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कैसे काम करती है हैकर्स की दुनिया? कहां हुई थी दुनिया की पहली हैकिंग?

आपसे बहुत दूर बैठे उस व्यक्ति को न आपका फोन चाहिए ना आपका पासवर्ड. वहीं दूर बैठकर दूसरे के सिस्टम तक पहुंचने की कला कहलाती है हैकिंग.

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hacker (Photo- AI Generated)
हैकर (फोटो- ए आई)
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23 फ़रवरी 2024
Updated: 23 फ़रवरी 2024 21:27 IST
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अपने कंप्यूटर या फोन में आप अपनी कितनी जानकारी रखते हैं? ऑफिस की फाइलें, बैंक की डिटेल्स या और कोई जानकारी? पर क्या हो अगर आपको पता चले कि आपने जो कुछ भी अपने फोन या लैपटॉप में रखा है, उसे लगातार कोई और भी एक्सेस कर रहा है. आपसे बहुत दूर बैठे उस व्यक्ति को न आपका फोन चाहिए ना आपका पासवर्ड. वहीं दूर बैठकर दूसरे के सिस्टम तक पहुंचने की कला कहलाती है हैकिंग. कला इसलिए क्योंकि हैकिंग वाकई में एक हुनर है. अब वो इस्तेमाल करने वाले के ऊपर है कि वो इसका सही इस्तेमाल करता है या गलत. ठीक वैसे ही जैसे कोई भी हथियार उतना ही अच्छा या बुरा होता है जितना चलाने वाले की नीयत. 
तो समझते हैं-
-हैकिंग क्या है ?
-और इसकी शुरुआत कैसे हुई ?
हैकिंग क्या है इसको समझने के लिए पहले हम एक उदाहरण देते हैं. इस वक्त जब आप अपने स्मार्टफोन या लैपटॉप पर ये वीडियो देख रहे हैं, ठीक उसी व्यक्त आपसे मीलों दूर बैठा कोई इंसान आपके फ्रंट कैमरा को एक्सेस कर रहा है. आपके फोन के माइक से वो आपकी सारी बातें सुन सकता है. पर आप कहेंगे, बातें कुछ हवा-हवाई लग रही हैं. ज्यादा से ज्यादा कोई फोन की फाइल या डेटा एक्सेस कर सकता है. न कि कैमरा और माइक. पर ऐसा हुआ है, और वो भी अमेरिका में. 9/11 के बाद अमेरिका ने बड़े पैमाने पर अपने नागरिकों पर नजर रखना शुरू किया. एडवर्ड स्नोडन के लीक किए हुए दस्तावेज़ों के हवाले से फ्रंटलाइन (Frontline) ने रिपोर्ट किया कि अमेरिकी सरकार बड़े पैमाने पर अपने देश में होने वाली कॉल्स, मैसेज, ई-मेल्स. सब पर न सिर्फ निगरानी करती है बल्कि वो पूरा डेटा स्टोर भी करती है. और ये सब किया जाता था राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर. पर इस विषय में नहीं पड़ेंगे. एकदम शुद्ध-खांटी रूप से हैकिंग को समझेंगे.

आपने ये तो जान लिया कि हैकिंग से क्या-क्या करना संभव है. पर ये होती कैसे है. क्या कोई अलग तरह का डिवाइस होता है जिससे हैकिंग की जा सकती है? जवाब है नहीं. हैकिंग के लिए एक बढ़िया कंप्यूटर, और दिमाग में कंप्यूटर की नॉलेज होनी चाहिए. सरल शब्दों में कहें तो किसी के प्राइवेट कंप्यूटर या नेटवर्क में ग़लत तरीके से घुसने को ही हैकिंग माना जाता है. हैकिंग करने वाले को हैकर कहा जाता है. हैकर किसी सिस्टम में एक गड़बड़ी की तलाश करते हैं. जिसे हैकिंग की भाषा में बग या लूपहोल कहा जाता है. लूपहोल को ऐसे समझिए कि आपको  किसी मजबूत दीवार के पार जाना है. दीवार इतनी मजबूत है कि आप पार नहीं कर सकते. (ये दीवार टूटती क्यों नहीं मोमेंट है, गुरु!) पर यही हुआ खेला, क्या कि उस दीवार को बनाते वक्त एक ईंट पर थोड़ा कम सीमेंट इस्तेमाल हुआ और एक ईंट कमजोर रह गई. इतनी कि एक हथौड़ा पड़ते ही दीवार के आरपार दिखने लगा. ऐसी ही कमजोर ईंटें ढूंढते हैं हैकर्स. और तमाम कंपनियां जैसे गूगल ऐसी कमजोर ईंटों माने बग को ढूँढने पर प्राइज़ भी देती हैं. यानी आप अगर गूगल का कोई बग ढूंढकर उस कंपनी को बता को बताते हैं तो इसके बदले आपको खूब सारे पैसे मिलते हैं. यानी आप पेरेंट्स से कह सकते हैं कि दिन भर इन्टरनेट चला रहे, बग ढूँढ रहे, पैसे मिल रहे, मजे ही मजे. कुछ केसेस में तो जॉब की पेशकश भी की जाती है.

