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हर्षवर्द्धन जैन जिन 4 देशों के फर्जी दूतावास चला रहा था, वो सच में हैं या केवल कवि की कल्पना हैं?

बिल्कुल ये चारों देश ‘कल्पना’ से ही आ सकते हैं क्योंकि इनका अस्तित्व ही ‘कल्पना’ में है. मान लीजिए आप अपने निजी कमरे को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दें. फिर ये भी एलान कर दें कि आप उस देश के राजा हैं. एक झंडा बना लें कि ये रहा मेरे देश का झंडा.

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Ghaziabad fake embassy man arrested
फर्जी दूतावास चलाने वाला गाजियाबाद से गिरफ्तार (India today)
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राघवेंद्र शुक्ला
25 जुलाई 2025 (Updated: 25 जुलाई 2025, 04:37 PM IST) कॉमेंट्स
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गाजियाबाद की एक कोठी में 4 देशों के फर्जी दूतावास चलाने वाले हर्षवर्द्धन जैन को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. जिन चार देशों का फर्जी दूतावास यह व्यक्ति चलाता था, उसके नाम भी ऐसे हैं कि शायद ही आपने कभी सुना हो. सुनते भी कैसे? ऐसा कोई देश इस संसार में एग्जिस्ट करता हो तब तो सुनते. अब वेस्टार्कटिका (Westarctica), सेबोर्गा (Seborga), पॉलोविया (Paulvia) और लाडोनिया (Ladonia) तो दुनिया के नक्शे में कभी दिखे नहीं. तो कहां हैं ये देश? और कविनगर के हर्षवर्द्धन की ‘कवि-कल्पना’ में ये आए कैसे?

बिल्कुल ये चारों देश ‘कल्पना’ से ही आ सकते हैं क्योंकि इनका अस्तित्व ही ‘कल्पना’ में है. मान लीजिए आप अपने निजी कमरे को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दें. फिर ये भी एलान कर दें कि आप उस देश के राजा हैं. एक झंडा बना लें कि ये रहा मेरे देश का झंडा. अब आपकी कल्पना में ही सही, लेकिन आपके पास एक देश है और आप उसके राजा हैं. ठीक इसी तरह के कई ‘काल्पनिक’ देश दुनिया में अस्तित्व रखते हैं जो कुछ लोगों ने या तो मनोरंजन के लिए बनाए. या प्रोटेस्ट में. या फिर किसी गंभीर मुद्दे को सपोर्ट करने के लिए. 

ऐसे देशों के बाकायदा राष्ट्राध्यक्ष बनाए गए. उनके झंडे तैयार हुए. और तो और, जमीन हो या नहीं, हजारों लोगों ने ऐसे देशों की ‘नागरिकता’ भी ली. इन्हीं देशों को ‘माइक्रोनेशन’ कहा गया.

Micronation क्या है?

माइक्रोनेशन ऐसे 'देश' होते हैं जो खुद को एक आजाद और अलग राष्ट्र मानते हैं, लेकिन असल में उनकी कोई मान्यता नहीं होती. ये किसी खाली जमीन या विवादित इलाके पर ‘बसाए’ जाते हैं और कहते हैं कि हम एक अलग देश हैं. दुनिया में माइक्रोस्टेट्स मौजूद हैं. जैसे वैटिकन. यह इटली की राजधानी रोम शहर के भीतर ही मौजूद है. दुनिया का सबसे छोटा देश, जहां के प्रमुख होते हैं- रोमन कैथोलिक चर्च के पोप. लेकिन 'माइक्रोनेशन' इस कैटिगरी में नहीं आते. वैटिकन को तो दुनिया की मान्यता है, लेकिन माइक्रोनेशन को एक भी देश की मान्यता नहीं होती. ये तो मजे-मजे में बना दिए जाते हैं. 

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दुनिया के नक्शे पर नहीं होते 'माइक्रोनेशन' (इंडिया टुडे)

जैसे एक कहानी सुनिए.

1947 की बात है. फ्रांस के एक सरकारी अधिकारी ओटावियानी मोंबनुआ नाम के गांव में सरकारी काम से गए थे. यहां उन्होंने एक होटल में लंच किया, जो जॉर्ज पूर्शे नाम के व्यक्ति का था. मजाक-मजाक में जॉर्ज पूर्शे ने ओटावियानी से पूछा, 

क्या आपके पास Republic of Saugeais (सॉजै गणराज्य) में आने का परमिट है?

