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कानपुर में भले पूरा टेम्पो खाली हो, पर पुकार सिर्फ दो सवारियों की ही लगेगी

भगवंत अनमोल बता रहे हैं, कानपुर में चलने वाले टेम्पो का क्या हिसाब-किताब है.

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फोटो - thelallantop
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आशीष मिश्रा
17 मार्च 2017 (Updated: 17 मार्च 2017, 11:07 AM IST) कॉमेंट्स
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दो सवारी रावतपुर
कभी कानपुर आए हैं और ऑटो में नहीं बैठे? तो 'कानपूर' नहीं आए भाई साब!! यहां पर ऑटो का मतलब वो वाले ऑटो नहीं होते जो मुम्बई में चलते है, जो रिज़र्व कर लिए जाते है और किलोमीटर के हिसाब से पैसे लेते है बल्कि यहां पर टेम्पो चलते है. जो गाहे-बगाहे जगह-जगह पर बीच सड़क में चिल्लाते हुए मिल जाएंगे 'दो सवारी रावतपुर, दो सवारी रावतपुर.' भले ही पूरा टेम्पो खाली हो, पर पुकार सिर्फ दो सवारियों की लगेगी. और हो सकता है कि आपको पकड़कर टेम्पो की तरफ ले जाने लगे. अगर आप चढ़ते समय पूछ भी ले 'कितना टाइम लगेगा?' तुरंत यही कहते नजर आएंगे, बस आप बैठिए चल दिए. आपके बैठते ही वह ड्राइवर तुरंत पीछे निकल जाएगा और फिर से वही प्रक्रिया शुरू हो जाएगी 'दो सवारी रावतपुर' और फिर उस दूसरी सवारी के भी प्रश्न करने पर ठीक वही जवाब मिलेगा. उसके बैठने के बाद वही अल्गोरिथम फिर से चलने लगेगी. जब आपको ऐसा लगेगा कि अब तो पूरी सवारी भर गई है और आप इधर-उधर मुड़कर उस ड्राइवर की तलाश कर रहे होंगे तभी वह दो व्यक्तियों को और पकड़कर ले आएगा और दोनों तरफ एक-एक व्यक्ति को बैठा देगा.
आप किसी तरह सांस दबाकर अपना बैग पकड़कर बैठे होंगे और ईश्वर से यह कामना कर रहे होंगे कि यह जल्दी से रावतपुर पहुंचा दे. तभी आपको पीछे से फिर से वही आवाज सुनाई देगी. 'दो सवारी रावतपुर' अगर आप नए है तो आप दिल थाम के बैठ जाएंगे और इधर-उधर सब जगह देखेंगे कि ये दो व्यक्ति कहां बैठेंगे? तभी वह दो लोगों को फिर से पकड़कर ले आएगा. आप कुछ कहने वाले होंगे कि भईया मुश्किल से तीन-तीन लोगों की सीट है आप चौथा काहे घुसेड़ रहे हो. तभी वह आपके बोलने से पहले ही बोल देगा 'खिसको थोड़ा, जगह बनाओ, बैठाओ चार- चार बैठते हैं.'
अब आपका पारा गरम हो गया होगा, अब आप बोल के ही दम लोगे. तभी आपके बगल की सवारी आपसे कहेगी 'आप आगे हो जाओ, इन्हें पीछे बैठने दो ' अब आप सोचेंगे कि आगे-पीछे क्यों हो जाएं? क्या ढंग से एक सीट पर बैठ भी नहीं सकते. आप सोच ही रहे होंगे कि आपके सामने वाली मोहतरमा जिन्हें आप अभी तक सिर्फ देख रहे होते हैं, बोल उठेंगी 'चार लोग बैठते है, आगे पीछे होकर बैठ जाओ' वह ऐसे बोलेगी, जैसे कानपुर के स्कूलों में बचपन से शिक्षा इसी बात की दी जाती हो कि टेम्पो की एक सीट में चार सवारी कैसे बैठे? उनकी बात सुनकर आप काट नहीं पाओगे और आगे आजाओगे तथा वह व्यक्ति आपके शरीर को जोर से रगड़ता हुआ पीछे बैठ जाएगा. आप चिल्लाना चाहोगे पर आंखे कसकर रह जाओगे. उसके गंदे कपड़ो से आपकी सफ़ेद शर्ट पर दाग लग गया होगा. आप झाड़ोगे और उसको 'व्हाट द .....' वाला लुक दे सकते हो.
