अप्रैल-मई का महीना. देश का दूसरा कोना. पुणे. मैं उन दिनों घर से फ़रार था. कुछ दोस्तों के किराए के कमरे में ज़बरदस्ती एक कोने पर कब्ज़ा जमाकर रात निकालता था. सुबह कहीं निकल पड़ता था. पुणे के एक प्रोडक्शन हाउस में इंटर्नशिप कर रहा था. बिना पैसे वाली. बेदिमाग लड़कों की संगत में था. सबसे अच्छी बात यही थी. वो सब कुछ करते थे, जो उन्हें लगता था कि करना चाहिये. और यहीं से मुझमें भी ऐसा ही कुछ करने की बड़ी हिम्मत आई. फ्राइडे, सैटरडे, संडे अच्छा बीतता था. पुणे के सबसे अच्छे कैफ़े में शूट करना होता था. मुफ़्त की बियर और भरपेट खाना अलग से. साथ ही बहुत कुछ नया देखने को मिलता था. ऐसे लोग, ऐसा माहौल जो अब तक सिर्फ़ फ़िल्मों में दिखता था. वो भी अंग्रेजी फ़िल्मों में. इन तीन दिनों शूट करने में मैं आगे रहता था. खाने का जुगाड़ हो जाता था. पैसे बच जाते थे. बढ़िया और एकदम बढ़िया म्यूज़िक की सोहबत में रहने को मिलता था, सो अलग. घर आकर वहां परफॉर्म करने वाले सभी आर्टिस्ट्स के बारे में खोज खबर लेता था.
एक शाम, ऐसे लड़के जो शूट से दूर भागते थे, आपस में भिड़ रहे थे कि आज शूट पर वो जायेंगे. मैं सब कुछ दूर से ही देख रहा था. उनके बीच इस झगड़े की वजह थी उस शाम आने वाले आर्टिस्ट्स. क्या नाम था, समझ में नहीं आया. मैंने कैमरा उठाया और निकल लिया. ये तो पक्का हो गया था कि शूट करने वालों में एक मैं होने वाला था. बाकी कौन आता है, मुझसे कोई मतलब नहीं.
वो शाम अलग थी. हाई स्पिरिट्स कैफ़े इस कदर कभी नहीं भरा था. लोग चीख रहे थे. एक लड़की थी. चमकती-लुपलुपाती लाइटों में उसके देह की आउटलाइन ही दिख रही थी. बस. गा रही थी. नाच रही थी. जी रही थी. लोगबाग़ पागल हो रहे थे. कुछ दो-सवा दो घंटे में जो माहौल तैयार हुआ, वो मेरे लिए हिला के रख देने वाला माहौल था. कोई भी उस लड़की को रुकते नहीं देखना चाह रहा था. इवेंट ढलान की ओर चला, लाइट्स कुछ खुलीं. उसका चेहरा मैं देख सका. दूर से. सब कुछ कवर करते हुए आगे पहुंचा तो करीब से देखा. बला की खूबसूरत. ज़्यादा देर तक उसे देखने की हिम्मत न हुई. कार्यक्रम खतम करने के बाद वो अपने फैंस से घिरी हुई थी. उनके साथ फोटुएं और बातचीत चल रही थी. जाते वक़्त मैंने बड़ी हिम्मत करके उससे कहा, "You owned this shit tonight!" उसने हाथ मिलाया, और बोली, "This is love!"
वापस आकर एक बात अभी भी अटकी हुई थी. ऐसा लग रहा था इसे कहीं देखा है. जहां इंटर्नशिप कर रहा था, वहां से मालूम चला कि पिछली रात जो प्रस्तुति हुई वो थी शाइर एंड फंक की. दो लोगों का ग्रुप. एक शाइर दूजा फंक. यूट्यूब किया तो मालूम चला ये वही लड़की है जो देवरिस्ट्स होस्ट करती है. वही लड़की जिसने पीयूष मिश्रा को लंडन में रहने वाले जमाईकन ओरिजिन के रैपर अकाला से मिलवाया. और वहां से निकला
"अफ़सर मारे छींकेपुलिस को हो गयी खांसीटैक्स भरे जो रेगुलरली उसको हो गयी फांसी2-जी 3-जी एलपीजी तो होते जाए महंगेऊपरवाली सीट पे बैठे अंधे काणे भैंगेखतम तभी ये होगी क्या ये जर्नी अंधी बहरीके बन जायेगा प्राइम मिनिस्टर टॉम डिकी या हैरी"
मगर कसर अभी भी थी. शाइर को कहीं और ही देखा था. हां! याद आया! धोबी घाट. आमिर खान के साथ. मोनिका डोगरा. फिल्म में शाई. वो जिसके साथ एक रात सोने के बाद अरुण कहता है कि वो रिलेशनशिप वाला नहीं है. फिर शाई मिलती है मुन्ना से. धोबी घाट में रहने वाला मुन्ना. मुन्ना जो फ़िल्म ऐक्टर बनना चाहता है. जो शाई के घर उसके कपड़े पहुंचाता है. जिसका पोर्टफ़ोलियो शाई शूट करने को तैयार हो जाती है. मुन्ना जो दिन में कपड़े ढोता है तो रात को चूहे मारता है. और वही चूहे मारने वाला मुन्ना शाई से प्यार करने लगता है. मगर हाय पैसा! हाय क्लास! हाय दिमाग! मुन्ना कभी कुछ कह नहीं पाता. बस भाग जाता है. और एक दिन खुद को शाई की गाड़ी के पीछे भागता पाता है. शाई को अरुण का पता देने के लिए.
