The Lallantop
Advertisement

1800 साल पहले भारत में शराब पीने के बाद हैंगओवर कैसे उतारा जाता था?

कालिदास के लिखे से हमें प्राचीन भारत के बारे में कई जानकारियां मिलती हैं. 1800 साल पहले लोग क्या खाते थे? क्या पहनते थे? सजते-संवरते कैसे थे? कितने तरह की शराब मिलती थी और ये कैसे बनती थी? इन सबका उल्लेख किया गया है.

Advertisement
Record of Ancient India by Kalidasa
हजारों साल पहले भारतीय जीवन की एक झलक (सांकेेतिक तस्वीर)
pic
कमल
23 सितंबर 2024 (Updated: 28 सितंबर 2024, 07:46 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

नारिकेलासव (Coconut Wine), सिधु और माधुक 1800 साल पहले भारत में मदिरा के प्रेमियों के पास इन तीन ब्रांड का ऑप्शन होता था. इतना ही नहीं, अगर ज्यादा पी ली तो हैंगोवर का इलाज भी था. इसके लिए पीना होता था गन्ने का रस. शराब (alcohol) का सेवन सेहत के लिए हानिकारक होता है. लेकिन ये सब बातें हम आपको बता रहे हैं, इतिहास की खातिर. इतिहास, यूं इम्तिहान का एक सब्जेक्ट हो सकता है. लेकिन इतिहास का मूल उद्देश्य हमारे कौतुहल को शांत करना है. 

हजारों साल पहले की दुनिया (Ancient India) कैसी थी? लोग क्या खाते थे? क्या पहनते थे? कैसे सफर करते थे? इन बातों का आंसर हम सभी अंदाज़े से जानते हैं. लेकिन ये अंदाज़ा बहुत सूखा-सूखा है. क्या मजा आए अगर कोई विस्तार से बताए कि 1800 साल पहले पुलिसवाले घूस कैसे मांगते थे? या सरकारी विभाग में फ़ाइल आगे कैसे बढ़ती थी? बैंक कैसे काम करते थे? इन सवालों के जवाब हमें देकर गया है वो शख्स, जिन्हें हम महाकवि कालिदास (Kalidasa) के नाम से जानते हैं. कालिदास के लिखे से हमें प्राचीन भारत (Record of Ancient India) के बारे में क्या-क्या पता चलता है?

कालिदास की कहानी

कालिदास (Kalidasa) कब पैदा हुए? ठीक-ठीक बताना मुश्किल है. अलग-अलग सोर्स उन्हें ईसा पूर्व पहली सदी से लेकर चौथी शताब्दी के बीच के काल का बताते हैं. कहानी के अनुसार कालिदास की शादी विद्योतमा नाम की एक राजकुमारी से हुई. विद्योतमा की शर्त थी कि जो कोई उन्हें शास्त्रार्थ में हरा देगा. वो उसी से शादी करेंगी. कई विद्वान आए, लेकिन कोई विद्योतमा को हरा नहीं पाया. 

अंत में विद्योतमा से बदला लेने के लिए वे कालिदास को ले आए. कालिदास उन्हें जंगल में एक पेड़ पर मिले, जहां वे उसी डाल को काट रहे थे, जिस पर वे बैठे हुए थे. इससे महामूर्ख कहां मिलेगा, ये सोचकर विद्वानों ने विद्योतमा के सामने कालिदास को बिठा दिया. और कहा कि ये तुम्हें शास्त्रार्थ में हरा देगा. शर्त ये थी कि कालिदास मौन रहकर जवाब देंगे.

Kalidasa Vidyotama
विद्योतमा से शास्त्रार्थ करते कालिदास

विद्योतमा ने पहला सवाल पूछते हुए एक उंगली उठाई. मतलब था- परमात्मा एक है. कालिदास को लगा विद्योतमा कह रही हैं कि वो उसकी एक आंख फोड़ देंगी. जवाब में कालिदास ने दो उंगलियां उठा दी. वो कहना चाह रहे थे कि वो विद्योतमा की दोनों आंखें फोड़ देंदे. लेकिन विद्वानों ने विद्योतमा को बताया कि कालिदास के अनुसार आत्मा और परमात्मा दो हैं.

इसके बाद अगले सवाल की बारी आई. अबकी विद्योतमा ने अपना पूरा हाथ खोलकर दिखाया. आशय ये था की पांच तत्वों से संसार बना है. कालिदास को लगा विद्योतमा कह रही की वो उसे थप्पड़ मारेंगी. जवाब में कालिदास उन्हें घूंसा दिखाने लगे. विद्वानों ने बताया कालिदास का आशय है कि पांच तत्व जब आपस में मिलते हैं. तब जाकर दुनिया बनती है. शास्त्रार्थ पूरा हो गया. विद्योतमा मान गईं कि कालिदास अति विद्वान हैं. और इसके बाद दोनों की शादी करा दी गई.

इसे भी पढ़ें - तारीख: चाइनीज़ गेम Black Myth: Wukong और Journey To The West का इंडिया से क्या कनेक्शन है?

शादी के बाद जब असलियत सामने आई. विद्योतमा ने कालिदास को घर से निकाल दिया. इस घटना से कालिदास बहुत शर्मिंदा हुए. उन्होंने ठान लिया कि वो ज्ञानी बनेंगे. इसके बाद कालिदास ने कई ग्रंथ रचे. जो भारतीय साहित्य में सर्वोच्च कोटि के ग्रंथ माने जाते हैं. उनके तीन नाटक - 'मालविकाग्निमित्रम', 'अभिज्ञानशाकुंतलम' और ‘विक्रमोर्वशीयम’ प्रेम और राजनीति की कहानियां हैं. 
इसके अलावा 'कुमारसंभव' और 'रघुवंश' उनके महाकाव्य हैं, जो देवताओं और राजाओं की वंशावली का वर्णन करते हैं.

Kalidasa
विद्योतमा से मिली शर्मिंदगी से कालिदास ने रचे कई ग्रन्थ

'मेघदूत' और 'ऋतुसंहार' उनकी छोटी काव्य रचनाएं हैं, जो प्रकृति और मानवीय भावनाओं के बीच संबंध स्थापित करती हैं. इन ग्रंथों की अपनी साहित्यिक वैल्यू तो है ही. लेकिन ये हमें हजारों साल पुराने भारत के लोगों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं.

प्राचीन भारत के लोग खाते क्या थे?

कालिदास के महाकाव्य 'रघुवंश' में 'खीर' या 'पायसचारु' का उल्लेख मिलता है, जो आज भी भारतीय मिठाइयों में लोकप्रिय है. 'मोदक', जो गणेश जी का प्रिय भोग माना जाता है, का वर्णन कालिदास के सभी नाटकों में मिलता है. 'विक्रमोर्वशीयम' में कवि मोदक के विभिन्न भागों की तुलना चंद्रमा की कलाओं से करते हैं. 'शिखरिणी', जो आज के श्रीखंड जैसा एक व्यंजन था, का भी उल्लेख है. ये दही से बनाया जाता था और इसमें इलायची और लौंग, जैसे मसाले मिलाए जाते थे. 'रघुवंश' में बताया गया है कि आज के केरल में इलायची, लौंग और काली मिर्च जैसे मसालों की खेती हुआ करती थी. 

फलों की बात करें तो कालिदास के लेखन में आम का जिक्र कई बार किया गया है. अनाज और चावल के अलावा लोग मांस और मछली खाते थे. गंगा के मैदानों में पाई जाने वाली 'रोहित' या 'रोहू' मछली पसंद की जाती थी. यहां तक 'मालविकाग्निमित्रम' में कसाईखानों और मांस की ऐसी दुकानों का जिक्र मिलता है, जहां से मांस खरीदा जा सकता था.

मदिरा के प्रकार

मदिरा यानी शराब तीन प्रकार की होती थी. 

1. नारिकेलासव यानी नारियल (Coconut Wine) से निकाली गई शराब

2. सिधु यानी गन्ने से बनाई गई शराब

3. माधुक यानी फूलों से निकाली गई शराब

कालिदास लिखते हैं कि आम और फूलों के इस्तेमाल से शराब में सुगंध मिलाई जाती थी.

