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गुमशुदा सुल्तान, जिसने 24 सालों में कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की!

सुल्तान की किस हरक़त पर बवाल हो रहा है?

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सुल्तान की किस हरक़त पर बवाल हो रहा है?
सुल्तान की किस हरक़त पर बवाल हो रहा है?
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2 जून 2023 (Updated: 2 जून 2023, 19:46 IST)
Updated: 2 जून 2023 19:46 IST
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एक राजा है.
विदेश यात्राओं का शौक़ीन.
वो कभी प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं करता.
अपने आभामंडल में वो इतना तल्लीन है कि
उसके ज़ेहन से जनता कब की ग़ायब हो चुकी है.
मंत्रियों और अधिकारियों को ज़रूरी मुलाक़ात के लिए भी
राजा साहब के कुछ ख़ास दोस्तों की परमिशन लेनी पड़ती है.
और, इस वजह से देश में अजीबोग़रीब संकट खड़ा हो गया है.

ये कहानी नॉर्थ अफ़्रीका के देश मोरक्को और वहां के ‘किंग मोहम्मद सिक्स्थ’ की है. जिन्हें उनकी हरक़तों के कारण ‘द मिसिंग किंग’ यानी गुमशुदा सुल्तान भी कहा जाता है. मोहम्मद 1999 से मोरक्को की गद्दी पर हैं. उनके सामने अरब क्रांति हुई. इसने अरब देशों को हिलाकर रख दिया. मगर मोहम्मद की कुर्सी पर कोई आंच नहीं आई. उलटा उनकी स्थिति मज़बूत ही हुई. लेकिन अब ये दरख्त टूट रहा है. सल्तनत के बड़े मंत्री और अधिकारी दबी ज़ुबान में नाराज़गी जता रहे हैं. उनका कहना है कि राजा अय्याशी के चक्कर में मुल्क को डुबो रहे हैं. इस नाराज़गी के केंद्र में एक मार्शल आर्ट चैंपियन है. जिसके इशारे पर राजा ने सल्तनत को ठेंगे पर रख दिया है. उसको मोरक्को का रास्पुतिन कहा जा रहा है.

तो आइए जानते हैं जर्मनी से आया एक फ़ाइटर कैसे मोरक्को का सर्वेसर्वा बन गया?

अफ़्रीकी महाद्वीप की उत्तर की तरफ़ बढ़ने पर अंतिम कोने पर जो ज़मीन दिखती है, वही मोरक्को है. एकदम स्पेन को छूता हुआ. अगर बीच में समंदर ना होता तो शायद उसको यूरोप का हिस्सा मान लिया गया होता.

मोरक्को पश्चिम और उत्तर में दो समंदरों से घिरा है. अटलांटिक सागर और भूमध्यसागर. पूरब की तरफ़ अल्जीरिया है. उसके साथ दुश्मनी का लंबा इतिहास है.

फिर दक्षिण में पड़ता है, वेस्टर्न सहारा. 1975 से पहले तक ये स्पेन की कॉलोनी थी. फिर मोरक्को ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया. वेस्टर्न सहारा का 80 प्रतिशत हिस्सा मोरक्को के पास है. अमेरिका ने इस क़ब्ज़े को मान्यता दे रखी है. बाकी हिस्से में सहरावी लोग रहते हैं. सहरावी कबीले सदियों से उत्तरी सहारा में रहते आए हैं. वे वेस्टर्न सहारा को अपने पुरखों की ज़मीन मानते हैं. उन्होंने मोरक्को के साथ सशस्त्र संघर्ष भी किया. लेकिन वे जीत नहीं पाए. फिर अल्जीरिया की मदद से सहरावी अरब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (SADR) की स्थापना की. SADR को लगभग 45 देशों की मान्यता मिली हुई है. इसको लेकर भी मोरक्को और अल्जीरिया आपस में झगड़ते रहते हैं.