मोनिका डोगरा. शाइर. जो कहती है
"हम सभी तारों की धूल से बने हैंबेशक हमें चमकना ही है
शांत हो जाओ,तुम जो करना चाहते हो, मैं उस पर वार नहीं करूंगीउससे लड़ो मतजो तुम्हारी समझ से बाहर हैमुझे डर लग रहा हैशायद तुमसे भी ज़्यादामेरे कांपते हाथों को देखो
मगर फिर भी हम तारों की धूल से बने हैंबेशक हमें चमकते रहना है"
https://www.youtube.com/watch?v=_h0AyXlxHVM
मोनिका डोगरा. कश्मीरी पंडित मां-बाप की बेटी. बाल्टिमोर में पैदा हुई. कहती है कि जब आपका शरीर बढ़ता है तो आपके शरीर पर स्ट्रेच मार्क्स बन जाते हैं. वैसे ही उसका संगीत है. उसके स्ट्रेच मार्क्स. बस ये वाले इमोशनल स्ट्रेच मार्क्स हैं. मोनिका न्यू यॉर्क में शो कर रही थीं. जिसे पॉपुलर कल्चर में इंडी म्यूज़िक या अंडरग्राउंड म्यूज़िक कहते हैं. वो गाने लिख रही थीं. म्यूज़िक पर काम कर रही थीं. रोलिंग स्टोन के साथ जुड़ी हुई थीं. और इसी के साथ बारटेंडिंग कर रही थीं. और इन्हीं सबके बीच ऐसा वक़्त भी आता जब लोग उनके म्यूज़िक की तारीफ़ करते. उनपर प्यार उड़ेल देते. और एक वक़्त ऐसा भी जब वो अपनी एल्बम पर काम कर रही थी और पैसे खतम होने वाले थे. दाल-चावल पर एक महीना गुज़ारा. और यही सब शाइर बन चुकी मोनिका को जिलाए रख रहा था. हालांकि मोनिका का कहना है कि उनमें और शाइर में रत्ती भर का फ़र्क नहीं है.
कहती है कि लोग हमेशा मोनिका और शाइर के बीच फ़र्क पूछते हैं. लोगों को लगता है कि मेनस्ट्रीम और अंडरग्राउंड म्यूज़िक के बीच कोई फ़र्क होता है. उन्हें ऐसा लगता है कि लोग समझते हैं अंडरग्राउंड म्यूज़िक छोटा और कम पॉपुलर म्यूज़िक होता है जबकि मेनस्ट्रीम का मतलब है कि वो सितारों से जड़ा हुआ होगा. लेकिन शाइर एंड फंक के साथ ऐसा नहीं है. वो ये बताना चाहती है कि अंडरग्राउंड और मेनस्ट्रीम के बीच की ये बनाई गयी लाइन मिटाई जा सकती है. वो चाहती है कि अंडरग्राउंड भी अपना ये ठप्पा त्याग मेनस्ट्रीम का हिस्सा बन जाये.
मोनिका डोगरा. जिसे टॉक शोज़ देखने में बहुत मज़ा आता है. क्यूंकि ऐसे शोज़ किसी की पर्सनालिटी को सबके सामने लेकर आते हैं. उसे लेट नाईट विद जिमी फ़ैलन पसंद है. एलेन पसंद है. मगर कॉफ़ी विद करन नहीं. वो कहती है कि करन जौहर को और उस शो वालों को ये समझना चाहिए कि उनके ऊपर ये ज़िम्मेदारी है कि वो ऐसे लोगों को भी पब्लिक में लायें जो सचमुच डिज़र्व करते हैं. उस शो पर वही दस चेहरे दिखाई पड़ते हैं. जिन्हें हर कोई जानता है.
शाइर. मोनिका डोगरा. जो स्टेज पर जाते ही कुछ और बन जाती है. जो जितना गाती है और नाचती भी है. जिसने ऐसी गिग्स की हैं जहां उसे स्टेज से पीछे जाना पड़ा है. उल्टियां करके वापस आकर परफॉर्म किया है. कई बार परफॉर्म करते हुए बेहोशी की हालत में पहुंची है. मगर उसे इसका कोई मलाल नहीं. कहती है कि 'मुझे नाचना होता है. इसलिए नाचती हूं.' कोई डांस ट्रेनिंग नहीं थी इसलिए परेशानी उठानी पड़ी. अब सब कुछ ठीक है. ट्रेनिंग ने अपना काम दिखाया. वो जो कहती है कि अगर वो चाहे तो अपने पिछले काम के दम पर आगे काम पाती रहे और करती रहे. लेकिन वो चाहती है कि हर बार कुछ नया करे. मोनिका, विशाल ददलानी के साथ कहती है कि "दूरियां भी हैं ज़रूरी" (ब्रेक के बाद) जो शाइर बनती है तो कहती है "कितना भी वक़्त और कितनी भी दूरी, मुझे मेरी जड़ों से दूर नहीं रख सकते हैं"
https://www.youtube.com/watch?v=jB-VVOqwoNU