कहानी संविधान सभा में रहे राजा बहादुर सरदार सिंह की 2,500 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी की
जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है.
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खेतड़ी रियासत साइज़ में बहुत छोटी, लेकिन ख़ूब मालदार थी. इनकी अमीरी का सबसे बड़ा ज़रिया थीं तांबे की खानें. खेतड़ी के आख़िरी राजा बहादुर सरदार सिंह का कोई वारिस नहीं. उनकी मौत के बाद से ही रियासत की संपत्ति को लेकर अदालत में मुकदमा चल रहा है. तस्वीर में भोपालगढ़ किले से लिया गया नीचे बसे खेतड़ी शहर का एक फ्रेम है (फोटो: इंडिया टुडे)
राजा बहादुर सरदार सिंह. रानी भुवन लक्ष्मी देवी. राना राजपुताना के. रानी का मायका नेपाल. शादी हुई. फिर तलाक़ हुआ. बिना वारिस के राजा-रानी गुज़र गए. पीछे छोड़ गए ढेर सारी ज़ायदाद. किले, महल, होटेल. दो-ढाई हज़ार करोड़ से ऊपर की संपत्ति. जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है. राजा की संपत्ति राजस्थान सरकार ने ले ली. उस संपत्ति के दावेदार हैं. एक वसीयत है. जिसे कोई सबूत के तौर पर पेश कर रहा है. इस पूरे मामले में, बल्कि कहिए कि इस पूरी कहानी में कई नाम बड़े जाने-पहचाने हैं. जैसे- स्वामी विवेकानंद. नेहरू खानदान. सुप्रीम कोर्ट में जिन दो जजों को फ़ैसला करना था, उनकी एक राय बनी नहीं. अब ये केस जाएगा भारत के मुख्य न्यायाधीश के आगे. वो इसे एक बड़ी बेंच के सुपुर्द करेंगे. वो जब होगा, तब होगा. अभी इसके बहाने हम राजा की कहानी सुनाते हैं आपको.
छोटी, लेकिन बहुत अमीर रियासत दिल्ली से तकरीबन 170-180 किलोमीटर दूर. राजस्थान में एक जगह है- खेतड़ी. आज़ादी के पहले की एक छोटी सी रियासत. पठारों की चौहद्दी. शेखावत राजपूतों का राज. 1742 में नींव डली रियासत की. साइज़ में बहुत छोटी रियासत. लेकिन पैसा बहुत था इनके पास. कारण, तांबे की खान. एक ठाकुर किशन सिंह थे, वही थे पहले राजा यहां के. हमको उनसे काम नहीं. हमको काम है सातवें राजा फतेह सिंह से. जिनका नाम आपको जवाहरलाल नेहरू के पुरखों की कहानी में भी मिलेगा.The Company is privileged to have one its plants located in Khetri, Rajasthan, the erstwhile princely state of Raja Ajit Singh Bahadur who was a close friend and disciple of Swami Vivekananda. Khetri is honoured to have hosted Swami Vivekanand three times in his life time.
— Hindustan Copper Ltd (@copper_ltd) January 12, 2018
नेहरू खानदान कहां है पिक्चर में? 1857 के गदर के वक्त दिल्ली में बहुत मार-काट हुई. बहुत बर्बादी हुई. हजारों लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा. भागने वालों में गंगाधर नेहरू का परिवार भी था. ये लोग भागकर आगरा चले गए. गंगाधर और उनकी पत्नी इंद्राणी के परिवार को पांच बच्चे हुए. दो बेटियां- पटरानी और महारानी. और तीन बेटे- बंसीधर, नंदलाल और मोतीलाल. नंदलाल पहले स्कूल मास्टरी करते थे. फिर बने दीवान. आगरा से तकरीबन 300 किलोमीटर दूर राजस्थान में खेतड़ी रियासत. यहां के राजा थे फतेह सिंह. नंदलाल इन्हीं के दीवान थे. नंदलाल राजा के वफ़ादार थे. राजा का कोई बेटा नहीं था. वो एक बच्चा गोद लेना चाहते थे. वरना उनकी रियासत अंग्रेज़ हथिया लेते. एकाएक राजा की मौत हो गई. नंदलाल ने ये बात छुपाकर रखी. पड़ोस के अलसीसर का नौ साल का एक बच्चा. अजीत सिंह. उसे गोद लिवाकर राजा का वारिस बना दिया. काम तो हो गया. मगर इस चक्कर में नंदलाल की नौकरी चली गई.