अफ़्रीकी महाद्वीप में होने के बावजूद मोरक्को अपने पड़ोसियों से थोड़ा अलग है. इतिहास में इस हिस्से पर अलग-अलग संस्कृतियों का दखल रहा. इसका असर आज भी दिखता है.

मोरक्को के बारे में कुछ और फ़ैक्ट्स जान लीजिए.

आधिकारिक नाम - किंगडम ऑफ़ मोरक्को.

आबादी - लगभग 03 करोड़ 80 लाख.

धर्म - 99 प्रतिशत आबादी इस्लाम की सुन्नी धारा का पालन करती है. दशमलव एक प्रतिशत से भी कम शिया हैं. बाकी में ईसाई, यहूदी और बाकी धर्मों के लोग हैं.

मोरक्को का राजकीय धर्म इस्लाम है.

मुख्य भाषाएं - अरबी, फ़्रेंच और बेबर कबीले की उपबोलियां.

एरिया - लगभग साढ़े 04 लाख वर्ग किलोमीटर. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल के बराबर होगा.

करेंसी - मोरक्को दिरहम. अभी मोरक्को के एक दिरहम की कीमत भारत में 8 रुपये से थोड़ी अधिक है.

राजधानी - रबात. इसका शाब्दिक अर्थ होता है, सुरक्षित किला.

मोरक्को में संवैधानिक राजशाही वाली व्यवस्था है. यहां संसद भी है और राजा भी. सरकार की ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री के पास है. जबकि राष्ट्र का मुखिया राजा होता है. ये सिस्टम काफ़ी हद तक ब्रिटेन से मिलता-जुलता है. लेकिन मोरक्को में सभी अहम मुद्दों पर अंतिम फ़ैसला राजा का होता है. जबकि ब्रिटेन में राजशाही के पास कोई असली शक्ति नहीं है.

आपने मोरक्को के बारे में बेसिक चीज़ें समझ ली होंगी. अब इतिहास जान लेते हैं.

मोरक्को का लिखित इतिहास एक हज़ार ईसापूर्व से मिलता है. इतिहासकारों के मुताबिक, इस इलाके में सबसे पहले लेबनान के व्यापारी आए थे. उन्होंने मोरक्को में बहुत सारे बाज़ारों की नींव रखी. धीरे-धीरे लोगों की बसाहट शुरू हुई. फिर बेबर कबीलों ने किंगडम ऑफ़ मॉरिटियाना की स्थापना की. मौजूदा समय में ये एक अलग देश है.

मोरक्किंको के राजा मोहम्मद सिक्स्थ 

फिर आए रोमन. उन्होंने बेबर कबीले का प्रभाव कम कर दिया. पहली सदी में वो मॉरिटियाना को जीत चुके थे. उत्तरी अफ़्रीका पर उनका एकाधिकार था. उनका शासन छठी सदी तक चला.
सातवीं सदी में इस्लाम का उदय हुआ. 705 में इस्लाम मोरक्को पहुंच चुका था. इसके साथ ही मोरक्को रियासतों में बंट गया. उनके बीच वर्चस्व की लड़ाई कई सौ सालों तक चली. इसके कारण शासक वंश बदलते रहे. ये भगदड़ 17वीं सदी में जाकर थमी. 1666 ईस्वी में मोरक्को में अलविया वंश का शासन शुरू हुआ. यही आज तक मुल्क चला रहा है. इसी वंश के मोहम्मद सिक्स्थ मोरक्को के मौजूदा सुल्तान हैं. हालांकि, इस बीच में कई बड़े उतार-चढ़ाव आए.

19वीं सदी में ख़िलाफ़त का रुतबा घट रहा था. ऐसे में यूरोप के औपनिवेशिक देश आगे आए. मोरक्को में स्पेन और फ़्रांस की दिलचस्पी थी. जर्मनी ने इसका विरोध किया. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. ब्रिटेन ने फ़्रांस का साथ दिया. 1912 में सुल्तान को आंतरिक विद्रोह से बचाने के नाम पर फ़्रांस ने मोरक्को को अपने कंट्रोल में ले लिया. स्पेन को भी दो शहरों का नियंत्रण मिला. स्थानीय बेबर कबीलों ने इसका विरोध किया. 1920 में क्रांति भी हुई. लेकिन स्पेन और फ़्रांस ने मिलकर उन्हें आसानी से हरा दिया.

