ये लखन झा हैं, एक बार बैठते हैं तो 700 रसगुल्ले खा जाते हैं
ये गांव की मिट्टी का वो आदमी है, जिसे खाने के लिए अवॉर्ड्स मिले हैं.
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लखन झा का नाम सुना है आपने? ये वो आदमी हैं, जिन्हें खाना खाने के लिए अवॉर्ड मिलते हैं. अब आप पूछेंगे कि खाना कौन सा टैलेंट है जो इन्हें अवॉर्ड मिल रहा है. तो सुनो, इनके भोज खाने के किस्से पूरे मिथिलांचल में फेमस हैं. जितना ये खाते हैं, उतना 10 आदमी मिलकर भी न खा पाएं. वैसे लखन के बारे में जानने से पहले जरा मिथिलांचल में होने वाले भोज के बारे में जान लीजिये.
मिथिलांचल के भोज बहुत ही फेमस हैं, क्योंकि यहां भोज नहीं, उत्सव होता है. आप मिथिलांचल के किसी गांव में जाएंगा तो ये देखकर आंखें फाड़ लेंगे कि भोज में बैठे लोग इतना खा कैसे लेते हैं. वहां शादी का भोज हो या श्राद्ध का, चार दिन तक चलता है. भोज होने की खबर मिलते ही लोगों का मिजाज टन-टना जाता है. जनता दो दिन पहले से ही अजवाइन फांकना शुरू कर देती है ताकि भोज में शानदार परफॉरमेंस दे सकें.
इन दो दिनों में लोग घर में भी अपनी खुराक कम कर लेते हैं. भोज करने वाला भी कुल्लम तैयारी करके रखता है. भोज वाले आंगन को भोजगढ़ा कहते हैं, जहां से टन्न-टन्न और भन्न-भन्न की आवाजें आती रहती हैं. वहां का हर आदमी आपको ओबामा से भी ज्यादा बिजी मिलेगा.
तो इस भोज में आने वाले कुछ लोग रिकॉर्डधारी भी होते हैं. मधुबनी में मेरे गांव खरौआ में ऐसे ही एक हैं लखन झा. अपने भतीजे मुन्ना की शादी में ये 718 रसगुल्ले खा गए थे, जिसका रिकॉर्ड आज भी कायम है. ये रिकॉर्ड उन्होंने अपने पड़ोसी गांव नवानी के कमल मिसिर के 690 रसगुल्ले खाने के रिकॉर्ड को तोड़कर बनाया था. किसी शादी में आम खाने बैठते हैं तो 200 के आसपास आम खा लेते हैं. गांववाले बताते हैं एक बार 250 केले चांप गए थे. यूं तो लखन अब 55 साल के हो चुके हैं, लेकिन रुतबा आज भी कायम है.जब भी कहीं भोज होता है तो लखन को शान से सबसे आगे वाली लाइन में बिठाया जाता है. खाना परोसने वाले दो-चार लौंडे तो अकेले इन्हीं पर तैनात कर दिए जाते हैं. जैसे ही वो लड़के लखन की प्लेट के पास पहुंचते हैं, आसपास लोग 'दियोन-दियोन' कहकर ठहाका मारने लगते हैं. 'दियोन-दियोन' तो समझे नहीं होंगे. ये मैथिली भाषा के शब्द हैं, जिसका मल्लब हिंदी में होता है, 'दीजिए-दीजिए.'
लखन से जब उनके इस टैलेंट के बारे में बात करो तो बड़ा शरमा कर कहते हैं, 'ऐसा कोई बात नहीं है, सुरुए से आदत है. बचपने से हम लोग दोस्त सब के साथे चाईलेंज लगते थे कि भोज में कौन जादा खाएगा. खाली मोहन हमको टक्कर देता था, लेकिन अब वो हमरे सामने नहीं टिक पाता है. हमरे एगो काका थे बलराम झा. भोज में उनको देखकर हमको प्रेरणा मिलता था'.लखन झंझारपुर में भोज खाने को लेकर इतना फेमस हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में वहां के बीजेपी कैंडिडेट नितीश मिश्रा उनको अपने कैंपेन में साथ लेकर घुमते थे. उनकी दो ही हॉबी हैं. एक तो आपको पता ही है: भोज खाना और दूसरा रेडियो पर क्रिकेट मैच की कमेंट्री सुनना. लखन गांव में ही रहते हैं. दो बेटे हैं उनके जो गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. कुछ दिनों पहले मैथिली सिंगर चंदन झा का एक गाना भी आया था लखन पर. गाना है, 'लखन काका खाए भोज, त मारे सेंचुरी'. लखन बताते हैं कि भोज की बैटिंग वो भोज कराने वाले की स्थिति और स्वभाव देखकर करते हैं. कहते हैं, कोई गरीब के यहां भोज होता है तो मैं अपना डोज कम कर देता हूं.' वैसे जिस आदमी की इत्ती कैपेसिटी हो, वो नए वाले छरहरे लौंडों को फरियाता जरूर है. लखन कहते हैं, 'अब नई पीढ़ी में वो बात नहीं हैं. भोज में मैं देखता हूं कि जितने भी नौजवान हैं, पांच ठो रसगुल्ला में ही उनका हवा निकल जाता है.' इलाके के लोग कहते हैं कि अगर ओलिंपिक में भोज खाने का कॉम्पिटीशन रखा जाए, तो लखन के नाम का गोल्ड पक्का है.
लखन खुद सचिन तेंदुलकर के बहुत बड़े फैन हैं, लेकिन जब आप उन्हें भोज खाते हुए देखेंगे न, तो यही कहेंगे कि खाने के सचिन तेंदुलकर तो लखन ही हैं. जियो लखन झा.