संघर्ष में जिसे देखकर रूह कांप गई थी उसे कैसे मिला जाह्नवी कपूर के पापा का रोल?
आशुतोष राणा का लल्लनटॉप इंटरव्यू.
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फोटो - thelallantop
धड़क पिच्चर आ रही है. ट्रेलर आ चुका है. बहुत से लोगों ने देखा. अब तो उस पर मेमे भी बन रहे हैं. लोग उसे सैराट से कम्पेयर कर रहे हैं. ट्रेलर देखने वाले दो धड़ों में बट गए. एक तो टीनेजर्स, जिन्हें लव स्टोरी अपने लेवल पर आती दिख रही है. दूसरे हैं भौकाल वाले लोग, जिन्हें आशुतोष राणा की एंट्री ने बांध दिया. हमने कहा कि आशुतोष से बात की जाए और आप तक पहुंचाया जाए. हमने उनसे जो बतकही की, उसे दो हिस्सों में बांटा है. एक फिल्मी और एक फैमिली. ये फिल्मी हिस्सा है.सवाल: नमस्ते भाईसाब. आपकी आने वाली पिच्चर धड़क का ट्रेलर देखा. धाकड़ दिखे हैं. इसमें आपका रोल क्या है और ये कैसे मिला?
आशुतोष: ये भाग्य की बात है कि इससे पहले हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया में आलिया भट्ट के पिता का रोल किया था. धड़क में जाह्नवी कपूर के पिता का रोल कर रहा हूं. स्टार पुत्रों और पुत्रियों के पिता का रोल जब ऑफर किया जाता है तो सोचा जाता है कि वो करने वाला प्रभावशाली हो. मेरे लिए खुशी की बात है. इसके डायरेक्टर जो हैं, शशांक खेतान. उनके साथ मेरी अलग केमिस्ट्री है. उन्होंने कहा कि आपको इस फिल्म में रहना है. फिल्म राजस्थानी बैकग्राउंड पर है. और ये करेक्टर भी राजा है. अब चूंकि लोकतंत्र आ गया है तो राजा भी उसके अंडर में ही आते हैं. तो लोकतंत्र में राजा जैसा होता है वैसा राजा ये है.

धड़क में आशुतोष जाह्नवी के पिता का रोल कर रहे हैं.
सवाल: ट्रेलर और धड़क से अलग शुरू से शुरू करते हैं. आपको एक्टिंग में कौन लाया. आपने इसका क्रेडिट कई बार अपने आध्यात्मिक गुरु को दिया है. तो उन गुरु जी से मुलाकात कैसे हुई और कैसे फिल्मों में आए?
आशुतोष: देखिए मैं मध्य प्रदेश के गाडरवारा नाम के एक गांव से आता हूं. 1984 की बात है. जब मैं उच्च शिक्षा के लिए सागर गया. सागर विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था और सैकड़ों कॉलेज उसके अधीन थे. वहां जाकर एडमिशन लिया. स्टूडेंट पॉलिटिक्स में मेरी रुचि थी. तो चुनाव वगैरह लड़ने की तैयारी करने लगा. वहां मैं अपनी बहन के पास रहता था. बहनोई ने एक दिन जाकर दद्दा जी(गुरू जी) से मिलाया. वहां मन में कई सारी शंकाएं लेकर गया लेकिन लौटा तो निशंक था. उसके बाद से आजतक मेरे जीवन के सभी फैसले वही लेते आए हैं. उन्होंने मुझे देखकर कहा कि चुनाव में एक्टिव रहो लेकिन अभी खुद मत लड़ो. किसी लड़की को लड़वा दो. तुम नाटक, संगीत आदि में स्वयं को ढालो. राजनीति में जो पारंपरिक नेताओं की छवि होती है वो दबंगों की होती है. तुम्हारी सांस्कृतिक छवि बनेगी. मैं नाटक वगैरह में भाग लेने लगा और NCC ज्वाइन कर ली. हर साल मैं चुनाव लड़ने की योजना बनाता और दद्दा जी किसी और को लड़ा देते. कहते कि अभी सही समय नहीं आया है. 1989 में उन्होंने कहा था तुम कहां छोटे पोस्टर्स के चक्कर में पड़े हो? तुम्हें बड़े पोस्टर में आना है. मैं समझ नहीं पाया कि दद्दा जी किस बारे में बात कर रहे हैं. मैंने सोचा कि कॉलेज और विधानसभा वगैरह से उठाकर और ऊपर भेजना चाहते हैं. मैं बहुत परेशान हो गया तो 1991 में कहा कि अबकी बार खुद लड़ूंगा. दद्दा जी ने कहा कि अब बहुत राजनीति हो चुकी है. दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा है. वहां जाकर एडमिशन लो. मैंने आज्ञा पालन करते हुए NSD में एडमिशन लिया. 1994 मई में पास हुआ. दद्दा जी ने कहा बहुत हो गया नाटक वाटक. अब मुंबई निकलो. वहां जाकर भट्ट(महेश भट्ट) से मिलना. महेश भट्ट भी दद्दा जी के सम्मान में थे. उनकी प्रेरणा से मुझे 'दुश्मन' मिली. उसके बाद सब दोस्त बनते चले गए. जब 1998 में दुश्मन फिल्म आई और मुंबई में बड़े बड़े पोस्टर लगे तब मुझे याद आया. 1989 में दद्दा जी ने इन पोस्टर्स की बात की थी.