दूसरे विश्वयुद्ध के समय मोरक्को का कैसाब्लांका एक ऐतिहासिक घटना का गवाह बना. जनवरी 1943 में भीषण लड़ाई के बीच तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और फ़्री फ़्रांस के नेता चार्ल्स डी गॉल इसी शहर के अनफ़ा रिजॉर्ट में इकट्ठा हुए थे. ‘फ़्री फ़्रांस’, फ़्रांस की निर्वासित-सरकार को कहा जाता था. इस मीटिंग में जर्मनी पर बमबारी, परमाणु बम की रिसर्च और जापान के सरेंडर पर चर्चा हुई. यहीं पर जर्मनी, इटली और जापान से बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कराने पर भी सहमति बनी थी. न्यू यॉर्क टाइम्स ने तब लिखा था, किसी भी अन्य सम्मेलन की तुलना में सबसे ज़रूरी फ़ैसले कैसाब्लांका में लिए गए.

1945 में दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया. औपनिवेशिक देशों आज़ादी की मांग उठने लगी. ये लहर मोरक्को में भी पहुंची. उस समय सुल्तान मोहम्मद पंचम का शासन था. उन्होंने भी फ़्रांस से आज़ादी की मांग की. लेकिन फ़्रांस इसके लिए तैयार नहीं था. उसने अगस्त 1953 में सुल्तान को गद्दी से उतार कर निर्वासन में भेज दिया. इसका भारी विरोध हुआ. फ़्रांस को झुकना पड़ा. 1956 में मोहम्मद पंचम की वापसी हुई. आख़िरकार, मार्च 1956 में फ़्रांस ने मोरक्को की आज़ादी को मान्यता दे दी. दो इलाकों पर स्पेन का नियंत्रण बना रहा.

1961 में मोहम्मद पंचम की मौत हो गई. फिर सत्ता उनके बेटे हसन द्वितीय के पास आई. उनका शासन 1999 तक चला. इस काल को मोरक्को के आधुनिक इतिहास में सबसे अहम माना जाता है. इस दौरान तीन बड़ी घटनाएं घटीं.

- नंबर एक. तख़्तापलट की कोशिश.

वो 10 जुलाई 1971 की तारीख़ थी. उस रोज़ हसन द्वितीय के जन्मदिन की पार्टी थी. सुल्तान ने डिप्लोमैट्स और दूसरे गणमान्य लोगों को न्यौता भेजकर बुलाया था. लेकिन सेना के विद्रोही गुट का कुछ और ही इरादा था. उन्होंने पार्टी में घुसकर 100 से ज़्यादा लोगों की हत्या कर दी. राजा ने बाथरूम में छिपकर अपनी जान बचाई. गोलीबारी थमने के बाद वो बाहर निकले. उनको देखते ही विद्रोही मिलिटरी अफ़सर ने बंदूक नीचे फेंक दी. कुछ ही समय के अंदर बाग़ी गुट को गिरफ़्तार कर गोली मार दी गई. इस घटना के बाद सुल्तान ने मोहम्मद ओफ़कीर को अपना डिफ़ेंस मिनिस्टर बना दिया. ये उनकी बड़ी भूल थी. इसने एक बार फिर उनकी जान को ख़तरे में डाल दिया था.

