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अफ़ग़ान महिलाओं के लिए डराने वाली ख़बर, क्या करने जा रहा तालिबान?

यूनाइटेड नेशंस (UN) ने अफ़ग़ानिस्तान की मॉरैलिटी पुलिस पर एक स्पेशल रिपोर्ट पब्लिश की है.

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तालिबान की मॉरेलिटी पुलिस (फोटो- एएफपी/गेट्टी)
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साजिद खान
11 जुलाई 2024 (Updated: 12 जुलाई 2024, 13:33 IST)
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‘मॉरैलिटी पुलिस’; ये टर्म सितंबर 2022 से चर्चा में है. चर्चा की शुरुआत हुई थी, ईरान की राजधानी तेहरान से. जहां महसा अमीनी नाम की एक नौजवान लड़की को मॉरेलिटी पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. ठीक से हिजाब ना पहनने की वजह से. कुछ दिनों बाद पुलिस की हिरासत में महसा की मौत हो गई. आरोप लगे कि पुलिस कस्टडी में उसको टॉर्चर किया गया था. महसा की मौत के बाद ईरान में एंटी-हिजाब प्रोटेस्ट शुरू हुआ. महिलाओं ने हिजाब जलाए. अपने बाल काटकर विरोध जताया. बाकी दुनिया में भी ईरान सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए. उसी दौरान मॉरेलिटी पुलिस पर बैन लगाने की मांग भी चली. नवंबर 2022 में ख़बर आई कि सरकार ने मॉरेलिटी पुलिस को भंग करने का फ़ैसला किया है. मगर ये सब छलावा था. 2023 आते-आते वे फिर से सड़कों पर थे. उनका रवैया और क्रूर हो चुका था.

Mahsa Amini Protests
महसा अमीनी के समर्थन में ईरान में हुए प्रोटेस्ट (फोटो-विकीपीडिया)

ऐसी ही मॉरैलिटी पुलिस एक बार फिर से ख़बरों में है. इस बार ईरान के पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में. ये महिलाओं के कपड़ों पर नज़र रखती है. ठीक नहीं लगता तो दुरुस्त भी करवाती है. लोगों को गाने सुनने से रोकती है. और, अगर कोई वेस्टर्न स्टाइल में बाल रखते दिख जाए तो उसको भी नहीं छोड़ती.

इसकी चर्चा क्यों?

दरअसल, 09 जुलाई को यूनाइटेड नेशंस (UN) ने अफ़ग़ानिस्तान की मॉरैलिटी पुलिस पर एक स्पेशल रिपोर्ट पब्लिश की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार मॉरैलिटी पुलिस को और शक्तिशाली बनाने की तैयारी में है. अगर ऐसा हुआ तो ये अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए डराने वाली बात होगी.

तो, समझते हैं-
- UN की रिपोर्ट में क्या-क्या लिखा है?
- अफ़ग़ानिस्तान में मॉरेलिटी पुलिस कैसे काम करती है?
- और, दुनिया के किन-किन देशों में ऐसी पुलिस वाली व्यवस्था है?

इसको समझने के लिए आपको इतिहास में चलना होगा. 1979 से 1989 तक सोवियत-अफ़गान वॉर चला. इसमें मुजाहिदीनों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग इलाकों में रहने वाले कई कबीले भी शामिल हुए. इन्हीं कबीलों में से एक के नेता थे बुरहानुद्दीन रब्बानी. उन्होंने 1972 में जमीयत ए इस्लामी नाम का संगठन बनाया था. विचारधारा पाकिस्तान के जमात ए इस्लामी से मिलती थी. आगे चलकर इसमें अहमद शाह मसूद भी शामिल हुए.

Ahmad Shah Massoud
अहमद शाह मसूद (फोटो- विकीपीडिया)

1992 में बुरहानुद्दीन रब्बानी अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति बने. उन्होंने ‘मिनिस्ट्री फॉर प्रॉपगेशन ऑफ़ वर्च्यू एंड प्रिवेंशन ऑफ़ वाइस’ बनाया. इस मंत्रालय का काम देश में इस्लामी नियमों का पालन कराना था. 1996 में तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया. रब्बानी और उनके साथियों को भागकर जाना पड़ा. 2011 में रब्बानी की हत्या हो गई. उस कहानी का एक सिरा पाकिस्तान में रह रहे अफ़ग़ान शरणार्थियों से जुड़ता है. वो कहानी कभी और सुनाएंगे. आज हमारा फ़ोकस मॉरैलिटी पुलिस पर रहेगा.

