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जब शहीद अरुण खेत्रपाल के ब्रिगेडियर पिता अपने बेटे को मारने वाले पाकिस्तानी फौजी से मिले

दो ब्रिगेडियर्स की मुलाकात आपको गर्व से भर देती है.

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अनिमेष
16 दिसंबर 2018 (Updated: 16 दिसंबर 2018, 08:28 AM IST) कॉमेंट्स
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मैं सोचता हूं जो खेल है इस में इस तरह उसूल क्यूं है पियादा जो अपने घर से निकले पलट के वापस न जाने पाए

जावेद अख्तर की नज़्म के ये मिसरे दुनिया की हर जंग की कहानी बयां करते हैं. सिपाही एक दूसरे को कत्ल करते हैं, बिना एक दूसरे को जाने. उन सियासतदानों के हुकुम पर, जो जंग के कुछ दिन बाद ही एक दूसरे को मिठाई खिलाते, फोटो खिंचवाते हुए तमाम बातों को सिरे से बदल देते हैं. सन् 2001 में जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच लोगों का आना-जाना चल रहा था तो 81 साल के रिटायर्ड ब्रिगेडियर ML खेत्रपाल के पास पाकिस्तान के किसी ब्रिगेडियर का कई बार संदेश आता था. पाकिस्तानी अफसर हिंदुस्तान के इस रिटायर्ड फौजी से बार-बार पाकिस्तान आने और उनके यहां ठहरने की गुजारिश करते. ब्रिगेडियर खेत्रपाल इसको लंबे समय तक नज़रअंदाज करते रहे. फिर एक समय बाद हिंदुस्तानी फौजी ने पाकिस्तानी फौजी से मिलने का फैसला किया. ब्रिगेडियर खेत्रपाल की ख्वाहिश मरने से पहले एक बार पाकिस्तान के सरगोधा में अपने पुश्तैनी घर को देखने की थी. लाहौर रहने वाले ब्रिगेडियर ख्वाजा मोहम्मद नसीर ने उनके वीज़ा और पेपर की सारी व्यवस्था की. नसीर, उनका पूरा खानदान और तमाम नौकर, हिंदुस्तानी अफसर की खिदमत में ऐसे लगे रहे कि सालों बाद घर का कोई बुज़ुर्ग घर वापस आया हो. 3 दिन की मेहमाननवाज़ी ने ब्रिगेडियर खेत्रपाल को नसीर के बहुत करीब ला दिया. मगर वो तब भी ये समझ नहीं पाए कि आखिर क्यों दुश्मन मुल्क का एक फौजी उन्हें इतनी इज़्जत और प्यार दे रहा है.जब वापसी का समय हुआ तो ब्रिगेडियर नसीर ने बूढ़े फौजी से एक बात कही.
"सर, एक बात है जो मैं कई सालों से आपको बताना चाहता था मगर बताने का तरीका नहीं जानता था. मुझे आपकी खिदमत करने का मौका मिला, मैं इसके लिए शुक्रगुज़ार हूं. मगर इसकी वजह से मेरा रास्ता और मुश्किल हुआ है. मेरे ही हाथों अरुण का कत्ल हुआ था."
अरुण यानी सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल, हिंदुस्तान के सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता अफसर. 1971 की लड़ाई में बासंतार की जंग में पाकिस्तान के पास 5 बटालियन थीं और हिंदुस्तान के पास सिर्फ 3. और भी कई कारण थे जिसकी वजह से पाकिस्तान का पलड़ा भारी लग रहा था. तीन टैंकों के साथ 17 पूना हॉर्स के सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को सामने से आ रही पाकिस्तानी 13 लांसर्स के पैटन टैंक्स की कतार को रोकने की ज़िम्मेदारी दी गई. 21 साल का लड़का सामने से आ रही स्क्वाड्रन से भिड़ गया. पाकिस्तान के 10 टैंक खत्म कर दिये. इससे न सिर्फ पाकिस्तानी सेना का आगे बढ़ना रुक गया, बल्कि उनका मनोबल इतना गिर गया कि आगे बढ़ने से पहले दूसरी बटालियन की मदद मांगी. अरुण खेत्रपाल ने जो आखिरी टैंक नष्ट किया, वो उनसे 100 मीटर से से भी कम दूरी पर था. अरुण के टैंक में आग लग गई. सेना ने उन्हें टैंक छोड़ने का आदेश दिया. रेडियो पर अरुण के आखिरी शब्द थे.
"सर, मेरी गन अभी फायर कर रही है. जब तक ये काम करती रहेगी, मैं फायर करता रहूंगा."
इसके बाद टैंक में लगी आग में घिरकर अरुण शहीद हो गए. ब्रिगेडियर नसीर ने अरुण के पिता ब्रिगेडियर खेत्रपाल को बताया कि वो दोनों ही एक दूसरे पर फायर कर रहे थे. दोनों में से कोई एक ही ज़िंदा रह सकता था. ये नसीर की किस्मत थी कि वो बच गए. नसीर का कहना था कि फौजियों को ट्रेनिंग मिलती है कि दुश्मन से लड़ते समय भावनाओं और तर्क के बारे में न सोचें. मगर अरुण खेत्रपाल की बहादुरी की और उसके साथ हुए इस एनकाउंटर के बाद अक्सर नसीर के अंदर का इंसान उनके एक फौजी होने पर भारी पड़ता था. पूरी घटना सुनने के बाद ब्रिगेडियर काफी देर तक खेत्रपाल खामोश रहे. सामने वो शख्स था जो उनके जवान लड़के की मौत का ज़िम्मेदार था. 40 साल तक दिल में फांस लिए रहने के बाद एक तरह से प्रायश्चित कर रहा था. बूढ़े फौजी ने वही कहा, जो एक फौजी को दूसरे फौजी से कहना चाहिए, “तुम अपनी ड्यूटी कर रहे थे और वो अपनी.” 16 दिसम्बर को शहीद हुए सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी बहादुरी का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान डिफेंस की वेबसाइट पर भी अरुण खेत्रपाल की बहादुरी की कहानी को जगह दी गई है. आप इस लिंक पर क्लिक करके ये कहानी पाकिस्तानी वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं.

पाकिस्तान डिफेंस

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