2020 में अंतरिक्ष में जो बड़े कारनामे हुए, पीढ़ियां याद रखेंगी
2020 के आठ बड़े स्पेस मिशन
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स्पेस इंडस्ट्री में इस साल सबसे ज़्यादा हल्ला काटने वाले व्यक्ति रहे एलन मस्क. (विकिमीडिया)
साल 2020 में धरती पर भले ही बहुत कुछ रुक गया हो, लेकिन अंतरिक्ष में बहुत कुछ हुआ. चाहे वो मंगल ग्रह पर बस्ती बसाने की शुरुआत हो. चांद और ऐस्टेरॉइड्स के सैंपल्स पृथ्वी पर लाने वाले मिशन हों. या प्राइवेट कंपनियों के ह्यूमन स्पेस मिशन की शुरुआत हो. 2020 को स्पेस ऐक्सप्लोरेशन के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत कहा जा रहा है.
मंगल पर तीन बड़े मिशन
इस सौरमंडल में करोड़ों ग्रह हैं. अब तक इन ग्रहों में सिर्फ पृथ्वी ही ऐसा है, जहां फलता-फूलता जीवन नज़र आता है. क्या किसी और ग्रह पर भी जीवन है? क्या किसी ग्रह पर जाकर उसे रहने लायक बनाया जा सकता है? इन सवालों के जवाब हमें बाहर निकलकर ही मिलेंगे.मंगल हमारा पड़ोसी ग्रह है. सूरज से काफी दूर है इसलिए बहुत ठंडा है. लेकिन यहां पहले नदियां बहा करती थीं. पानी जीवन की संभावना की पहली निशानी है. इस संभावना को टटोलने के लिए टाइम टु टाइम मंगल पर कई मिशन भेजे जाते हैं. इस साल भी भेजे गए.

मंगल के दोनों ध्रुवों पर बर्फ जमी है. (विकिमीडिया)
मंगल पर जाने के लिए सही मुहूर्त देखना होता है. लगभग हर दो साल में एक ऐसा टाइम आता है, जब मंगल पृथ्वी के करीब से गुज़रता है. इस दौरान कोई मिशन लॉन्च करने से मंगल पर कम ईंधन और समय में पहुंचा जा सकता है. इस समय अवधि को लॉन्च विंडो कहते हैं. ये लॉन्च विंडो 2020 में जुलाई के महीने में थी. इस दौरान तीन देशों ने अपने मंगल मिशन लॉन्च किए. UAE, चीन और अमेरिका.
तीनों मार्स मिशन रोबॉटिक स्पेसक्राफ्ट पर आधारित हैं. यानी किसी ने कोई इंसान मंगल पर नहीं भेजा. सिर्फ मशीनें गई हैं. इनमें साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट्स लगे हैं. इनसे मंगल को लेकर हमारी समझ में इज़ाफा होगा. एक-एक करके इन तीनों मिशन के बारे में जान लेते हैं.
1. सबसे पहले 19 जुलाई को संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने अपना मिशन होप लॉन्च किया. ये न सिर्फ UAE का बल्कि पूरे अरब देशों से जाने वाला पहला मंगल मिशन है. ये एक ऑर्बिटर मिशन है. यानी ये मंगल ग्रह की परिक्रमा करेगा. वहां के वातावरण से जानकारी इकट्ठी करेगा. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य है मार्स के ऐट्मॉस्फियर को स्टडी करना. इससे वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद मिलेगी कि मंगल का वायुमंडल अंतरिक्ष में क्यों बहा जा रहा है.

संयुक्त अरब अमीरात का ऑर्बिटर और मिशन लोगो. (विकिमीडिया)
2. 23 जुलाई को चीन ने अपना मार्स मिशन तियनवेन-1 लॉन्च किया. इससे पहले चीन ने 2011 में रूस की मदद से मंगल पर अपना एक स्पेसक्राफ्ट भेजने की कोशिश की थी. लेकिन वो मिशन फेल हो गया. इस बार चीन ने अपने दम पर स्पेसक्राफ्ट भेजा. इसे बहुत ही साहस भरा मिशन कहा जा रहा है. क्योंकि चीन पहले मिशन में ही मंगल पर ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर तैनात करने निकल गया है. अगर ये मिशन सफल होता है, तो चीन ऐसा करने वाला पहला देश होगा.

तियनवेन-1 को लॉन्ग मार्च-5 रॉकेट की मदद से लॉन्च किया गया. (CNSA)
3. आखिर में 30 जुलाई को अमेरिका ने अपना मिशन पर्सिवियरेंस लॉन्च किया. अब तक मंगल की सतह पर रोवर चलाने का काम सिर्फ अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा ने ही किया है. पर्सिवियरेंस नासा का अगला रोवर है. ये रोवर मंगल की सतह पर घूमेगा और वहां से जुड़ी जानकारी पृथ्वी पर भेजेगा. इस रोवर के साथ नासा मंगल पर दो कमाल के एक्सपेरिमेंट करने जा रही है. पहली बार मंगल के वातावरण में मौजूद गैसों से वहां ऑक्सीजन बनाने का काम किया जाएगा. इसके अलावा मंगल पर हेलीकॉप्टर उड़ाकर भी देखा जाएगा. नासा ने इस मिशन में जो हेलीकॉप्टर साथ भेजा है, उसका नाम है इन्जेनुइटी.

