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जब जेहादी पॉर्न फिल्म देखते हैं तो क्या होता है?

पढ़ो ISIS वालों के तीन फनी किस्से.

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सौरभ द्विवेदी
27 अगस्त 2016 (Updated: 10 अप्रैल 2017, 08:25 AM IST) कॉमेंट्स
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एक जर्नलिस्ट हैं. नाम हैं जोबी वैरिक. उन्होंने एक किताब लिखी इस साल. ब्लैक फ्लैग्स- द राइज ऑफ आईएसआईएस. इसमें ओसामा बिन लादेन के बाद की कहानियां हैं. सच्ची मुच्ची वाली. पहले हिस्से में जॉर्डन के गुंडे और फिर टेररिस्ट बने अबू मुसाब अल जरकावी की. दूसरे हिस्से में अबू बक्र अल बगदादी की. झाम किताब है. इसीलिए इसे इस साल का पुलित्जर प्राइज मिला है. नॉन फिक्शन कैटिगरी में. लल्लनटॉप आपके लिए लाया है तीन किस्से. जिनसे पता चलता है कि जेहाद के नाम पर लोगों को मार रहे, औरतों का रेप कर रहे लोग कितने बड़े गधे हैं .

black flags book

1. अडल्ट सिनेमा में बम फोड़ा तो क्या हुआ

इन काले झंडे वाले झंडू आतंकवादियों को इस्लाम की एक किताब की भविष्यवाणी पर भरोसा है. किताब का नाम है हदीस. इसमें लिखा है पूर्व से काले झंडेधारी आएंगे. ये बहुत ताकतवर होंगे. इनके बाल लंबे होंगे. दाढ़ी होगी. इनके जो सरनेम होंगे, वो इनके गांवों, कस्बों, कबीलों के नाम होंगे. तो बगदादी का बाप और लादेन का लौंडा यानी टेरर लिस्ट में बीच की कड़ी जॉर्डन का लुच्चा जरकावी ये सब कहता था. बोलता था हम वही हैं, जिनकी बात हदीस करता है. काले झंडे वाले लड़ाके. ये मूरख इस्लाम को बदनाम कर रहे थे. बाद में जरकावी अमरीका के मिसाइल हमले में टैं बोल गया. उसके कुछ साल बाद बगदादी के नेतृत्व में आईसिस बना. उन्होंने भी इसी लंतरानी को आगे बढ़ाया. ये लोग भी जरकावी को मुजाहिद शेख कहते रहे. शेख का एक चेला था. निरा गधा. ये उसकी कहानी है. जरकावी का एक गुरु था. इस्लाम के नाम पर शुद्धीकरण की बात करता था. मकदीसी नाम था उसका. उसने जॉर्डन की राजधानी अम्मान के आसपास के गुंडे इकट्ठे किए. देने लगा धार्मिक शिक्षा. असल मकसद था उनसे तोड़ फोड़ बमबाजी करना. तो उसके चेले कभी जाकर शराब की दुकान के बोर्ड तोड़ आते, तो कभी वीडियो शॉप पर गोली चला देते. एक बार ग्रुप के एक मेंबर ने कहा. मैं जेहाद करूंगा. उसे बम फोड़ने का काम दिया गया. कहां, एक अडल्ट फिल्में दिखाने वाले मूवी हॉल में. इस सिनेमाघरों को सलवा कहा जाता है जॉर्डन में. जेहादी गया. कुछ ही देर में धमाका हो गया. कितने मरे, कितने घायल हुए... कोई नहीं मरा. घायल बस एक आदमी हुआ. उसकी दोनों टांगें उड़ गईं. ये आदमी वही था, जो बम लगाने गया था. ऐसा कैसे हो गया. क्या बम पहले ही फट गया. नहीं, ये भटोरे लाल बम लेकर गए. फिल्म चल रही थी भीतर. कुर्सी के नीचे झोला रखा. कुर्सी के ऊपर अपनी तशरीफ रखी. मन लगाकर फिल्म देखने लगे. भूल गए कि बम भी फटना है. बम फटा तो उन्हीं की ऐसी तैसी कर दी. पुलिस ने पकड़ा तो जॉर्डन की कुख्यात अल जब्र जेल में रख दिया. यहां जरकावी ने इसकी बड़ी सेवा की.

