कुलभूषण जाधव केस: भारत और पाकिस्तान दोनों अपनी-अपनी जीत क्यों बता रहे हैं?
पाकिस्तान अखबार कह रहे हैं कि इंडिया की किरकिरी हुई है.
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फोटो - thelallantop
1. जाधव की फांसी पर फिलहाल रोक लग गई है. 2. जाधव को भारतीय हाई कमीशन के अधिकारियों से मिलने की छूट मिल गई है. 3. ICJ ने माना कि पाकिस्तान ने विएना कन्वेंशन के आर्टिकल 36 का उल्लंघन किया है. 4. ICJ ने कहा कि पाकिस्तान ने जाधव को उनके कानूनी अधिकार नहीं दिए. 5. सुनवाई के दौरान ICJ ने पाकिस्तान को निर्देश दिया कि वो आख़िरी फैसले से पहले जाधव को फांसी न दे.भारत जो अपील लेकर ICJ पहुंचा था, उसके सबसे बड़े पॉइंट्स यही थे. जब ये बातें भारत के पक्ष में गईं, तो फिर पाकिस्तान कैसे खुद को जीता बता रहा है? हम बताते हैं.
1. पाकिस्तान से कहा गया है कि वो जाधव को दी गई सज़ा की दोबारा समीक्षा करे, पुनर्विचार करे.
पुनर्विचार के लिए कहना, मतलब गेंद का पाकिस्तान के पाले में होना. मतलब, पाकिस्तान बाध्य नहीं है सज़ा बदलने के लिए. ICJ ने कहा है कि पाकिस्तान को वियना कन्वेंशन का पालन करते हुए जाधव को फेयर ट्रायल मुहैया कराना चाहिए. मगर ये पाकिस्तान कैसे करेगा, इसका फैसला 'चॉइस ऑफ मीन्स' पाकिस्तान पर ही छोड़ दिया गया है. हां, ICJ ने पाकिस्तान से ये ज़रूर कहा कि जाधव का केस ठीक तरीके से रिव्यू हो, इसके लिए इस्लामाबाद को हर ज़रूरी कदम उठाने होंगे.
2. मिलिटरी कोर्ट की जगह सिविलियन कोर्ट में केस ले जाने की भारत की अपीलAppreciate ICJ’s decision not to acquit, release & return Commander Kulbhushan Jadhav to India. He is guilty of crimes against the people of Pakistan. Pakistan shall proceed further as per law.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) July 18, 2019
भारत का कहना था कि पाकिस्तान के मिलिटरी कोर्ट में इस मामले की निष्पक्ष सुनवाई मुमकिन नहीं है. वहां पारदर्शिता नहीं है. न ही वहां बाहरी वकीलों को दलील पेश करने की इजाज़त है. भारत चाहता है कि जाधव का केस सिविलियन कोर्ट में चलाया जाए. और जाधव को वहां वकील की सुविधा मुहैया कराई जा सके. भारत ने अपनी दलील के समर्थन में 26/11 आतंकी हमलों के दोषी अजमल कसाब का उदाहरण दिया. कसाब को स्वतंत्र वकील मुहैया कराया गया था. ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में. सुप्रीम कोर्ट में पूर्व अडिशनल सॉलिसिटर जनरल को कसाब का पक्ष रखने का जिम्मा दिया गया. कसाब के ऊपर आतंकवाद से जुड़े कानूनों के अंतर्गत सामान्य अदालतों में ही केस चलाया गया. भारत का कहना था कि उसके यहां सिविलियन्स से जुड़े मामलों में मिलिटरी कोर्ट का कोई लेना-देना नहीं होता. न ही सिविलियन्स से जुड़े मामले आर्मी कोर्ट्स के अधिकारक्षेत्र में आते हैं. ऐसे ही जाधव का केस सामान्य क्रिमिनल कोर्ट्स में चलाया जाए.

कुलभूषण और उनके परिवार के बीच 30 मिनट की मुलाकात 2017 में हुई थी.
उधर पाकिस्तान का तर्क था कि चूंकि जाधव का मामला आतंकवाद से जुड़ा है, इसलिए इसे कानूनन मिलिटरी अदालत में ही चलाया जा सकता है. पाकिस्तान ने पेशावर में एक स्कूल पर हुए तालिबानी हमले के बाद 2015 में अपने संविधान के अंदर एक संशोधन करके ये कानून बनाया था. नैशनल ऐक्शन प्लान (NAP) के तहत मिलिटरी कोर्ट्स का गठन हुआ. इनके पास अधिकार था कि आतंकवाद के आरोपों में ये सिविलियन्स के ऊपर इन मिलिटरी कोर्ट्स में केस चला सकें. इस मामले में ICJ की तरफ से भारत को कोई राहत नहीं मिली है. इसे पाकिस्तान अपनी बड़ी जीत बता रहा है.
3. जाधव को बरी करना, रिहा करना और भारत को वापस लौटाना
भारत की मांग थी कि पाकिस्तान कुलभूषण जाधव को उनपर लगाए गए आरोपों से बरी करे. साथ ही, उन्हें रिहा करके वापस भारत के सुपुर्द किया जाए. ICJ में भारत की ये मांग पूरी नहीं हो पाई है.
We welcome today’s verdict in the @CIJ_ICJ
. Truth and justice have prevailed. Congratulations to the ICJ for a verdict based on extensive study of facts. I am sure Kulbhushan Jadhav will get justice. Our Government will always work for the safety and welfare of every Indian. — Narendra Modi (@narendramodi) July 17, 2019
पाकिस्तानी सरकार और मीडिया इसे भारत की किरकिरी बता रहे हैं. उनका कहना है कि भारत हारा है. वैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बहुत जगहों पर इसे भारत के ऐंगल से ही रिपोर्ट किया गया है. वैसे देखा जाए तो ICJ के फैसले में किसी एक पक्ष को एकतरफा जीत नहीं मिली है. दोनों के लिए कुछ-कुछ है. फैसले का सबसे ज़रूरी पॉइंट बेशक ये है कि पाकिस्तान को फेयर ट्रायल न मुहैया कराने का दोषी पाया गया. और, फिलहाल जाधव को फांसी नहीं दी जा सकेगी.
इंटरनेशनल मीडिया ने कुलभूषण जाधव केस की रिपोर्टिंग इस तरह की.




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