'आंधी' फिल्म के साउंडट्रैक सुनिए, हिंदुस्तानी संगीत को इससे क्रिएटिव तरीके से कितनी बार इस्तेमाल किया गया है. सोचिएगा.


पंचम कीबोर्ड पर कम ही कंपोज़ करते थे. फोटो- हफिंग्टन पोस्ट
पंचम कीबोर्ड पर कम ही कंपोज़ करते थे. फोटो- चैतन्य पादुकोण

# प्रेरणा से चोरी तक

हिंदुस्तान में ओरिजनल होने के कॉन्सेप्ट से ज़्यादा महत्व प्रेरित होने में है. सत्यनारायण की कथा सुनाने वाला कहता कि ये कथा विष्णु जी ने नारद को सुनाई थी. वाल्मीकि की रामायण को तुलसी आधार बनाकर रामचरित मानस की मौलिक रचना करते हैं. हिंदी सिनेमा के तमाम कंपोजर लोकगीतों और थोड़ा बहुत पश्चिमी धुनों को लेकर गाने बनाते रहे. पंचम इसको दूसरे स्तर पर ले गए. उन्होंने जिस बारीकी से जैज़, ब्लूज़ और रॉक को समझा. उनके दशकों बाद तक कोई और नहीं समझ सका. हिंदी सिनेमा के लिए ये एक बिलकुल नई चीज़ थी और ये तेज़ी से लोकप्रिय हुई.
60 के दशक में पंचम की लोकप्रियता का दौर शुरू हुआ. 'तीसरी मंजिल' और 'पड़ोसन' जैसी म्यूज़िकल हिट्स आईं जिन्होंने क्लासिकल और वेस्टर्न संगीत की सुपरहिट जुगलबंदी जनता को सुनवाई. 70's की शुरुआत से ही 'कटी पतंग' (प्यार दीवाना होता है), 'परिचय' (मुसाफिर हूं यारों), 'हरे रामा हरे कृष्णा' (दम मारो दम) के साथ हर तरफ आर.डी. ही छाए थे. अपनी पश्चिम प्रेरित धुनों पर तमाम यूनीक प्रयोगों के हस्ताक्षर के साथ.
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कई हिट गानों में पंचम ने माउथ ऑर्गन बजाया है.

# कुछ लोग और उनकी साजिशें जिन्होंने पंचम को बर्बाद किया

80 के दशक में कुछ ऐसे संगीतकार आए जो आज बहुत बड़े नाम हैं. उन्होंने भी चोरियां कीं और बड़े बेहतर तरीके से. इन लोगों को कुछ संगीत कंपनियों का साथ मिल गया और इन लोगों ने आर.डी. बर्मन के खिलाफ लॉबिंग की. इन्होंने वादे और दावे किए कि वेस्ट की हिट ट्यून्स और गानों को कम कीमत पर चुराकर देंगे. पंचम के खिलाफ माहौल ऐसा बना दिया गया कि निर्देशकों पर दबाव डाला गया अगर पंचम कंपोजर रखे गए तो फिल्म पर काम आगे नहीं बढ़ेगा. एक स्थिति ऐसी आ गई कि आर.डी. बर्मन के पास कई-कई महीने काम नहीं होता था. इस दौरान उनके पास करीब 100 सदस्यों का बैंड (जिसका हिस्सा पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरि प्रसाद चौरसिया भी थे) था और पंचम गहरे सदमे में आ गए. इस दौर में 'इजाज़त' के 'कतरा-कतरा' और 'मेरा कुछ सामान' जैसे गानों की बड़ी तारीफ हुई. गुलज़ार को इसके लिए बेस्ट लिरिसिस्ट और आशा भोसले को बेस्ट सिंगर का अवॉर्ड मिला मगर पंचम को एक बार फिर अलग-थलग कर दिया गया. इन सबका सीधा असर उनकी सेहत और आत्मविश्वास पर पड़ा.

# पंचम की आखिरी कृति जो मास्टरपीस है

ये 90 का दशक था जब डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा अपनी बड़ी पीरियड फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' प्लान कर रहे थे. म्यूजिक वे पंचम दा से बनवाना चाहते थे. संगीत कंपनी HMV के अधिकारियों ने मना कर दिया कि इस शख्स का म्यूजिक नहीं चाहिए. बोले कि ऐसे गाने कोई नहीं सुनता और पंचम को लेंगे तो ठीक नहीं होगा. विधु अड़े रहे.
पंचम दा ने 'कुछ न कहो' गाने के लिए एक धुन बनाई जो 90's के लटके-झटकों से भरी हुई थी. विधु ने सुनकर विनम्रता से कहा कि मुझे ये नहीं चाहिए. पंचम दा की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने विधु से पूछा, "मैं ये फिल्म कर तो रहा हूं न! ..एक हफ्ता दे दो."
विधु बोले, "आप एक साल ले लीजिए मगर संगीत ऐसा दीजिए जो सिर्फ पंचम दा ही दे सकते हों" (हालांकि विधु और पंचम की फिल्म 'परिंदा' का 'तुमसे मिलकर' गाना यूके के एक चार्टबस्टर सॉन्ग when I need You की हूबहू नकल है). ख़ैर, हताशा में डूबे हुए आर.डी. बर्मन को विधु की बात से हिम्मत मिली.
पंचम ने इस गाने और फिल्म में फिर नए सिरे से संगीत दिया. और '1942 अ लव स्टोरी' हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी म्यूज़िकल हिट्स में से एक साबित हुई. इसके गानों में पंचम के प्रयोग देखें - 'कुछ न कहो' मांझी संगीत से शुरू होकर वॉल्ट्ज़ में मिल जाता है और 'प्यार हुआ चुपके से' में देश राग के साथ जैज़ इंस्ट्रूमेंट हैं जिसकी पृष्ठभूमि में ड्रम स्टिक से तबला बज रहा है.
जावेद अख्तर के शब्दों में कहें तो ये फिल्म हिंदी सिनेमा के मुंह पर एक तमाचा है जिसे पंचम मार कर गए हैं. मगर अफसोस है कि फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही पंचम दुनिया से जा चुके थे.
नोट : अक्सर 1942 अ लव स्टोरी को उनकी आखिरी फिल्म समझ लिया जाता है मगर घातक (1996) और अन्याय ही अन्याय (1997) में भी उनका संगीत है.
उन पर बनी डॉक्युमेंट्री 'पंचम अनमिक्स्ड' का एक हिस्सा देखिएः
https://www.youtube.com/watch?v=a9e4IZW7tQQ

ये स्टोरी अनिमेष ने की है




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