अमेरिका में सेटल होने गए ए आर रहमान किस वजह से भारत वापस लौट आए?
वर्ल्ड मैप पर भारत का नाम लगातार चमकाने वाले रहमान के किस्से पढ़िए.
Advertisement

ये स्टोरी पढ़ते-पढ़ते इनका गाना 'कुन फाया कुन' सुन लीजिए. मूड गज़ब हो जाएगा. फोटो - फेसबुक
दिलीप कुमार से रहमान बनने की कहानी
रहमान की ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा कुछ छुपा नहीं है. दिलीप चेन्नई में अपने परिवार के साथ रहता था. चौंकिए मत, दिलीप रहमान का ही नाम था. पूरा नाम दिलीप कुमार. पिता आर.के. शेखर भी म्यूज़िक से जुड़े थे. मलयालम फिल्मों में काम करते थे. बतौर म्यूज़िशियन और कम्पोज़र. पिता की ही वजह से यंग दिलीप भी म्यूज़िक से रूबरू हुआ. पर तभी एक ट्रेजडी हो गई. उनके पिता की डेथ हो गई. उस समय दिलीप की उम्र महज 9 साल थी. घर की जिम्मेदारियों को नया कंधा चाहिए था. जो दिलीप ने दिया. म्यूज़िशियन्स को असिस्ट किया. म्यूज़िक इक्विपमेंट फिक्स किए. जो बन पड़े, वो किया. फिर आया 16 की उम्र का पड़ाव. किताबों से दूरी बनाई. उनकी जगह म्यूज़िक को दी. उसका रिजल्ट भी मिला. ये कि हर कोई अपने कमर्शियल्स के लिए इनसे म्यूज़िक कम्पोज़ करवाना चाहता था.

दिन में 12-12 घंटे प्रैक्टिस करते थे. फोटो - इंस्टाग्राम
इसी दौरान फैमिली ने सूफी इस्लाम कुबूल कर लिया. संत पीर करीमुल्लाह शाह से इंस्पायर होकर. दिलीप कुमार बने अल्लारखा रहमान. ए. आर. रहमान.
कहां तो फिल्मों में नहीं आना था, कहां सीधा ऑस्कर ले आए
रहमान को कभी फिल्मों में नहीं आना था. जहां थे, खुश थे. पर जब आए तो सब बदला. कैसे? 1992 में आई ‘रोजा’ से. मनी रत्नम के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म की खूब तारीफ हुई. खासतौर पर इसके म्यूज़िक की. फिल्म की एक धुन गज़ब फेमस हुई. इतनी कि अब तक स्कूलों में 15 अगस्त के फ़ंक्शन पर आपको सुनाई दे जाएगी. रहमान ने ही इस फिल्म के लिए म्यूज़िक दिया था. आलम ऐसा हुआ कि नॉर्थ हो या साउथ, हर कोई उनके साथ काम करना चाहता था. फिल्म्स और उनके बाद आए अवार्ड्स, मानो झड़ी सी लग गई.

सिर्फ 20 दिनों में फिल्म का म्यूज़िक कंप्लीट किया. फोटो - फाइल
साल 2009. रिलीज़ हुई फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’. यहां से पूरा नक्शा बदल गया. रहमान को फिल्म में अपने म्यूज़िक के लिए ऑस्कर मिला. उस मंच पर खड़े हुए, जहां पहुंचना भर भी ना जाने कितनों का ख्वाब है. फिल्म से अपार कामयाबी मिली. उसे सही तरीके से यूज़ करना चाहते थे. अपने संगीत के साथ कुछ नया करना चाहते थे. इसलिए अमेरिका के लॉस एंजिल्स में शिफ्ट हो गए.
‘ड्रीम लाइफ’ अधर में छोड़ के वापस आ गए
लॉस एंजिल्स का तो पूरा मामला ही अलग था. मतलब सारे दरवाज़े आपके लिए खुले हैं. बस पधारने की देर है. रहमान ने खुद ये माना. खुद को बिज़ी रखने लगे. स्टीवन स्पीलबर्ग और जे.जे. अब्रम्स जैसे डायरेक्टर्स से मीटिंग होने लगी. पर लगभग 2012-13 के अराउंड चीजें फिर बदली. अंदर का मोहन भार्गव आवाज देने लगा. जिस देश ने पहली पहचान दी, वहीं लौटने का दिल होने लगा. इसपर वे कहते हैं,
मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं थी, और मेरे बच्चे भी बड़े हो रहे थे. मुझे महसूस हुआ कि अगर घर नहीं लौटा तो कुछ साल में मेरे बच्चे मुझे अंकल बुलाने लगेंगे. प्लान बनाया और 2015 में वतन लौट आया.

रहमान की आने वाली फिल्म 'ले मस्क' का पोस्टर. फोटो - इंस्टाग्राम
“इंडिया एक थर्ड वर्ल्ड कन्ट्री नहीं है”
वापस आकार रहमान ने YM स्टूडियोज़ खोला. 99 एकड़ में फैली फिल्म सिटी. अपने ही बैनर, YM मूवीज़ के तले फिल्में भी प्रोडयूस करना शुरू किया. रहमान को एक चीज़ का एहसास हुआ. सच बोलें तो कम्पोज़र शब्द का नया मतलब मिला. जाना कि कम्पोज़र का काम सिर्फ म्यूज़िक बनाने तक सीमित नहीं. नेरेटिव तैयार करना समझा. इसी नए अवतार के साथ दो फिल्मों पर काम किया. ’99 सॉन्ग्स’ और ‘ले मस्क’. ‘ले मस्क’ के साथ वो नई पारी की शुरुआत कर रहे हैं. डायरेक्टर की टोपी पहनकर. फिल्म में टेक्नोलॉजी का जबर यूज़ है. जैसे वर्चुअल रिएलिटी, 3D, 360 डिग्री शूटिंग और रोबोटिक चेस. ये तो इस्तेमाल हुई टेक्नोलॉजी में से कुछ ही नाम हैं. बाकी आप प्रोजेक्ट का अंदाज़ा लगा ही लीजिए. ये सारी कोशिश सिर्फ एक मकसद के लिए. ताकि इंडिया का नाम इंटरनेशनल मैप पे दिखे. और सिर्फ दिखे नहीं, चमके.
रहमान ऐसे ही हैं. हमेशा भारत का नाम वर्ल्ड मैप पर चमकाने वाले.