दरअसल, अगस्त 1972 में सुल्तान पेरिस से वापस लौट रहे थे. जैसे ही उनका हवाई जहाज मोरक्को की सीमा में दाखिल हुए, उन्हें चार फ़ाइटर जेट्स ने घेर लिया. सुल्तान के जहाज पर फ़ायरिंग हुई. लेकिन किसी तरह पायलट ने प्लेन सुरक्षित तरीके से लैंड करा दिया. तब उन्होंने रेडियो पर संदेश भेजा, सुल्तान की मौत हो चुकी है. ये सुनते ही फ़ाइटर जेट्स वापस लौट गए. इसके बाद साज़िश करने वालों को ढूंढकर मार दिया गया. इस साज़िश का मास्टरमाइंड डिफ़ेंस मिनिस्टर ओफ़कीर था. उसने अपने महल में आत्महत्या कर ली.
इसके बाद भी सुल्तान को मारने की कई कोशिश की गई. लेकिन वो हमेशा सुरक्षित बच निकले. इस बीच उन्होंने अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए ज़मीनें बांटी. रोजगार के अवसर बढ़ाए. और भी बहुत सारी योजनाएं लेकर आए. फिर 1975 में उन्होंने कुछ ऐसा किया कि पूरा मुल्क उनके पीछे खड़ा हो गया. इस घटना को इतिहास में ग्रीन मार्च के नाम से जाना जाता है.

- नंबर दो. ग्रीन मार्च.

नवंबर 1975 में हसन द्वितीय ने मोरक्को के 03 लाख 50 हज़ार लोगों को ट्रकों में भरकर वेस्टर्न सहारा की तरफ़ रवाना किया. ये इलाका मोरक्को के दक्षिण में है. उस समय इस इलाके पर स्पेन का शासन चल रहा था. लेकिन लंबे समय से चल रहे विद्रोह के कारण वो जाने की तैयारी भी कर रहा था.

सुल्तान के भेजे साढ़े तीन लाख लोगों ने वेस्टर्न सहारा पर मोरक्को का दावा मज़बूत कर दिया. स्पेन, वेस्टर्न सहारा का कंट्रोल मोरक्को और मॉरिटियाना को सौंप दिया. पोलिसारियो फ़्रंट ने इसका विरोध किया. वे लंबे समय से स्पेन से आज़ादी की मांग कर रहे थे. उन्हें अल्जीरिया और लीबिया का सपोर्ट मिल रहा था. उन्होंने हिंसा की धमकी दी. जवाब में मोरक्को और मॉरिटियाना ने अपनी सेना भेज दी. 1979 में मॉरिटियाना ने हाथ खींच लिया. जिसके बाद मोरक्को अकेला पड़ गया. लेकिन वो अपने दावे पर डटा रहा.

1984 में सुल्तान ने लीबिया के तानाशाह नेता मुअम्मार अल-गद्दाफ़ी से समझौता कर लिया. इसके तहत, लीबिया ने पोलिसारियो फ़्रंट से सपोर्ट वापस ले लिया. 1980 के दशक में अल्जीरिया की स्थिति भी कमज़ोर हो रही थी. उसके लिए भी सपोर्ट देना मुश्किल हो रहा था. इसने मोरक्को की स्थिति मज़बूत कर दी. 1991 में पोलिसारियो फ़्रंट और मोरक्को के बीच संघर्षविराम समझौता हो गया. ये समझौता 2020 में टूट गया. मगर मोरक्को वेस्टर्न सहारा में बना हुआ है.

लीबिया के तानाशाह नेता मुअम्मार अल-गद्दाफ़ी 

- हसन द्वितीय के शासनकाल की तीसरी बड़ी घटना थी, संवैधानिक राजशाही का पालन. उनसे पहले तक मोरक्को में निरंकुश राजशाही थी. यानी, राजा का वचन ही शासन होता था.
हसन द्वितीय के शासन में कई बार संविधान बदला गया. इसमें संसद की स्थापना से लेकर राजनैतिक पार्टियों को आज़ादी देने का दिखावा हुआ. लेकिन असली शक्ति सुल्तान के पास बनी रही. ये स्थिति हसन द्वितीय के बाद बरकरार है.

