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पुतिन की सेना की बड़ी हार!

रूस इस आईलैंड को अपने नियंत्रण में क्यों नहीं रख पाया?

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Why could Russia not keep this island under its control? (Photo-AP)
रूस इस आईलैंड को अपने नियंत्रण में क्यों नहीं रख पाया? (फोटो-AP)
1 जुलाई 2022 (Updated: 1 जुलाई 2022, 23:46 IST)
Updated: 1 जुलाई 2022 23:46 IST
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पहले ये नक़्शा देखिए.

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यूक्रेन और तुर्की के बीच में अंडे के आकार की एक आकृति दिखाई देती है. ये आकृति पानी से लबालब भरी हुई है. इतना पानी कि इसे काला सागर कहा जाता है. अंग्रेज़ी में ब्लैक सी. ये नाम क्यों पड़ा? इसके पीछे भी एक कहानी है. ब्लैक सी के पानी में हाइड्रोजन सल्फ़ाइड की बहुतायत है. इसके चलते जो भी चीज़ गहराई में लंबे समय तक रहती है, वो काली पड़ जाती है. इस वजह से भी समंदर का नाम ब्लैक सी रख दिया गया. नामकरण में एक और कहानी चलती है. ब्लैक सी में काफ़ी भयंकर तूफ़ान आते रहते हैं. तूफ़ान के कारण नेविगेट करना डार्क हो जाता है. नाविकों को समंदर का पानी काला दिखता है. इसलिए भी इसको ब्लैक सी कहा जाता है. 

आज ब्लैक सी की चर्चा क्यों?

दरअसल, इसी समंदर में पड़ा एक पत्थर का एक छोटा सा टुकड़ा रूस और यूक्रेन की नाक का सवाल बन गया है. कितना छोटा टुकड़ा? महज 42 एकड़. ये इतना छोटा है कि ये दो बार दिल्ली के क़ुतुब मीनार कॉमप्लेक्स में समा सकता है. इसका नाम है, ज़मेनाई आईलैंड. इसे स्नेक आईलैंड के नाम से भी जाना जाता है. युद्ध की शुरुआत में रूस ने इस टुकड़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था. 30 जून को यूक्रेन ने स्नेक आईलैंड पर दोबारा से क़ब्ज़ा कर लिया. रूसी सैनिकों को यहां से हारकर वापस लौटना पड़ा. इसे रूस की बड़ी हार के तौर पर गिना जा रहा है.

आज हम जानेंगे,

- स्नेक आईलैंड का पूरा इतिहास क्या है?
- रूस इस आईलैंड को अपने नियंत्रण में क्यों नहीं रख पाया?
- और, इस घटना का रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर पड़ेगा?

आज हम स्नेक आईलैंड की चर्चा करने वाले हैं. पहले समझते हैं कि ये रूस और यूक्रेन के लिए इतना ख़ास क्यों है? स्नेक आईलैंड यूक्रेन की सीमा से सिर्फ़ 35 किलोमीटर दूर है. दक्षिण में बसे ओडेसा प्रान्त में यूक्रेन के अनाज के भंडार हैं. इसी पोर्ट से यूक्रेन पूरी दुनिया को अनाज का निर्यात करता था. निर्यात का ये रुट स्नेक आइलैंड से होकर गुजरता है. इसलिए रूस ने युद्ध की शुरुआत में सबसे पहले इसी आईलैंड पर क़ब्ज़ा किया था. मकसद ये कि यूक्रेन इस रास्ते अनाज का निर्यात न कर सके.

स्नेक आइलैंड रोमेनिया के समुद्री सीमा से काफी नजदीक पड़ता है. रोमानिया नेटो का सदस्य देश. इसलिए भी इस आइलैंड पर कब्ज़े का महत्व बढ़ जाता है. अतीत में रोमेनिया और यूक्रेन के बीच इस पर नियंत्रण के लिए झगड़ा हो चुका है. बाद में इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (ICJ) में ये मामला सुलझा था.

रूस हवाई सुरक्षा के लिए ब्लैक सी में मौजूद अपने जंगी बेड़े का इस्तेमाल करता है. लेकिन फ़रवरी में यूक्रेन मॉस्कोवा नामक जंगी जहाज को डुबो दिया था. इसके बाद रूस अपने एंटी एयरक्राफ्ट सिस्टम और क्रूज़ मिसाइलों को स्नेक आइलैंड पर इनस्टॉल करने की कोशिश कर रहा था. अब चूंकि आईलैंड उसके हाथ से निकल गया है, इससे उसके हमला करने की क्षमता पर तो असर पड़ेगा ही, उसकी अपनी सुरक्षा भी ख़तरे में पड़ जाएगी. आइलैंड पर अपना कब्ज़ा मजबूत कर रूस पूरे काले सागर के उत्तर पश्चिम इलाके पर कंट्रोल कर सकता था. इसके अलावा, स्नेक आइलैंड के आसपास के इलाके में पेट्रोलियम और नेचुरल गैस का प्रचुर भण्डार भी है.