इसे भी पढ़ें - तारीख: इंसान के कपड़े पहनने का इतिहास, जुएं ने जानकारी जुटाने में कैसे मदद की?

लोग पहनते क्या थे?

खाने के बाद अब पहनावे पर आते हैं. कालिदास के लेखन से पता चलता है कि पहनावे में सफेद, लाल, नीले, केसरिया और काले रंग के पहनावे का इस्तेमाल होता था. पुरुष पगड़ी, स्कार्फ और धोती पहनते थे. रईस लोग अपनी पगड़ी को रत्नों से सजाते थे. कपड़ों में रेशम जिसे ‘कौशेयक’ कहा जाता था, उसका इस्तेमाल होता था. 'कुमारसंभव' में कालिदास 'चीनांशुक' नाम के एक रेशम का उल्लेख करते हैं, जो चीन से आयात होता था. ये सबसे अच्छी क्वॉलिटी का रेशम माना जाता था.

 

कालिदास कई प्रकार के आभूषणों का भी जिक्र करते हैं, सबसे ज्यादा मांग, निष्क नाम के एक हार की हुआ करती थी. जिसे सिक्के पिरोकर बनाया जाता था. मुक्तावली मोतियों की माला को कहते थे, वहीं सफ़ेद मणियों वाला एक हार होता था, जिसे हारशेखर कहते थे. इसी प्रकार, शुद्ध एकावली नाम का एक हार होता था, जिसमें बीच में एक रत्न जड़ा रहता था. इसी प्रकार लोग कान में कुंडल और हाथ में अंगूठी भी पहनते थे. कालिदास एक विशेष प्रकार की अंगूठी का जिक्र करते हैं, जो सांप के आकार की होती थी. और उसमें पहनने वाले का नाम लिखा होता था.

लोग सजते-संवरते कैसे थे?

'कुमारसंभव' और 'ऋतुसंहार' में कालिदास बताते हैं कि लोग नहाने से पहले विशेष लेप लगाते थे. जिन्हें 'अनुलेपन' और 'अंगराग' कहा जाता था. महिलाएं सफ़ेद रंग के एक पेस्ट से चेहरे पर पत्तियों का डिज़ाइन बनाती थीं. और होंठों पर लाख का रंग लगाकर उस पर लोध्र नामक लकड़ी का पाउडर लगाया जाता था. जो आज की लिपस्टिक का एक प्राचीन रूप था. चेहरा देखने के लिए लोग चमकीली धातु के बर्तन को दर्पण की तरह इस्तेमाल करते थे. और दर्पण समेत सज्जा का सारा सामान जिस बक्से में रखा जाता था, उसे मंजूषा कहते थे.

अर्थव्यवस्था और व्यापार

कालिदास के लेखन से तत्कालीन भारत की अर्थव्यवस्था और व्यापार के बारे में जानकारी मिलती है. उन्होंने अफगानिस्तान से लेकर दक्षिण भारत तक कृषि और व्यापार का उल्लेख किया है. ‘रघुवंश’ में कालिदास बताते हैं:

- अफगानिस्तान की ओक्सस घाटी में केसर की खेती होती थी.

- बंगाल में नवंबर से जनवरी तक फसल काटी जाती थी. ‘कलाम’ और ‘शाली’ नामक चावल की किस्में जंगलों में उगती थीं.

- मालवा के लोग मानसून के दौरान अपने खेतों में हल चलाते थे.

- पांड्य देश (तमिलनाडु) बहुमूल्य रत्नों और मोतियों के लिए प्रसिद्ध था.

- कलिंग (ओडिशा) और कामरूप (असम) से हाथी पकड़े जाते थे.

- हिमालय के जंगल रेज़िन और सुगंधित तेलों के लिए जाने जाते थे.

- केरल के जंगल लौंग, इलायची और काली मिर्च जैसे मसालों की आपूर्ति करते थे.

ये तमाम चीजें व्यापार के काम आती थी और व्यापार को सपोर्ट करने के लिए एक बैंकिंग सिस्टम भी मौजूद था. 

‘बैंकिंग’ की व्यवस्था कैसी थी?

