इन सुन्नी मुस्लिमों का कोई अपना देश क्यों नहीं है
3 करोड़ की आबादी वाला कुर्द समुदाय अपनी पहचान के लिए लड़ रहा है.
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कुर्द सेना की लड़कियां

कुर्द एरिया-BBC
क्या कुर्द अपने आस-पास के लोगों से अलग हैं?
पूरे मेसोपोटामिया यानी पूर्वी इराक, दक्षिणी टर्की, पूर्वोत्तर सीरिया, उत्तर-पश्चिमी ईरान और दक्षिण-पश्चिमी आर्मेनिया के बीच बसे हुए हैं कुर्द. इन सारे देशों में रहने वाले लोगों से अलग पहचान है इनकी. रेस, कल्चर और बोली तीनों अलग है. हालांकि इनमें ज्यादातर सुन्नी मुस्लिम हैं, पर ये लोग कई धर्मों को मानने वाले समुदाय हैं. यहां पर औरतें बिल्कुल यूरोपियन सभ्यता की हैं. कहीं किसी से कम नहीं हैं. वहाबी इस्लाम मानने वालों के लिए ये नफरत की एक वजह है.
कुर्द फाइटर
फिर भी इनके पास अपना देश क्यों नहीं है?
इतिहास में पीछे जाएं, तो कोई फिक्स देश नहीं था. सब अपनी-अपनी जमीन के लिए मारा-मारी करते थे. कोई लाइन नहीं थी. बीसवीं शताब्दी में लाइन खींचकर देश बनाने की परंपरा शुरू हुई. तो सबकी तरह कुर्द लोग भी कुर्दिस्तान बनाने की सोचने लगे. पहले विश्व युद्ध के बाद जीते हुए देशों अमेरिका और ब्रिटेन ने 1920 में तय किया कि कुर्दिस्तान बनाया जायेगा. पर तीन साल बाद मुस्तफा कमाल पाशा ने खिलाफत को ख़त्म कर टर्की बनाने की संधि कर ली. और कुर्दों को दरकिनार कर दिया गया. इन सारे देशों में कुर्द माइनॉरिटी में आ गए.
बरज़ानी के नेतृत्व में कुर्दिश झंडा
ISIS का इनसे क्या लफड़ा है?
2013 में ISIS ने अपनी नज़रें डालीं कुर्द क्षेत्रों पर. ये क्षेत्र ISIS के सीरिया वाले कब्जे के आस-पास थे. उन लोगों ने कुर्दों पर लगातार हमले शुरू कर दिए. ये एक साल चला. जब इराक के मोसूल पर ISIS का कब्जा हो गया, तब वहां के कुर्द भी इनकी चपेट में आ गए. अब कुर्दों ने अपने फाइटर तैयार कर लिए. उनको 'पेशमर्गा' कहा जाता है. जो बात इनको सबसे अलग बनाती है, वो ये है कि इनमें औरतें भी लड़ाई में एकदम आगे रहती हैं. पर पेशमर्गा को पीछे हटना पड़ा. इस चक्कर में ISIS के हाथ एक छोटी माइनॉरिटी यज़ीदी चढ़ गए. उनके साथ ISIS ने बड़ा अत्याचार किया.तब अमेरिका ने अपने कुछ मिलिट्री एडवाइजर पेशमर्गा को भेजे. बाकी देशों के भी कुर्द लड़ाके इनके साथ आ गए. ईराक वाला कुर्द क्षेत्र तो बचा लिया गया, पर सीरिया वाला ISIS ने कब्जिया लिया. पूरा तहस-नहस कर दिया. पर यूरोप और अमेरिका से अच्छे सम्बन्ध होने के बावजूद टर्की ने कुर्द लोगों की मदद नहीं की. ना ही ISIS पर किसी तरह का हमला किया. जबकि डर था टर्की को भी. कुर्दों को तो टर्की से होकर हथियार या खाना भी ले जाने नहीं दिया गया. बहुत बाद में एक बॉर्डर खोला कोबानी की लड़ाई में.
जनवरी 2015 में कुर्द फ़ौज ने कोबानी पर कब्ज़ा कर लिया. उसके बाद से अमेरिका की मदद से ISIS पर छिटपुट हमले करते रहते हैं. टर्की के बॉर्डर से लेकर ISIS के रक्का इलाके तक इनका प्रभाव बन गया.