स्वामी विवेकानंद को जिसने विवेकानंद नाम दिया अब हमारा पॉइंट ऑफ इंट्रेस्ट हैं अजीत सिंह बहादुर. खेतड़ी के 8वें राजा. टाइमलाइन, 1861 से 1901. स्वामी विवेकानंद के शिष्य. संन्यास से पहले विवेकानंद हुआ करते थे नरेंद्रनाथ दत्त. उन्हें 'विवेकानंद' का नाम अजीत ने ही दिया था. काफी करीबी थे वो. सितंबर 1893 में विवेकानंद शिकागो की धर्म संसद में हिस्सा लेने गए. वहां जाने का पैसा अजीत सिंह बहादुर ने ही दिया था उन्हें. शिकागो से जब भारत लौटे विवेकानंद, तो सबसे पहले खेतड़ी ही गए. रामकृष्ण मिशन वाले आश्रम बनाने के लिए भी अजीत सिंह बहादुर ने काफी पैसा दान दिया विवेकानंद को.5. Eldest, Bansilal Nehru was a judge. Nandlal Nehru was the Diwan of Khetri princely state in Raj, he later quit to practice law.
— Nehruvian (@_nehruvian) May 6, 2016

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन के साथ काफी भरा-पूरा रिश्ता है. ये रिश्ता आज भी दिखता है खेतड़ी में. ये स्वामी विवेकानंद के सम्मान में निकली एक शोभायात्रा (फोटो: इंडिया टुडे)
राजा की सेना अंग्रेजों के लिए लड़ी थी पहला विश्व युद्ध. इस समय खेतड़ी के राजा थे अमर सिंह बहादुर. इन्होंने अपने 20 हज़ार सैनिक भेजे थे. अंग्रेज़ी सेना की तरफ से लड़ने के लिए. इनमें से दो हज़ार सैनिक मारे गए. इन्हीं अमर सिंह बहादुर के बेटे थे बहादुर सरदार सिंह. इस वंश के आख़िरी राजा. खेतड़ी रियासत के 11वें राजा. मार्च 1920 की पैदाइश. 1942 में बने राजा.
संविधान सभा से सांसद, फिर राजदूत. वो तो दौर ही अलग था. राजशाही जाने के दिन थे. फिर देश आज़ाद हुआ. रियासतों को मुल्क में मिलना पड़ा. खेतड़ी भी भारत का हिस्सा हो गया. राजा बहादुर सरदार सिंह संविधान सभा के भी सदस्य रहे. 1950 से 1952 के बीच जो प्रोविज़नल संसद थी, उसके भी मेंबर थे राजा बहादुर. फिर 1952 से 1956 के बीच राज्यसभा भेज गए. 1958 से 1961 के बीच भारत ने उनको राजदूत बनाकर भेजा लाओस. 30 अक्टूबर, 1985. राजा बहादुर की मौत हो गई. चूंकि उनका कोई वारिस नहीं था, सो राजस्थान सरकार ने उनकी संपत्ति ले ली. राजस्थान ऐसचीट्स रेगुलेशन ऐक्ट, 1956 कानून के तहत.

ये खेतड़ी ट्रस्ट के ट्रस्टियों की 2014 में ली गई एक तस्वीर है. (बाएं से दाहिने) फोटो में हैं लॉर्ड नॉर्थब्रुक, जोधपुर के पूर्व महाराज गज सिंह, पृथ्वी राज सिंह खंडेला और राजस्थान के पूर्व ADG अजीत सिंह शेखावत (फोटो: इंडिया टुडे)
खेतड़ी ट्रस्ट की क्या कहानी है? फिर एक डिवेलपमेंट हुई. एक खेतड़ी ट्रस्ट आया. इनका कहना है कि राजा बहादुर ने एक वसीयत छोड़ी थी.
