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अम्मा कैंटीन, इंदिरा रसोई, दीनदयाल रसोई जैसी योजना केंद्र सरकार क्यों नहीं लाती?

राजस्थान में अन्नपूर्णा रसोई की जगह अब इंदिरा रसोई आई तो मामला गर्म है.

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वसुंधरा राजे ने सीएम रहते हुए 2016 में राजस्थान में अन्नपूर्णा रसोई शुरू की थी. अब अशोक गहलोत इसी तरह की इंदिरा रसोई शुरू कर रहे हैं.
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26 जून 2020 (Updated: 26 जून 2020, 11:38 AM IST) कॉमेंट्स
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साल 2013. जरूरतमंदों को सस्ती दरों पर खाना मुहैया कराने की एक स्कीम शुरू हुई. नाम- अम्मा कैंटीन. यह स्कीम तमिलनाडु में शुरू हुई. तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस योजना की शुरुआत की. इसमें एक रुपये में इडली, पांच रुपये में सांभर-चावल मिलता था. लोगों को यह योजना खूब पसंद आई. इसलिए 2016 में जब जयललिता लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतीं तो अम्मा कैंटीन को इसकी बड़ी वजह माना गया. कहा जाता है कि अम्मा कैंटीन के चलते तमिलनाडु में 32 साल में पहली बार सत्ताधारी दल ने फिर से चुनाव जीता. 1984 से वहां पर लगातार सत्ता परिवर्तन हो रहा था.
पर अभी अम्मा कैंटीन की बात क्यों कर रहे हैं? 
अम्मा कैंटीन की देखादेखी राजस्थान में इंदिरा रसोई खुलने जा रही है. राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने 22 जून को इंदिरा रसोई योजना लॉन्च करने का ऐलान किया. कहा,
राजस्थान में अब कोई भूखा नहीं सोएगा. हम सालाना 100 करोड़ रुपये की लागत से इंदिरा रसोई योजना लेकर आ रहे हैं. इसमें स्थानीय स्वयं सहायता समूह की भागीदारी से हर गरीब को खाना खिलाया जाएगा.
गहलोत ने कहा कि इंदिरा रसोई योजना के तहत दिन में दो बार खाना खिलाया जाएगा. खाना पौष्टिक होगा और उसकी कीमत कम होगी. हालांकि सरकार ने अभी तक कीमतें तय नहीं की हैं.
वसुंधरा राजे ने अन्नपूर्णा योजना का नाम बदले जाने पर अशोक गहलोत पर निशाना साधा है. (File Photo: PTI)
वसुंधरा राजे ने अन्नपूर्णा योजना का नाम बदले जाने पर अशोक गहलोत पर निशाना साधा है. (File Photo: PTI)

वैसे राजस्थान ही नहीं देश के कई राज्यों में सस्ती दरों पर खाना खिलाने की योजनाएं चल रही हैं. लगभग सभी तमिलनाडु की अम्मा कैंटीन के तर्ज़ पर काम कर रही हैं. आइए एक नज़र डालते हैं-
राजस्थान
यहां अन्नपूर्णा रसोई योजना चल रही थी. वसुंधरा राजे ने दिसंबर, 2016 में इसे शुरू किया था. इसके तहत पांच रुपये में नाश्ता और आठ रुपये में भरपेट खाना दिया जाता था. इसकी जगह ही अब इंदिरा रसोई लाई जा रही है.
मध्य प्रदेश
दीनदयाल रसोई योजना. अप्रैल, 2017 में इसकी शुरुआत हुई. पांच रुपये में खाना खिलाने का ऐलान हुआ था.
कर्नाटक
सिद्धारमैया सरकार ने इंदिरा कैंटीन योजना शुरू की थी. अगस्त, 2017 से इसकी शुरुआत हुई. इसके तहत पांच रुपये में नाश्ता और 10 रुपये में खाना दिया जाता था. लेकिन बीजेपी सरकार का इस योजना पर ज्यादा ध्यान नहीं है.
कर्नाटक में इंदिरा कैंटीन में राहुल गांधी भी खाना खा चुके हैं.
कर्नाटक में इंदिरा कैंटीन में राहुल गांधी भी खाना खा चुके हैं.

दिल्ली
अरविंद केजरीवाल सरकार ने आम आदमी कैंटीन शुरू की. पहली कैंटीन जनवरी 2017 में खोली गई. लेकिन इसके बाद और नहीं खुल पाई. आम आदमी कैंटीन में 10 रुपये में खाना दिया जाता है.
आंध्र प्रदेश
चंद्रबाबू नायडू सरकार ने अन्ना कैंटीन शुरू की. जुलाई, 2018 से योजना शुरू हुई. इसमें पांच रुपये में नाश्ता, लंच या डिनर किया जा सकता था. साल 2019 में सरकार बदली. वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने योजना का नाम राजन्ना कैंटीन कर दिया.
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार ने शिव भोजन नाम से योजना शुरू की है.
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार ने शिव भोजन नाम से योजना शुरू की है.

