मामूली सी नौकरी करने वाला बंदा, जो पंजाबी म्यूजिक का लिविंग लेजेंड बन गया
गुरदास मान की असली कहानी

जिंदगी में एक टाइम ऐसा आता है. जब आसपास के लोग स्पीड से आगे बढ़ते दिखते हैं. तब लगता है कि अपन ने जो ये उसूल बना लिए हैं, कहीं बोझ तो नहीं हो गए. एक संशय सा पैदा होता है. ऐसे में क्या करें. किससे ताकत पाएं. सबका अपना अपना जुगाड़ है. मैं अपनी बताता हूं. कुछ लोग हैं. जिनकी तरफ देखता हूं, तो ताकत सी मिलती है. क्योंकि वे भड़भड़ में भी भड़भड़ाए नहीं. हंस चाल चलना नहीं भूले. ऐसा ही एक हंस है गुरदास मान. पंजाब का शेर बच्चा. मिलो तो ऐसे पेश आते हैं, गोया कोई फकीर हो, जिसे जबरन आंखें खोलनी पड़ गई हों. बेहद विनम्र. आंखों में दादी अम्मा सा नेह. और आवाज. आज गुरदास मान का बड्डे है, इस मौके पर उनके बारे में दिलचस्प बातें बताएंगे.
दूरदर्शन के दिन थे. कभी कभी शाम को प्रोग्राम आते थे गाने के. एक कोई पिनाज मसानी थीं. भयानक घुंघराले बाल. रामजाने क्या गाती थीं. चट्टू एकदम. तब रदीफ काफिए पता नहीं थे. लेकिन एक चमकीले कपड़े पहने आदमी को सुनने में मजा आता था. उसकी दाढ़ी काली होती थी. और आंखें भी एक्स्ट्रा काली. कृष्ण सी. देखो तो कुछ बदमाशी और कुछ आसमानी खालीपन.
और क्या गाता था.
बुल्ले शाह का कलाम गाते हुए
दिल दा मामला है. आप लोग गाना सुनो बिल्कुल असली वाला. उसी टाइम का. ब्लैक एंड व्हाइट. फिर आगे की सुनाते हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=jiwKVciHJxM
ये गाना साल 1980 में आया था. तब तक गुरदास मान यूनिवर्सिटी कॉलेज वगैरह में पॉपुलर हो गए थे. यूथ फेस्टिवल में गाते थे. फिर डीडी जालंधर पर ये मौका मिला. मौका खास था, इसलिए मुनासिब होगा कि मान साब की जुबानी ही पढ़ा जाए:
"मुझे आज भी याद है वो दिन. गाने से पहले बहुत घबराया हुआ था. अब तक इंटरकॉलेज कल्चरल प्रोग्राम्स में गाता था. मगर यहां तो दूरदर्शन के लिए रेकॉर्ड करना था. बहुत फर्क था. मेरे आसपास बहुत सारे कैमरे लगा दिए गए थे. कहने लगे कलाकार के हर एक्सप्रेशन को पकड़ना होगा. मुझे नहीं पता मैंने कैसा गाया. मगर गुरुओं, पीरों, फकीरों की रहमत जो आप सबका इतना प्यार मिला."मैंने कहा था न. इतना मकबूल आदमी. पंजाबी म्यूजिक में बिल्कुल लेजेंड. फिर भी बिछ बिछ जाता है. कहीं भी स्टेज पर जाता है. तो माथा टेककर सुनने आई जनता को प्रणाम करता है. पीरों की मजार पर गाता है तो मलंग होकर.
बात आगे बढ़ाते हैं. मान के शुरुआती तीन सुपरहिट गानों में दूसरा था, मामला गड़बड़ है. एक दम शोख. और मजा इसलिए भी खूब आता क्योंकि गाने लिखते भी मान भी. तो गाते भरपूर फील के साथ. देखिए क्या कविता है. सीधी सी.

https://www.youtube.com/watch?v=8g496Zg8zzo
और सुपरस्टार बनाने वाला तीसरा गाना था छल्ला. एक पंजाबी फिल्म आई थी 1986 में. लॉन्ग द लिशकारा. अर्थात नाक की कील में जो पत्थर लगा है उसकी चमक. इसमें राज बब्बर थे. और मान ने गाया था छल्ला वाला गाना. म्यूजिक था गजल वाले जगजीत सिंह साहब का.
...मांवां ठडियां छांवा. ठंडी छांव सी होती है मां. इनसे मिलिए अब आप. गुरदास मान की मम्मी. बीबी तेज कौर. इनका अक्सर जिक्र करते हैं वो.

मां के साथ मान
जिक्र चला है तो ये भी बता दें कि गुरदास मान की पत्नी का नाम मनजीत है. कुछ दिन एक्टिंग की. फिर फिल्म प्रोडक्शन करने लगीं. एक बेटा है दोनों का. गुरिक. हीरो बनने की तैयारी में है.