इसमें उन्होंने ये ट्रस्ट बनाया. लिखा कि ट्रस्ट जनता की भलाई के काम करे. ख़ासतौर पर शिक्षा पर. जो अच्छे स्टूडेंट हैं, उन्हें स्कॉलरशिप दिया जाए. पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं, स्कूल, रिसर्च सेंटर बनाए जाएं. राजा बहादुर ने अपनी सारी संपत्ति इसी ट्रस्ट के नाम की. उनकी मौत के बाद जब सरकार ने राजा बहादुर की संपत्ति ले ली, तो इस संपत्ति पर दावा करने वाले रियासत के करीबियों ने एक याचिका डाली अदालत में. ये लोग सरकार से सारी खेतड़ी की सारी शाही संपत्ति वापस चाहते हैं.

ये भोपालगढ़ किले के अंदर की एक तस्वीर है. कई जगहों पर ऐसा हाल मिलता है. कीमती चीजें लोग लूट ले गए. पेंटिंग्स चुरा ली. मूर्तियां तोड़ दी. दीवारें खराब कर दी. जो दीवार दिख रही हैं, वहां कभी नक्काशी हुआ करती थी (फोटो: इंडिया टुडे)
तकरीबन 32 साल हो गए केस शुरू हुए. दो दर्ज़न से कहीं ऊपर जज केस को सुन चुके हैं. इस मामले का एक अहम कानूनी पहलू ये है कि राजा बहादुर की जो वसीयत बताई जा रही है, वो सच्ची है कि झूठी. 2012 में दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला दिया. कहा, उसे वसीयत की वैधता पर शुबहा है. फैसला ट्रस्ट के पक्ष में नहीं रहा. फिर इसकी अपील गई सुप्रीम कोर्ट. वहां दो जजों की खंडपीठ एकमत नहीं हो सकी. अब ये मामला चीफ जस्टिस के आगे जाने की बात है. जो इस केस को एक बड़ी खंडपीठ के आगे भेजेंगे सुनवाई के लिए.
ट्रस्ट के अलावा भी दावेदार हैं. जैसे, अलसीसर के गज सिंह. ये ख़ुद को राजा बहादुर का वारिस कहते हैं. कहते हैं, राजा बहादुर ने इन्हें गोद लिया था. हालांकि गज सिंह ने बाद में ये भी कहा कि अगर खेतड़ी रियासत की जायदाद ट्रस्ट को जाती है, तो उन्हें कोई परेशानी नहीं.

ये भी खेतड़ी रियासत की प्रॉपर्टी है. जय निवास कोठी. इसपर ताला लगा हुआ है. हालत इसकी भी बदहाल है (फोटो: इंडिया टुडे)
ट्रस्ट का कहना है कि सरकार की तरफ से खेतड़ी रियासत के किलों और महलों की सही देखभाल नहीं की जा रही है. इस वजह से कई सारी बेशकीमती चीजें चोरी हो चुकी हैं. रियासत की सैकड़ों प्रॉपर्टीज़ अवैध कब्जे की शिकार हैं. एन्क्रॉचमेंट हो चुका है. जो बचा है, उन्हें एन्क्रॉच करने की कोशिश लगातार होती रहती है. खेतड़ी का गोपालगढ़ किला भी मेंटेनेंस के अभाव में बर्बाद हो रहा है. जयपुर के खेतड़ी हाउस की अलग ही कहानी है. उसे किसी ने फर्ज़ीवाड़ा करके बेच दिया था. बाक़यदा विज्ञापन निकलवा कर. फर्ज़ी तरीके से इसके खरीदने-बेचने की लगातार कोशिश होती रहती है. खेतड़ी ट्रस्ट का कहना है कि वो ही इन सबकी सही तरह से देखभाल कर सकते हैं. दावों का फैसला कोर्ट करेगी. मगर खेतड़ी रियासत के किलों और महलों की जो बुरी हालत है, उसको देखकर कोई इनकार नहीं. कि सरकार सच ही में इन्हें डिज़र्व नहीं करती.
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