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ये लोन राइट-ऑफ होता क्या है, जो बैंकों ने पिछले पांच सालों में 6.66 लाख करोड़ का किया है?

इत्ता सारा पैसा बट्टे खाते में चला गया!

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बाज़ार को सरकार से राहत की उम्मीद है. (फाइल फोटो- ANI)
4 फ़रवरी 2020 (Updated: 4 फ़रवरी 2020, 14:09 IST)
Updated: 4 फ़रवरी 2020 14:09 IST
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लोन को ‘राइट-ऑफ’ करना. कुछ सुना-सुना लगा? अगर हां, तो बढ़िया. नहीं, तो हम बताते हैं. ये भी बताते हैं कि लोन को राइट-ऑफ क्यों किया जाता है? कब किया जाता है? राइट-ऑफ हो गया तो होता क्या है? ..और ये भी बताते हैं कि आज ये सब बताने की सुध हमें आ कहां से गई. पहले ये जानिए- लोन राइट-ऑफ करना माने जब बैंकों को लगता है कि उन्होंने लोन बांट तो दिया, लेकिन अब वसूलना मुश्किल हो रहा है. अब गणित ऐसी उलझी कि बैलेंस शीट ही गड़बड़ होने लगी. ऐसे में बैंक उस लोन को ‘राइट-ऑफ’ कर देता है. यानी ये मान लेता है कि इस लोन की रिकवरी अब हो नहीं पा रही है और इस लोन अमाउंट को बैलेंस शीट से हटा देता है. यानी गया पैसा बट्टे खाते में. अब सवाल- अभी लोन राइट-ऑफ करने का ज़िक्र क्यों हो रहा है? सरकार ने देश के 76 बैंकों की कम्बाइंड रिपोर्ट जारी की है. इससे पता चला है कि बैंकों ने 2014-15 से लेकर अब तक यानी पांच साल में करीब 6.66 लाख करोड़ रुपए का लोन राइट-ऑफ कर दिया. इन 76 बैंकों में पब्लिक, प्राइवेट और फॉरेन बैंक शामिल हैं. इसे दो हिस्सों में बांटकर देखें.  इस पूरी रकम में से 5.85 लाख करोड़ रुपए कमर्शियल बैंकों ने राइट-ऑफ किए हैं. फाइनेंशियल ईयर 2019-20 के पहले छह महीने तक पब्लिक और प्राइवेट बैंक भी करीब 80 हजार करोड़ रुपए राइट-ऑफ कर चुके थे, यानी कुल हुआ करीब 6.6 लाख करोड़ रुपए. राइट-ऑफ किया गया पैसा, बैंकों में लगे पैसे से दोगुना पिछले पांच साल में, यानी अप्रैल-2014 के बाद से सरकार ने पब्लिक सेक्टर बैंकों (PSB) में रीकैपिटलाइजेशन के लिए करीब 3.13 लाख करोड़ रुपए लगाए हैं. और लोन राइट-ऑफ हुआ कितने का?- 6.6 लाख करोड़. यानी राइट-ऑफ किया गया पैसा, बैकों में लगाए गए पैसे से दोगुना हुआ. अब कुछ बातें पॉइंटर्स में समझिए... # देश में कुल 21 पब्लिक सेक्टर बैंक ऐसे हैं, जिनके पास कुल मिलाकर पूरे बैंकिंग सेक्टर के 70% एसेट्स हैं. # खास बात ये कि कुल राइट-ऑफ में से 80% हिस्सेदारी इन 21 बैंकों की ही है. # एक और बात- इस साल के हेल्थ, एजुकेशन और स्किल डेवलपमेंट को कुल मिलाकर 1.71 लाख करोड़ रुपए का बजट मिला है. यानी बैंकों की राइट-ऑफ की गई रकम से करीब एक चौथाई कम. लोन को राइट-ऑफ करने की प्रोसेस क्या है? बैंक लोन देता है. लोन लेने वाला री-पे करता है. री-पे नहीं कर पाता है तो बैंक रिकवरी करता है. किन्हीं वजहों से रिकवरी नहीं हो पाती है, तो ये बैंक की बैलेंस शीट में गड़बड़ी करने लगता है. लेकिन ऐसा होते ही लोन को राइट-ऑफ नहीं किया जाता