मोरक्को में सबसे ऊपर सुल्तान है. सेना की कमान उन्हीं के पास रहती है. प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार भी सुल्तान के पास है. सुल्तान जब चाहे तब किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है. अगर उसका मन हुआ तो संसद भी भंग कर सकता है. न्यायपालिका का मुखिया भी सुल्तान ही होता है. इसलिए, ये कहने को संवैधानिक राजशाही है. मगर असलियत में ये राजतंत्र का ही बिगड़ा हुआ स्वरूप है.

खैर, जुलाई 1999 में हसन द्वितीय की हार्ट अटैक से मौत हो गई. तब सत्ता आई उनके सबसे बड़े बेटे मोहम्मद सिक्स्थ के पास आई. गद्दी पर बैठते समय उसकी उम्र 35 साल थी. मगर उसने शादी नहीं की थी. उसकी छवि प्लेबॉय की थी. उसको सुंदर महिलाओं के साथ पार्टियां करना और रंगीन कपड़े पहनना बेहद पसंद था. अचानक से उसकी भूमिका बदल गई. उसे मोरक्को का सुल्तान बना दिया गया था. उसके हिस्से में बिखरी विरासत आई थी. राजनैतिक पार्टियों के बीच टकराव चरम पर था. मोरक्को पर प्रेस और आलोचकों के दमन के आरोप लग रहे थे. आरोप मानवाधिकार उल्लंघन के भी थे. देश में बेरोज़गारी और महंगाई की समस्या भी थी. मोहम्मद सिक्स्थ ने सब ठीक करने का दावा किया. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उलटा ये हुआ कि उनकी निरंकुशता बढ़ती गई.

फिर 2011 में अरब देशों में बवाल शुरू हुआ. ट्यूनीशिया से शुरू हुई क्रांति सीरिया, यमन, ईजिप्ट, लीबिया समेत कई देशों में पहुंची. इसका असर मोरक्को में भी दिखा. लेकिन सुल्तान के ख़िलाफ़ आंदोलन ज़ोर नहीं पकड़ पाया. हालांकि, अरब स्प्रिंग की वजह से उन्हें बहुत सारे बदलाव करने पड़े. नया संविधान लागू किया गया. सुल्तान ने अपनी कई शक्तियां प्रधानमंत्री और संसद को ट्रांसफ़र कीं. संसद को भंग करने का अधिकार प्रधानमंत्री को मिला. क्षमादान का अधिकार संसद को दे दिया गया. इससे पहले इन पर सुल्तान का एकाधिकार हुआ करता था.
हालांकि, ये बदलाव भी छलावा साबित हुआ. मोरक्को में समस्याएं बरकरार रहीं. फिलहाल, तीन मुद्दों को लेकर उनकी आलोचना हो रही है. क्या-क्या? बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी और सरकारी तंत्र का दमन. कहा जा रहा है कि ये मुद्दे उनकी कुर्सी भी खा सकते हैं. इसकी संभावना कम है. फिर भी इसने मोरक्को को संकट के दलदल में धकेल ही दिया है.

इन सबके बीच सुल्तान क्या कर रहे हैं?

वो विदेश यात्राएं कर रहे हैं. बड़ी-बड़ी पार्टियों में हिस्सा ले रहे हैं. 1999 में कुर्सी पर बैठने के बाद से उन्होंने एक भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं की है. एक बार भी टीवी पर इंटरव्यू नहीं दिया है. वो इंटरनैशनल समिट में हिस्सा लेने से बचते हैं. द इकोनॉमिस्ट के एक लेख में निकोलस पल्हाम लिखते हैं, उनका पहनावा, उनका चाल-चलन, उनकी आदतें आदि बताती हैं कि उन्हें सुल्तान बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है. वो कुछ और ही होना चाहते हैं. लेकिन वो पैसे का लोभ छोड़ नहीं पा रहे.

2018 के बाद से सुल्तान की गतिविधि में भयानक अंतर आया है. वो अब अपने मंत्रियों और अधिकारियों से भी नहीं मिलते. वो एक बरस में 200 से अधिक दिनों तक देश से बाहर रहते हैं. उन्हें समंदर में महंगे याट्स पर शराब पीना पसंद है. लेकिन मुल्क में तड़प रही जनता का दुख वो नहीं देखना चाहते. उन्हें अपने सुख के अलावा किसी और चीज की चिंता नहीं है.

