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907 साल रोमांस कर मुनि कंडु बोले, 'लव इज अ वेस्ट ऑफ टाइम'

सुनो मुनि कंडु के प्यार और गुस्से का किस्सा. सीधे विष्णु पुराण से.

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विकास टिनटिन
18 अगस्त 2016 (Updated: 21 अगस्त 2016, 11:52 AM IST) कॉमेंट्स
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पूर्वकाल में कंडु नामक मुनीश्वर हुए. गोमती तट पर तपस्या में जुटे थे. इंद्र हमेशा की तरह इनसिक्योर हो गए. खूबसूरत अप्सरा प्रम्लोचा को भेज दिया कि जाओ जी, कोई आइटम नंबर दिखाओ और खेल बिगाड़ो. जैसा प्लान था, वैसा ही रिजल्ट हुआ. प्रम्लोचा के आगे कंडु का कैरेक्टर डोल गया. सौ साल तक अप्सरा के साथ रोमांस में डूबे रहे. तब प्रम्लोचा ने कहा, हे डूड मुझे अब स्वर्ग जाना है. प्लीज लेट मी गो. कंडु बोले- अभी न जाओ छोड़ के, दिल अभी भरा नहीं. लिहाजा सौ साल के लिए मामला टल गया. एक बार अप्सरा फिर बोली, तपस्या वाले बाबू मुझे घर जाना है. कंडु बोले- कमऑन हग मी और जाने की बात भूल जाओ. चूंकि प्रम्लोचा कंडु के श्राप से डरती थीं तो विदआउट परमिशन कभी नहीं गईं. लेकिन एक दिन कंडु पुरानी फॉर्म में लौटे और कुटिया से निकलकर बोले- जाता हूं पूजा पाठ करने. शाम हो चुकी है. प्रम्लोचा बोलीं, इत्ते सालों में आपको आज साधना की सूझी है. मुनि कंडु बोले- दिमाग तो ठीक है. सुबह ही तो तुम आई हो और हमें आंखें दिखा रही हो. प्रम्लोचा ने कहा, नो इट्स रॉन्ग. गलत बात है ये. मुझे आए हुए 907 साल, 6 महीने और 3 दिन बीत चुके हैं. कंडु बोले- ओ शिट. आई हेट माई सेल्फ. धिक्कार है मुझ पर. मेरी सारी साधना लुट गई. क्या करने आया था और क्या कर बैठा. सालों तक जिस अप्सरा को कंडु ने जाने नहीं दिया था, उसे देखकर बोले, 'अरे पापिनी अब तेरा जहां मन करे, वहां तू जा. मेरे आंखों को हिप्नोटाइज करके जो तूने किया है, शुक्र मना तुझे भस्म नहीं कर रहा हूं. सारा टाइम खराब करवा दिया इंद्र ने. चली जा, अब यहां से.' पसीने से तर प्रम्लोचा रिलेशनशिप स्टेटस सिंगल लिए जंगल की तरफ बढ़ लीं. इस पसीने ने आगे क्या किया, इसकी कहानी अगली कड़ी में... स्रोत: विष्णु पुराण, पन्द्रहवां अध्याय

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