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इज़रायल और ईरान के पास कितने परमाणु हथियार हैं, क्या जंग में इस्तेमाल होंगे?

इज़रायल-ईरान के पास कितने परमाणु हथियार?

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How many nuclear weapons does Israel-Iran have? (Reuters)
इज़रायल-ईरान के पास कितने परमाणु हथियार? (Reuters)
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18 अप्रैल 2024
Updated: 18 अप्रैल 2024 20:52 IST
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ईरान पर हमले की अटकलों के बीच इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बयान आया है. उन्होंने कहा हम सुनेंगे सबकी, मगर करेंगे अपने मन की. इज़रायल अपने हिसाब से ईरान से बदला लेगा. कब, कहां और कैसे, इसकी तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है.
सूत्रों के हवाले से दो रिपोर्ट्स आईं है.

पहली रिपोर्ट इज़रायल के सरकारी मीडिया संस्थान कान में छपी है. एक सीनियर इज़रायली अधिकारी के हवाले से दावा किया गया है कि, प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने 14 अप्रैल को ही ईरान पर पलटवार का आदेश दे दिया था. वॉर कैबिनेट की मीटिंग में अधिकतर लोग उनसे सहमत थे. वे ईरान में घुसकर मारने के पक्ष में थे. फिर नेतन्याहू को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का फ़ोन आया. उसके बाद ईरान के ख़िलाफ़ कार्रवाई का प्लान ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इज़रायल हमला ज़रूर करेगा, मगर वैसा नहीं, जैसा पहले दिन तय हुआ था.

इस दावे को एक और मीडिया रिपोर्ट से दम मिलता है.  ये रिपोर्ट क़तर के मीडिया संस्थान ‘द न्यू अरब’ से आई है. इसके मुताबिक़, अमेरिका ने रफ़ा पर हमले के प्लान को हरी झंडी दिखा दी है. रफ़ा गाज़ा पट्टी का सुदूर दक्षिणी शहर है. ईजिप्ट की सीमा से लगा है. इज़रायल का दावा है कि ये शहर हमास का आख़िरी गढ़ है. यहीं पर बंधकों को रखा गया है. इज़रायल ने फ़रवरी में ही रफ़ा पर हमले का मन बना लिया था. पूरी तैयारी भी कर ली थी. मगर अमेरिका के दबाव के बाद उसको पीछे हटना पड़ा था. अब अमेरिका ने दबाव हटा लिया है. बदले में वादा लिया है कि इज़रायल, ईरान पर कोई बड़ा हमला नहीं करेगा.

बड़ा हमला नहीं करेगा तो क्या करेगा?

इस बारे में जानकारों के अलग-अलग मत हैं. कुछ कहते हैं, जैसा हमला ईरान ने किया, उसी तरह मिसाइल दागे जाएंगे. कुछ लोग ख़ुफ़िया ऑपरेशन के विकल्प में भरोसा करते हैं. कुछ का मानना है, ईरान के प्रॉक्सी गुटों को निशाना बनाया जाएगा. कुछ लोग दावा करते हैं कि, ईरान के परमाणु संयंत्रों को तबाह किया जाएगा.

इनमें से परमाणु संयंत्रों वाला विकल्प सबसे सटीक और बोल्ड दिखता है. इसकी तीन वजहें हैं.

- नंबर एक. करारा जवाब.

13 अप्रैल को ईरान ने इतिहास में पहली बार इज़रायल पर डायरेक्ट अटैक किया. इसमें कोई बड़ा नुकसान तो नहीं हुआ, मगर इज़रायल की अभेद्य वाली छवि को धक्का ज़रूर लगा. अब उसको ये साबित करना है कि, वो भी ईरान की सीमा में घुस सकता है. दिखाना है कि, इज़रायल पर हमला करके ईरान भी सुरक्षित नहीं रह सकता. ये काफ़ी हद तक ऑप्टिक्स का मसला बन गया है. ये चीज़ ख़ुफ़िया ऑपरेशंस या प्रॉक्सी गुटों पर अटैक से साबित नहीं हो पाएगी. न्युक्लियर साइट्स ईरान की सबसे बड़ी पूंजी हैं. यहीं पर वो परमाणु बम बना सकता है. इन्हीं के दम पर वो मिडिल-ईस्ट में अपनी धाक जमाना चाहता है. उस ताक़त को खत्म करके इज़रायल का बदला पूरा हो सकता है.