2018 में ऐसा क्या हुआ? उस बरस उनकी मुलाक़ात अबू अज़ैतार और उसके दो भाईयों से हुई. अबू जर्मनी में पैदा हुआ था. लेकिन उसके माता-पिता मोरक्को में ही पैदा हुए थे. जवानी के दिनों में वो कई बरस तक जेल में रहा. कार चुराने, हफ़्ता वसूलने और अपनी गर्लफ़्रेंड को पीटने के आरोपों में वो दो बार जेल गया. बाद में उसने मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स (MMA) में कैरियन बनाने का फ़ैसला किया. चैंपियन भी बना. 2016 में वो सुल्तान से मिला.

कालांतर में तीनों भाईयों ने सुल्तान पर ऐसा जादू किया कि वो उसके मोह से निकल ही नहीं पाए. जैसे-जैसे उनकी दोस्ती बढ़ी, मोरक्को में अबू अज़ैतार का रुतबा बढ़ता चला गया. तीनों भाईयों ने सुल्तान की फ़िटनेस सुधारने में मदद की. 2018 से पहले तक सुल्तान का वजन काफ़ी बढ़ा हुआ था. उन्हें अस्थमा और दूसरी छोटी-मोटी बीमारियां भी थीं. अबू ने उनके लिए उनके महल में जिम बनवाया. हेल्थ सुधारी और फिर सुल्तान की फ़ैमिली का हिस्सा बन गया.

अब हालत ये है कि,

अबू अज़ैतार और उसके भाईयों के पास मोरक्को में शानदार हवेलियां हैं. वे मोरक्को के मिलिटरी प्लेन्स में सफ़र करने लगे. वे राजमहल में जब चाहें तब जा सकते हैं. उनके पास किसी भी सुल्तान की किसी भी कार को इस्तेमाल करने का हक़ है. जब उनकी मां की मौत हुई तो सुल्तान ने दफ़नाने के लिए राजसी ज़मीन दे दी. इससे पहले तक सुल्तान ने इतना अधिकार किसी भी बाहरी शख़्स को नहीं दिया था.

अगर बात यहीं तक होती तो मोरक्को के लोगों ने सब्र कर लिया होता. लेकिन मामला इससे कहीं आगे बढ़ चुका है. मंत्रियों और अधिकारियों को सुल्तान से मिलने के लिए अबू और उसके भाईयों से होकर गुजरना होता है. उनके इशारों पर सरकारी फ़ैसले लिए जाने लगे हैं. वे सुल्तान को जहां चलने के लिए कहते हैं, वो कभी मना नहीं करते.

मोरक्को में भले ही संवैधानिक राजशाही हो, लेकिन अभी भी असली शक्तियां सुल्तान के पास ही हैं. अंतिम फ़ैसला उन्हीं का होता है. उनके बिना सरकार नहीं चल सकती. बहुत सारी योजनाएं लागू नहीं की जा सकतीं. ये जानने के बावजूद उन्होंने ख़ुद को अपनी ज़िम्मेदारियों से अलग कर लिया है. निकोलस पल्हाम को एक अधिकारी ने कहा, मुल्क बिना किसी कप्तान के चल रहा है. ये कभी भी टूटकर बिखर सकता है.

निकोलस पल्हाम कहते हैं, मोरक्को में इस समय अभूतपूर्व संवैधानिक संकट पैदा हुआ है. लोगों को ये नहीं पता कि उनका राजा क्या कर रहा है? उन्हें ये अंदाजा भी नहीं है कि वो कितनी शक्तियां इन भाईयों को दे सकता है? ये स्थिति लंबे समय तक कायम नहीं रह सकती. बहुत जल्द कोई बड़ी घटना दिख सकती है.

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