ऐसा वाहियात राष्ट्रपति जिसे 101 बार फांसी की सजा मिली
राष्ट्रपति जिसके भतीजे ने बीच चौराहे पर उसे मरवा दिया और फिर खुद देश को लूट रहा.
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स्पैनिश गिनी के पहले राष्ट्रपति फ्रैंसिस्को उन्गेमा. (तस्वीर: एएफपी)
कहानी शुरू हुई एक खेत से. फसल कट चुकी थी. पौधों की ज़िद्दी जड़ें अब भी मिट्टी में जमी थीं. किसान ने सोचा, एक-एक ठूंठ कौन खोदे. समूचे में आग लगा देता हूं. वो आग लगाकर चला गया. इस आग के चलते ऐसी आपदा आई कि चश्मदीद बोले, हमें लगा किसी ने ऐटम बम फोड़ दिया है. एक खेत में लगी आग से ऐसा कहर बरपा कि पूरा शहर बर्बाद हो गया. कहां हुई ये दुर्घटना? खेत में लगी आग इतनी विनाशकारी कैसे हो गई? क्या है ये पूरा मामला, विस्तार से बताते हैं.शुरुआत से शुरू करते हैं
बहुत पुरानी बात है. तब की, जब भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था. यूरोपीय देश बड़ी शिद्दत से भारत पहुंचने का समुद्री रास्ता खोज रहे थे. इसमें पहली कामयाबी मिलने वाली थी, पुर्तगाल के जहाज़ी वास्को डि गामा को. मई 1498 में.
मगर हम जो क़िस्सा आपको बता रहे हैं, वो इसके भी पहले का है. ठीक-ठीक कहें, तो 1472 का. वास्को को भारत पहुंचने में अभी 26 साल बाकी थे. उसी के मुल्क पुर्तगाल का एक आदमी भारत खोजने निकला हुआ था. इस नाविक का नाम था, फ़ेरनॉन्द पॉ. फ़ेरनॉन्द को भारत तो नहीं मिला, मगर अटलांटिक ओशन से होकर गुज़रते हुए उसे एक ख़ूबसूरत टापू दिख गया. इतना सुंदर कि फ़ेरनॉन्द ने उसे नाम दिया- फोरमोसा. पुर्तगाली भाषा में फोरमोसा का अर्थ होता है- हद ख़ूबसूरत. इस टापू को खोजने वाला पहला यूरोपीय था फ़ेरनॉन्द. उसकी डिस्कवरी के दो बरस बाद, यानी 1474 में पुर्तगालियों ने इस द्वीप को अपनी कॉलोनी बना लिया. द्वीप खोजने वाले के नाम पर ही आइलैंड का नाम रखा गया- फ़ेरनॉन्द पॉ.
इसी द्वीप को आज हम 'आइलैंड ऑफ बिओको' के नाम से जानते हैं. कहां पड़ता है ये द्वीप? आप मानचित्र पर इसकी पोज़िशन देखिए. ये द्वीप पश्चिमी अफ़्रीका के समुद्र तट के पास पड़ता है. मेनलैंड से तकरीबन 32 किलोमीटर दूर. ये द्वीप जिस देश का हिस्सा है, उसका नाम है- एक्वाटोरियल गिनी. साउथ और नॉर्थ अटलांटिक ओशन के पास बसा ये छोटा सा देश एक मेनलैंड और कुछ छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर बना है. हमने 'आइलैंड ऑफ बिओको' का नाम लिया. वहीं पर है देश की राजधानी- मलाबो. एक्वाटोरियल गिनी के उत्तर में पड़ता है, कैमरून. पूरब में है, रिपब्लिक ऑफ़ कॉन्गो. और दक्षिण में है, गबॉन.
फ़ेरनॉन्द पॉ ने केवल 'बिओको आइलैंड' को नहीं खोजा. समूचे एक्वाटोरियल गिनी की भी डिस्कवरी कर ली. यहां पुर्तगाल अपना कारोबार करने लगा. उसे यहां कई विशेषाधिकार मिल गए. ये स्पेशल राइट्स स्थानीय आबादी ने नहीं दिए थे. ये अधिकार उसे मिला था एक बंदरबांट में.
ये क्या मामला था?
ये बात है, 1494 की. उस वक़्त यूरोप में दो बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियां थीं- पुर्तगाल और स्पेन. दोनों ज़्यादा-से-ज़्यादा इलाके खोजकर उन्हें ग़ुलाम बनाना चाहते थे. इस होड़ में युद्ध की नौबत आती. इससे बचने के लिए दोनों ने 1494 में एक समझौता किया. कैसे हुआ समझौता? दोनों देशों की सरकारों ने एक मानचित्र सामने रखा. इसपर ब्राजील को क्रॉस करती हुई उत्तर से दक्षिण की ओर जाती एक लंबवत रेखा खींची. तय हुआ कि इस रेखा के पूरब में पड़ने वाले सारे इलाके पुर्तगाल के होंगे. रेखा के पश्चिम में बसे इलाकों पर स्पेन का कंट्रोल होगा. ये समझौता कहलाता है- ट्रीटी ऑफ़ टॉरडेसियस.

ट्रीटी ऑफ़ टॉरडेसियस
अब अगर आप मैप पर देखें, तो ब्राजील के समुद्री तट के पार पूरब की दिशा में पड़ता है, एक्वाटोरियल गिनी. बंटवारे के मुताबिक, ये इलाका पुर्तगाली कब्ज़े में आ गया. ये व्यवस्था 18वीं सदी के एक लंबे हिस्से तक चली. फिर आया, 1777 का साल. इस बरस फिर से स्पेन और पुर्तगाल में एक समझौता हुआ. स्पेन को अफ़्रीका चाहिए था. और पुर्तगाल को ब्राजील में घुसना था. ऐसे में दोनों देशों के बीच एक सौदेबाज़ी हुई. पुर्तगाल ने एक्वाटोरियल गिनी के अपने इलाके स्पेन के सुपुर्द कर दिए. बदले में स्पेन ने ब्राजील में घुसने का पुर्तगाली दावा स्वीकार कर लिया. अब ये देश कहलाने लगा, स्पैनिश गिनी.
स्पैनिश गिनी को इस ग़ुलामी से आज़ादी मिली 1968 में. आज़ाद होने के बाद इसने अपना नाम रखा- रिपब्लिक ऑफ़ एक्वाटोरियल गिनी. इसके पहले राष्ट्रपति बने- फ्रैंसिस्को उन्गेमा.
आमतौर पर आज़ादी के बाद देशों का मुक़द्दर सुधरता है. सदियों की ग़ुलामी के बाद मिली आज़ादी मुल्क के लिए नई उम्मीद लाती है. मगर एक्वाटोरियल गिनी के साथ ऐसा नहीं हुआ. आज़ादी ने उसकी ग़त बना दी. इस दुर्दशा की वजह था, राष्ट्रपति फ्रैंसिस्को उन्गेमा. इस आदमी का कार्यकाल इतना क्रूर था कि लोग इसे अफ़्रीका का हिटलर कहते हैं.
क्या कहानी है राष्ट्रपति फ्रैंसिस्को के इस कुख़्यात उपनाम की?
फ्रैंसिस्को एक वीभत्स और सनकी इंसान था. उसका कार्यकाल जनता के लिए नरक भोगने जैसा था. फ्रैंसिस्को ने क़ानून बनाया कि उसकी या उसकी सरकार की आलोचना करने या अपमान करने वालों को सज़ा-ए-मौत दी जाएगी. फ्रैंसिस्को ने देश में धार्मिक गतिविधियां बैन कर दीं. कहा, एक्वाटोरियल गिनी में एक ही ईश्वर है. और उसका नाम है, फ्रैंसिस्को उन्गेमा.

फ्रैंसिस्को उन्गेमा को 101 बार फांसी से लटकाए जाने की सज़ा मिली.. (तस्वीर: एएफपी)
फ्रैंसिस्को सिविल सर्विस की परीक्षा में तीन बार फेल हुआ था. इसके बाद से ही उसे अपने से ज़्यादा पढ़े-लिखे लोग बर्दाश्त नहीं होते थे. राष्ट्रपति बनने के बाद उसने देश की शिक्षा व्यवस्था ख़त्म कर दी. पुस्तकालय बैन कर दिए. शिक्षकों की हत्या करवा दी. इन्टेलेक्चुअल शब्द को ही बैन कर दिया. उसके कार्यकाल में लोगों का चश्मा पहनना भी बैन था. क्योंकि फ्रैंसिस्को के मुताबिक, चश्मा पढ़े-लिखे, बौद्धिक लोगों की निशानी थी. इस दौर में चश्मा पहनने का मतलब था, मारा जाना. फ्रैंसिस्को की सनक इतने पर ही नहीं ख़त्म हुई. उसने देश में अंग्रेज़ी दवाओं को बैन कर दिया. देश की सारी नावें नष्ट करवा दीं. मछली पकड़ना बैन कर दिया. न्यूज़पेपर पर प्रतिबंध लगा दिया. चर्च बैन, ईसाई परंपरा वाले नाम बैन. यहां तक कि उसने जूतों पर भी बैन लगा दिया.
इस कार्यकाल में क़ानून बनाने से लेकर किसी केस का फ़ैसला सुनाने तक, सारे अधिकार फ्रैंसिस्को के पास थे. उसने देश की सारी राजनैतिक पार्टियों का मर्जर कर दिया और ख़ुद को बना लिया- प्रेज़िडेंट फॉर लाइफ़. उस वक़्त देश की आबादी थी करीब सवा दो लाख. इनमें से करीब 80 हज़ार लोगों की हत्या करवाई फ्रैंसिस्को ने. बचे हुए लोगों में से करीब 45 पर्सेंट आबादी उसके जुल्मों से बचने के लिए देश छोड़कर भाग गई.
फ्रैंसिस्को की सनक से जनता को मुक्ति मिली, 1979 में
इस मुक्ति की भी राह निकली हत्याओं से. ये हत्याएं फ्रैंसिस्को के अपने परिवार में हुई थीं. सनकी फ्रैंसिस्को इनसे असुरक्षा महसूस कर रहा था. इसीलिए उसने ही अपने परिवार के कई लोगों को मरवा डाला. इस वजह से उसकी इनर सर्किल के लोग ख़ौफ़ में थे. उन्हें लगा कि जब तक फ्रैंसिस्को ज़िंदा है, तब तक वो सुरक्षित नहीं हैं. इसीलिए इस इनर सर्किल ने मिलकर रची एक तख़्तापलट की साज़िश.

1979 में टियडोरो ओबियांग उन्गेमा ने सत्ता हथिया ली. (तस्वीर: एपी)
इस कू का सरगना था, फ्रैंसिस्को का अपना भतीजा- टियडोरो ओबियांग उन्गेमा. फ्रैंसिस्को ने परिवार के जिन लोगों को मरवाया था, उनमें टियडोरो का भाई भी था. टियडोरो ख़ुद आर्म्ड फोर्सेज़ का वाइस प्रेज़िडेंट था. अगस्त 1979 में उसने सेना को अपनी तरफ़ मिलाकर तख़्तापलट कर दिया. फ्रैंसिस्को पर मुक़दमा चला. उसे 101 बार फांसी से लटकाए जाने की सज़ा मिली.
ये सज़ा देने के लिए मोरक्कन आर्मी के एक स्क्वैड को हायर किया गया. क्यों? क्योंकि टियडोरो समेत एक्वाटोरियल गिनी का बाकी कोई इंसान अपने हाथ से फ्रैंसिस्को की हत्या नहीं करना चाहता था. इस हिचक की वजह थी, अंधविश्वास. लोगों को लगता था, फ्रैंसिस्को के पास कोई सुपरनैचुरल शक्ति है. उसे अपने हाथों से मारने वाले के साथ कुछ बुरा होगा. 29 सितंबर, 1979 की शाम तकरीबन छह बजे एक फायरिंग स्क्वैड के आगे खड़ा करके फ्रैंसिस्को को गोलियों से भून दिया गया.
अब देश की सत्ता संभाली फ्रैंसिस्को के भतीजे, टियडोरो ओबियांग उन्गेमा ने. क्या इसके बाद एक्वाटोरियल गिनी की हालत सुधरी? जवाब है, नहीं. टियडोरो भी तानाशाह निकला. फ्रैंसिस्को से थोड़ा कम, मगर पर्याप्त क्रूर तानाशाह.
टियडोरो 1979 से ही सत्ता में बना हुआ है. दुनिया में सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति बनने का रिकॉर्ड बनाया है उसने. इतने लंबे कार्यकाल में टियडोरो का अपना रेकॉर्ड कैसा है? इसको एक मिसाल से समझिए. 2019 में टियडोरो की सत्ता के 40 बरस पूरे हुए. इसपर HRW, यानी ह्युमन राइट्स वॉच ने एक लेख लिखा. इसका शीर्षक था-
दी एनिवर्सरी दैट शुड नॉट बी. मतलब, वो वर्षगांठ जो होनी नहीं चाहिए थी.HRW ने क्यों दिया ये शीर्षक?
इसकी वजह है, टियडोरो की क्रूरताएं और उसका करप्शन. टियडोरो के शासन में राजनैतिक विरोध की कोई जगह नहीं. विरोध करने पर या तो आप जेल में सड़ाए जाएंगे. या आपको मार डाला जाएगा. एक दफ़ा किसी आर्टिस्ट ने टियडोरो का कार्टून बनाया. उसे जेल हो गई. एक टीचर ने अपने एक दोस्त को वॉइसमेल भेजा. इसमें सरकारी करप्शन पर नाराज़गी जताई गई थी. बस इतनी सी बात पर टीचर को बिना कोई केस दर्ज किए सात महीने जेल में सड़ाया गया.
देश की आर्थिक स्थिति कैसी है?
आज की तारीख़ में एक्वाटोरियल गिनी को 'रिसोर्स कर्स' की क्लासिक मिसाल माना जाता है. ये रिसोर्स कर्स क्या है? इसका मतलब होता है, प्राकृतिक संसाधनों में अथाह रईस. मगर आबादी गरीब और वंचित. कौन सी प्राकृतिक दौलत है एक्वाटोरियल गिनी के पास? उसके पास है तेल का बड़ा भंडार. इस भंडार की खोज हुई 1995 में. इसी भंडार की बदौलत ये देश अफ्रीका का चौथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. तेल भंडार के अलावा यहां सोना, यूरेनियम, हीरा जैसे खनिजों का भी बड़ा रिज़र्व है. कुछ बरस पहले यहां गैस का भी बड़ा भंडार मिला है.
इस क़ुदरती दौलत के चलते एक्वाटोरियल गिनी पर कैपिटा इनकम के मामले में अफ्रीका के सबसे अमीर देशों में है. मगर ये आंकड़े कागज़ी हैं. देश की मौजूदा आबादी है तकरीबन 13 लाख. इसका ज़्यादातर हिस्सा घनघोर गरीबी में जी रहा है. स्कूल जाने की उम्र वाले आधे से ज़्यादा बच्चे स्कूलों से बाहर हैं. आधी से अधिक आबादी को पीने का साफ़ पानी मयस्सर नहीं.
आबादी बदहाल है, तो खनिज भंडार से आ रही दौलत जा कहां रही है?