महाराष्ट्र
उद्धव ठाकरे सरकार ने शिव भोजन स्कीम का ऐलान किया. जनवरी, 2020 से इसकी शुरुआत हुई. इसके तहत 10 रुपये में खाने की थाली दी जाती है.
ओडिशा
नवीन पटनायक सरकार ने आहार योजना शुरू की. अप्रैल, 2015 से इसकी शुरुआत हुई. इसके तहत पांच रुपये में खाना दिया जाता है.
उत्तर प्रदेश
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अन्नपूर्णा भोजनालय की शुरुआत की. मई, 2017 में इस बारे में ऐलान हुआ. योजना के तहत तीन रुपये में नाश्ता और पांच रुपये में खाना देने की बात कही गई. इससे पहले अखिलेश यादव ने समाजवादी कैंटीन लॉन्च की थी.
आंध्र प्रदेश की अन्ना कैंटीन. (File Photo)
आंध्र प्रदेश की अन्ना कैंटीन. (File Photo)

क्या मिलता है खाने में
राज्यवार खाने के आइटम अलग-अलग होते हैं. स्थानीय खाने को तरजीह दी जाती है. जैसे ओडिशा में दालमा परोसी जाती है. यह दाल और सब्जियों को मिलाकर बनाया जाता है. राजस्थान में अन्नपूर्णा रसोई में खीचड़ा मिलता था. यह बाजरे, चावल और दाल को मिलाकर बनता है. आंध्र प्रदेश में इडली, दही-चावल परोसा जाता है. तो दिल्ली में रोटी, चावल, दाल और सब्जी दी जाती है.
क्या शरीर की जरूरत के हिसाब से इन योजनाओं का खाना?
अब सवाल उठता है कि इन योजनाओं में जो खाना मिलता है, क्या वह शरीर की जरूरतें पूरी करता है? इस बारे में जानने के लिए हमने दो न्यूट्रिशन एक्सपर्ट्स से बात की.
न्यूट्रिशनिस्ट इशी खोसला ने बताया कि शरीर को उसकी जरूरतों के हिसाब से खाना चाहिए होता है. अगर ज्यादा मेहनत का काम है तो शरीर को खाना भी ज्यादा चाहिए होता है. पर जरूरी चीज है खाने से मिलने वाला पोषण. अगर रोटी, सब्जी, दाल, फल जैसी चीजें खाने में हैं तो वह खाना बेहतर है.
न्यूट्रिशन एक्सपर्ट बसंत कुमार कर ने कहा कि इन योजनाओं का बड़ा फायदा यह है कि जरूरतमंद लोगों को सस्ती दरों पर खाना मिल जाता है. जिससे उनकी कैलोरी और प्रोटीन से जुड़ी जरूरतें मुख्य रूप से पूरी हो जाती हैं. कई जगहों पर खाने में वैरायटी भी रहती है. दाल, सब्जी, चावल, रोटी खाने के जरूरी तत्व हैं. डाइट में इनके होने से शरीर को जरूरी पोषण मिलता है. हालांकि यह बहुत बेसिक है. सुधार की गुंजाइश तो है. लेकिन इस तरह की योजनाएं फायदेमंद हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है.
कोरोना और लॉकडाउन की वजह से मजदूरों के सामने शहरों में खाने की समस्य़ा खड़ी है. सस्ते दरों पर मिलने वाले खाने की योजना उनके लिए काफी काम की हो सकती है.
कोरोना और लॉकडाउन की वजह से मजदूरों के सामने शहरों में खाने की समस्य़ा खड़ी है. सस्ते दरों पर मिलने वाले खाने की योजना उनके लिए काफी काम की हो सकती है.

क्या केंद्र सरकार इस तरह की योजना चला सकती है और कैसे?
इस बारे में हमारी बात हुई आंबेडकर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर दीपा सिन्हा से. वह राइट टू फूड यानी खाने के अधिकार को लेकर काफी वक्त से काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार अगर ऐसी योजना लाए तो बेहतर ही होगा. उसके पास अनाज के भंडार भी हैं. फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया यानी एफसीआई सेंटर के अधीन है. उसके पास पैसा भी है. राज्य सरकारें तो केंद्र से अनाज लेकर ही स्कीम चलाती हैं. दीपा ने कहा,
अभी कोरोना के हालात हैं. इस वजह से खाने की समस्याएं हैं. लोगों के पास काम की कमी है तो वे खाना कहां से लाएंगे. शहरी इलाकों में तो हालात और खराब है. अगर सरकार सस्ती दरों पर खाना मुहैया कराए तो लोगों को राहत मिलेगी. राज्य सरकारों के पास भी अभी पैसों की कमी हैं. ऐसे में केंद्र सरकार को पहल करनी चाहिए. वैसे भी सरकार के पास जरूरत से कहीं ज्यादा अनाज गोदामों में पड़ा है. सस्ती दरों पर खाना मिलने का फायदा न केवल मजदूरों बल्कि छात्रों और बाकी जरूरतमंद लोगों को भी होगा.
दीपा सिन्हा ने कहा कि जैसे मिड डे मील में स्कूल में सब बच्चों को खाना दिया जाता है. सस्ते खाने की योजना भी वैसे ही होनी चाहिए. इसे सबके लिए खुला होना चाहिए. जैसे तमिलनाडु में अम्मा कैंटीन है. वहां कोई भी जाकर खाना खा सकता है. सबके लिए सस्ता खाना होने पर इसकी क्वालिटी ठीक रहेगी. और खरीदकर खाना खाने में लोगों का आत्म सम्मान भी बना रहेगा.


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