Burhanuddin Rabbani
बुरहानुद्दीन रब्बानी (फोटो-विकीपीडिया)

तालिबान ने भी उस मिनस्ट्री को बरकरार रखा, जो अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामी नियम-क़ानून देखती थी. हालांकि, उसने अपने हिसाब से कई फेरबदल किए. जैसे,
- इस मंत्रालय को शरिया क़ानून का पालन कराने की ज़िम्मेदारी दी गई.
- इसी मंत्रालय के तहत पुलिस का ऐसा विंग बनाया गया जो नज़र रखती थी कि कौन पब्लिक प्लेसेज़ में इस्लामी क़ानूनों का पालन कर रहा है, कौन नहीं. इसी को अफ़ग़ानिस्तान की मॉरैलिटी पुलिस के नाम से जाना जाता है.

तालिबान ने शरिया क़ानून की व्याख्या अपने हिसाब से की थी. दुनिया के कई विद्वानों ने इस व्याख्या को ख़ारिज किया. मगर इससे तालिबान को कोई फर्क नहीं पड़ा. फिर आया 2001 का साल. 9/11 के हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में वॉर ऑन टेरर शुरू किया. दो महीनों के अंदर तालिबान सत्ता से बाहर हो चुका था.

तालिबान के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में चुनाव कराए गए. अमेरिका के समर्थन वाली सरकार बनी. नई सरकार ने ‘मिनिस्ट्री फॉर प्रॉपगेशन ऑफ़ वर्च्यू एंड प्रिवेंशन ऑफ़ वाइस’ को भंग कर दिया. तालिबान के बनाए क़ानून भी हटाए गए. महिलाओं को काम करने की आज़ादी मिली. बाकी लोगों को भी बुनियादी अधिकार दिए गए. इस बीच अमेरिका और उसके सहयोगी देश तालिबान को जड़ से खत्म करने की कोशिश करते रहे. जब उन्हें लगा कि कोशिश का कोई हल नहीं निकलेगा, तब उन्होंने समझौता कर लिया. उन्होंने अगस्त 2021 तक अफ़ग़ानिस्तान को खाली करने का फ़ैसला किया. जब तक आख़िरी अमेरिकी सैनिक निकलता, उससे पहले ही तालिबान ने काबुल को हथिया लिया था. ये तालिबान का दूसरा संस्करण था, तालिबान 2.0.

तालिबान 2.0 ने इस्लामी क़ानूनों का पालन कराने वाली मिनिस्ट्री को फिर से बहाल कर दिया. मगर ये भरोसा दिलाया कि इस बार महिलाओं को आज़ादी रहेगी. उनको स्कूल-कॉलेज जाने या काम करने से नहीं रोका जाएगा. लोगों को लगा, तालिबान बदल गया है. मगर धीरे-धीरे उसने अपना असली रंग दिखाना शुरू किया. पहले की ही तरह पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं. इसकी सबसे ज़्यादा मार महिलाओं पर पड़ी है. 
- महिलाओं के लिए सार्वजनिक जगहों पर बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया.
- 72 किलोमीटर से ज़्यादा का सफर अकेले तय करने पर रोक लगा दी गई.
- महिलाओं को जिम और पार्क में जाने पर पाबंदी लगाई गई.
- छठी क्लास के बाद बच्चियों के लिए स्कूल बंद कर दिया गया.
- सावर्जनिक स्थानों पर संगीत सुनने या बजाने पर रोक लगाई गई. तालिबानी अधिकारियों ने कई जगहों पर म्युजिक कैसेट्स भी जलाए.
- जून 2023 में हेयर एंड ब्यूटी सैलून को ग़ैर-इस्लामी घोषित कर बंद करने का आदेश जारी किया.

इन प्रतिबंधों को सुनिश्चित कराने के लिए तालिबान ने मॉरैलिटी पुलिस का इस्तेमाल किया. उन्हें कथित तौर पर ग़ैर-इस्लामी गतिविधियों में शामिल लोगों को डांटने, मारने-पीटने, गिरफ़्तार करने और सज़ा देने का हक़ दिया गया.

Taliban Morality Police
तालिबान मॉरैलिटी पुलिस (फोटो- एपी)

09 जुलाई को UN असिस्टेंस मिशन इन अफ़ग़ानिस्तान (UNAMA) ने इसी मॉरेलिटी पुलिस पर रिपोर्ट जारी की है. क्या कहती है रिपोर्ट? पॉइंट्स में जानते हैं,
- मॉरैलिटी पुलिस की वजह से अफ़ग़ानिस्तान में डर का माहौल है. खास तौर पर महिलाओं के लिए.
- मॉरैलिटी पुलिस अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा भी करती है. अगस्त 2021 से मार्च 2024 के बीच हिंसा के कम से कम एक हज़ार मामले दर्ज किए गए हैं.
- सैलूनों को दाढ़ी काटने से मना किया गया है. पश्चिमी शैली का हेयरस्टाइल ना रखने के लिए भी कहा है. - सावर्जनिक स्थानों पर संगीत सुनने और हुक्का पीने पर भी गिरफ्तारियां की हैं. रिपोर्ट में एक उदाहरण भी दिया गया है. 
अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी हिस्से में फरयाब प्रांत पड़ता है. वहां फरयाब यूनिवर्सिटी है. 10 सितंबर 2023 को यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले एक छात्र की सगाई थी. उसने हॉस्टल में अपने दोस्तों को सगाई की पार्टी दी. इस दौरान गाने बजाए गए. जिसके बाद मॉरैलिटी पुलिस ने 29 छात्रों की को अरेस्ट किया. कुछ को थप्पड़ मारे और कुछ के तो सिर भी मुंडवाए गए.
- मॉरैलिटी पुलिस सावर्जनिक स्थलों पर महिलाओं के कपड़े चेक करती है. 
- महिलाओं को अकेले सावर्जनिक स्थानों में जाने से रोका जाता है. मॉरैलिटी पुलिस महिलाओं और उनके साथ आए पुरुषों के सरकारी दस्तावेज भी चेक करती है.