कालिदास के लिखे से हमें ‘निक्षेप’ नाम के एक सिस्टम का पता चलता है. ‘निक्षेप’ के तहत किसी चीज को जमा करने और उसे हासिल करने के नियम तय होते थे. वहीं ‘न्यास’ नाम का एक दूसरा सिस्टम होता था. इसमें लोग अपने पैसे बैंक में जमा कर सकते थे. कालिदास की बात गुप्त काल के शिलालेखों से भी पुख्ता होती है. मध्यप्रदेश के मंदसौर में मिले गुप्त काल के एक शिलालेख में प्राचीन भारत में गिल्ड्स या कामगारों के एक संगठन का जिक्र है. जो जरूरत पड़ने पर लोन देते थे और पैसे भी जमा कर सकते थे.

Banks Guilds36737
प्राचीन भारत का  बैंकिंग सिस्टम 

कालिदास प्राचीन भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का भी जिक्र करते हैं. मसलन 'अभिज्ञानशाकुंतलम' में वे लिखते हैं कि राजा शिकार पर जाते समय यूनानी महिला सहायकों के साथ जाते थे. लगभग ऐसी ही प्रथा का जिक्र यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज ने अपनी किताब 'इंडिका' में किया है, जो कालिदास से लगभग 700 साल पहले लिखी गई थी.

राजनीति और शासन

कालिदास ने अपने लेखन में तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था का भी जिक्र किया है. 'अभिज्ञानशाकुंतलम' में वे सरकार को 'लोकतंत्र' कहकर बुलाते हैं. हालांकि, इससे उनका आशय डेमोक्रेसी से नहीं था. शासन व्यवस्था को वो 'लोकतंत्र' का नाम देते हैं. 'मालविकाग्निमित्रम' में वे 'मंत्री परिषद' का जिक्र करते हैं, जो शासन चलाने में राजा की मदद करती थी. मंत्री परिषद में तीन मंत्रियों का दर्ज़ा सबसे ऊपर होता था - मुख्य मंत्री, विदेश मंत्री और वित्त, कानून/न्याय मंत्री. 

क़ानून कैसे पास होता था?

कालिदास के अनुसार, कोई भी निर्णय मंत्रिमंडल के साथ ही लिया जाता था. जिसे मुहर लगाने के लिए राजा के पास भेजा जाता था. इतना ही नहीं, जैसा आज की नौकरशाही में होता है, मंत्री फाइलों पर अपनी टिप्पणी भी दर्ज़ करते थे. मंत्री परिषद के नीचे ‘तीर्थ’ या ‘विभाग प्रमुख’ होते थे. इसके अलावा एक ‘धर्माधिकारी’ होता था, जो धार्मिक मामलों का प्रभारी होता था.

Democracy ancient India
प्राचीन भारत की राजनीति

कालिदास के लिखे से पता चलता है कि पुलिस व्यवस्था भी हुआ करती थी. पुलिस प्रमुख को ‘नगरक’ कहते थे. सबसे दिलचस्प बात, कालिदास के अनुसार, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और जबरन वसूली जैसी दिक्कतें तब भी हुआ करती थीं. मसलन अभिज्ञानशाकुंतलम में जिक्र आता है कि एक पुलिसवाला मछुवारे से घूस के तौर पर शराब पिलाने की मांग करता है.

ये तमाम ब्यौरे आपने सुने. अपने शब्दों से हजारों साल पुराने भारत की जो तस्वीर कालिदास बनाते हैं, वैसी दूसरी तस्वीर मिलना कठिन है. कालिदास को कई बार ‘इंडिया का शेक्सपियर’ भी कहा जाता है. शेक्सपियर ने जो काम अंग्रेज़ी भाषा और पश्चिमी संस्कृति के लिए किया, उससे ज्यादा योगदान कालिदास का भारतीय संस्कृति में है. जबकि कालिदास शेक्सपियर से हजार साल पहले हुए थे. कालिदास का महत्व एक साहित्यकार के तौर पर हम जानते हैं. लेकिन आम लोगों का इतिहास बताने में कालिदास ने जो योगदान दिया है, उसका श्रेय उन्हें मिलना अभी बाकी है. 

वीडियो: तारीख: 1800 साल पहले भारत में शराब कैसे बनती थी और हैंगओवर कैसे उतारा जाता था?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement