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ये कौन हैं, जिन्हें किसान आंदोलन में बीजेपी का संकटमोचक माना जा रहा है?

विरोध का झंडा उठाए किसानों से हर बातचीत में इन्हें बिठाया जा रहा है.

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किसान नेताओं से बातचीत के बाद सोम प्रकाश, पीयूष गोयल और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ रहे.
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सिद्धांत मोहन
4 दिसंबर 2020 (Updated: 4 दिसंबर 2020, 02:06 PM IST) कॉमेंट्स
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पंजाब के जालंधर के पास का तलहान क़स्बा. ये कस्बा बाबा शहीद निहाल सिंह के लिए प्रसिद्ध है. वो निहाल सिंह, जिनके बारे में कहानियां हैं कि उन्होंने कुएं खोदकर ग़रीबों को पानी पिलाया था. बाबा निहाल सिंह के निधन के बाद वहां गुरुद्वारा बना. ये गुरुद्वारा एक और वजह से मशहूर है. जो विदेश यात्रा करने की मन्नत मांगते हैं, या किसी देश का वीज़ा लगवाना चाहते हैं, वो शहीद बाबा निहाल सिंह गुरुद्वारे में आकर खिलौना एरोप्लेन चढ़ाते हैं.  
साल 2003. दलित बहुल तलहान में दलितों और जाट समुदायों के बीच संघर्ष हुआ. संघर्ष इस बात का कि दलितों ने बाबा निहाल सिंह गुरुद्वारे की कमिटी में हिस्से के लिए दावा ठोक दिया था. दिन था 5 जून का. दोनों तरफ़ तनाव हो गया. ख़बरें बताती हैं कि पुलिस ने बढ़ते तनाव को कंट्रोल करने के लिए फ़ायरिंग कर दी. इसमें एक दलित युवक की जान चली गयी. तलहान समेत आसपास के कई क़स्बों में कर्फ़्यू लगा दिया गया. कांग्रेस की सरकार थी. अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री थे. पुलिस केस हुआ. बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश उपाध्यक्ष विजय साम्पला, बसपा के ज़िला प्रमुख पवन टीनू समेत 12 लोगों पर दंगे भड़काने के लिए FIR हो गयी. कई लोग अरेस्ट हुए. कहते हैं कि पंजाब में बीजेपी की और साम्पला की राजनीति इसी घटना से चमकी. कुछ दिनों तक चले तनाव के बाद मुद्दे का हल निकाला गया. तय हुआ कि गुरुद्वारा कमिटी में दलित समुदाय के दो लोगों को जगह दी जाएगी.
विजय साम्पला विजय साम्पला को एक समय पंजाब में बीजेपी के लिए जरूरी नेता माना जाता था. 

कट टु 2009. एक अधिकारी प्रशासनिक सेवा से रिटायर हुआ. अधिकारी को बीजेपी से जुड़ना था. उधर विजय साम्पला पंजाब में बीजेपी के लिए ज़रूरी और मज़बूत नेता थे. लेकिन इस सेवानिवृत्त अधिकारी ने विजय साम्पला से ही अदावत पाल ली. अधिकारी का नाम था सोम प्रकाश. वही सोम प्रकाश, जो इस समय कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रिमंडल के बीच 3 दिसम्बर 2020 को हुई मीटिंग के बाद जारी फ़ोटो में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच खड़े देखे जा सकते हैं. सोम प्रकाश को किसानों के आंदोलन में इस समय बीजेपी का संकटमोचक माना जा रहा है. ख़बर है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों से हो रही सारी बैठकों में सोम प्रकाश मौजूद रहते हैं.
Som 1 किसानों से मीटिंग के बाद जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मीडिया से बात की, तो सोम प्रकाश उनके साथ थे. (फोटो PTI)

कौन हैं सोम प्रकाश?
शहीद भगत सिंह नगर के दौलतपुर में साल 1949 में सोम प्रकाश का दलित परिवार में जन्म हुआ. प्राइमरी और मिडिल स्कूल की पढ़ाई के बाद चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी चले गए. वहां से BA की पढ़ाई की, और फिर MA की. अर्थशास्त्र से. साल 1972. सोम प्रकाश ने पंजाब राज्य प्रशासनिक सेवा का इम्तिहान दिया. चुने गए. सबसे पहले पंजाब स्टेट प्लानिंग बोर्ड में रिसर्च ऑफ़िसर की तरह काम किया. फिर पंजाब एक्साइज़ डिपार्टमेंट में एक्साइज़ और टैक्स अधिकारी की पोस्ट पर लग गए.
साल 1988 में सोम प्रकाश के लिए वो समय आया, जो राज्य सेवा आयोग के अधिकारियों के जीवन में बिरले ही आता है. सोम प्रकाश को प्रमोशन मिला. PCS से IAS अधिकारी बना दिए गए. फ़रीदकोट, होशियारपुर और जालंधर में डिप्टी कमिश्नर रहे. पंजाब अर्बन प्लानिंग एंड डिवेलप्मेंट अथॉरिटी में मुख्य प्रशासक अधिकारी रहे, लेबर कमिशनर रहे, पंजाब फ़ाइनैन्शल कॉर्पोरेशन में मैनेजिंग डायरेक्टर रहे, साथ ही सोशल सिक्योरिटी विभाग में निदेशक के पद पर भी रहे. 
Som 6 सोम प्रकाश (फोटो विकीमीडिया)