- नंबर दो. सुरक्षित विकल्प.

ईरान परमाणु हथियार बनाने के आरोपों को नकारता रहा है. कहना ये कि, उसका न्युक्लियर प्रोग्राम सिविलियन इस्तेमाल के लिए है. मगर जानकार इस दावे को भ्रामक बताते हैं. जनवरी 2024 में अमेरिकी वैज्ञानिक डेविड ऑलब्राइट ने एक रिपोर्ट पेश की. इसमें दावा किया था कि ईरान ने ऐसी तकनीक हासिल कर ली है. कि वो एक हफ़्ते के अंदर एक परमाणु बम बना सकता है. अगर इज़रायल ऐसे न्युक्लियर साइट्स को ढूंढ पाया, जहां ईरान के दावे से उलट काम होता हो, फिर ईरान के लिए नकारना मुश्किल हो जाएगा. इंटरनैशनल प्रेशर बढ़ेगा सो अलग. एक बड़ा धड़ा इज़रायल के साथ खड़ा होगा.

यहां पर ये देखना दिलचस्प होगा कि, ईरान किस तरह के हमले को अपनी संप्रभुता के लिए ख़तरा मानता है. उसको कितनी गंभीरता से लेता है. और, उसपर कैसी कार्रवाई करता है. जैसे, उसने क़ुद्स फ़ोर्स के पूर्व कमांडर क़ासिम सुलेमानी और परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या की निंदा की थी. बदला लेने की धमकी भी दी. मगर बदला लिया नहीं था. जबकि सीरिया में उसके वाणिज्य दूतावास पर अटैक हुआ, तब उसने इज़रायल पर हमला करके दिखाया. 13 अप्रैल के हमले के बाद वो बदला लेने की बात दोहरा रहा है. 16 अप्रैल को ईरान में एक मिलिटरी परेड हुई. इसमें ईरान ने अपने सबसे अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन किया. इसके ज़रिए इज़रायल को मेसेज देने की कोशिश की गई. इसकी झलक राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के भाषण में भी दिखी. उन्होंने कहा कि इज़रायल को पलटवार की कीमत चुकानी होगी.

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी
- नंबर तीन. ख़तरा घटेगा.

इज़रायल, ईरान के न्युक्लियर प्रोग्राम को लेकर स्पष्ट रहता है. उसने पब्लिकली कहा है कि वो ईरान को परमाणु हथियार नहीं बनाने देगा. उसको रोकने के लिए वो कुछ भी कर सकता है.
पिछले 15 बरसों में ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या में उसका नाम आया है. कुछ उदाहरण जान लीजिए.

- जनवरी 2010 में तेहरान यूनिवर्सिटी में फ़िजिक्स के प्रोफ़ेसर मसूद अली-मोहम्मदी को बम से उड़ा दिया गया. बम उनकी मोटरसाइकिल में फ़िट किया गया था. ईरान ने हत्या का आरोप इज़रायल और अमेरिका पर लगाया.

- नवंबर 2010 में तेहरान में एक कार में बम धमाका हुआ. धमाके में माजिद शहरीयारी की मौत हो गई. माजिद तेहरान की शाहिद बहेस्ती यूनिवर्सिटी में न्युक्लियर इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर थे. उनकी हत्या का आरोप भी इज़रायल और अमेरिका पर लगा.

- जनवरी 2012 में तेहरान में ही मुस्तफ़ा अहमदी रौशन की कार उड़ा दी गई. एक बाइकसवार ने चलती कार में बम लगा दिया था. धमाके में मुस्तफ़ा की मौत हो गई. वो भी न्युक्लियर साइंटिस्ट थे. आरोप फिर से इज़रायल और अमेरिका पर लगा.