आप किसी तरह से थोड़ी सी जगह, इतनी जगह जिसमें ढंग से एक बच्चा भी न बैठ पाए. उसमें अपना टिकाकर बैठने की कोशिश पूरी यात्रा भर करते रहेंगे. और भगवान से प्रार्थना करते रहेंगे कि अब यह जल्दी से चल दे और मुझे रावतपुर पंहुचा दे. आप फिर से उस ड्राइवर की तलाश करने लगेंगे. तभी वह ड्राइवर एक व्यक्ति और लेकर आगे बैठा लेगा तथा खुद अपना एक पिछवाड़ा बाहर की तरफ लटकाकर और एक डंडा में रखकर तिकोना होकर आधा लेटने की मुद्रा में ऐसे चलाएगा, कि पता ही नहीं चलेगा कि सड़क पर वह अपना पेट साफ़ करने के लिए बैठा है या गाडी चलाने के लिए?
इस बीच बगल वाला अपने जेब से फ़ोन निकालने का असफल प्रयास करने लगेगा और आप उस छोटी सी जगह बैठे होंगे, जिसमें से गिरते-गिरते बचेंगे. आप पलटकर उस व्यक्ति की तरफ देखेंगे और देखकर खुद ही दया खा जाएंगे कि ये खुद ही अपने हाथ सीधे करके बैठ नहीं पा रहा है. इससे क्या कहूं? तभी वह व्यक्ति आपकी नजरों को पकड़कर बोलेगा 'सफर है, सफर में थोड़ा बहुत तकलीफ होती है.' अब आपका मन तुरंत वेद पुराण और अन्य नई एवं पुरानी किताबों पर जाने लगेगा तथा यह समझ नहीं आएगा कि इस लाइन को आखिर कौन सी किताब में लिखा गया है. बस बात यही समझ आएगी कि इन लोगो ने इस तरह के सफर को ही अपनी ज़िन्दगी में पूरी तरह शामिल कर लिया है. आप इस उहापोह में होंगे ही कि तभी रही सही कसर कान को चीरते हुए उस गाने ने पूरी कर दी, जो टेम्पो वाले ने फुल वॉल्यूम में शुरू किया 'तुझे याद न मेरी आयी, किसी से अब क्या कहना.' तब मैं आपसे प्रेम से कहूंगा, जे है कानपुर मेरी जान. ;) :P :D
Bhagwant anmol कानपुर के ऑटो वालों की प्रपंच-कथा हमें लिख भेजी है. भगवंत अनमोल ने. जो कहते हैं, ज़िंदगी कोई अस्पताल के बेड पर पड़े मरीज की तरह नहीं है, जो सीरियस ही रहा जाए. उनके नाम का किस्सा सुनिए, जन्माष्टमी के रोज़ पैदा हुए घरवालों ने नाम दिया भगवंत. रही सही कसर प्रेमिका ने पूरी कर दी. नाम दे बैठी ‘अनमोल’ बोली तुम बहुत अनमोल हो. नाम तो दिया खुद छोड़कर चली गई. भगवंत अब तक तीन किताबें लिख चुके हैं. द परफेक्ट लव, एक रिश्ता बेनाम सा, ज़िंदगी 50-50. एक मोटिवेशनल किताब भी लिख चुके हैं. कामयाबी के अनमोल रहस्य. आपको भी कुछ भेजना है, चाहते हैं हम सबको पढ़ाएं तो भेजिए lallantopmail@gmail.com पर.
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