सर्विस से रिटायर हुए, तो राजनीति में एंट्री मारी. सबसे पहली लड़ाई के लिए सोम प्रकाश ने साल चुना 2009. लोकसभा के चुनाव थे. और लोकसभा सीट थी होशियारपुर, जहां डिप्टी कमिश्नर के पद पर सोम प्रकाश काम कर चुके थे. कहते हैं कि अपनी साफ़ सुथरी छवि के चलते सोम प्रकाश तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल के बहुत क़रीबी थे. बीजेपी ने टिकट दिया. सामने कांग्रेस के संतोष चौधरी थे. कांटे की टक्कर थी. संतोष चौधरी ने सीट निकाल ली. लेकिन मार्जिन बहुत कम रहा. लगभग 400 वोटों का. 
लेकिन सोम प्रकाश ने हार नहीं मानी. 3 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित फगवाड़ा विधानसभा से बीजेपी के टिकट पर पर्चा भर दिया. ख़बरें बताती हैं कि सोम प्रकाश को टिकट देने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री स्वर्णा राम का टिकट काट दिया गया था. टिकट कटने से उठी नाराज़गी को मैनेज करने ख़ुद अरुण जेटली को आना पड़ा था.
सोम प्रकाश के सामने कांग्रेस के बलबीर कुमार सोढ़ी थे. सोम प्रकाश ने सीट निकाल ली. इसके दो साल बाद लोकसभा चुनाव आए. 2014 में भाजपा का कायाकल्प होने लगा था. कहते हैं कि इस बार सोम प्रकाश के बजाय पार्टी ने विजय साम्पला को होशियारपुर से टिकट दे दिया. सोम प्रकाश चुप रहे. 
Som 4 अपने दफ़्तर में सोम प्रकाश (फ़ेसबुक/ सोम प्रकाश)

साल आया 2017. फगवाड़ा विधानसभा से ही फिर से सोम प्रकाश ने पर्चा भरा. फिर से जीत गए. लेकिन पार्टी पंजाब में हार चुकी थी. 2019 का लोकसभा चुनाव सिर पर आ गया. होशियारपुर लोकसभा सीट पर सोम प्रकाश की नज़र थी. लेकिन तत्कालीन सांसद साम्पला भी कमज़ोर नहीं थे. उन्होंने भी नज़र गड़ा रखी थी. ट्रिब्यून में छपी ख़बर बताती है कि चुनावों के ठीक पहले विजय साम्पला फगवाड़ा की राजनीति में उतर आए. स्वर्णा राम के समर्थक और सोम प्रकाश के विरोधी कार्यकर्ताओं को हवा देने लगे. सोम प्रकाश भी फगवाड़ा में मज़बूत थे. कहते हैं कि ये संघर्ष एक समय में इतना बड़ा हो गया कि फगवाड़ा में परियोजनाओं पर काम ठप पड़ गया. 
फिर होशियारपुर लोकसभा का टिकट बंटने की बारी आयी. भाजपा ने साम्पला का टिकट काट दिया. टिकट मिला सोम प्रकाश को. क़यास लगाए जाने लगे कि पार्टी के अंदर इतनी बड़ी फूट का ख़ामियाज़ा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है. लेकिन सोम प्रकाश ने कांग्रेस के चब्बेवाल को लगभग 50 हज़ार वोटों से हरा दिया. यूनियन कैबिनेट में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का पद सोम प्रकाश को मिला.
बीजेपी के लिए सोम प्रकाश अभी क्यों इतने ज़रूरी हैं?
सितम्बर 2020 का महीना याद करिए. पंजाब में बीजेपी के साथ दांतकाटी दोस्ती निभा रहे शिरोमणि अकाली दल ने किसानों के मुद्दों पर बीजेपी से अपना नाता तोड़ लिया था. हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफ़ा भी पकड़ा दिया. लेकिन अकाली दल प्रमुख प्रकाश सिंह बादल का प्रिय बंदा बीजेपी के साथ अब भी था. नाम सोम प्रकाश. ख़बरें बताती हैं कि जिस समय अकाली दल और भाजपा का साथ टूटा, भाजपा ने अपने पंजाबी बोलने वाले सांसदों और मंत्रियों से संपर्क किया. सनी देओल, अनुराग ठाकुर, गौतम गम्भीर, हंसराज हंस, हरदीप सिंह पुरी और सोम प्रकाश से कहा गया कि सोशल मीडिया का भरसक इस्तेमाल करें. किसान संगठनों और नेताओं तक पहुंच बनाएं ताकि कृषि बिलों का विस्तार हो सके. समीकरण और जानकार दोनों ये बात कहते हैं कि पंजाब के दोआबा के ग़रीब किसानों से संवाद करना हो या अकाली दल के होल्ड वाले जत्थे में बात पहुंचानी हो, सोम प्रकाश इस किसान आंदोलन के समय बीजेपी के लिए बहुत ज़रूरी हैं. सोम प्रकाश को पंजाब में दलित वोटों को जोड़ने के लिए बीजेपी का तुरुप का पत्ता भी कहा जाता है.

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