- नवंबर 2020 में तेहरान की बाहर परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या हो गई. उनकी कार पर रिमोट-कंट्रोल्ड रोबोट से गोलीबारी हुई थी. फ़ख़रीज़ादेह को ईरान के न्युक्लियर वेपंस प्रोग्राम का जनक माना जाता था. उनकी हत्या का आरोप इज़रायल पर लगा.

इन सबके अलावा, इज़रायल साइबर हमलों में भी शामिल रहा है. 2010 में ईरान की न्युक्लियर फ़ैसिलिटीज़ पर स्टक्सनेट वायरस से हमला हुआ था. इसके चलते कम से कम 30 हज़ार कंप्युटर्स ठप पड़ गए थे. लगभग एक हज़ार सेंट्रीफ़्यूज़ भी बर्बाद हो गए थे.

इज़रायल ने ईरान के ख़िलाफ़ सबसे ख़तरनाक ख़ुफ़िया ऑपरेशन जनवरी 2018 में चलाया था. तब मोसाद के एजेंट तेहरान की एक न्युक्लियर फ़ैसलिटी में घुसे. और, वहां से एक लाख से ज़्यादा सीक्रेट फ़ाइल्स चुराकर बाहर निकल गए. अप्रैल 2018 में प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने उन फ़ाइल्स को प्रेस के सामने दिखाया था. और कहा था कि ईरान के साथ न्युक्लियर डील झूठ और भ्रम पर टिकी है. इसी खुलासे के बाद अमेरिका ने ईरान के साथ न्युक्लियर डील तोड़ दी थी.

ईरान, इज़रायल और अमेरिका को जानी दुश्मन मानता है. इज़रायल का कहना है कि, जिस दिन परमाणु हथियार उसके हाथ लगा, उस दिन हमारा अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा. इसलिए, वो ईरान की न्युक्लियर कैपिबिलिटी को कम करने में लगा रहता है. 13 अप्रैल के हमले ने उसको अच्छा मौका दे दिया है.

अब ईरान की परमाणु क्षमता के बारे में जान लेते हैं. ईरान में न्युक्लियर प्रोग्राम की शुरुआत 1950 के दशक में हुई. तब मोहम्मद रेज़ा पहलवी का शासन चल रहा था. पहलवी पश्चिमी देशों के पिछलग्गू माने जाते थे. उन्होंने ईरान के प्राकृतिक संसाधन उनके लिए खोल रखे थे. बदले में उनको वेस्ट से सिक्योरिटी के अलावा टेक्नोलॉजी भी मिल रही थी. 1957 में एटम्स फ़ॉर पीस प्रोग्राम के तहत अमेरिका ने ईरान में न्युक्लियर रिएक्टर्स बनाने का एलान किया. इनका इस्तेमाल बिजली पैदा करने में किया जाना था. बाद में फ़्रांस ने भी मदद देने का वादा किया. फिर 1970 का साल आया. ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर दस्तख़त करने का फ़ैसला किया. NPT में नए परमाणु हथियार बनाने पर पाबंदी थी. ईरान ने तब तक कोई परमाणु हथियार बनाया भी नहीं था. 

संधि के बाद बची-खुची गुंज़ाइश भी खत्म हो गई. मगर जल्दी ही ईरान में बड़ा खेल हुआ. 1979 में अयातुल्लाह रुहुल्लाह ख़ोमैनी के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति हुई. रेज़ा पहलवी की सत्ता चली गई. ख़ोमेनी ने पश्चिमी देशों के साथ रिश्ते तोड़ लिए. उन्होंने पुराने समझौतों को भी दरकिनार कर दिया. जिसके चलते परमाणु रिएक्टर्स का काम ठप पड़ गया. फिर 1980 में इराक़ के साथ युद्ध भी शुरू हुआ. इसमें बचे-खुचे रिएक्टर्स भी तबाह हो गए. जंग 1988 तक चली. 1990 के दशक में ईरान जंग में हुई बर्बादी से उबरने में सफल रहा. उसके बाद उसने गुप्त तरीके से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश शुरू की. उसको ईरान, पाकिस्तान और नॉर्थ कोरिया से मदद मिली. पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल क़ादिर ख़ान ने अवैध तरीक़े से परमाणु तकनीक ईरान को बेची.