कुर्द समाज
टर्की क्यों मदद नहीं करता?
टर्की की आबादी में लगभग 20% कुर्द हैं. पर टर्की से कुर्द दुश्मनी बड़ी पुरानी है. टर्की के लोग इनको पहाड़ी तुर्क कहते हैं. कहते हैं कि कुर्द-वुर्द कुछ नहीं होता. और बड़ा भेद-भाव किया जाता है. यहां तक कि इनके रखे नाम और कपड़े भी तुर्की समाज में बैन कर दिए गए थे. 1978 में अब्दुल्ला ओकालन ने एक संगठन PKK बनाया था और टर्की में अपने लिए अलग देश की मांग करने लगे. फिर वही हुआ, जो अलग देश की मांग करने वालों के साथ होता है. 40 हज़ार लोग मरे.1990 में PKK ने देश की मांग छोड़ दी. अब मांग हुई कि देश में ही रहकर थोड़ी ज्यादा स्वतंत्रता मिले. 2012 में थोड़ी राहत हुई. पर जुलाई 2015 में कुछ अप्रत्याशित हो गया. ISIS ने 33 जवान कुर्दों को मार दिया. बदले में कुर्दों ने तुर्की पुलिस और सेना पर हमला कर दिया. उसके बाद टर्की ने ISIS और PKK दोनों के खिलाफ हमला शुरू कर दिया.

टर्की के कुर्द जश्न मानते हुए
सीरिया के कुर्द क्या चाहते हैं?
सीरिया की आबादी में लगभग 10% कुर्द हैं. पर यहां इनकी हालत और भी खराब है. 1960 से ही 3 लाख कुर्दों को नागरिकता भी नहीं मिली है. उनका 'अरबीकरण' करने के नाम पर उनकी जमीनें भी ले ली गई हैं. जब भी वो अपने अधिकारों की बात करते हैं, बात करने वाले नेताओं को जेल में डाल दिया जाता है. 2012 तक सीरिया के कुर्द वहां हो रहे पॉलिटिकल घमासान से अछूते थे. पर बाद में बदल गया. अब कुर्दों को आशा है कि सीरिया के राष्ट्रपति असद के हटने की बाद ही कुछ स्थिति बदलेगी.
सीरिया में कुर्द फाइटर
इराक में क्या हुआ कुर्दों के साथ?
इराक की आबादी में लगभग 20% हैं कुर्द. यहां पर बाकी देशों की तुलना में स्थिति थोड़ी बेहतर रही है. अधिकार रहे हैं. पर दबा के मारने में कोई कमी नहीं की गई है. यहां पर ब्रिटिश साम्राज्य के वक़्त ही कुर्दों ने विद्रोह किया था. पर कुछ हो नहीं पाया. 1958 में जब वहां नया संविधान बना, तब कुर्द राष्ट्रीयता को मान लिया गया. पर उनके सेल्फ-रूल के प्लान को नकार दिया गया. 1970 तक तोल-मोल चलता रहा. पर बाद में सरकार ने अरब समुदाय के लोगों को कुर्दों की जमीन पर बसाना शुरू कर दिया. ईरान-इराक लड़ाई के वक़्त तो ये चरम पर पहुंच गया. 1988 में सद्दाम हुसैन ने अत्याचार की सीमा पार कर दी. दुनिया की किसी भी लड़ाई में बैन जहरीली गैसों का इस्तेमाल किया गया. 1991 में गल्फ लड़ाई में इराक की हार के बाद कुर्दों को थोड़ा मौका मिला सेल्फ-रूल का. 2003 में कुर्दों ने अमेरिका की बड़ी मदद की सद्दाम को गिराने में. यहां पर कुर्दिश पार्लियामेंट भी बनाई गई है. 2005 से ही कुर्दिस्तान के प्रेसिडेंट मसूद बरज़ानी ने फ़रवरी 2016 में रिफरेंडम की बात की. बोले कि सब कुछ लोगों की मर्जी से ही होगा.
कुर्द त्योहार