क्या वाक़ई भारत के तबलीगी जमात को सऊदी में बैन कर दिया गया है?
सऊदी अरब ने कौन से तबलीगी ग्रुप को आतंकी कहा है?
Advertisement

सऊदी अरब ने कौन से तबलीगी ग्रुप को आतंकी कहा है?
- ऐलान हो कि ये ग्रुप मिस गाइडडे है, भ्रमित है और खतरनाक है. ये आतंक के दरवाज़ों में से एक है, चाहे ये खुद से कुछ भी दावा करें.
- दूसरा बिंदु- उनकी बड़ी गलतियों का ज़िक्र किया जाए.
- समाज से उनको क्या खतरा है, ये बताया जाए.
- और ये बताया जाए कि तबलीगी और दावा जैसे ग्रुप सऊदी अरब किंगडम में प्रतिबंधित हैं.
लगभग 35 साल से एक संगठन के तौर पर ये सऊदी अरब में तबलीगी जमात तो है ही नहीं. मसला यह है कि हर मूवमेंट अपने आप को तबलीग कहती है. तबलीग का मतलब प्रोपगेशन होता है. वहां अल अहबाब नाम के संगठन में बैन लगाया है.अब ये अल अहबाब ग्रुप क्या है. इसके बारे में हमने गूगल से जानकारी जुटाने की कोशिश की. अहबाब का मतलब तो दोस्ती होता है. लेकिन अलबाब जैसे किसी ग्रुप की जानकारी हमें किसी क्रेडिबल सोर्स से नहीं मिली. सऊदी अरब की तरफ से भी कोई स्पीष्टीकरण या ऐसा कोई बयान इस मसले पर नहीं आया. हालांकि सऊदी अरब के बयान की भारत के इस्लामिक संगठनों ने मज़मत भी शुरू कर दी है. भारत के इस्लामिक स्कॉलर और धर्म गुरू कह रहे हैं कि इसके पीछे सऊदी अरब की राजनीति है. सऊदी अरब वहाबी इस्लाम को बढ़ावा देता है. इसलिए सूफी किस्म के इस्लाम को सऊदी खतरा मानता है. और इसीलिए उनको आतंकी कह देता है. अब आते हैं इस बात पर कि असल में तबलीगी जमात है क्या? आपने मिशनरी शब्द तो सुना ही होगा. मिशनरी शब्द का नाता ईसाई धर्म के साथ है. मिशन होता है ‘धर्म का प्रचार’. तबलीगी का मतलब भी यही होता है. तबलीग़ी का मतलब है ‘अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला’. वहीं जमात या ‘जमाअत’ का अर्थ है समूह, झुंड, क़तार. यानी तबलीग़ी जमात का मतलब हुआ अल्लाह के संदेशों का प्रचार करने वाला समूह. जब भारत में ब्रिटिश राज था, उस समय तबलीग़ी जमात की नींव पड़ी. ब्रिटिश राज के पहले देश में मुग़ल थे. अब जैसा लिखा मिलता है, मुग़लों के समय बहुतेरे लोगों ने इस्लाम क़ुबूल किया. लेकिन मुग़लों के जाने के बाद जब ब्रिटिश आए तो उसी समय आर्य समाजियों का आंदोलन शुरू हुआ. उन्होंने कई मुस्लिमों का तथाकथित शुद्धिकरण करवाना और हिंदू धर्म में परिवर्तन कराना शुरू किया. इसको रोकने, या कहें कि मुसलमानों को इस्लाम में रोके रखने के लिए तबलीग़ी जमात की ज़रूरत पड़ी. 1927 का साल था. दिल्ली के निज़ामुद्दीन में मौजूद एक मस्जिद में मौलाना इलियास कांधलवी ने तबलीग़ी जमात का गठन किया. उद्देश्य? मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखना और इस्लाम का प्रचार. तभी से दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाका तबलीग़ी जमात का केंद्र भी है. कहते हैं कि अपने गठन के बाद के कुछ समय तक तबलीग़ी जमात शांत रहा. गतिविधि कम रही. लेकिन साल 1941 आते-आते एक बार फिर से तबलीग़ी जमात को जमाया गया. मौलाना इलियास इसे दिल्ली से उठाकर हरियाणा के मेवात ले गए. वहां 25 हज़ार लोगों के साथ मीटिंग हुई और बस जम गया मामला. साल 1946 तक आते-आते देश के कई हिस्सों में तबलीग़ी जमात संगठन फैल चुका था. साल 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश का कालांतर में जन्म हुआ. और साल 1947 से ही तबलीग़ी जमात का भारत के बाहर भी ठिकाना बनने लगा. इसके बाद से तबलीग़ी जमात दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के साथ-साथ यूरोप और अन्य एशियाई देशों में भी फैलने लगा. खाड़ी देशों तक गया. और यूं ही देश दुनिया के इलाक़ों से तबलीग़ी जमात के लिए पैसा आने लगा. चंदे के रूप में. और इसी चंदे से तबलीग़ी जमात का ख़र्च चलता है. हर साल इज़्तेमा, यानी सालाना जलसा, का भी आयोजन होता है. इसमें लाखों के संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग और इस्लामिक स्कॉलर शिरकत करते हैं. और ‘बेहतर इंसान’ बनने की हिदायत और सीख के साथ विदा होते हैं. ज़फर सरेशवाला ने हमें बताया –
तबलीग जमात एक मूवमेंट है जो 1920 में मौलाना इलियास ने शुरू किया. यह एक देवबंदी वैचारिक प्रक्रिया है. इसका देवबंद से सीधा सम्बन्ध नहीं है. तबलीग जमात का काम कनवर्ज़न करना नहीं है.तो तबलीगी जमात ये है मोटा मोटा. दुनिया के डेढ सौ से ज्यादा देशों में ये संगठन फैला है. आतंकी घटनाओं में शामिल होने का सीधे सीधे कोई मामला हमें ज्ञात नहीं है.