कुछ बरस बाद ईरान ने प्रोजेक्ट अमाद लॉन्च किया. इसका मकसद 2004 तक पांच परमाणु हथियार तैयार करना था. इस प्रोजेक्ट को मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह लीड कर रहे थे. प्रोजेक्ट पूरा होता, उससे पहले एक खुलासा हो गया. 2002 में विद्रोही गुट ‘नेशनल काउंसिल ऑफ़ रेसिस्टेंस’ ने बताया कि, नतांज़ और अराक़ में दो न्युक्लियर फ़ैसिलिटी चल रही हैं. उनका इस्तेमाल बम बनाने के लिए किया जा सकता है. फ़रवरी 2003 में ईरान ने आधिकारिक तौर पर ये बात स्वीकार ली. उसी समय अमेरिका, इराक़ पर हमला करने की तैयारी कर रहा था. वेपंस ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन (WMD) का आरोप लगाकर. ईरान को भी हमले का डर सता रहा था. इसलिए, उसने प्रोजेक्ट अमाद पर विराम लगा दिया.

दबाव और खुलासे के बावजूद ईरान सीक्रेटली अपना न्युक्लियर प्रोग्राम चलाता रहा. 2013 तक उसने 10 हज़ार किलो से ज़्यादा यूरेनियम का भंडार इकट्ठा कर लिया था. इनमें से 9,700 किलो 05 फीसदी तक एनरीच्ड था. इस लेवल पर यूरेनियम से बिजली पैदा की जाती है. 90 फीसदी तक पहुंचने के बाद परमाणु बम बनाया जा सकता है. उस वक़्त आकलन था कि ईरान दो से तीन महीने के अंदर एक बम बना लेगा.

इसलिए, पश्चिमी देशों ने बैकडोर से बातचीत शुरू की. उनकी कोशिश थी कि डिप्लोमेसी के ज़रिए ईरान को रोका जाए. 2015 में कोशिश सफल हुई. 14 जुलाई को अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी और ईरान के बीच न्युक्लियर डील हुई.

इसमें ईरान ने वादा किया कि,

- वो 10 बरसों तक 5,060 सेंट्रीफ़्यूज़ से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करेगा.
- 15 बरसों तक यूरेनियम को 3.67 फीसदी से ज़्यादा एनरीच नहीं करेगा.
- अपने न्युक्लियर प्लांट्स की क्षमता कम करेगा.
- और, इंटरनैशनल एजेंसी को निगरानी करने की छूट भी देगा.

बदले में UN सिक्योरिटी काउंसिल और अमेरिका ने ईरान पर लगे प्रतिबंध हटा लिए. उम्मीद जताई जा रही थी कि, इस डील के बाद ईरान न्युक्लियर हथियार हासिल करने का विचार छोड़ देगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. डील की आड़ में उसने सीक्रेट प्रोग्राम जारी रखा. 2018 में इज़रायल ने इसका सबूत पूरी दुनिया के सामने पेश किया. फिर मई 2018 में ट्रंप ने अमेरिका को ईरान न्युक्लियर डील से निकाल लिया. तब से ईरान का न्युक्लियर प्रोग्राम बेलगाम घोड़े जैसा हो गया है.

अब ये जान लेते हैं कि, इज़रायल की परमाणु क्षमता क्या है? ज्ञात तौर पर, पूरी दुनिया में 08 देशों के पास परमाणु हथियार हैं. सबसे ज़्यादा रूस के पास हैं. 58 सौ से ज़्यादा. फिर अमेरिका का नंबर आता है.

