जब दीपन ने जयललिता को धकियाया, पीटा और नीचे गिरा दिया
औरतों ने भी जयललिता के पैर कुचले, नाखून गड़ाए और नोचा.
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फोटो - thelallantop
DMDK चीफ विजयकांत की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की जयललिता सरकार को नसीहत भी दी थी कि मानहानि कानून को पॉलिटिकल हथियार की तरह नहीं यूज किया जाना चाहिए.
विजयकांत के खिलाफ मानहानि के 14 केस दर्ज करवाए गए थे. यहां तक कि उनके साथ-साथ उनकी वाइफ के खिलाफ भी गैर जमानती वारंट जारी हो गया था. और ये सब हुआ केवल इसलिए क्योंकि उन्होंने CM जयललिता के खिलाफ बोला था और तमिलनाडु की राज्य सरकार की आलोचना की थी.
जयललिता AIDMK की सर्वेसर्वा थीं. उनके खिलाफ तमिलनाडु में कुछ बोल पाना भी मुश्किल था. पर ये किस्सा है, उस वक्त का जब जयललिता को सरेआम पीट दिया गया था. ये है जयललिता के एक पॉलिटिकल हस्ती बनने से पहले का किस्सा.
MGR की लाश के पास 21 घंटे खड़ी रहीं जयललिता

दिसम्बर महीने के बीच का वक्त. साल 1987. चेन्नई का राजाजी हॉल. 38 साल की एक औरत जयललिता जयराम. जो उस वक्त अन्नाद्रमुक की प्रचार सचिव थीं. और आज तमिलनाडु की मुख्यमंत्री हैं. देश की सबसे शक्तिशाली औरतों में से एक, उस दिन करीब 21 घंटे से एक लाश के पास खड़ी थीं. और वो लाश थी तमिलनाडु के बहुत बड़े नेता MGR की.
जयललिता को पीटा गया और नीचे गिरा दिया गया
जब MGR के शव को राजाजी हॉल से निकालकर ले जाया जाने लगा तो जयललिता ने भी उस गाड़ी पर चढ़ने की कोशिश की, जिससे MGR को ले जाया जा रहा था. पर तभी आए MGR की पत्नी जानकी रामचंद्रन के भतीजे दीपन. दीपन ने जयललिता के सिर पर जोर से मारा और उन्हें नीचे उतार दिया. फिर जयललिता ने चढ़ने की कोशिश की तो दीपन ने उन्हें पीटा, धकियाया और नीचे गिरा दिया.जयललिता ने इस बारे में कहा था,
'मैंने फिर चढ़ने की कोशिश की, पर दीपन ने फिर मुझे धकियाया, पीटा और नीचे गिरा दिया. मेरे पूरे शरीर पर खरोंचें आईं, मैं बुरी तरह से घायल हो गई.'अन्नाद्रमुक के एक और विधायक भी जयललिता को पीटने में शामिल थे. उनका नाम था डॉ. के पी रामलिंगम. जयललिता का कहना तो ये भी था,
'जब मैं वहां पर खड़ी थी, तो करीब 7-8 औरतें मेरे पास आईं और खड़ी हो गईं. बार-बार वो मेरे पैरों को कुचलती रहीं. मेरे शरीर में यहां-वहां नाखून गड़ाती रहीं और नोचती रहीं. चेहरा छोड़ पूरे शरीर पर उन्होंने हमले किए, क्योंकि चेहरे पर वे कुछ करतीं तो लोगों को नजर आ जाता.'दरअसल MGR के मरने के बाद जयललिता समर्थक और जयललिता विरोधी दो गुटों में अन्नाद्रमुक का बंटवारा हो चुका था. MGR का परिवार चाहता था कि जयललिता इस आखिरी विदाई में भाग न लें. इसलिए जयललिता के साथ MGR के घरवालों ने ऐसा बर्ताव किया. आखिर में जयललिता उनसे बचने के लिए अपने गुट के लोगों के बीच चली आईं.
इससे पहले जब जयललिता को खबर मिली थी कि उनके आइडल नेता MGR की मौत हो गई है तो फौरन वो MGR के घर के लिए निकल पड़ी थीं.

जयललिता से जब इस घटना के बाद पूछा गया कि उनके हिसाब से उत्तराधिकारी कौन होगा, तो जयललिता ने मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह से जवाब दिया था कि लोकतंत्र में उत्तराधिकारी का चुनाव जनता करती है. जयललिता पॉलिटिक्स में बहुत आगे जाएंगी, इसका पता उसी समय लग गया था. वो दिन है और एक आज का दिन है, जब जयललिता यानी अम्मा से पूछे बिना AIDMK में एक पत्ता भी नहीं हिलता.

सोनिया गांधी के साथ जयललिता
MGR के अंतिम संस्कार में करीब 20 लाख लोग पहुंचे हुए थे. इतनी भीड़ थी कि उसको कंट्रोल करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा था, आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े थे. दंगे जैसा माहौल हो गया था. लोगों ने सारे शहर में तोड़-फोड़ की थी. फिर भी जयललिता का मानना था कि MGR जब करोड़ों लोगों के लीडर थे, तो उनकी आखिरी विदाई में बस 20 लाख लोगों का पहुंचना बहुत कम है.
जयललिता की ये बात भले ही कनपुरिया कहावत झाड़े रहो कलक्टरगंज
टाइप रही हो पर आखिर वक्त ने ये साबित कर ही दिया कि चाहे वो अन्नादुरई रहे हों या MGR, अगर कोई उनका असली सक्सेसर होने लायक था तो वो जयललिता ही थीं.