हैकिंग की शुरुआत कहां से हुई?
हैकिंग का पहला चैप्टर लिखा गया सन 1955 में. जगह थी अमेरिका की मशहूर Massachusetts Institute of Technology जिसे उसके शॉर्ट नाम MIT से ज्यादा जाना जाता है. 
MIT के कुछ स्टूडेंट्स को एक इलेक्ट्रिक सिस्टम को काबू करने को कहा गया. उन्होंने इसे कर भी दिया. और MIT गवाह बना इतिहास की पहली हैकिंग का. चूंकि उस समय कंप्यूटर खरीदना महंगा था इसलिए हैकिंग ने एक सिस्टम के जरिए दूसरे को एक्सेस कर समय और पैसा बचाया. ये एक शॉर्टकट था और तब ऐसा कोई शॉर्टकट ढूंढना एक गर्व की बात मानी जाती थी. शॉर्टकट ढूंढने वाले स्टूडेंट्स खुद को हैकर कहकर बुलाने लगे और दूसरा सिस्टम एक्सेस करना उनके बीच एक खेल की तरह लोकप्रिय हो गया. फिर समय बीतता गया और स्टूडेंट्स भी खुद को समय के साथ इम्प्रूव करते गए. फिर आया साल 1963 और MIT की पत्रिका The Tech में एक लेख छपा.  इसमें बताया गया था कि कैसे हैकर्स अवैध रूप से यूनिवर्सिटी के टेलीफोन नेटवर्क तक पहुंचने में कामयाब रहे थे. ये हैकिंग से जुड़ा पहला लिखित आर्टिकल था.

हैकर्स कितने तरह के होते हैं?
हैकर्स मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं. इनको ब्लैक हैट, व्हाइट हैट और ग्रे हैट हैकर्स कहा जाता है.  
और जिन MIT स्टूडेंट्स की बात हमने आपको बताई, वो थे ब्लैक हैट हैकर्स. तो पहले ब्लैक हैट ही समझते हैं. 

ब्लैक हैट, व्हाइट हैट और ग्रे हैट हैकर्स (फोटो- ए आई से जेनरेटेड)


1. ब्लैक हैट : इस तरह के हैकर्स को क्रैकर्स भी कहा जाता है. ये हमेशा गलत इरादों से किसी भी कंप्यूटर, सिस्टम ये वेबसाइट में घुसपैठ करते हैं. इनका उद्देश्य सिर्फ डेटा चोरी करना, बैंक खातों से पैसे चुराना, लोगों की निजी जानकारी चुराकर बेचना होता है. ब्लैक हैट हैकर्स होते तो जीनियस हैं, पर ये अपने ज्ञान का इस्तेमाल हमेशा गैरकानूनी कामों को करने के लिए करते हैं. 

2. दूसरे होते हैं व्हाइट हैट हैकर्स. आपने शरीफ लोगों के लिए व्हाइट कॉलर शब्द सुना होगा. वैसे ही व्हाइट हैट हैकर्स भी शरीफ होते हैं. 
इनके लिए एक और शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, एथिकल हैकर्स. एथिकल का शाब्दिक आर्ट देखें तो होता है नैतिक. माने जो काम किसी सही उद्देश्य से किया गया हो. यानि ये अच्छे वाले हैकर्स हैं. इनका काम ब्लैक हैट हैकर्स से दुनिया को सुरक्षित रखना है. सरकारी संस्थाएं, बैंक, बिजनेस करने वाली कंपनियां व्हाइट हैट हैकर्स को अपने साथ रखती हैं. व्हाइट हैट हैकर्स कंपनियों में या फ्रीलांसर के तौर पर काम करते हैं. ये लगातार अपने ग्राहकों को संभावित खतरों और साइबर अटैक से बचाने के लिए काम करते हैं.