है. अगर लगातार तीन क्वार्टर तक एक ही लोन बैंक की बैलेंस शीट में गड़बड़ करता है तब कहीं जाकर बैंक इस लोन को राइट-ऑफ करने की प्रोसेस शुरू करता है. बैंक चाहे तो और इंतज़ार भी कर सकता है, लेकिन चौथे क्वार्टर में भी अगर लोन ने बैलेंस शीट गड़बड़ कर दी तो पूरे फाइनेंशियल ईयर की बैलेंस शीट गड़बड़ हो जाएगी. इसलिए तीन क्वार्टर में ही इसे सेटल कर दिया जाता है. बैंक भरपाई कैसे करते हैं? ये तो तय है कि कोई बैंक नहीं चाहता कि उसके सामने कोई लोन राइट-ऑफ करने की नौबत आए. लेकिन ये भी सच है कि किसी भी बैंक के लिए 100% लोन रिकवरी कर पाना मुश्किल होता है. ऐसे में बैंक को लोन राइट-ऑफ करना पड़ता है. ऐसा करके बैलेंस शीट तो सुधर जाती है, लेकिन नुकसान तो फिर भी होता ही है. इसकी भरपाई के लिए बैंक अपने बाकी कमाई के जरियों पर निर्भर रहता है. जैसे कि बाकी लोन्स पर आ रहा ब्याज, सेविंग वगैरह पर दिया जा रहा ब्याज कम करना वगैरह, बैंक की बाकी स्कीम्स वगैरह. शरम नहीं आती लोन राइट-ऑफ करने में? नहीं इतना भी नहीं. असल में सरकार और बैंक किसी नॉन-परफॉर्मिंग लोन को राइट-ऑफ करना शर्म नहीं, बल्कि एक किस्म का स्मार्ट मूव मानते हैं. इनका मानना रहता है- मान लीजिए कोई लोन वापस नहीं आ रहा है बैंक इसे बार-बार बैलेंस शीट में दिखा रहा है. इससे शीट तो खराब हो ही रही है, साथ ही बैंक इसके दबाव में बाकी कस्टमर्स को भी लोन नहीं दे रहा है. कहीं इन्वेस्ट भी नहीं कर रहा है. राइट-ऑफ करने के कुछ प्लस पॉइंट... अब जब बैंक इसे सही समय पर राइट-ऑफ कर बैलेंस शीट सही कर लेता है तो एक तो बाकी जरियों से इसकी रिकवरी के उपाय होने लगते हैं. साथ ही बाकी जगह लोन देने, इन्वेस्ट करने के रास्ते भी खुल जाते हैं. बैलेंस शीट सही होने के बाद ही सरकार भी बैंक को रीकैपिटलाइजेशन के लिए पैसे दे सकती है, उससे पहले नहीं. पिछले कुछ वक्त में एनपीए के हाल सुधरे हैं फाइनेंशियल ईयर 2014-15 में बैंकों के राइट-ऑफ लोन्स करीब 2.79 लाख करोड़ रुपए के थे. अगले दो साल में ये रकम बढ़कर 6.85 लाख करोड़ रुपए तक और 2018 तक 8.96 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई. यहां से हालात कुछ सुधरे और आंकड़ा फिर 7.27 लाख करोड़ तक और अब 6.66 लाख करोड़ रुपए तक नीचे आया है. इस सुधार की वजह रही- इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत आई रिकवरी. बैंक अब इस पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं पब्लिक सेक्टर बैंक अब लोन राइट-ऑफ की रकम को लगातार कम करने पर खासा ध्यान दे रहे हैं. IBC के अलावा बैंक स्ट्रेस्ड एसेट मैनेजेमेंट वर्टिकल भी तैयार कर रहे हैं. ये एक ऐसा वर्टिकल रहेगा, जो सिर्फ लोन (खासकर हाई वैल्यू लोन) की रिकवरी के अलग-अलग तरीकों और लोन की लगातार मॉनीटरिंग पर ध्यान देगा. इसके अलावा वन टाइम सेटलमेंट की स्कीम्स को भी और बेहतर, और लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करना भी इसी वर्टिकल का काम रहेगा.
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