वो जा रही है, टियडोरो और उसके परिवार के पास. इल्ज़ाम है कि टियडोरो फैमिली ने देश को प्राइवेट कंपनी बना लिया है. यहां के तमाम संसाधन बस उसके और उसके सहयोगियों पर ख़र्च हो रहे हैं. टियडोरो का सबसे बड़ा बेटा है, टियोडोरिन. पापा राष्ट्रपति हैं, बेटा उपराष्ट्रपति है. दोनों इतने करप्ट हैं कि पूछिए मत. इनकी अय्याशी इतनी लार्जर दैन लाइफ़ है कि विदेशी सरकारों की भी इसपर नज़र रहती है.

टियडोरो का सबसे बड़ा बेटा टियोडोरिन उपराष्ट्रपति है. (तस्वीर: एपी)
अभी कुछ साल पहले स्विट्ज़लैंड में एक मनी लाउंड्रिंग का केस चला था. इस केस में फ़ोकस पर थे, दो आलीशान पानी वाले जहाज़. इन दोनों जहाज़ों की कुल कीमत थी, करीब 1,800 करोड़ रुपये. किसके जहाज़ थे ये? टियोडोर फैमिली के. और ये दौलत कितनी है? एक्वाटोरियल गिनी अपने हेल्थ और एज़ुकेशन सेक्टर पर कुल मिलाकर जितना ख़र्च करता है, उतनी रकम.
2014 में अमेरिका ने भी टियोडोरिन को करप्शन का दोषी माना था. टियोडोरिन ने करप्शन के पैसों से कैलिफॉर्निया में एक आलीशान घर और एक जेट विमान खरीदा था. अमेरिका ने ये एसेट्स ज़ब्त कर लिए थे. जस्टिस डिपार्टमेंट ने अपनी जांच में कहा कि राष्ट्रपति के बेटे ने करप्शन करके 2,200 करोड़ रुपए से ज़्यादा की संपत्ति जमा कर ली है. विभाग ने अपनी रिपोर्ट में जो शब्द इस्तेमाल किए थे, वो सुनिए-
शेमलेसली लूटेड हिज़ ओन गवर्नमेंट. अपनी ही सरकार, अपनी ही देश को लूटकर अपनी अय्याशी के लिए रुपया इकट्ठा किया. जबकि इसके अपने हमवतन घनघोर गरीबी में जी रहे हैं.इसी तरह 2017 में फ्रांस की एक अदालत ने भी टियोडोरिन को सरकारी खजाने से चोरी करने का दोषी पाया था. इस रकम से फ्रांस में आलीशान महल और कारों का काफ़िला खरीदा गया था. कितने की चोरी थी ये? 900 करोड़ रुपए से ज़्यादा. ये तो टियडोरो फैमिली के करप्शन की कुछ मिसाल भर हैं. अगर करप्शन का पूरा कच्चा-चिट्ठा सुनाने लगें, तो अलग से एक सीरीज़ बनानी पड़ेगी.
इतना कुछ बता दिया आपको. लेकिन इसकी चर्चा हम आज क्यों कर रहे हैं? आपको याद है, एपिसोड की शुरुआत में हमने एक खेत का ज़िक्र किया था. एक किसान ने ठूंठ जलाने के लिए आग लगाई और इससे तबाही आ गई. ये मामला भी एक्वाटोरियल गिनी का ही है.
ये घटना है 7 मार्च की. एक्वाटोरियल गिनी में बाटा नाम का एक शहर है. ये इस देश का सबसे बड़ा शहर है. यहां एक मिलिटरी बेस है. इसके किनारे एक तरफ खेत हैं. उन्हीं खेतों में किसी किसान ने आग लगाई. वो आग फैलते-फैलते मिलिटरी बेस के कंपाउंड तक पहुंची. यहां एक गोदाम में सेना ने बड़ी मात्रा में विस्फ़ोटक जमा करके रखा था. इसमें हाई कैटगरी का डायनामाइट भी था. खेत में लगी आग इस विस्फ़ोटक तक पहुंची. इसी के चलते 7 मार्च की दोपहर तकरीबन दो बजे एक ज़बर्दस्त ब्लास्ट हुआ. फिर कई सीरियल ब्लास्ट हुए.