52 सौ से ज़्यादा.
चीन - 410.
फ़्रांस - 290.
ब्रिटेन - 225.
पाकिस्तान - 170.
भारत - 164.
नॉर्थ कोरिया - 30.

अक्सर चर्चा होती है कि इस लिस्ट में इज़रायल को भी होना चाहिए. दावा किया जाता है कि, इज़रायल के पास ज़मीन, हवा और समंदर से परमाणु हमला करने की काबिलियत है. हालांकि, उसने कभी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है. वो कहता है, हम ना तो मानेंगे और ना मना करेंगे. जिसको जो सोचना है, सोचते रहें.

- सितंबर 2016 में कॉलिन पॉवेल का ईमेल लीक हुआ था. पॉवेल 2001 से 2005 तक अमेरिका के विदेशमंत्री रहे. उनके ईमेल के मुताबिक, इज़रायल के पास 200 परमाणु बम थे. हालांकि, इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी. अलग-अलग स्टडीज़ में इनकी संख्या 90 से 400 के बीच बताई जाती है. समय के साथ इनका अपग्रेडेशन भी हो रहा है. इज़रायल ने NPT पर साइन नहीं किया है. ये संधि नए परमाणु हथियार हासिल करने से रोकती है. भारत और पाकिस्तान भी NPT का हिस्सा नहीं हैं.

इज़रायल डिमोना में न्युक्लियर रिसर्च सेंटर की बात मान चुका है. लेकिन उसने परमाणु हथियारों पर चुप्पी साधी हुई है. हालांकि, कई दफ़ा इज़रायली नेताओं की ज़ुबान फिसल चुकी है. इस फिसलन में वे परमाणु बम रखने का संकेत दे चुके हैं.

इज़रायल के परमाणु हथियारों पर सबसे बड़ा खुलासा 1986 में हुआ था. मोदेकाई वनुनू इज़रायल के रहने वाले थे. न्युक्लियर टेक्नीशियन के तौर पर काम करते थे. 1986 में उन्होंने ब्रिटिश अख़बार संडे टाइम्स से कुछ सीक्रेट्स साझा किए. दावा किया कि इज़रायल के पास न्युक्लियर हथियार हैं. बहुत सारे सबूत भी पेश किए. वनुनू के दावे ने सनसनी फैला दी. दावा करने से बहुत पहले वो लंदन चले गए थे. एक दिन उनकी मुलाक़ात शेरिल बेन्तोव नाम की लड़की से हुई. दोनों ने रोम में छुट्टियां मनाने का प्लान बनाया. जैसे ही दोनों रोम पहुंचे, बेन्तोव ने अपना राज़ जाहिर कर दिया. वो मोसाद की एजेंट थी. इसके बाद मोसाद एजेंट्स ने वनुनू को बेहोश किया और जहाज में बिठाकर समंदर के रास्ते इज़रायल ले आए. इज़रायल में वनुनू के ऊपर मुकदमा चला. उन्हें राजद्रोह के आरोप में 18 बरस की जेल हुई. वो आज भी इज़रायल में प्रतिबंधों के बीच रह रहे हैं.

अब ये जान लेते हैं कि, किस स्थिति में इज़रायल परमाणु बम गिरा सकता है? इतिहासकार एवनर कोहेन के मुताबिक, 04 रेड लाइंस हैं,

- अगर इज़रायल के बड़े शहरों पर दूसरे देशों का हमला हो.
- अगर इज़रायल की एयरफ़ोर्स पूरी तरह तबाह हो जाए.
- अगर इज़रायल पर रसायनिक या जैविक हथियारों से हमला हो जाए.
- या, कोई देश इज़रायल पर परमाणु बम गिरा दे.

इज़रायल की ऑफ़िशल लाइन है, हम मिडिल-ईस्ट में परमाणु हथियार का इस्तेमाल पहले नहीं करेंगे. इसके अलावा, वो एक और पॉलिसी पर कायम है. इज़रायल कहता है, हम अपने पड़ोस में किसी को हासिल भी नहीं करने देंगे.

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