ओटावियानी ने हैरानी से पूछा, ‘ये क्या चीज है? अगर ये कोई रिपब्लिक है तो इसका राष्ट्रपति भी होना चाहिए. मैं आपको सॉजै का राष्ट्रपति बनाता हूं.’ 

फिर क्या था. फ्रांस और स्विट्जरलैंड के बीच 11 गांवों का एक नया देश बन गया और पूर्शे बन गए राष्ट्रपति. उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी गैब्रिएल ने यह पद ले लिया और सॉजे में एक प्रधानमंत्री, एक जनरल सेक्रेटरी (महासचिव), दो कस्टम अधिकारी, 12 एंबेसडर (राजदूत) और 300 से ज्यादा लोगों को honorary citizens बना दिया. इस देश का अपना राष्ट्रगान है. डाक टिकट है और करेंसी भी है. कहना ये है कि ‘मजाक-मजाक में भी देश बन जाते हैं'.

हर्षवर्द्धन जैन का वेस्टार्कटिका भी ऐसा ही एक देश है. 

दरअसल, धरती के एकदम दक्षिणी पोल पर गोलाकार, वीरान और बर्फीले रेगिस्तान वाला अंटार्कटिका महाद्वीप है. एक जमाने में अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया था. लेकिन 1959 में एक संधि हुई और ऐसे सारे दावे ‘फ्रीज’ कर दिए गए. कहा गया कि अंटार्कटिका का इस्तेमाल केवल साइंटिफिक रिसर्च के लिए ही होगा. 

लेकिन साल 2001 में मैकहेनरी नाम के एक व्यक्ति ने अंटार्कटिका पर ये कहते हुए दावा कर दिया कि अंतरराष्ट्रीय समझौता ‘सिर्फ देशों पर लागू होता है’, व्यक्तियों पर नहीं. इसके बाद उन्होंने अपने आपको अंटार्कटिका का 'कौंसल जनरल' घोषित कर दिया और नाम रखा- 'अकियन टेरिटरी ऑफ अंटार्कटिका'. साल 2004 में 'नेपोलियन के वेस्टफेलिया किंगडम' से प्रेरित होते हुए मैकहेनरी ने इसका नाम बदल दिया और इसे ग्रैंड डची बना दिया. माने ऐसा देश जहां का शासक ‘ग्रैंड ड्यूक’ होता है. नया नाम रखा- ‘वेस्टार्कटिका’.

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अंटार्कटिका पर कई देशों ने दावा किया था (India Today)

ये सेबोर्गा (Seborga) क्या है? 

सेबोर्गा इटली की सुंदर पहाड़ियों पर बसा एक छोटा सा गांव है, जहां पर 300 से कुछ ज्यादा लोग रहते हैं. इस गांव का सपना है- एक आजाद देश बनना. इस गांव के पास अपना झंडा है. राष्ट्रगान है. पासपोर्ट है और अपनी करेंसी भी है. एक राजघराना भी है, जहां राजा वंश के आधार पर नहीं चुने जाते हैं. बल्कि हर 7 साल पर यहां राजा का चुनाव होता है. गांव जाने वाले रास्ते पर एक अनऑफिशियल बॉर्डर भी बना है, जहां सेबोर्गा के झंडों की तरह रंगी हुई एक चौकी भी दिखती है.

सीएनएन के मुताबिक, 1960 के दशक से इस गांव ने देश बनने का सपना देखना शुरू किया जब जॉर्जियो कारबोने नाम के एक स्थानीय व्यक्ति ने अपने गांव का इतिहास खंगालना शुरू किया. उन्हें पता चला कि साल 954 में सेबोर्गा को बेनेडिक्टाइन संतों (Benedictine monks) को दान दिया गया था. फिर 1729 में इन Monks ने इसे सार्डीनिया किंगडम को बेच दिया. बाद में यह इटली का हिस्सा बन गया लेकिन कारबोने के मुताबिक, इस 'बिक्री' का कोई ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद नहीं है. उनका दावा है कि सेबोर्गा कभी भी आधिकारिक रूप से इटली का हिस्सा बना ही नहीं. इसी ‘तर्क’ पर सेबोर्गा के लोग उसे अलग ‘देश’ बनाना चाहते हैं. हालांकि, इटली की अदालतों ने उनकी मांगों को खारिज कर दिया है.

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माइक्रोनेशन ऐसे 'देश' होते हैं जो खुद को एक आजाद और अलग राष्ट्र मानते हैं (India Today)

हर्षवर्द्धन जैन का तीसरा देश है- Ladonia. एक आर्टिस्ट की कला पर बसा देश.  