नासा का क्यूरियोसिटी रोवर इससे पहले बहुत चर्चा में रहा है. (नासा)
ये तीन मंगल मिशन आगे के ह्यूमन मिशन्स के लिए ज़मीन तैयार करेंगे. नासा को ऐसी उम्मीद है कि इस दशक के अंत तक मंगल पर इंसान कदम रख देंगे.
स्पेस में प्राइवेट कंपनी की एंट्री
ह्यूमन स्पेसफ्लाइट. यानी किसी मनुष्य का अंतरिक्ष में जाना. अब तक ये काम सिर्फ सरकारी स्पेस एजेंसी ही करती आई हैं. लेकिन इस साल ये सब बदल गया. एलन मस्क की कंपनी स्पेसऐक्स नासा के साथ पार्टनरशिप में है. 30 मई को स्पेसऐक्स का क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट नासा के दो ऐस्ट्रोनॉट्स को लेकर अंतरिक्ष में गया. इस मिशन का नाम है क्रू ड्रैगन - डेमो 2.ये एक डेमॉन्सट्रेशन मिशन था. इसमें स्पेसऐक्स को ये साबित करना था कि वो सफलतापूर्वक ऐस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में ले जा सकती है. स्पेसऐक्स का अंतरिक्षयान नासा के ऐस्ट्रोनॉट्स को ISS यानी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन लेकर गया. और उन्हें वहां से सफलतापूर्वक वापस भी लाया. ये पहला मिशन था, जब कोई प्राइवेट कंपनी ऐस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में लेकर गई हो.

डेमो 2 के ऐस्ट्रोनॉट्स के साथ नज़र आ रहे एलन मस्क और नासा के ऐडमिनिस्ट्रेटर. (नासा)
2011 में नासा ने लोगों को अंतरिक्ष में भेजना बंद कर दिया था. इसके बाद अमेरिका अंतरिक्ष में ऐस्ट्रोनॉट्स को भेजने के लिए रूस पर निर्भर हो गया. उन्हें रूस पर अपनी निर्भरता खत्म करनी थी, और बेहतर पार्टनर तलाशने थे. इसके लिए नासा ने कमर्शियल क्रू प्रोग्राम शुरू किया. कमर्शियल क्रू प्रोग्राम का मतलब है, अमरीकी कंपनियां अमेरिका की धरती से अमेरिकी लोगों को अंतरिक्ष में भेजेंगी. लेकिन अमरीकी कंपनियों को पहले ये काबिलियत साबित करनी थी. डेमो-2 मिशन के बाद स्पेसऐक्स को अंतरिक्ष में लोग लाने ले जाने की मंज़ूरी मिल गई.
मंज़ूरी मिलने के कुछ ही महीने बाद स्पेसऐक्स ने नासा के साथ पहला ऑपरेशनल मिशन भी भेज दिया. कमर्शियल क्रू प्रोग्राम का पहला मिशन. क्रू-1. 15 नवंबर को स्पेसऐक्स का क्रू ड्रैगन नासा के चार ऐस्ट्रोनॉट्स को ISS लेकर गया. यहां से एक प्राइवेट कंपनी ने ह्यूमन स्पेस मिशन में ऐंट्री मार दी. अब हम स्पेस ऐक्सप्लोरेशन का बदलता हुआ स्वरूप देखेंगे.

क्रू-1 को लॉन्च कर रहा स्पेसऐक्स का फैल्कन 9 रॉकेट. (विकिमीडिया)
ऐस्टेरॉइड के सैंपल लाने वाले
अंतरिक्ष में बड़ी-बड़ी चट्टानें होती हैं. इन्हें ऐस्टेरॉइड कहते हैं. हिंदी में कहते हैं क्षुद्रग्रह. अंतरिक्ष में घूम रहीं चट्टानें, जो ग्रहों की तुलना में बहुत छोटी हैं. कुछ ऐस्टेरॉइड्स में अच्छी-खासी मात्रा में सोना, चांदी और प्लेटिनम जैसी धातुएं हैं. इन ऐस्टेरॉइड्स से माइनिंग करके ये धातु निकाली जा सकती हैं.कई ऐस्टेरॉइड बहुत पुराने हैं. हमारे सौरमंडल से भी पुराने. इन ऐस्टेरॉइड की स्टडी करने पर हमें जीवन की उत्पत्ति से जुड़े सुराग भी मिल सकते हैं. लेकिन इन्हें ढंग से स्टडी करने के लिए वैज्ञानिकों को इनके सैंपल्स चाहिए होते हैं. इस साल ऐस्टेरॉइड के सैंपल लाने गए दो स्पेस मिशन चर्चा में रहे.
1. नासा का OSIRIS-Rex.
2020 में नासा ने एक ऐस्टेरॉइड के टुकड़े इकट्ठे किए. सितंबर 2016 में नासा ने OSIRIS-Rex मिशन लॉन्च किया था. इस स्पेसक्राफ्ट को ऐस्टेरॉइड बेनू के पास भेजा गया था. मिशन का सबसे अहम उद्देश्य है ऐस्टरॉइड बेनू को स्टडी करना और इसके सैंपल पृथ्वी पर भेजना. दिसंबर 2018 में ये स्पेसक्राफ्ट ऐस्टरॉइड के पास पहुंच गया. तब से ऐस्टरॉइड बेनू के चक्कर काट रहा है.