दुश्मन में आशुतोष राणा
सवाल: ज्यादातर रोल विलेन के किए और वो सारे विलेन हीरो की छवि पर भारी पड़े. क्या पहले से ऐसे रोल चुन लेते हैं जो हीरो की भजिया बना के रखे या कोई भी कर लेते हैं?
आशुतोष: नहीं ऐसा नहीं है. मैं इस मामले में बहुत ज्यादा भाग्यशाली रहा हूं, अभिनेता के रूप में. कि नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से आने के बावजूद जितने प्रयोग वाले करेक्टर मिल सकते थे, वो मुझे मिले. जितने अवसर मुझे मिले मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं. जैसे कॉमन मैन हीरो अगर अमिताभ बच्चन लेकर आए तो कॉमन मैन विलेन आशुतोष राणा लेकर आए. दुश्मन का गोकुल पंडित. उससे पहले विलेन घोड़ों पर चलते थे. नौकर चाकर रखते थे. ये ऐसा विलेन था जिसकी शक्ल भी नहीं याद रहने वाली थी. जैसे हीरो के अंदर विलेन वाला प्रभाव आना शुरू हुआ वास्तव(संजय दत्त) से, वैसे ही विलेन के अंदर हीरो का प्रभाव आना शुरू हुआ आवारापन के मलिक साहब(भारत मलिक) से. दुश्मन का गोकुल पंडित संघर्ष के लज्जा शंकर पांडे से बिल्कुल नहीं मिलता. लज्जा शंकर राज फिल्म के प्रोफेसर अग्निहोत्री से नहीं मिलता. प्रोफेसर अग्निहोत्री बादल के डीआईजी राना से नहीं मिलता. डीआईजी राना शबनम मौसी से नहीं मिलता. शबनम मौसी का किरदार चोट के किशन यादव से बिल्कुल नहीं मिलता. तो दुश्मन से शुरू होकर हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया और अब जो आ रही है धड़क, इनमें बहुत विविधता है. विविधता के साथ साथ ओवर पावरिंग भी है. समर 2007 नाम की फिल्म आई थी जिसमें विदर्भ के किसानों की समस्या दिखाई गई थी. जिसमें डॉक्टर मुकेश यादव रहता तो गांव का डॉक्टर है लेकिन सोशल इंजीनियरिंग करता है. हमने कभी भी अपने किरदारों के चुनाव के समय नकारात्मक या सकारात्मक देखकर निर्णय नहीं लिया. हमने देखा कि किरदार में धार कितनी है. चाहे हासिल का गौरीशंकर पांडे देख लीजिए. हमने किरदार की लेंथ पर ध्यान नहीं दिया बल्कि ये देखा कि वो कितना प्रभावशाली है. जब वैसे किरदार नहीं मिले तो हमने किए भी नहीं.

राज़ में आशुतोष राणा
सवाल: ऐसा कोई रोल रहा है जिसे आपने रिजेक्ट किया हो और उसके लिए रिग्रेट फील हुआ हो?
आशुतोष: नहीं ऐसा तो नहीं हुआ. ऐसा है कि आपका जो काम है वो किसी न किसी तरह से आपके पास आता जरूर है. फिर हम अकेले तो इंडस्ट्री में हैं नहीं. और लोग भी हैं सबको मिलना चाहिए. हमारे पास जो काम आये उसे पूरी ईमानदारी से करना है.

शबनम मौसी में आशुतोष राणा
सवाल: अभी आपकी मराठी फिल्म येड़ा देखी थी. ये बताएं कि उत्तर भारत के लोग तमिल तेलुगू कन्नड़ या मराठी में काम करते हैं तो कैसे करते हैं. क्या मुश्किल आती है?
आशुतोष: देखो आशुतोष मुझे लगता है कि भाषा भाव का परिचायक है. भाव को अभिव्यक्त करने का काम भाषा करती है. अगर आप भाषा को भाव मानने लगेंगे तो दिक्कत होगी. भाव की अभिव्यक्ति के लिए कोई व्यक्ति तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मराठी, गुजराती बोलता है तो भाव के अंदर कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. अगर कोई दूसरी भाषा की फिल्म आप कर रहे हैं तो खुद को भाषाविद मानकर क्यों कर रहे हैं. जैसे बच्चा बड़ा होता है तो पापा, मम्मी, दादा, बुआ बोलना सीखता है, तो हमको भी वैसे ही करना होता है. मेरा ये मानना है कि हमारा देश ही एक मात्र ऐसा देश है जहां विभिन्न भाषाओं, विभिन्न भावों, विभिन्न संस्कृतियों, विभिन्न संस्कारों, विभिन्न स्वादों और विभिन्न परिधानों से सजा हुआ है. तो देखने का सीखने का प्रयास करिए. रट्टा मारिए.

मराठी फिल्म येड़ा में आशुतोष राणा
सवाल: आने वाले किन प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं?
आशुतोष: अभी तो ये धड़क है. इसके बाद एक और फिल्म है मुल्क, 27 जुलाई को रिलीज हो जाएगी. फिर एक इंट्रेस्टिंग फिल्म तिग्मांशु धूलिया के साथ कर रहा हूं उसका नाम है मिलन टॉकीज. फिर एक रोहित शेट्टी के साथ कर रहा हूं, सिंबा. वो भी इसी वर्ष आएगी. अभी एक फिल्म की है सोन चिरैया, अभिषेक चौबे के साथ. और ये सारे बिल्कुल अलग अलग कैनवास के और डायमीटर के करेक्टर्स हैं. मान लीजिए कि जिस प्रकार के रोल्स की हम प्रतीक्षा कर रहे थे वो रोल हमें इंडस्ट्री की कृपा से मिलते रहे. एक और फिल्म आ रही है जिसमें मैं चार रोल कर रहा हूं. वो एक चुनौतीपूर्ण रोल है हमारे लिए. वो भी इसी वर्ष आ जाएगी. इस वर्ष आपको हमारी 5 या 6 फिल्में देखने को मिलेंगी.

2018 में आशुतोष राणा की 6 फिल्में आ रही हैं
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