लेकिन चारों तरफ से खुला होने के चलते इस आइलैंड की रक्षा करना मुश्किल था. आइलैंड की स्थिति और आकृति भी कुछ इस तरह है कि उसे सुरक्षा के लिहाज़ से कमज़ोर बताया गया है. आइलैंड, यूक्रेन के तट से केवल 35 किमी की दूरी पर है. दूरी इतनी है कि यूक्रेन की मिसाइल और ड्रोन हमले वहां आसानी से किए जा सकते हैं, यूक्रेन ने इस कम दूरी का फायदा उठाया और वही किया जो उसे करना चाहिए था, माने हमला! यूक्रेन ने आइलैंड पर धाबा बोल दिया, लगातार हमले किए, लेकिन यूक्रेन की सेना संख्या में बहुत छोटी है, उनके पास पर्याप्त संख्या में नौ सैनिक मौजूद नहीं है, जिसकी वजह से उसने अपने सेना सीधे आइलैंड पर नहीं उतारी बल्कि दूर से ही हमले जारी रखे,

यूक्रेन के सैन्य विश्लेषक ओलेह ज़दानोव ने भी यही कहा कि 

‘अगर हम आइलैंड में सीधे अपनी सेना उतारते तो हम रूसी सेना का सीधा टारगेट बन सकते थे, इसके बजाए हमने दूरी बनाए रखकर आइलैंड पर हमला करने का फैसला लिया. जो हमारे लिए फायदेमंद तो साबित हुआ ही साथ में ये हमारे लिए सुरक्षा के लिहाज़ से भी एक अच्छा विकल्प बनकर आया.’

यूक्रेनी सशस्त्र बलों के कमांडर वालेरी जालुज्नी ने इस जीत के बीच ये दावा किया है कि स्नेक आइलैंड से रूसी सेना को भगाने में बोहदाना हॉवित्जर ने अहम भूमिका निभाई है, अब आप सोच रहे होंगे कि हमने बोहदाना हॉवित्जर ऐसा भारी भरकम नाम तो ले लिए लेकिन ये बला है क्या? बोहदाना हॉवित्जर दरअसल एक तोप है जो यूक्रेन में डेवलप की गई है. इसे गाड़ी के ज़रिए कहीं भी लाया ले जाया जा सकता है. लेकिन इसकी रेंज आम तोपों की तुलना में अधिक होती है. यूक्रेन की सेना ने अपनी सीमा के अंदर रहते हुए इसी से हमले करके रूसी सेना को भागने पर मजबूर किया. इन सब हमलों के साथ यूक्रेनी सेना ने आइलैंड पर हवाई हमले भी किए. पिछले हफ्ते यूक्रेन ने एक स्टेटमेंट में कहा था कि सेना की तरफ से किए गए हवाई हमलों ने आइलैंड पर रुसी सेना को बड़ा नुकसान पहुंचाया था.

ये रही कहानी स्नेक आइलैंड की जीत की. अब इस बात पर आते हैं कि इस घटना का रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर पड़ेगा?

दिन-ब-दिन, जैसे-जैसे यूक्रेनी सेना का पलड़ा स्नेक आइलैंड पर भारी हो रहा था वैसे ही एक सवाल का वेग भी तेज़ हो रहा था. सवाल था कि अगर यूक्रेनी सेना इस आइलैंड पर जीत हासिल करने पर कामियाब हो जाती है तो क्या ये इस जंग के लिए एक गेम चेंजर साबित होगा? इस सवाल का जवाब आसान नहीं लेकिन अब इसको समझने की कोशिश करते हैं.

ये जीत यूक्रेन के लिए केवल एक प्रतीकात्मक जीत नहीं है बल्कि ये एक रणनीतिक सफलता है. वहीं हारे हुए रूस के लिए ये एक झटका भर है. और शर्मनाक हार भी. रूस के लिए ये हार एक झटका भर क्यों? क्योंकि इस हार से युद्ध की दिशा और दशा में कोई खास बदलाव नहीं आने वाला है. रूस का ध्यान अभी पूरी तरह पूर्वी डोनबास पर जीत हासिल करने का है. और सिर्फ पूर्वी डोनबास नहीं बल्कि रूस, यूक्रेन के दूसरे दक्षिणी हिस्से पर भी अपना कब्ज़ा हासिल करने में जुटा हुआ है. इनमें से ज़्यादातर हिस्सों पर रूस ने युद्ध की शुरुआत में ही अपना कब्ज़ा कर लिया था.