3. तीसरे होते हैं ग्रे हैट हैकर्स. हैट का कलर देखें तो लगता है कि ये न पूरे ब्लैक हैं न पूरे व्हाइट. इनकी सुई दोनों के बीच में कहीं टिकती है. ये आपके सिस्टम में घुसते तो चोरी से हैं, पर इनका इरादा चोरी करने का नहीं होता. ये अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल साइबर सिक्युरिटी की दुनिया में नाम बनाने के लिए करते हैं. साथ ही ये किसी सिस्टम या वेबसाईट में घुसकर उसकी कमियां बताते हैं जिससे आने वाले समय में सिस्टम सुरक्षित रहे.

एक और तरीके के हैकर्स होते हैं जिनके बारे में हमें जानना चाहिए. इन्हें रेड हैट हैकर्स कहा जाता है. ये बिल्कुल एथिकल हैकर्स की तरह होते हैं सिवाय एक चीज के. जिन तरीकों का इस्तेमाल व्हाइट हैट वाले करते हैं, ये उससे कहीं आगे जाकर अपने काम को अंजाम देते हैं. ब्लैक हैट हैकर्स को रोकने के लिए ये हर तरह के तरीके, चाहे वो कानूनी हो या गैरकानूनी, सबका सहारा लेते हैं. जिन हैकर्स से खतरा हो सकता है ,ये उन्हीं पर साइबर अटैक करते हैं ताकि खतरा आने से पहले ही उसे खत्म किया जा सके.

हैकर्स से बचा कैसे जाए?
हैकिंग एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. समय के साथ अगर सिक्योरिटी में बेहतरी हो रही है तो हैकर्स भी उसी अनुसार खुद को बदलते रहते हैं. पर कुछ बेसिक टिप्स हैं जो आपको जाननी चाहिए. 
-हमेशा एंटी-वायरस को इंस्टॉल और अपडेट करके रखें. 
-इंटरनेट का इस्तेमाल करते समय ब्राउजर के सिक्योरिटी फीचर्स को ऑन रखें. 
-ऐसी वेबसाइट्स पर जाने से बचें जो सेफ नहीं हैं. आपका ब्राउजर अगर अपडेटेड है तो ऐसी वेबसाईट में एंटर करने से पहले आपको चेतावनी जरूर देगा. 
-वेबसाईट्स पर जाते समय ये ध्यान रखें कि वो HTTPS के एनक्रिप्शन वाली हों नहीं तो आपका डेटा चोरी हो सकता है. अब ये HTTPS क्या होता है? HTTPS का फुल फॉर्म  है Hypertext Transfer Protocol Secure. दो सिस्टम्स के बीच के कम्युनिकेशन को सिक्योर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. आप जब भी इंटरनेट पर कुछ सर्च करते हैं तब आपका ब्राउजर जानकारी के लिए सर्वर पर एक रिक्वेस्ट भेजता है. इस रिक्वेस्ट को भेजने के समय ये एक तय प्रणाली या प्रोटोकॉल के तहत काम करता है. ये प्रोटोकॉल इस बात को सुनिश्चित करता है कि आपके ब्राउजर और सर्वर के बीच, जानकारी का आदान-प्रदान सिक्योर है. आप जब गूगल सर्च करेंगे तो उसमें ऐसे लिखा आना चाहिए, “https://.
-हमेशा अपने सिस्टम को अपडेट करते रहें. इससे नए तरह के वायरस और बग सिस्टम को नुकसान नहीं पहुंचा पाते. 
-और आखिर में लास्ट बट नॉट द लीस्ट,, पासवर्ड को मजबूत रखिए. अलग-अलग अकाउंट्स पर एक ही पासवर्ड रखने से आप हैकर्स के लिए बहुत ही आसान निशाना बन जाते हैं.   

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