पत्नी और बेटे के साथ
मान साब 4 जनवरी 1957 को पंजाब के गिद्दरबाहा में पैदा हुए थे. इस जगह का नाम हमने एक विधानसभा के तौर पर सबसे पहले जाना था. सियासत और सोच पर गुरदास मान का एक बेहद जरूरी गाना याद आ गया. इसके बोल पढ़िए पहले तो

https://www.youtube.com/watch?v=vDRijlkhzfI
इस गाने को सुनकर मुझे मुक्तिबोध की कविता याद आ गई. अब तक जेएनयू में इसका एक अंश ही पोस्टरों पर देखा पढ़ा था. गूगल किया तो पता चला कि पोएम का टाइटल है- मैं तुम लोगों से दूर हूं. देखिए कैसी खड़ंजे ही खुरदुरी लाइनें हैं
इसलिए कि जो है उससे बेहतर चाहिएगुरदास मान खरा आदमी है. पंजाब में आपको लाखों लोग इस बात की ताकीद करते किस्से सुना सकते हैं. मैं भी दो सुनाता हूं. एक पढ़ा, दूजा सुना. बात है साल 2001 की. गुरदास मान का बड़ा जबरदस्त एक्सिडेंट हुआ. रोपड़ के पास. कार सामने आ रहे ट्रक से भिड़ गई. मान को चोट आई. ड्राइवर की मौत हो गई. मान ने बाद में बताया कि एक्सिडेंट के कुछ ही मिनट पहले मेरे वीर (भाई, मेरा ड्राइवर) ने बोला था. पाजी सीट बेल्ट बांध लो. उसकी हिदायत ने मुझे बचा लिया. पर मैं उसे नहीं बचा पाया. रब ने बुला लिया. गुरदास मान ने फिर गाना लिखा- बैठी साडे नाल सवारी उतर गई. जाहिर है कि इसे उन्होंने अपने ड्राइवर दोस्त को डेडिकेट किया.
पूरी दुनिया साफ करने के लिए मेहतर चाहिए
वह मेहतर मैं हो नहीं पाता
पर रोज कोई भीतर चिल्लाता है
कि कोई भी काम बुरा नहीं
बशर्ते कि आदमी खरा हो
दूसरा किस्सा मेरी पड़ोसन पूजा ने सुनाया. 2011 का मामला होगा. चंडीगढ़ में गुरदास मान की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. कोई नई फिल्म या एलबम आ रहा था. मीडिया का जमघट. होटल के बाहर एक बंदा खड़ा था. नौजवान सी उम्र, मगर बाल रूखे, कपड़े मैल से सूखे. सबसे यही कहता. मुझे मान साब से मिलवा दो. पत्रकार भीतर आए. पीसी शुरू हुई. किसी ने उन्हें इस शख्स के बारे में बताया. गुरदास मान अपनी टीम की तरफ पलटे. लड़के को अंदर लाया गया. वो स्टेज की तरफ बावलों सा बढ़ा. मान ने उसे गले लगा लिया. उसने बताया. मेरे पास यहां आने का किराया नहीं था. तो कभी लिफ्ट मांगी, कभी पैदल चला और दो दिन में पहुंच गया. मान ने इसे सुना तो आंखों में आंसू आ गए उनके. और फिर वो अपने इस फैन के पैरों को हाथ लगाने लगे. बोले, इन्हीं सबकी बदौलत मैं यहां तक पहुंचा हूं. भगवान हैं ये मेरे.

ये सब हुआ और एक बार भी मन में कमीनगी नहीं जागी कि पब्लिसिटी स्टंट है ये. क्योंकि बताने वाले बताते हैं कि गुरदास हमेशा हर वक्त ऐसे ही मिजाज में रहते हैं. एक बात और. मैंने साठा के पाठा पहुंचने को बढ़ते और किसी कलाकार को नई फसल के साथ इतना हमदम होते नहीं देखा. इसका नया प्रूफ दो साल पहले मिला. मान साब का एक गाना है. की बनूं दुनिया दा. उसे उन्होंने कोक स्टूडियो के लिए नए ढंग से गाया. साथ में हैप्पी सरदार दिलजीत दोसांझ भी था. लगा, वाकई स्पिरिट तो बची हुई है. देखिए ये गाना. सब टाइटल्स ऑन कर लीजिएगा. ताकि माने अच्छे से समझ आएं. लिखा भी मान साहब ने ही है.
की बनूं दुनिया दां कोक स्टूडियो वर्जन:
https://www.youtube.com/watch?v=pjQyBF2gwjQ

चलते-चलते- मान हीरो है. मान मान है. पंजाब में कितनी कारों के पीछे आपको उनकी ये तस्वीर दिख जाएगी. ये दिखाती है कि लोग कित्ता प्यार करते हैं उनसे.

टैटू की शक्ल में इस तरह सजते हैं मान लोगों की कारों पर
गुरदास मान का नाम पंजाबी म्यूजिक के साथ जुड़ा है. मगर मुझे पता चला कि उन्होंने हिंदी, बंगाली, तमिल, हरियाणवी और राजस्थानी में भी गाने गाए हैं. इतना ही नहीं उन्होंने हिंदी पंजाबी के साथ साथ तमिल फिल्मों में एक्टिंग भी की है.
हुनर और हौसला हो तो आदमी कहां पहुंच जाता है. पंजाब बिजली बोर्ड में नौकरी करने वाला बंदा, मजारों पर मत्था टेकने वाला मुरीद, गुरदास मान बन जाता है.