बाटा शहर की कुल आबादी 30 हज़ार से कुछ अधिक है. पूरे शहर में एक भी इमारत ऐसी नहीं, जो इस सीरियल ब्लास्ट से क्षतिग्रस्त न हुई हो. शहर में तीन अस्पताल हैं. धमाके में तीनों हॉस्पिटल ढह गए. शुरुआत में बताया गया कि करीब 30 लोगों की मौत हुई है. मगर अब मृतकों की संख्या 100 पार कर गई है. कई लोग अब भी मलबे में दबे हैं. घायलों की संख्या 600 से अधिक है. CNN ने इस धमाके के कुछ चश्मदीदों से बात की. उनका कहना है कि धमाके के बाद ऊपर की ओर सघन होता धुएं का बादल उठ रहा था. ऐसा लग रहा था मानो किसी ने ऐटम बम फोड़ दिया हो.

धमाके में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई है. (तस्वीर: एपी)
क्यों हुआ ये हादसा?
राष्ट्रपति टियडोरो ने इसके पीछे सेना द्वारा बरती गई लापरवाही को जिम्मेदार बताया है. उनका कहना है कि विस्फ़ोटक को स्टोर करने में लापरवाही बरती गई. विस्फ़ोटकों के इर्द-गिर्द कई और एक्स्प्लोज़िव उपकरण भी स्टोर करके रखे गए थे. इसी के चलते दुर्घटना का स्केल इतना ज़्यादा था.
लापरवाही हुई. मान लिया. लेकिन असल सवाल ये है कि मिलिटरी कैंप के भीतर इतना ख़तरनाक विस्फ़ोटक रखा ही क्यों गया था? वो भी इतनी बड़ी मात्रा में? इस तरह के विस्फ़ोटक आबादी वाले इलाकों से दूर किसी रिमोट लोकेशन पर रखे जाते हैं. वो भी बहुत एहतियात के साथ. शहर के बीचोबीच सघन आबादी वाले इलाके में इतना विस्फ़ोटक जमा करके रखने की क्या ज़रूरत थी? फिलहाल इस सवाल का राष्ट्रपति के पास कोई जवाब नहीं है. जबकि रक्षा मंत्रालय उन्हीं के बेटे के कंट्रोल में है.
सवाल अनसुलझे हैं और मृतकों की संख्या बढ़ रही है. राष्ट्रपति ने इंटरनैशनल कम्युनिटी से मदद मांगी है. कहा है, पूरा शहर और उसका मूलभूत ढांचा बर्बाद हो चुका है. इसे वापस खड़ा करने में एक्वाटोरियल गिनी की मदद करें. राष्ट्रपति ने कहा कि इस डैमेज से निपटने के लिए देश को भारी-भरकम राशि की ज़रूरत पड़ेगी. इसे अकेले वहन करना उनके बस की बात नहीं.
बताइए, इस अपील पर दुनिया को राष्ट्रपति और उनके परिवार की अय्याशी क्यों न याद आए? आपदा से निपटने के पैसे नहीं हैं. मगर करोड़ों रुपये के जहाज़, लक्ज़री कारों की फ़ौज, आलीशान महल ये सब खरीदने के पैसे हैं उनके पास.
ख़ैर, इन सवालों से परे जाकर इंटरनैशनल कम्युनिटी ने एक्वाटोरियल गिनी की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है. स्पेन समेत कई देशों ने यहां मानवीय सहायता भेजी है. उम्मीद है, देश के लाचार नागरिक इस मदद से कुछ सहारा पाएं. वो इस आपदा से तो फिर भी देर-सबेर उबर जाएंगे. मगर तानाशाही के चलते उनकी जो दुर्दशा होती आई है, उससे मुक्ति की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं दिखती.