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कैलेंडर तो बहुत बाद में बना, फिर कैसे तय हुआ 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाएगा?

क्रिसमस का इतिहास: कैसे मनना शुरू हुआ से लेकर अब तक?

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फोटो - सोशल मीडिया
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22 दिसंबर 2022 (Updated: 22 दिसंबर 2022, 16:50 IST)
Updated: 22 दिसंबर 2022 16:50 IST
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25 दिसंबर को आता है क्रिसमस. भारत में तो ईसाइयों की आबादी कुल 2.3% है, लेकिन दुनिया में सबसे ज़्यादा तादात ईसाइयत मानने वालों की ही है. कितनी? क़रीब 220 करोड़. यानी दुनिया के चार में से एक व्यक्ति ईसाई है. ऐसे में दुनियाभर में क्रिसमस एक बहुत बड़ा त्योहार है.

आज की प्रचलित मान्यता यही है कि क्रिसमस के दिन ईसा मसीह का जन्मदिन होता है. लेकिन इतिहास में घुसेंगे, तो ये मान्यता ग़लत साबित होगी. 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन नहीं होता! सबकुछ विस्तार से बताते हैं.

क्रिसमस कैसे मनना शुरू हुआ?

मान्यताओं को लेकर-लेकर अलग नजरिए बहुत लंबे समय से चले आ रहे हैं. ईसा मसीह के जन्म से लेकर अगले 800 सालों तक यूरोप और दुनिया के कई हिस्सों में ईसाइयत और पेगनिज़्म के बीच भयंकर विवाद चला. और, ये कोई परामर्श या संवाद नहीं था. ख़ूनी विवाद था, जिसमें कितने-कितने लोगों की जान गई. पेगनिज़्म है क्या? ईसा के आने से पहले पेगन्स थे. पेगन्स मानते थे कि प्रकृति पवित्र है और हमारे आसपास की दुनिया में जन्म, विकास और मृत्यु का गहरा आध्यात्मिक अर्थ है. 

वैसे तो अलग-अलग क़बीलों की अलग-अलग मान्यताएं थीं, लेकिन सबमें प्रकृति आस्था का स्रोत थी. कोई सूरज को पूजता था, कोई पत्थर, कोई पेड़. फिर आए ईसा मसीह. 'ईश्वर एक है' का कॉन्सेप्ट आ गया. बहुत सारे लोगों को इस विचार ने मुतास्सर किया, सो वो ईसा मसीह की शिक्षाओं को मानने लगे. बहुत सारे लोगों पर ये मान्यताएं थोपी गईं. और, इसी पर विवाद चला. 800 सालों तक चलता रहा. दोनों पक्षों के लोग लड़े. लोग मारे गए. लेकिन क्रिसमस की जड़ें दोनों मान्यताओं के इतिहास का समुच्चय हैं.

रोमन एम्परर कॉन्सटैनटीन

क्रिसमस का रिवाज शुरू हुआ 336 AD में. रोमन राजा कॉन्सटैंनटीन के राज में. क्रिसमस की जड़ में पेगन कल्चर भी है और रोमन कैथलिक क्रिशचैनिटी भी. रोमन्स दिसंबर महीने में दो जश्न मनाते थे. पहला था सैटर्नलिया. दो हफ़्ते का उत्सव, जो उनके कृषि देवता सैटर्न के सम्मान में होता था. और, 25 दिसंबर को रोमन्स अपने सूर्य देवता मिथ्रा के जन्म का जश्न मनाते थे.

पेगन्स का कनेक्शन ऐसा है कि दिसंबर में सबसे काली रातें आती थीं, तो पेगन्स अंधेरा मिटाने के लिए आग और मोमबत्ती जलाते थे. फिर रोमन्स ने भी इस परंपरा को अपने उत्सव में शामिल कर लिया. जैसे-जैसे ईसाइयत पूरे यूरोप में फैली, पेगन रीति-रिवाज ख़त्म होने लगे. क्योंकि कोई भी जीसस की असल जन्म तिथि नहीं जानता था, इसलिए उन्होंने 25 दिसंबर को ही उनके जन्मदिन की डेट बना दी.

एक बहुत ही शुरुआती ईसाई परंपरा के मुताबिक़, 25 मार्च को ईसा मसीह की मां मैरी को बताया गया था कि वो एक बहुत ही ख़ास बच्चे को जन्म देने वाली हैं. और, 25 मार्च के नौ महीने बाद आता है 25 दिसंबर. कुछ ईसाई मान्यताओं के हिसाब से 25 मार्च वो दिन भी है, जिस दिन दुनिया बनी थी. इसलिए, आज भी क्रिशचैनिटी में 25 मार्च एक अहम दिन है. लेकिन ये कोई पुख़्ता दावा नहीं है कि 25 दिसंबर ही क्यों? कई मान्यताएं हैं, कई किंवंदतियां. कुल मामला 'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा' टाइप है.

पेगन और क्रिशचन दोनों का त्योहार

पेगनों और क्रिशचनों का विवाद बता दिया. बावजूद इसके आज जिस शक्ल में क्रिसमस मनाया जाता है, उसमें दोनों कल्चर का मिक्स है. क्रिसमस ट्री की जड़ें पेगन कल्चर से हैं. उत्तरी-यूरोप के जर्मन पेगन ट्राइब्स मोमबत्तियों और सूखे फलों से अपने भगवान की पूजा में पेड़ों को सजाते थे. दिसंबर के ठंडे और अंधेरे दिनों में पेगन्स के लिए बड़े-ऊंचे पेड़ का महत्व था. वो मानते थे कि पेड़ों में एक अलग क़िस्म की शक्ति है. रोमन्स भी सैटर्नलिया समारोह के समय अपने मंदिरों को देवदार के पेड़ों से सजाते थे, लेकिन ये पेगन्स से बहुत बाद की बात है.

फोटो - पेगन्स शुरू में क्रिसमस ट्री को उल्टा कर के सजाते थे

सैंटा क्लॉज़ वाली परंपरा रोमन्स की तरफ़ से है. इसकी जड़ें जाती हैं तुर्की में. तीसरी सदी में तुर्की में एक संत हुए, सेंट निकोलस. वो एक चर्च में बिशप थे और अपने विश्वास के लिए उन्हें उत्पीड़ित किया गया, जेल में डाला गया. वो एक धनी परिवार से थे और ग़रीबों और वंचितों के लिए अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध थे. जब वो गुज़र गए, तो उनकी मौत के दिन को सेंट निकोलस दिन के रूप में याद किया गया. 

जैसे-जैसे समय बीता, अलग-अलग यूरोपीय संस्कृतियों ने सेंट निकोलस के अलग-अलग वर्ज़न्स अपना लिए. मसलन, स्विस और जर्मन कल्चर में 'अच्छे बच्चों' को तोहफ़ा देने का चलन चला. इंग्लैंड में इसे फ़ादर क्रिसमस और फ्रांस में पेरे नोएल नाम से जाना गया. नीदरलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, लोरेन, फ्रांस और जर्मनी के कुछ हिस्सों में उन्हें सिंटर क्लास नाम से प्रचलित किया गया. क्लास शब्द निकोलस से बना है. यहीं से आया सांता क्लॉज़ आता है.

आज के समाचार समाप्त. 

वीडियो: क्रिसमस तुलसी पूजन दिवस है तो बाकी त्योहार क्या हैं?

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