स्नेक आइलैंड भले ही काले सागर में सैन्य लिहाज़ से एक ज़रूरी हिस्सा हो सकता है, और ये बात भी सही है कि ये एक ऐसी जगह स्थित है जहां मिसाइल सिस्टम को युद्ध के समय अच्छे से लॉन्च किया जा सकता है लेकिन इसके बावजूद भी ये केवल एक छोटी चट्टान ही है. जिससे इसका जीतना या हारना एक बड़े युद्ध में निर्णायक भूमिका के तौर पर देखा जाना सही नहीं है.

असल सवाल तो ये है कि क्या रूसियों को बाहर करके, यूक्रेनियन वापस अनाज का निर्यात शूरू कर पाएंगे? युद्ध से हुई तबाही की वजह वैसे ही यूक्रेन की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है. भले ही यूक्रेन ने रूसियों को स्नेक आइलैंड से भगा दिया हो लेकिन रूस का काले सागर पर प्रभुत्व अभी भी बना हुआ है. सिर्फ एक आइलैंड के हार जाने से उनका प्रभुत्व कम नहीं हो जाएगा.

यूक्रेन ने ओडेसा से अनाज के काफिले को ले जाने के रूसी प्रस्तावों को ठुकरा दिया है क्योंकि यूक्रेन को उसके लिए बंदरगाह के बाहर से खदानों को हटाने की ज़रूरत होगी. वहीं दूसरी तरफ तुर्किए, रूस और यूक्रेन दोनों के साथ इस मसले को सुलझाने के लिए समझौता करने की कोशिश कर रहा है. नाटो शिखर सम्मेलन में तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन ने कहा कि,

‘हम दोनों देश के बीच एक संतुलित नीति बनाकर ये समस्या हल करने की कोशिश कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि इस संतुलित नीति के अच्छे परिणाम जल्द सामने आएंगे. हम इस कोशिश में लगे हैं कि जिन देशों में इस समस्या की वजह से अनाज की कमी पेश आ रही है, जल्द से जल्द एक गलियारा उपलब्ध करवाया जाए जिससे अनाज लाने ले जाने के लिए रास्ता बन पाए.’

अगले कुछ हफ्तों में यूक्रेन को अनाज के निर्यात के लिए फैसला लेना ही होगा. क्योंकि अगली फसल जुलाई में शुरू होने वाली है. अगर यूक्रेन जल्द ही ये फैसला नहीं लेता है तो देश में अनाज के भण्डारण की भी एक नई समस्या पैदा हो सकती है.

अब सुर्खियों की बारी.

पहली सुर्खी नेटो से जुड़ी है. स्पेन की राजधानी मेड्रिड में चल रहा नेटो का सम्मेलन समाप्त हो गया है. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद नेटो देशों के बड़े नेताओं की ये पहली बैठक थी. नेटो ने पहली बार चीन को प्राइमरी थ्रेट माना है.

नेटो की समिट से क्या कुछ निकला?

- नेटो ने कहा कि रूस ने उन मानदंडों और सिद्धांतों का उल्लंघन किया है जिन्होंने यूरोप की सुरक्षा को ख़तरे में डाला है. उसने रूस को अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया है. नेटो ने ये भी कहा कि अगर रूस ने कोई हिंसक कार्रवाई की तो सभी सदस्य एकजुट होकर उसका जवाब देंगे.

- नेटो ने आगे कहा कि किसी को भी हमारी ताकत परभी संदेह नहीं करना चाहिए, हमारे क्षेत्र के हर एक इंच की रक्षा पूरे नेटो की ज़िम्मेदारी है. नेटो के सेकेट्री जनरल जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि रूस के पूर्वी हिस्से में हम सैनिकों की संख्या बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं.

- अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वे यूरोप में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ावा देने की तैयारी में लगे हुए हैं, इसके लिए वो रोमानिया में सैनिकों की संख्या बढ़ाएंगे और पोलैंड में एक नया अमेरिकी बेस भी तैयार करेंगे. साथ ही अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम में 2 एफ -35 सैन्य़ विमानों के दस्ते भेजएगा और इटली में वायु रक्षा प्रणालियों को तैनात करेगा

- नेटो नेताओं ने कहा है कि चीन की महत्वाकांक्षाएं और उनकी नीतियां हमारे हितों, सुरक्षा और मूल्यों को चुनौती देती हैं. चीन ने पिछले कुछ समय से अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कई राजनितिक हटकंडे अपनाए हैं, इसके लिए उसने कई नियमों को ताक पर रखा है. चीन अंतरिक्ष, साइबर सहित कई तरह की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को नष्ट करने के लिए भी काम कर रहा है. इसके आलावा नेटो की इस बैठक में जलवायु परिवर्तन को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं हुईं और चिंताएं ज़ाहिर की गईं.

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