By NASA/Goddard/University of Arizona
21 अक्टूबर 2020 को इस स्पेसक्राफ्ट ने ऐस्टेरॉइड से सैंपल्स इकट्ठे किए. जब ये सैंपल्स इकट्ठे किए गए, तब पृथ्वी से इसकी दूरी लगभग 32 करोड़ किलोमीटर थी. अब इन सैंपल्स को पृथ्वी पर वापस लाया जाएगा. ये सैंपल कैप्सूल 2023 में पृथ्वी पर पहुंचेगा.
2. जापान का हायाबुसा-2
नासा ने सिर्फ सैंपल इकट्ठे किए. लेकिन जापान का एक मिशन सैंपल लेकर पृथ्वी पर लौट भी आया. जापान की स्पेस एजेंसी का नाम है JAXA. जापान ऐयरोस्पेस ऐक्सप्लोरेशन एजेंसी. JAXA ने 3 दिसंबर 2014 को हायाबुसा-2 मिशन लॉन्च किया. इसे भी एक ऐस्टेरॉइड के सैंपल लेने भेजा गया था. ऐस्टेरॉइड का नाम है रयुगू. इस साल ये ऐस्टेरॉइड रयुगू से सैंपल लेकर लौट आया है.
हायाबुसा-2 ने फरवरी 2019 में रयुगू ऐस्टेरॉयड की सतह से सैंपल्स इकट्ठे किए. इन सैंपल्स को एक कैप्सूल में रखा गया. नवंबर 2020 में इस स्पेसक्राफ्ट ने इसे पृथ्वी की तरफ छोड़ दिया. 6 दिसंबर को ये कैप्सूल ऑस्ट्रेलिया में आकर गिरा. जाक्सा ने इन्हें सही सलामत बरामद कर लिया. अब वैज्ञानिक इन्हें स्टडी करेंगे. और हमारे सौरमंडल के रहस्यों से पर्दा उठेगा.Capsule collection! The helicopter team immediately flew to the location identified by the DFS team. They searched for the fallen capsule by using radio waves and maps. Thank you very much! (Collection Team M)#Hayabusa2
— HAYABUSA2@JAXA (@haya2e_jaxa) December 6, 2020
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चांद के टुकड़े वाया चाइना
सैंपल्स सिर्फ ऐस्टेरॉइड से नहीं लाए गए. इस साल चांद के सैंपल्स भी पृथ्वी पर लाए गए हैं. पिछली बार चांद के टुकड़े सत्तर के दशक मेें लाए गए थे. जब अमेरिका और रूस के बीच स्पेस रेस लगी हुई थी. इस बार चीन चांद से सैंपल्स लेकर आया है. चीन के इस मिशन का नाम है चंग’अ 5.
चंग'अ 5 से पहले गया चीन का चंग'अ 4 चांद की दूसरी साइड लैंड करने वाला पहले स्पेसक्राफ्ट बना. (विकिमीडिया)
चीन की स्पेस एजेंसी CNSA ने 23 नवंबर 2020 को चंग’अ 5 मिशन लॉन्च किया. 1 दिसंबर को ये स्पेसक्राफ्ट चांद पर पहुंच गया. इसने वहां से सैंपल्स इकट्ठे किए. और वापस पृथ्वी की तरफ निकल पड़ा. 16 दिसंबर को चांद के ये सैंपल्स पृथ्वी पर पहुंच गए. एक महीने के अंदर चाइना चांद से टुकड़े लेकर आ गया.
चंग’अ 5 इस साल का आखिरी बड़ा स्पेस मिशन था. अब इस दशक में हम चांद पर दोबारा मनुष्यों को पैर रखते देखेंगे. हो सकता है इस दशक के अंत तक कोई मनुष्य मंगल पर भी चला जाए. इस दशक में एक नई स्पेस रेस देखने को मिलेगी. इस रेस में अब सिर्फ रूस और अमेरिका नहीं है. दूसरे देश भी शामिल हैं. और स्पेस रेस मेें प्राइवेट कंपनियों के आने से माहौल ही अलग होगा.