2. भइया ये टैटू मिटता क्यों नहीं

zarqawi जरकावी का पढ़ाई लिखाई में ज्यादा मन नहीं लगता था. और तब तो वो अपने लिए ये केआरए सेट नहीं कर सकता था कि मैं कुछ ऐसा करूं कि अमरीका मुझ पर 25 लाख डॉलर का ईनाम रखे. तो लड़कपने के दिनों में वो मारपीट करता, छुरी चलाता, जुआ खेलता. फिर उसकी अम्मी को लगा कि बालक बर्बाद हो रहा है. उसे धार्मिक शिक्षा वाले अड्डों पर भेजने लगीं. यहां उसे लगा कि ज्ञान के कपाट खुल गए हैं. उस जमाने में अफगानिस्तान में लड़ाई चल रही थी. अस्सी के दौर के आखिरी कुछ साल थे. सोवियत रूस काबुल से अलविदा की नमाज पढ़ चुके थे. अमरीका से बंदूक और पाक से जमीनी सपोर्ट पाए मुजाहिदीन जीत रहे थे. जरकावी जाकर उनके साथ शामिल हो गया. मगर यहां उसे बड़ी शर्म आती, अपनी एक हरकत के चलते. दरअसल अम्मान में रहने के दौरान जरकावी ने अपनी बांह पर एक टैटू गुदवा लिया था. माचो फील करने के लिए. मगर उस इस्लाम में तो ये सब घटिया चीजें मानी जाती थीं, जिसे मानने समझने का वो दावा करता था. तो उसे लगा कि साथी मुजाहिदीन मेरा टैटू देखकर क्या सोचेंगे. बेचारा भरी गर्मी में भी पूरी बांह वाले कपड़े पहनता. फिर उसने टैटू हटाने के लिए कई जतन किए. कभी कोई जालिम लोशन लगाता तो कभी खाल जलाता. मगर कुछ न हुआ. आखिर में उसने छुरा लेकर अपनी वो बांह बुरी तरह काट पीट दी. टैटू तो नहीं गया, मगर उसकी असल शकल भी दिखनी बंद हो गई. तब जाकर जरकावी को कुछ राहत मिली.

3. खलीफा भी बन जाएंगे, पहले दांत तो मांज लें.

Abu-Bakr-al-Baghdadi ये तीसरी कहानी आईएसआईएस के पापा बगदादी की है. जुलाई 2014 को जनाब इराक के मोसुल शहर पहुंचे. शहर उसके काले लबादे वाले लड़ाकों के कब्जे में था. यहां मुसलमानों के बीच बेहद पॉपुलर और अपने आर्किटेक्चर की वजह से चर्चित अल नूरी मस्जिद है. जुमे के दिन बगदादी इस मस्जिद में गया. यहां उसे लेक्चर झाड़ना था. इसमें क्या नई बात है. नई बात ये थी कि इस पूरे वाकये की वीडियो रेकॉर्डिंग होनी थी. क्योंकि यहीं पर बगदादी खुद के खलीफा होने का ऐलान करने वाला था. खलीफा इस्लाम धर्म शुरू करने वाले मोहम्मद साहब के गद्दी पर बैठने वाले वंशजों का कहा जाता था. इनमें से कई महान शासक साबित हुए. मगर ये हजार बरस पहले की बात थी. अब तो सब जगह डेमोक्रेसी का डंका है. सिर्फ इस्लाम के नाम पर कोई भी दो कंट्री मिलकर एक नहीं हुए. तो इस्लाम का सूबा कैसे बनता. बहरहाल, बगदादी ने पहले पब्लिक अपीयरेंस में जमकर नौटंकी की. अपने कबीले की वजह से वह मोहम्मद साहब की वंशावली से जुड़ा था. इसलिए उस पाजी को लगता था कि वह एक महान आदमी की गद्दी का सीधा दावेदार है. ग्रैंड ईवनिंग के लिए बगदादी ने काला चोंगा पहना. पगड़ी भी काली थी. जैसे मोहम्मद साहब ने अपने आखिरी सरमन के दौरान पहनी थी. गनीमत है बगदादी ने काला चश्मा नहीं लगाया था, वर्ना डीजे वाले बाबू गाना भी बजा ही देते. जनाब ने भाषण के लिए जो पोडियम था, उसकी तरफ सीढ़िया चढ़ना शुरू किया. एक सीढ़ी चढ़ता, फिर रुकता. दाएं बाएं देखता. खड़ी पब्लिक को. गौर से. कहते हैं कि मोहम्मद साहब भी ऐसा ही करते थे. ठहरकर लोगों को गौर से देखते. फिर डायस पर आया. जनता को लगा कि अब स्पीच होगी. प्रेयर होगी. मगर ये क्या. उसने अपनी जेब से एक डंडी निकाली. मिसवाक नाम की जड़ी की. और लगा दांत मांजने. यहां भी मोहम्मद साहब का रिफरेंस था. उनके हवाले से हदीस में लिखा गया है कि दांतों की हाईजीन के लिए मिसवाक की डंडी चबानी चाहिए. इससे अल्लाह को खुशी मिलती है. तो अगली बार जब आप मिसवाक वाले टूथपेस्ट का ऐड देखें, तो इसे याद करें . दातून करने के बाद जरकावी ने इस सदी के अब तक के वक्त का सबसे कुख्यात ऐलान किया. मेरे मुजाहिदीन भाइयों, अल्लाह ने ये जीत दी है. मैं भी आपकी तरह उसका ही एक सेवक हूं. अब सब जगह इस्लाम का राज होगा. हम लाएंगे.

ब्लैक फ्लैग्स किताब को बैनटैम प्रेस ने छापा है. इंडिया में इसे पेंग्विन रैंडम हाउस पब्लिकेशऩ डिस्ट्रीब्यूट कर रहा है.


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