तालिबान क्या बोला?

तालिबान का कहना है कि रिपोर्ट में की गई आलोचना बेबुनियाद है. रिपोर्ट में मूल्यांकन पश्चिमी दृष्टिकोण से हुआ है. हम इस्लामी मूल्यों के मुताबिक ही काम करते हैं. अगस्त 2021 में सत्ता में आने के बाद से हमने 9 हज़ार से ज़्यादा महिलाओं को वर्क परमिट दिए हैं. ये तो हुई अफ़ग़ानिस्तान की कहानी. लेकिन एक सवाल उठता है कि क्या सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान में इस तरह की मॉरैलिटी पुलिस है. जवाब है नहीं. कुछ और मुस्लिम देशों में भी इसी किस्म की व्यवस्था है. उनके बारे में भी ब्रीफ़ में जान लेते हैं,
 

> सऊदी अरब 

सऊदी अरब में मॉरेलिटी पुलिस की शुरुआत 1926 में हुई थी. शुरुआत में ये पुलिस सऊदी अरब में महिलाओं की ड्रेस चेक करती थी. बाद में नमाज़ की पाबंदी करवाने लगी. फिर 2016 में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इसकी शक्तियों को कम करना शुरू किया. आज सऊदी अरब में इसकी बहुत कम ही हैसियत है. वो नेशनल पुलिस को रिपोर्ट करती है.

> इंडोनेशिया
केवल आचेह प्रांत में इसकी पहुंच है. वो भी समय के साथ कम हो गई है. 2001 में इस प्रांत में शरिया के कुछ नियम लागू किए गए थे. उसी के पालन के लिए ये पुलिस बनाई गई थी. आचेह में इसको विलायतुल हिस्बाह के नाम से जाना जाता है. ये महिलाओं को ढीले-ढाले कपड़े और सिर पर स्कार्फ़ पहनने को कहती है. उनको किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है. लेकिन वो ज़ुर्माना लगा सकती है और क़ानून के उल्लंघन पर बेंत भी लगा सकती है. 

> नाइजीरिया
मॉरेलिटी पुलिस को वहां हिस्बाह कोर नाम से जानी जाती है. 1999 में बनी थी. केवल नाइजीरिया के उत्तरी भाग में एक्टिव है. जहां मुस्लिम आबादी ज़्यादा है. ईसाई इलाकों में ये काम नहीं करती. इसका काम भी दूसरे देशों की तरह इस्लामिक कानूनों का पालन करवाना है. शक्तियां बेहद कम हैं.

> ईरान 
मॉरेलिटी पुलिस को ईरान में गश्त-ए-इरशाद के नाम से भी जाना जाता है. इसकी स्थापना 1979 में हुई इस्लामी क्रांति के बाद की गई थी. इस क्रांति के तहत, रेज़ा शाह पहलवी को हटाकर इस्लामी गणतंत्र की स्थापना की गई थी. नई सरकार ने कामकाजी महिलाओं को इस्लामी नियमों के हिसाब से ड्रेस पहनने की ताकीद की. विरोध हुआ तो सरकार ने पश्चिम का एजेंडा बताकर ख़ारिज कर दिया. कहा, ऐसे लोग इस्लामी क्रान्ति का माहौल बिगाड़ना चाहते हैं. फिर कुछ आदेश जारी हुए. मसलन,
- 1980 में सरकारी और निजी दफ़्तरों में बुर्के और हिजाब को अनिवार्य कर दिया गया.
- अप्रैल 1983 में ईरान में सभी महिलाओं के लिए पर्दा अनिवार्य कर दिया गया. 7 साल से ऊपर की लड़कियों और महिलाओं के लिए हिजाब कम्पलसरी बना दिया गया.
ईरान के कानून में ये दर्ज़ नहीं है कि हिजाब पहनने का सही तरीका क्या है. फिर ये तय कौन करता है? ये तय करने का काम धार्मिक पुलिस का है. हिजाब वाला नियम फ़ॉलो कराने के लिए ही मॉरेलिटी पुलिस बनाई गई थी. इसको पहले इस्लामिक रेवोल्यूशन कमिटी के नाम से जाना जाता था.

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