लाडोनिया दक्षिणी स्वीडन में कुल्लाबर्ग के शानदार कुदरती नजारों के बीच बसा ऐसा देश है, जिसका कुल क्षेत्रफल ही 1 वर्गकिमी है. है न हैरानी की बात. और सुनिए. इस देश के दुनिया भर में 27 हजार नागरिक हैं. रानी इस देश की मुखिया होती हैं. लाडोनिया देश का जब संविधान बना तो इसके संस्थापकों ने तय किया कि इस देश की गद्दी पर सिर्फ रानी बैठेगी. राजा नहीं. तर्क था कि इतिहास में औरतों को शासक बनने का पूरा मौका नहीं मिला. इसलिए लाडोनिया में रानी का ही ‘राज’ चलेगा.

इन अनोखे देश की कहानी भी अनोखी है. लाडोनिया की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, स्वीडन में एक कलाकार हुए लार्स विल्क्स. उन्होंने स्कॉने इलाके में एक पहाड़ी पर लकड़ियों से मूर्ति बनाई थी. नाम रखा- निमिस (Nimis). लोकल प्रशासन को इसकी खबर लगी तो उन्होंने इसे गैरकानूनी बताते हुए विल्क्स पर केस कर दिया. इसके कुछ सालों बाद विल्क्स ने पत्थर और कंक्रीट की आर्क्स (Arx) नाम की एक और मूर्ति बनानी शुरू कर दी. प्रशासन की नजर में वह पहले ही दोषी थे. इसने झगड़ा और बढ़ा दिया. कोर्ट-कचहरी से कलाकार इतना परेशान हुआ कि साल 1996 में उसने मूर्तियों के आसपास के इलाकों को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया. नाम रखा - लाडोनिया.

एक साल के भीतर इस देश के एक हजार से ज्यादा नागरिक हो गए. संविधान बना. कहा गया कि लाडोनिया में गणतांत्रिक राजशाही (Republican Monarch) होगी. यानी इसमें राष्ट्रपति और रानी दोनों होंगे. Ywonne-I बनी पहली रानी और ब्राजील के रहने वाले फर्नांडो रोड्रिग्स बने पहले राष्ट्रपति.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पहली रानी ने 14 साल तक शासन किया लेकिन साल 2011 में अचानक एक दिन लापता हो गईं. उनके परिवार से बात करने कोशिश की गई लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. बाद में संविधान के अनुसार, नई रानी के लिए चुनाव कराए गए. सरकार में मंत्री के तौर पर काम कर रहीं कैरोलिन शेल्बी ने चुनाव जीता और रानी बन गईं.

लाडोनिया के ज्यादातर नागरिक स्वीडन, अमेरिका और रूस से हैं. एक दिलचस्प बात और बताएं. 2003 के आसपास पाकिस्तान के तकरीबन 4000 लोगों ने लाडोनिया की नागरिकता के लिए आवेदन किया था. हालांकि, उनमें से किसी को नागरिकता नहीं मिली. कारण था कि पाकिस्तानियों को लगा कि लाडोनिया कोई असली देश है, जहां उन्हें बढ़िया जीवन मिल सकता है.

चौथा और आखिरी देश है- पॉलोविया (Paulvia).

बाकी कथित देशों के बारे में तो कुछ न कुछ पता है, लेकिन इसके बारे में जानने की कोई कड़ी कम ही बची है. 2015 से पहले इस देश की एक वेबसाइट हुआ करती थी लेकिन अब उसका भी कोई अता-पता नहीं. PHILAPOSTEL Bretagne नाम के ब्लॉग पर इसके बारे में जरा-जरा सी जानकारी है. इसके मुताबिक, पॉलोविया एक पूरी तरह से काल्पनिक (virtual) माइक्रोनेशन है. इसे राजकुमार पॉल प्रथम (Prince Paul I) ने 31 जुलाई 1998 को बनाया था. इंटरनेट पर यह 27 जुलाई 2005 को पहली बार आया. 

पॉलोविया को बनाने का मकसद मनोरंजन (entertainment) था, लेकिन इसका एक गंभीर पहलू भी है. ये पर्यावरण, शिक्षा और चैरिटी जैसे मुद्दों को सपोर्ट करने के लिए बना था. यह माइक्रोनेशन किसी जमीन या इलाके पर अपना दावा नहीं करता, लेकिन इसका अपना झंडा और निशान भी है. 

वीडियो: गाजियाबाद में मिला फर्जी एंबेसी, अंदर का हाल देख सिर चकरा जाएगा

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