The Lallantop
Advertisement

जब ओलंपिक में फैन्स ने पिला दी ब्रांडी और पट्ठा जीत गया रेस

ये कहानी दुनिया की सबसे मज़ेदार ओलंपिक रेस की है जिसमें एक नहीं, कई-कई दीवाने आए थे.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
लल्लनटॉप
22 अगस्त 2016 (Updated: 22 अगस्त 2016, 07:00 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
ये कहानी दुनिया की सबसे मज़ेदार ओलंपिक दौड़ की है जिसमें एक नहीं, कई-कई दीवाने आए थे.
बात 1904 सेंट लुई ओलंपिक मैराथन दौड़ की है. अमेरिका का फ्रैड लॉर्ज जो शुरू से ही आगे दौड़ रहा था 10-12 किमी दौड़ने के बाद दौड़ से बाहर हो गया. उसकी मांसपेशी में खिंचाव आ गया था. लेकिन फ्रैड स्टेडियम में सबसे पहले पहुंचा. विजेता के रूप में हजारों दर्शकों ने उसका स्वागत किया.
जैसे ही पदक देने के लिए तीनों विजेताओं को मंच पर बुलाया गया, एक अधिकारी ने तेज़ी से दौड़कर बताया फ्रैड फ्रॉड कर रहे हैं. सारे स्टेडियम में सनसनी फैल गई.
1904 सेंट लूई ओलंपिक
1904 सेंट लुई ओलंपिक

हुआ दरअसल यह था कि जब मांसपेशी खिंच जाने के कारण फ्रैड दौड़ने लायक नहीं रहा तो थोड़े आराम के बाद वह एक मोटरगाड़ी में बैठ गया, जो दौड़ संचालन करने वालों में से किसी की थी. जब स्टेडियम कोई 5 किमी दूर रह गया तो यह मोटरगाड़ी खराब हो गई. और फ्रैड साहब तब तक इतने ठीक हो गए थे कि गाड़ी से उतरे और दौड़ने लग गए. बाकी सब लोग बहुत पीछे दौड़ रहे थे और फ्रैड सबसे पहले स्टेडियम में पहुंच गए.
फ्रैड मज़ाक कर रहे थे कि फ्रॉड, ये तो पता नहीं पर अमेरिका ने उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया लेकिन उसी दौड़ के साथी खिलाड़ियों ने फ्रैड का साथ दिया, कहा मज़ाक के लिए सज़ा ज़्यादा है. आखिर में फ्रैड की सज़ा रद्द कर दी गई.
इस मैराथन दौड़ को जीता पेशे से जोकर इंग्लैंड के थॉमस हिक्स ने जो रास्ते में लगभग मर ही गया था. फ्रैड के दौड़ से हटने के बाद हिक्स लगातार आगे बना रहा. आखिरी 7 किमी में उसकी ये हालत हो गई थी कि अब मरा तब मरा. वह दौड़ बीच में ही छोड़ना चाहता था लेकिन उसके प्रशंसकों ने छोड़ने नहीं दी. थोड़ी-थोड़ी देर में उसके मुंह पर पानी के छींटे मारकर उसे ब्रांडी और नशीली दवा पिलाते रहे. तब उन दवाओं पर रोक नहीं थी. वह भी पागल की तरह दौड़ता गया. जब उसने समाप्ति फीते को छुआ तो वह बिल्कुल होश में नहीं था. तुरंत ही दौड़कर डॉक्टरों ने उसे संभाला.
इसी मैराथन में भाग लेने के लिए एक और दीवाने आए थे. क्यूबा के एक डाकिए फैलिक्स कारवाजाल. 1896 में ओलंपिक में एक पोस्टमैन स्पिरिडॉन लुईस ने मैराथन जीती थी. बस कारजावाल को चस्का लग गया कि जब वो डाकिया जीत सकता है तो मैं क्यों नहीं.
ओलंपिक में जाने के पैसे नहीं थे तो क्यूबा की राजधानी हवाना के चौराहों पर खड़े होकर लोगों से अपीलें करके पैसा जुटाया. लेकिन भाई साहब ने वो पैसा रास्ते में न्यूऑर्लिंस में ही जुआ खेलकर पूरा कर दिया. फिर भी किसी से लिफ्ट ले-लाकर ओलंपिक पहुंचे वो भी सीधे स्टेडियम में. घिसी हुई कमीज़, फटी हुई पेंट और न दौड़ने लायक जूते. दौड़ शुरू होने के बाद ये भी पीछे-पीछे चल पड़े. वह इतनी बेफिक्री से दौड़े की रास्ते में जब चाहे दर्शकों से गप्प मारने लगते.
थोड़ी दूर के बाद जब भूख सताने लगी तो पेड़ों से सेब तोड़कर खा लिया. सेब कच्चे थे और भाई साहब को पेट दर्द हो गया. इन सबके बावजूद इस क्यूबाई डाकिए ने चौथा स्थान हासिल कर लिया. जब इनके कारनामे लोगों को पता चले तो लोगों का मत था सही प्रशिक्षण मिल जाता तो स्वर्ण इस डाकिए का ही था.
ये ओलंपिक का वो दौर था जब ओलंपिक खेल किसी बड़े मेले की तरह होते थे, हार-जीत के साथ-साथ दूसरे देश के लोगों से मिलने-जुलने का लालच खिलाड़ियों को ओलंपिक तक खींच लाता था.


ये भी पढ़ लीजिए:क्या होता है, जब खेल के बीच में ओलंपिक खिलाड़ी को पीरियड आ जाता है

पहली बार ओलंपिक में शामिल इन एथलीट्स का कोई देश नहीं है

ओलंपिक में गोल्ड मेडलिस्ट ने फेंक दिया गुलदस्ता

 

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement